
आईआरएस ऑफिसर समीर वानखेड़े किसी परिचय के मोहताज़ नहीं है. साहसिक कारनामों से भरपूर अपने करियर में उन्होंने एक से एक मिशन को अंज़ाम दिया. इस धुरंधर अफ़सर ने अपने काम और नाम के बलबूते कई कीर्तिमान स्थापित किए. क़रीब साढ़े तीन हज़ार से भी अधिक ड्रग्स, माफिया से जुड़े केसेस सॉल्व किए.
मेरी सहेली के इस पॉडकास्ट में जानेेंगे समीर वानखेड़े का साहस, संघर्ष, हैरान कर देने वाले क़िस्से भी उनकी ज़ुबानी... पूरा पॉडकास्ट देखने के लिए लिंक पर क्लिक करें-
उनके बीस साल के बेहतरीन करियर में एनसीबी (नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो) मुंबई जोन के डायेक्टर रहते हुए उन्होंने न जाने कितने ख़तरनाक मामलों को सुलझाया. कई बार रेड डालते, अपराधियों को पकड़ने के सिलसिले में जान पर भी बन आई थी.

बकौल उनके एक बार उनकी टीम मानखुर्द, मुंबई में गैंग को पकड़ने के लिए कार्यवाही कर रही थी, तब उनको हमले से बचाने में उनके सहयोगी श्रीकांत घायल हो गए थे. उस घटना को याद करते हुए समीर वानखेड़े आदर और धन्यवाद के भाव के साथ उनके बारे में बताते हैं. साथ ही वे यह कहना भी नहीं भूलते कि बहुत कम लोग समझ पाते हैं कि हमारा काम कितना ख़तरों से भरा रहता है. लेकिन लोगों के लिए तो रील हीरो ही हीरो रहते हैं, जबकि सही मायने में इस तरह के काम करनेवाले, देश की सुरक्षा को लेकर प्रतिबद्ध लोगों का काम बेहद मुश्किलों भरा होता है.

ये लोग देश की रक्षा के लिए अपनी जान की बाज़ी तक लगा देते हैं. व्यक्तिगत तौर पर देखेंगे तो इन्हें छुट्टी तक बहुत कम कभी-कभी तो बिल्कुल नहीं मिलती. जब कभी ऑर्डर मिलता है पूरी मुस्तैदी से तैनात रहना पड़ता है. आर्थिक स्थिति की भी समस्याएं रहती हैं. सीमित आमदनी में घर-परिवार चलाना रहता है...
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समीर जी की ये बातें संकेत देती हैं कि सरकारी कार्यों से जुड़े ये जाबांज़ सिपाही तमाम जद्दोज़ेहद का सामना करते हैं, जिसे हम आम जनता बहुत कम ही समझ पाती है.

उन्होंने हज़ारों केसेस लड़े पर मीडिया उन्हें सेलेब्स से जुड़े सुशांत सिंह राजपूत और विशेषकर आर्यन खान को लेकर हमेशा ही टार्गेट करती रही है. जबकि उनका कहना है कि उनके लिए हर कोई बराबर है फिर सेलेब्स, कोई बड़ा नाम हो या फिर आम अपराधी.

यहां पर वाकई समीर वानखेड़े ने मीडिया को सवालों के घेरे में ला खड़ा कर दिया है. वैसे उनका कहना भी काफ़ी हद तक सही है. कहीं न कहीं एकबारगी हमें भी ख़ुद को टटोलना होगा कि केवल सनसनी फैलाने, लाइक्स, सबस्क्राइब, टीआरपी बढ़ाने की भेड़चाल में हम अपने नैतिक ज़िम्मेदारी के प्रति तो नहीं पिछड़ रहे. न्यूज़ में रहना, फेक न्यूज़ बनाना, बढ़ा-चढ़ाकर किसी को महिमामंडित करना, पक्षपातपूर्ण रवैया अपनाना, बॉलीवुड के प्रति आसक्ति आख़िर कहां ले जा रही है.

क्या अब वक़्त नहीं आ गया कि हम एक बार अपने पद और कर्त्तव्य को देखें-समझें, आत्मविश्लेषण करें. परंतु कहां हो पाता है यह सब. डिजिटल, कैमरा, लाइट्स की चकाचौंध बहुत कुछ धुंधला कर देती है और सबसे पहले ईमानदारी.

समीर वानखेड़े को अपने करियर में उनकी कर्त्तव्यनिष्ठता, साफ़गोई, बेखौफ़ एक्शन के लिए लगातार लंबे समय तक परेशान किया जाता रहा है. इन सबके बावजूद वे अपने सत्य पथ से डगमगाए नहीं. तभी तो बड़ी बेबाक़ी से वे कहते हैं- सत्य परेशान हो सकता है, पराजित नहीं...
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