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कहानी- अपना-पराया (Short Story- Apna-Paraya)

क्या बच्चे की ग़लती के लिए सज़ा देना अनुचित है? वह समझ नहीं पा रहा था कि भाईसाहब-भाभीजी विक्की को अपने साथ क्यों ले गए? विक्की आज अगर उसका अपना बेटा होता, तब भी क्या वे दोनों उसे इसी तरह दोषी ठहराकर बच्चा लेकर चले जाते? क्या बच्चे की ग़लती पर माता-पिता को मारने का हक़ नहीं रहता है..?

"देवेशजी, आप तो पढ़े-लिखे इंसान हैं. इतनी निर्दयता से तो कोई जानवर को भी नहीं मारता. बच्चे प्यार से समझते हैं, मार-पीट से नहीं. प्यार रूपी नकेल से शैतान से शैतान बच्चे को भी ठीक किया जा सकता है. बच्चे तो फूल के समान होते हैं. उचित परवरिश से ही उनका उचित एवं संतुलित विकास हो पाता है."
डॉक्टर नरेन्द्र ने विक्की को देखकर किंचित क्रोध से कहा.
"क्या मैं अनाड़ी और बेवकूफ़ हूं, जो बेवजह ही विक्की को मारता हूं, पहले तो समझाने का ही प्रयत्न किया था. जो भी आता है, उपदेश देकर चला जाता है." देवेश मन ही मन बुदबुदा उठा था.
डॉ. नरेन्द्र मरहम-पट्टी कर दवा देकर चले गए थे. देवेश ने ऑफिस से छुट्टी ले ली थी. वह मन-ही-मन तर्क-वितर्क में उलझा हुआ था, किंतु डॉक्टर की धिक्कार से उसके अहंकार को ठेस लगी थी, अहं घायल हुआ था. सच तो
यह था कि उसमें सच्चाई का सामना करने की ताक़त नहीं बची थी.
उसने कहीं पढ़ा था कि सब कुछ होते हुए भी चोरी करना एक मनोरोग होता है. तभी बड़े-बड़े अमीर लोग भी डिपार्टमेन्टल स्टोर से यह समझकर मनपसंद सामान उठाते पाए जाते हैं कि उन्हें कोई देख नहीं रहा है. लेकिन जब स्टोर में लगे वीडियो कैमरे द्वारा उनकी चोरी पकड़ी जाती है, तब वह उसका खंडन करते फिरते हैं. कहीं विक्की भी तो इसी मनोरोग का शिकार नहीं हो गया? उसे मारने से पहले किसी मनोरोग विशेषज्ञ को दिखाना चाहिए था. किंतु प्रिया की बातों से उसे अनायास ही इतना क्रोध आ गया कि वह स्वयं को क़ाबू में न रख सका.
कॉलबेल की आवाज सुनकर दीपिका ने दरवाज़ा खोला. सामने जेठ नरेश तथा जेठानी अनिला को देखकर उसका चेहरा फक्क पड़ गया.
"अच्छा, तुम दोनों बातें करो. मैं काम करके आता हूं. वैसे भी इस समय देवेश और विक्की तो घर में होंगे नहीं." नरेश ने दीप्ति के चेहरे के उतार-चढ़ाव की ओर ध्यान दिए बिना ही कहा.
"दीप्ति, कौन है..?" अंदर से देवेश ने पूछा.
"देवेश आज ऑफिस नहीं गया था?" देवेश की आवाज़ सुनकर नरेश पूछते हुए कमरे में चले गए. अनिला तथा दीप्ति भी उनके पीछे आ गईं.
देवेश को बैठा और विक्की को लेटा देखकर अनिला ने चिंतित स्वर में पूछा, "क्या हुआ विक्की को..?"
देवेश भी उनको देखकर चौंक गया. उसने उठकर चरण स्पर्श तो कर लिए, लेकिन एकाएक समझ में नहीं आया कि उनके प्रश्न का क्या उत्तर दे..?
