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कविता- इश्क़ का एहसास (Poetry- Ishq Ka Ehsaas)

तुम्हारे भीतर 

जब मैं गुजरता हूं

तुम ख़ुद 

तुम कहां होते हो

यह बात तुम जानते नहीं कि 

जिस पल 

तुम तुम नहीं होते 

मैं 

तुम्हारे भीतर 

गुज़र रहा होता हूं

जैसे कई बार 

मैं

मैं नहीं होता

क्योंकि तुम

मेरे भीतर 

गुज़र रहे होते हो

हां,

मैं इसे जानता हूं

क्योंकि 

मैं इश्क़ करता हूं

और तुम 

अनजाने ही

अपने भीतर

मेरे इश्क़ के

एहसास से गुज़र जाते हो

जैसे न जाने मैं 

कितनी बार

अपने भीतर 

तुम्हारे इश्क़ के 

एहसास से गुज़र जाता हूं

बिना तुम्हारे बोले 

बिना तुम्हारे कुछ कहे…

- मुरली मनोहर श्रीवास्तव

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Photo Courtesy: Freepik

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