Close

कहानी- आजकल झूठ बोलती हूं मैं… (Short Story- Aajkal Jhuth Bolti Hun Main…)

वह उन बच्चों में से तो है नहीं कि जिन्हें अपना इतना स्पेस चाहिए कि वह अपने रूम से ही न निकले! जाने के बाद भी तो आंखों के सामने कितने ही दिन घर में इधर-उधर घूमता दिखाई देता रहता है. खाने-पीने का इतना शौक़ीन है कि रात को ही पूछ लेता है कि कल क्या-क्या बनेगा. और अब पेरिस के एक ही रूम में बैठे उसके रात-दिन कट रहे हैं. कोरोना के केसेस दोबारा बढ़ने पर फिर सब कुछ बंद हो गया है.

''मां, आज आपने डिनर में क्या बनाया?''
''खिचड़ी!’’ मैंने अपने सामने रखी प्लेट में भेलपूरी और दही बड़े पर नज़र डालते हुए झूठ बोला. यह राहुल से चार साल बड़ी हमारी बेटी तनु की फ़रमाइश पर आज बना है. संडे है, आजकल बाहर का खाना नहीं है, तो घर में ही तनु की पसंद की चीज़ें बना दी हैं, जिससे वो कम से कम छुट्टी वाले दिन तो अच्छी तरह से बैठ कर कुछ खा ले, बाकी दिन तो वर्क फ्रॉम होम में काम में उसे होश भी नहीं होता कि क्या खा रही है.
''ओह नो, सो बोरिंग! कैसे खाते हो आप लोग खिचड़ी! संडे है, कुछ स्पेशल नहीं बनाया क्या? दीदी ने भी कुछ फ़रमाइश नहीं की संडे को?''
''नहीं, उसे सिंपल ही खाना था कुछ!''
''आज आप लोग थोड़ी देर बाहर घूमने नहीं गए?''
''नहीं, बेटा! कहां जाएं!'' मैंने अपने बाहर से आकर उतारे कपड़े संभालते हुए कहा.
''कहीं घूम आते मां, कम से कम थोड़ा सैर पर तो निकला करो आप लोग, कितने दिन से सब घर में ही तो बैठे हो!''
''हां, देखेंगें, चले जाएंगें किसी दिन…''
राहुल आदतन बहुत कुछ बड़ी रूचि से घर के बारे में एक-एक बात पूछता रहा. मेरा दिल बैठता रहा. अच्छा है, इस समय वीडियो कॉल नहीं है. झूठ बोलना मुश्किल हो जाता.
मैंने पूछा, ''बेटा, तुम क्या बनाओगे डिनर में?''
''बहुत थकान हो रही है. आज भी काफ़ी काम था. बस शायद कुछ शार्टकट बनाऊंगा.‘’
थोड़ी देर बाद हमने फोन रख दिया था. मैंने सामने बैठे मेरे लिए खाने का इंतज़ार करते अनिल और तनु पर नज़र डाली.



यह भी पढ़ें: पैरेंटिंग: बच्चों से कभी न कहें ये 6 झूठ (These 6 Lies You Should Never Tell Your Children)

अनिल ने कहा, ''यार! कितना झूठ बोलती हो आजकल. वो भी अपने बेटे से!''
मेरी आंखें भरती चली गई थीं. यूं ही सिर नीचे करके झूठी हंसी हंस दी थी, पर पति हैं मेरे, समझते ही हैं. बस मेरे हाथ पर हाथ रख दिया अनिल ने और तनु ने पास आकर मेरे गाल चूम लिए.
इसके बाद सबने बहुत चुपचाप ही खाया. मेरे इन झूठों का सच जानते हैं दोनों. राहुल लॉकडाउन के बाद फ्लाइट शुरू होते ही पेरिस लौट चुका है. नया-नया जॉब है. उसके जाने के बाद हम सबका एक हिस्सा उसके साथ ही तो चला जाता है और बच्चा अगर राहुल जैसा हो, तो उससे दूर रहना और भी मुश्किल होता है. जितने दिन घर में रहता है, आसपास ही तो रहता है.
वह उन बच्चों में से तो है नहीं कि जिन्हें अपना इतना स्पेस चाहिए कि वह अपने रूम से ही न निकले! जाने के बाद भी तो आंखों के सामने कितने ही दिन घर में इधर-उधर घूमता दिखाई देता रहता है. खाने-पीने का इतना शौक़ीन है कि रात को ही पूछ लेता है कि कल क्या-क्या बनेगा. और अब पेरिस के एक ही रूम में बैठे उसके रात-दिन कट रहे हैं. कोरोना के केसेस दोबारा बढ़ने पर फिर सब कुछ बंद हो गया है.
ख़ुद तकलीफ़ होती होगी उसे बहुत ज़्यादा काम के साथ-साथ अपने खाने-पीने के बारे में भी सोचने की भी. घूमने-टहलने वाला इंसान घर में बिल्कुल बंद बैठा है, तो मां हूं, झूठ ही तो बोलती हूं फिर!
नहीं कहा जाता कि हम वही चीज़ खा रहे हैं, जिसका तुम्हे शौक है और तुम्हें अभी लम्बे समय तक वो सब नहीं मिलेगी. नहीं कहा जाता कि अभी बाहर खुली हवा में टहलकर आए हैं, उसी जगह में जहां तुम रोज़ अपने दोस्तों के साथ घूमने जाते रहे हो!
तनु घर में रहती है, उसकी पसंद का भी तो ध्यान रखना होता है. कैसे कहूं राहुल, हम कर तो सब रहे हैं, जो देखने में आम जीवन जैसा लगता है, पर आम नहीं है. कुछ बहुत अलग है, जो तुम्हारे दूर रहने पर खलता रहता है. जो मुझे झूठ बोलने पर मजबूर करता है, अपने ही बेटे से. तुम्हारी पसंद की चीज़ें करने से तो तुम और आसपास महसूस होने लगते हो और देखो, फिर झूठ बोल देती हूं तुमसे!
ये झूठ मुझे एक अपराधबोध से भर देते हैं, पर अपनी पसंद की चीज़ों के बारे में सुनकर तुम्हारे चेहरे पर उदासी की एक शिकन भी आए, यह मुझे स्वीकार नहीं है, इसलिए झूठ बोल देती हूं आजकल!..

पूनम अहमद


यह भी पढ़ें: स्पिरिचुअल पैरेंटिंग: आज के मॉडर्न पैरेंट्स ऐसे बना सकते हैं अपने बच्चों को उत्तम संतान (How Modern Parents Can Connect With The Concept Of Spiritual Parenting)

अधिक शॉर्ट स्टोरीज के लिए यहाँ क्लिक करें – SHORT STORIES

Share this article