"इसे तो तेज बुखार है, अनिला ने विक्की का माथा छूते हुए कहा. तभी उनकी निगाह उसके गाल पर पड़े निशान पर गई, तो अनायास ही उनके मुंह से निकला, "अरे, इसके गाल पर यह नीला निशान कैसे पड़ गया?"
"मुझे माफ़ कर दीजिए पापा, अब मैं कभी…" विक्की स्पर्श पाकर धीरे-धीरे बुदबुदाने लगा था.

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"ओह! तुमने विक्की पर हाथ उठाया और वह भी इतनी बुरी तरह. मैंने आज तक अपने बच्चों को नहीं मारा और तुमने इस बेचारे मासूम को इतना मारा कि नीला निशान पड़ गया." अनिला ने लगभग चीखते हुए कहा, "मैंने इन्हें कितना मना किया था कि हम अपना बच्चा स्वयं पालेंगे, किसी को गोद नहीं देंगे. लेकिन देख लिया न गोद देने का नतीज़ा. भला कोई अपने बच्चे को इतनी बुरी तरह मार सकता है."
"भाभी, इसने चोरी की थी. इसकी इस बुरी आदत को देखकर मैं स्वयं पर काबू न रख सका और मेरा हाथ उठ गया." अपराधी भाव से देवेश ने कहा.
"शर्म करो देवरजी, मारकर पहले तो गलती की, अब चोरी का इल्ज़ाम लगा कर दूसरी ग़लती कर रहे हो. देवरजी, क्या तुम्हें मेरा बच्बा चोर नज़र आता है. और यदि इसने ग़लती से कुछ चुरा भी लिया, तो कौन-सा तुम्हारा ख़ज़ाना खाली हो गया, जो तुमने मार-मार कर इसकी यह हालत बना दी." रोते-रोते बोल रही थी अनिला.
"भाभी, मुझे भी इस बात का अफ़सोस है." देवेश ने अपनी ग़लती स्वीकारते हुए कहा.
"अफ़सोस है, कहने से तो इसकी चोटें ठीक नहीं हो जाएंगी. अब मैं तुम्हारे जैसे बेरहम के पास इसे नहीं छोड़ सकती. मैं आज ही इसे लेकर जा रही हूं." अनिला ने एकतरफ़ा निर्णय सुना दिया तथा नरेश ने भी मौन स्वीकृति दे दी.
देवेश और दीप्ति उनके सामने रोए-गिड़गिड़ाए, आश्वासन दिया कि अब वे ऐसी ग़लती नहीं करेंगे. उनकी छोटी-सी दुनिया का वही चांद और सूरज है. उसके बिना उनके जीवन में अंधेरा हो जाएगा. वे कैसे जीवित रह पाएंगे? पर उन दोनों ने उनकी एक न सुनी और उसी समय विक्की को लेकर चले गए. उनकी सारी ख़ुशियां, उमंगें विक्की के चले जाने से ख़त्म हो गईं.
दीसि ने पूरी रात रोते-रोते बिता दी तथा देवेश ने चलते हुए सीलिंग फैन को देखकर. उसे समझ में नहीं आ रहा था कि इतना प्यार देने के बाद भी उससे चूक कहां हो गई? वह विक्की को बेहद चाहता था. उसकी प्रत्येक इच्छा को पूरा करने की कोशिश करता था. वह जो मांगता, उसे लाकर देता था. किंतु फिर भी उसकी चोरी की आदत पता नहीं कहां से पड़ गई थी.
दीप्ति ने उसे एक नहीं, कई बार कहा था कि वह हमेशा गिनकर रुपए पर्स में रखती है, किंतु हर बार कम हो जाते हैं. शायद उसके पूछने का उद्देश्य यह रहता था कि कहीं उसने तो नहीं निकाले, लेकिन वह बात की तह में जाए बिना यह कहकर उसे चुप करा देता था कि तुम्हें भी ध्यान नहीं रहता कितना, कहां व कब ख़र्च किया. किंतु उसने कभी इस बात की कल्पना भी नहीं की थी कि रुपए कम होने की वजह विक्की भी हो सकता है.
