बाई चॉइस और बाई डिफाॅल्ट की एनालिसिस से ज़िंदगी बदलने लगती है और एहसास होता है कि वाकई जिसे हम बाई डिफाॅल्ट मान दूसरे पर शिफ्ट कर रहे हैं, वह हमारी अपनी ही चॉइस है, पर माहौल बदला हुआ देख हम उसे स्वीकारने को तैयार नहीं हैं.
कुछ चीज़ें हमें बाई डिफाॅल्ट मिलती हैं और कुछ को हम चुनते हैं. भ्रष्टाचार हमें बाई डिफाॅल्ट मिला है और ईमानदारी हम चुनते हैं. विश्वास न हो, तो ज़रा बचपन में पढ़ाए जानेवाले पाठ याद करिए. सदा सच बोलो.. अहिंसा परमो धर्म.. जैसी चीज़ें इसके विपरीत गुणों के लिए क्यों नहीं पढाई जाती. सीधी-सी बात है कि यह मानकर चला जाता है कि बुरे गुण बच्चे के भीतर बाई डिफाॅल्ट हैं और उसे अच्छा बनाने के लिए नैतिक शिक्षा ज़रूरी है. मज़ा देखिए कि बचपन में तमाम नैतिक बातों को रोज़ रटवाने के बाद भी बच्चा जब बड़ा होता है, तो उस नैतिकता का बस एक-दो प्रतिशत ही बचता है उसके भीतर. इससे बुरे गुणों का आदमी के भीतर बाई डिफाॅल्ट छुपे होना सिद्ध होता है.
बाई डिफाॅल्ट का आजकल बहुत बड़ा स्कोप है. आप कोई भी साइट खोलिए, पाप अप विंडो बाई डिफाॅल्ट है और यहां आप चाहकर भी बाई चॉइस नहीं अपना सकते. कुछ आईटी वाले कहेंगे, "भाईसाहब, आप पाप अप विंडो ब्लाॅक का विकल्प चुन सकते हैं, पर उनसे पूछिए आजकल मेन साइट के ऊपर चिपककर जो ऐड खुलते हैं उनका क्या करें. नेटवर्क बाई चॉइस है, पर प्रमोशनल काल बाई डिफाॅल्ट. डीएनडी का तोड़ आजकल सारी है, जिसमें डायरेक्ट काॅल कर कस्टमर को डील किया जाता है और अब्जेक्शन करने पर कहा जाता है, "सर, दिस केस इज डिफरेंट हम एनजीओ से काॅल कर रहे हैं." या फिर "साॅरी सर, हमें पता नहीं था कि डीएनडी एक्टिवेट है."
देखिए सर, बाॅस डिफाॅल्ट होता है और उसे ख़ुश रखना आपकी चॉइस है. वैसे ही घर में सास-बहू का रिश्ता सदियों से खटासवाला बाई डिफाॅल्ट है और सुख-शान्ति बनाए रखना बेटे की चॉइस.
वैसे आप देखेंगे, तो पाएंगे ज़िंदगी में जो चीज़ें आपको ज़्यादा परेशान करती हैं, वे बाई चॉइस अधिक है, बाई डिफाॅल्ट कम. यह अलग बात है कि हम अपनी चॉइस को प्राॅब्लम में आने पर बाई डिफाॅल्ट की कैटेगरी में शिफ्ट कर देते हैं. जैसे घर से ऑफिस जाने के लिए शार्टकट वाला रास्ता हम चुनते हैं और जाम लगने पर ट्रैफिकवाले को कोसते हैं, जबकि सबने शार्टकट चुना और ऐसे रास्ते पर जाम लगना बाई डिफाॅल्ट है. कहने का अर्थ यह कि हम अपनी सुविधा अनुसार बाई डिफाॅल्ट को नेचुरल चॉइस बना देते हैं और फिर अपनी ज़िम्मेदारी से दूर हट जाते हैं. वैसे ही कपड़े ख़रीदने और टेलर चुनने तक मामला आपके हाथ में है, लेकिन सिल जाने के बाद पहनने पर लुक क्या आएगा यह अपकी बाॅडी से बाई डिफाॅल्ट जनरेट होता है. यही वजह है कि हर कोई स्टार नहीं बन सकता. राइटर की ज़िंदगी का त्रस्त और अस्त-व्यस्त होना बाई डिफाॅल्ट है, जबकि राइटर बन कर जीते रहना चॉइस है. इस चॉइस का रोना यह है कि तमाम झंझटों के बाद भी लेखक ख़ुद को बाई चॉइस मानने को तैयार नहीं होते और ज़बर्दस्ती अपने आपको बाई डिफाॅल्ट की कैटेगरी में रखते हैं जैसे वे पैदायशी सिरफिरे हैं और हर चीज़ को अलग नज़रिए से देखने के लिए ही पैदा हुए हैं.
वैसे हम गहराई से देखेना शुरु करें, तो बाई चॉइस और बाई डिफाॅल्ट की एनालिसिस से ज़िंदगी बदलने लगती है और एहसास होता है कि वाकई जिसे हम बाई डिफाॅल्ट मान दूसरे पर शिफ्ट कर रहे हैं, वह हमारी अपनी ही चॉइस है, पर माहौल बदला हुआ देख हम उसे स्वीकारने को तैयार नहीं हैं. बाई डिफाॅल्ट ज़्यादातर मामलों में हम अज्ञानी और नासमझ हैं और बाई चॉइस पूरी ज़िन्दगी दूसरों को अज्ञानी और नासमझ सिद्ध करते रहते हैं.
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