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काव्य: गोधूलि-सी शाम… (Poetry: Godhuli Si Sham)

गोधूलि-सी शाम में, तुम्हारे मखमली एहसास हैं… रेशम-सी रात में, शबनमी तुम्हारे ख़्वाब हैं…

एक मुकम्मल रुत हो तुम, मैं अधूरा पतझड़-सा…

तुम रोशनी हो ज़िंदगी की और मैं गहरा स्याह अंधेरा…

थक गया हूं ज़माने की रुसवाइयों से… डरने लगा हूं अब जीवन की तनहाइयों से… 

Poetry

तुम्हारे गेसुओं की पनाह में जो गुज़री महकती रातें, अक्सर याद आती हैं वो तुम्हारे नाज़ुक-से लबों से निकली मीठी बातें… 

मुझे अपनी पनाह में ले लो, बेरंग से मेरे सपनों में अपने वजूद का रंग भर दो… 

लौट आओ कि वो मोड़ अब भी रुके हैं तुम्हारे इंतज़ार में… सूनी हैं वो गालियां, जो रहती थीं कभी गुलज़ार तुम्हारे दीदार से… 

गुलमोहर-सी बरस जाओ अब मेरे आंगन में, मिट्टी की सोंधी ख़ुशबू सी बिखर जाओ इस सावन में… 

अपनी उलझी लटों मेंमेरे वजूद को सुलझा दो… तुम्हारा बीमार हूं मैं और बस तुम ही मेरी दवा हो… 

  • गीता शर्मा

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