इस बार तो विक्की ने हद ही कर दी. पड़ोसी दिव्येश के यहां से रिमोट कंट्रोल से चलनेवाली कार उठा लाया तथा पूछने पर बड़ी सफ़ाई से झूठ बोलते हुए कहा कि यह कार प्रिया ने उसे गिफ्ट में दी है. प्रिया और विक्की दोनों साथ ही पढ़ते थे. साथ-साथ ही स्कूल जाते और खेलते थे. कल वह विक्की से कोई कॉपी मांगने आई थी. विक्की कॉपी लेने अपने कमरे में गया, तो पीछे-पीछे वह भी चली गई, आलमारी से कॉपी निकालते समय आलमारी में रखी कार पर प्रिया की नज़र पड़ गई और वह कह उठी, "अरे! यह तो मेरी कार है, यह यहां कहां से आई? विक्की, तुम मेरे घर आकर इससे खेल रहे थे, लगता है तुम इसे चुराकर लाए हो…"

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"यह कार तुमने इसे गिफ्ट में दी थी ना?" विक्की के कुछ कहने से पूर्व ही देवेश, जो किसी काम से उस कमरे में आया था, सुनकर पूछ उठा.
"यह कार तो मेरे अंकल अमेरिका से लाए थे. मैं इसे क्यों गिफ्ट में देती? यह मेरी कार है. लगता है अंकल, विक्की इसे चुराकर लाया है." कहती हुई प्रिया चली गई थी. चुराकर लाना और ऊपर से झूठ बोलना- देवेश आपे से बाहर हो गया. बौखलाकर उसने पास रखी छड़ी उठा ली और तब तक मारता गया जब तक कि वह थक नहीं गया. पता नहीं कौन-सा शैतान उसके ऊपर सवार हो गया था कि तब न माफ़ी मांगते विक्की का स्वर उसे सुनाई दे रहा था और न ही विक्की को बचाने का प्रयास करती दीप्ति की मनुहार. उसे बस यही याद था कि प्रिया कह रही है, "अंकल यह तो मेरी कार है. लगता है विक्की इसे चुरा कर लाया है."
गुस्सा शांत होने पर उसे अपनी ग़लती पर अफ़सोस हुआ था. तब उसे महसूस हुआ था कि इतना मारने से पूर्व उसे समझाना चाहिए था. पर 'अब पछताए होत का जब चिड़िया चुग गई खेत' की मनःस्थिति के साथ वह विक्की को गोद में लेकर असहाय-सा बिलखते हुए बोला था, "सॉरी बेटा, आज मैंने तुझे बहुत मारा, पता नहीं मैं इतना निर्दयी कैसे बन गया?"
"मार कर अब क्षमा मांगने से क्या फ़ायदा? क्या क्षमा मांगने से उसके शरीर और मन पर पड़े ज़ख़्म ठीक हो जाएंगे?" दीप्ति ने मुंह बनाते हुए कहा था.
यह ठीक है कि उसने विक्की को निर्दयता से मारा. उसके हाथों से अक्ष्मय अपराध हुआ था. लेकिन विक्की का अपराध भी तो कम नहीं था. क्या किसी के घर से कोई चीज़ उठा लाना और झूठ बोलना उचित है? क्या बच्चे की ग़लती के लिए सज़ा देना अनुचित है? वह समझ नहीं पा रहा था कि भाईसाहब-भाभीजी विक्की को अपने साथ क्यों ले गए? विक्की आज अगर उसका अपना बेटा होता, तब भी क्या वे दोनों उसे इसी तरह दोषी ठहराकर बच्चा लेकर चले जाते? क्या बच्चे की ग़लती पर माता-पिता को मारने का हक़ नहीं रहता है..?
