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रंग तरंग- शादी क्या है- ‘आपदा या अवसर’ (Satire Story- Shadi Kya Hai- ‘Aapda Ya Avasar)

शादी की इससे बड़ी कालजई परिभाषा दूसरी नहीं हो सकती. इसमें अनुभव, इतिहास, वर्तमान, भविष्य और चेतावनी सब कुछ है. ना समझे तो अनाड़ी है, लेकिन कौन कमबख़्त इस उम्र में समझना चाहता है. बुज़ुर्ग चिल्लाते रहते हैं- इक आग का दरिया है… मगर लोग कतार लगा कर आपदा के उसी दरियाए आतिश में टपकने का अवसर ढूंढ़ते हैं.

मेरा मुंह काहे खुलवाते हो, जब सब कुछ पता है आपको! हम सबके आदि पुरुष बाबा आदम को भी इस प्रतिबंधित फल से दूर रहने की सलाह दी गई थी! ज़ाहिर है कि तब भी इसका शुमार आपदा में होता था. मगर बाबा आदम और हव्वा ने आपदा को अवसर समझा और स्वर्ग से निष्कासित किए गए. तब से हम इंसानों की बुद्धि भ्रष्ट है. शादी से पहले हमें कोई कितना भी समझाए या धमकाए, हम आपदा के हवनकुंड में कूद कर मानेंगे. मुसीबतों में नत्थी होने के दो-तीन साल बाद ज्ञान चक्षु खुलते हैं कि जिसको समझा था खमीरा वो 'भकासू' निकला. इसमें हमारा कोई दोष नहीं, हम इंसान तो बाबा आदम की ग़लती का जेनेटिक कर्तव्य निभा रहे हैं. तो क्या हम 'ऊपरवाले' के डिवाइन षडयंत्र के शिकार हैं. ख़ैर, कौन जीता है तेरी ज़ुल्फ़ के सिर होने तक.
जब मेरी शादी तय हुई, तो मैं घनघोर कशमकश में था कि इसे आपदा समझूं या अवसर. एक तरफ़ शादीशुदा ईमानदार मित्र चेतावनी दे रहे थे, 'सावधान- 11000 बोल्ट… दूसरी तरफ़ कुंवारे मित्र हवन कुंड की ओर धकिया रहे थे, "मत चूको सुलतान!' (सच पूछो तो जो मित्र मुझे हवनकुंड से बचने की सलाह दे रहे थे, वही मुझे दुर्योधन लग रहे थे. उनकी हर नेक सलाह मुझे षडयंत्र लग रही थी) आख़िरकार पहुंची वहीं पे ख़ाक जहां का खमीर था… जन्नत को पहचानने में एक और बुद्धिजीवी असफल रहा. (ख़त को तार बेशक मत समझना, पर थोड़े लिखे को बहुत समझना) अब यही वंशानुगत ग़लती का सलीब हमें सदियों ढोना है.
ख़ैर, समय की कसौटी पर रुई की तरह धुनी जा रही ज़िंदगी के लिए शादी क्या है? आपदा या अवसर. आपदा किसके लिए है और अवसर किसके लिए. बड़ी वैश्विक बहस खिंच जाएगी. इस मुद्दे पर मुंडे मुंडे मतिरभिन्ना हो सकता है. लेकिन इस दौरे कोरोना में जो प्राणी शादी करने या झेलने का ख़तरा उठा रहे हैं, उनके लिए 'आपदा' पहले ही दिन से है अवसर की भविष्यवाणी नहीं कर सकता.
दूसरे शब्दों में 'शादी' क्षणभंगुर 'अवसर' का मायावी वर्तमान है और 'आपदा' अजर अमर भविष्य. शादी के बही खाता में अवसर बहुधा कल्पना है और आपदा एक क्रूर हक़ीक़त (अभी कुवारों को ये खुलासा हलाहल लग रहा होगा. रात-दिन प्रेमिका से चैट कर अपने लिए आपदा की बुकिंग मे लगे अविवाहित युवाओं को ऐसी सलाह ज़हर लगती है)
दिल्ली और महाराष्ट्र पर कोरोना काल में कुछ ज़्यादा ही सावन आया! दिल्ली ठहरी देश की राजधानी और मुंबई कमर्शियल राजधानी! कोरोना है कि मानता नहीं. आकर कुंडली में शनि की तरह लेट गया. पब्लिक पूछती रही, 'कोरोना तुम कब जाओगे…' कोरोना ट्रंप की तरह ज़िद कर रहा है- तेरे ज़ुल्फ़ों से जुदाई तो नहीं मांगी थी… दिल्ली में हो रही शादियों के लिए कोरोना आपदा भी रहा और अवसर भी. मार्च २०२० से जुलाई २०२० तक कोरोना के कथित तांडव के चलते न्यूनतम बजट में सैकड़ों शादियां निपट गईं. दिल्ली की ऐसी दो शादियों में मेरी भी शिरकत रही. एक में दोनों पक्ष को मिलाकर ३२ लोग थे और दूसरे में 18 लोग. काश दहेज पर भी कोरोना नियम लागू हो जाए!