मन में कई प्रश्न नागफनी के कांटों की चुभ-चुभकर उसे घायल कर रहे थे. पर उनमें से किसी का भी उत्तर उसके पास नहीं था. काल का चक्र कभी भी नहीं रुकता. आंधी आए या तूफान, चाहे महाप्रलय से जीवन ही क्यों न नष्ट हो जाए, सूरज अपनी उसी गति के साथ निकलता है और मानव सूर्योदय की नव किरण के साथ जीवन की अंधेरी रात से उबरने की कोशिश करने लगता है. शायद यही देवेश के साथ हुआ. भयावह अंधेरी रात से उबरने के प्रयत्न में दूसरे दिन ऑफिस जाने के लिए कपड़े प्रेस करने लगा, तो मुंह से निकल गया, "विक्की, अपनी शर्ट और पेंट भी ले आओ. उसे भी प्रेस कर दूं." पर विक्की कहां था, जो उसे प्रत्युत्तर देता. उसकी आवाज दीवारों से टकराकर लौट आई.
नाश्ते के लिए बैठा, तो विक्की की खाली कुर्सी देखकर मन में अजीब-सी बेचैनी होने लगी और वह परांठे का तोड़ा हुआ टुकड़ा वापस थाली में रखकर उठ गया.
"आपने कुछ खाया नहीं?" दीप्ति देवेश की मनःस्थिति को समझते हुए भी पूछ बैठी.
"नहीं, इच्छा नहीं है."


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दीसि क्या कहती. वह भी तो उसी आग में जल रही थी.
स्कूटर स्टार्ट करके पीछे देखा, तो सिर्फ़ दीप्ति खड़ी थी. विक्की नहीं था, जो कहता, "पापा ठहरिए, मैं अभी आया. जूते की लेस बांध रहा हूं." भारी मन से देवेश ऑफिस चला गया.
शाम को ऑफिस से लौटने पर देवेश सीधे आकर लेट गया.
दीप्ति के पूछने पर बोला, "सिर में दर्द है."
"दर्द क्यों न होगा? इतना सोचते क्यों हो? यह क्यों नहीं सोच लेते कि विक्की कभी इस घर में आया ही नहीं था?" दीप्ति सिर में बाम लगाती हुई बोली.
"कैसे सोच लूं दीप्ति? उसकी गंध इस घर के कोने-कोने में बसी है. इस घर की प्रत्येक वस्तु पर उसका स्पर्श है. वह एक हफ़्ते का था, तभी तो हम उसे लेकर आए थे. तुमने कहा था कि किसी अनाथ बच्चे को गोद ले लो. मैं भी शायद तैयार हो जाता. किंतु तभी पता चला कि अनिला भाभी मां बननेवाली है तथा वह नहीं चाहती कि यह बच्चा संसार में आए, तब हमने कहा था कि आप अपने लिए नहीं, वरन् हमारे लिए इस बच्चे को जन्म दें.
हमें इससे कोई अंतर नहीं पड़ता कि वह लड़का है या लड़की. उस समय मन में यही आया था कि जब अपना है, तो पराये पर अपनी ममता क्यों उड़ेलें? लेकिन अब लगता है कि वह तो स्वप्न था, जो हम पिछले आठ वर्षों से देख रहे थे. हम यह भूल गए थे कि विक्की हमारा बेटा नहीं है. हमें उसे सिर्फ़ प्यार करने का अधिकार है, मारने का नहीं. काश! तुम्हारी बात मानकर हम किसी अनाथ बच्चे को अपना लेते, तो एक अनाथ बच्चे की परवरिश कर समाज सेवा को कुछ योगदान ही देते.
दीप्ति देवेश को क्या कहकर दिलासा देती. वह स्वयं अपनी नज़रों में अपराधिनी थी. उस जैसी स्त्री को शायद जीने का कोई अधिकार नहीं है. वह स्वयं भी बच्चों के प्यार के लिए तरसती है और अपने पति को भी पिता का सम्मान और अधिकार नहीं दे पाती. वह तो भाग्यशाली थी, जिसे देवेश जैसा समझदार पति मिला, जिसने कभी उसकी इस कमी की ओर इशारा नहीं किया. दिन बीतते गए, देवेश कुछ ही दिनों में बूढ़ा नज़र आने लगा था. दुख और क्षोभ से मानो उसकी कमर ही झुक गई थी. एक दिन ऑफिस से आकर देवेश ने स्कूटर खड़ा किया ही था कि विक्की दौड़ता हुआ आया तथा बोला, "पापा, देखिए हम आ गए." उसकी आंखों में उसके लिए असीम प्रेम नज़र आ रहा था.
"अरे विक्की तू अचानक कैसे आ गया?" देवेश ने उसे गोदी में उठाकर बेतहाशा चूमते हुए कहा.
"बड़े पापा के साथ आया हूं." विक्की ने मासूमियत से उत्तर दिया, उसकी आंखों में भी आंसू आ गए थे.
देवेश अंदर गया. उसकी नज़र दीप्ति पर पड़ी. उसकी आंखों में ख़ुशी के आंसू लहरा रहे थे. विक्की को उतार कर उसने भाई नरेश के पैर छुए तथा पूछा, "भैया, भाभी नहीं आई."
"देवेश, अनिला नहीं आई. वास्तव में वह शर्मिंदा है. वह समझ नहीं पा रही थी कि कैसे तुम दोनों से माफ़ी मांगे?"
"भइया, भाभी ने कुछ भी ग़लत नहीं कहा था. वास्तव में मुझे इतना नहीं मारना चाहिए था." अपराधबोध से ग्रस्त देवेश फिर कह उठा था.
"जो हो गया, उसे एक काली अंधेरी रात समझकर भूल जाओ और संभालो अपनी अमानत, जिसने हमें हमारी ग़लती का एहसास करा दिया. यहां से जाने के दूसरे दिन से ही विक्की कहने लगा कि मुझे पापा के पास जाना है. मुझे अपने घर जाना है. मेरी पढ़ाई का नुक़सान हो रहा है. हमने इससे कहा कि हम तुम्हारा यहीं दाख़िला करवा देते हैं. तुम यहां हमारे पास रहकर पढ़ना. बंटी और बबली के साथ रहना, तब यह बोला, 'मुझे अपने घर जाना है. वहीं रह कर पढ़ना है.' जब हमने कहा कि तुम्हारे पापा तुम्हें बहुत मारते हैं, तब यह चिढ़कर बोला, 'मारते हैं तो क्या हुआ, प्यार भी तो करते हैं.' कल तो इसने हृद ही कर दी, सुबह से खाना-पीना छोड़कर तुम्हारे पास आने के लिए ज़िद करने लगा और मुझे इसे लेकर आना ही पड़ा. मुझे क्षमा करना भाई. अब यह तुम्हारी अमानत है. तुम जैसे
चाहो इसे रखो. हम कभी दख़ल नहीं देंगे." नरेश भाईसाहब ने अपनी ग़लती स्वीकारते हुए कहा.
विक्की अभी तक देवेश का हाथ पकड़े उसकी ओर देख रहा था, मानो कह रहा हो मुझे माफ़ कर दो पापा. देवेश ने उसे एक बार फिर से गोद में उठा लिया तथा बेतहाशा प्यार करने लगा.
इस अनोखे मिलन को देखकर दीप्ति की आंखों से आंसू की अविरल धारा फूट पड़ी. उसे लग रहा था कि एक बार फिर उनके घर-आंगन में सावन की रिमझिम बौछार होने लगी है. पुनः उसके बाग में चिड़िया चहचहाने लगी है.

- सुधा आदेश

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