सवाल वहीं खड़ा है, शादी क्या है- आपदा या अवसर. ग्रामीण विद्वानों ने इसे गुड़ भरी हंसिया कहा है (हंसिया एक धारदार किसानी औजार है) इस परिभाषा में मिठास का अवसर भी है और गला कट जाने की आपदा भी. शादी की इससे बड़ी कालजई परिभाषा दूसरी नहीं हो सकती. इसमें अनुभव, इतिहास, वर्तमान, भविष्य और चेतावनी सब कुछ है. ना समझे तो अनाड़ी है, लेकिन कौन कमबख़्त इस उम्र में समझना चाहता है. बुज़ुर्ग चिल्लाते रहते हैं- इक आग का दरिया है… मगर लोग कतार लगा कर आपदा के उसी दरियाए आतिश में टपकने का अवसर ढूंढ़ते हैं. ऊपरवाले तेरा जवाब नहीं, 'जन्नत का फोटो दिखाकर दोजख गिफ्ट कर दी… अब 'राही मनवा दुख की चिंता क्यों सताती है- आपदा तेरा साथी है, जा अपनी ग़लती का फल भुगत.
ईश्वर अपने ऊपर कोई ब्लेम नहीं लेता, जब कि सारा जाल उसी का बिछाया है. 'वो' करे तो कोई कारण होगा. हम करें, तो अपराध! हम से ग़लती हो जाए, तो आपदा का अटैक सौ पर्सेंट पक्का. अच्छे कर्म करें, तो भी अवसर की कोई गारंटी धीमी गति के उस समाचार से ज़्यादा कुछ नहीं, जिसके अंत में राहत सामग्री के लुट जाने का ज़िक्र होता है. ज्योतिषी इस आपदा के पीछे तुम्हारे द्वारा अनजाने में किया गया गुनाह बता देंगे. अब कहां जाऊं किससे पूछूं कि अनजाने में अच्छा काम क्यों नहीं होता. कई बार पूर्व जन्म के कर्म इस जन्म का सारा नफ़ा चौपट कर जाते हैं. शादी के लिए अपेक्षित नक्षत्र, लग्न, शगुन, कुंडली सब कुछ ठीक थी. ये आपदा तुम्हारे पूर्व जन्म के कुकर्म के कारण है… अब आप पूर्व जन्म के अपने अज्ञात कुकर्म को किस बही खाता में ढूंढ़ेंगे! (पिछले जन्म के कर्म की गंदगी को इस जन्म में धोने की व्यवस्था तो है, मगर इतना डिटर्जेंट लगेगा कि गरीबी रेखा के नीचे जाना तय है)
जब भी मुंह पर मूछें फूटें और मन में लड्डू तो समझ जाइए कि सुख भरे दिन बीते रे भइया आपदा आयो रे… मैं भी कभी बसंत लिए घूमता था. छत्तीस साल पहले की बात है, जब गांव में रहता था. वहां इश्क करना आज भी बड़ी जोख़िम का काम है. ख़ैर, हमारे दिल का धुआं देख दोनों परिवार के बुज़ुर्ग हफ़्तों खांसते रहे फिर शादी को राज़ी हो गए. होने वाले ससुरजी ने एक दिन मुझसे पूछा, "कुछ सोचा है आगे क्या करोगे?" ये सवाल बडा़ अजीब-सा लगा. शादी तो मैं कर ही रहा था, इससे भी महान काम और क्या हो सकता है. पढ़ाई कर चुका था और शादी करने जा रहा था. इसके आगे कुछ और करने की सोचना भी मेरे लिए गुनाह था. उन दिनों मैं आसमान में उड़ रहा था. नीचे बहुत कम उतरता था. ससुरजी का ये सवाल हफ़्तों मेरे उड़ने में बाधक बना रहा. (वो मुझे आनेवाली आपदा से सावधान कर रहे थे, पर उस वक़्त तो मुझे कबाब में हड्डी महसूस हुए.
तो हरि अनन्त हरि कथा अनंता!
इस मायावी गुड भरी हंसिया के बारे में पूछने पर अब मैं भी अविवाहित मित्रों को विनाशकारी सलाह देता हूं कि चढ़ जा बेटा सूली पर भली करेंगे राम…

Sultan Bharti
सुलतान भारती

Satire Story


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