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कहानी- दूसरा घर (Short Story- Dusra Ghar)

"अरे, इसी शहर में कम से कम अस्सी निजी स्कूल हैं, सब एक जैसे हैं. मालूम नहीं मीनू के स्कूल में कौन-से सुर्खाब के पर लगे हैं. हद हो गई मेरा स्कूल ऐसा... मेरा स्कूल वैसा… सुनो, मनु ये सुनो, वो सुनो…" मनु अकेला खड़ा-खड़ा मीनू की स्टाइल में आवाज़ बनाकर बोलता रहा और ख़ुद ही सुनता भी रहा. 

आज रविवार था और मनु सुबह से ही कम से कम चार बार मीनू के मुंह से उसके स्कूल की ही बातें सुन-सुनकर  बुरी तरह पक रहा था।. सुबह की चाय में स्कूल की  तारीफ़ नाश्ते में परांठे के साथ स्कूल की बातें ही बातें, और अब लंच में भी बस वही, आह.. ओह..

अब तो परेशान मनु का दिल तड़प गया था.

 "क्या, ये मीनू कुछ और बात नहीं कर सकती है?" वो मन ही मन बड़बडा़या, पर मीनू उसकी बड़बडा़हट

से बिल्कुल बेख़बर होकर अपनी प्रधानाचार्या और सहकर्मी अध्यापकों की ही बातें किए जा रही थी. अचानक मनु ने बात बदलने के चक्कर में फिल्मों का ज़िक्र छेड़ दिया और मीनू को इस बात से कुछ याद आया, वो तपाक से बोली, "हां, हां.. वो फिल्म है ना 'चाक एंड डस्टर' उसमें जूही चावला का रोल है ना बस ऐसी ही ब्रिलिएंट टीचर हमारे स्कूल में भी हैं और…"

"उफ..."

मीनू के मुंह से यह सुनना था कि मनु को कुछ बहाना बनाकर वहां से भागना पड़ा. भागता-भागता वो जब छत पर आया, तब उसकी सांस में सांस आई और बहुत चैन भी. मनु आज पक गया था. बावला-सा हो गया था वो.

"अरे, इसी शहर में कम से कम अस्सी निजी स्कूल हैं, सब एक जैसे हैं. मालूम नहीं मीनू के स्कूल में कौन-से सुर्खाब के पर लगे हैं. हद हो गई मेरा स्कूल ऐसा... मेरा स्कूल वैसा… सुनो, मनु ये सुनो, वो सुनो…" मनु अकेला खड़ा-खड़ा मीनू की स्टाइल में आवाज़ बनाकर बोलता रहा और ख़ुद ही सुनता भी रहा. पांच मिनट बाद उसने छत पर सुहाने मौसम का आनंद लिया और वहीं पर एक मीठी झपकी भी ले ली.

अब वो जागा, तो फिर से तरोताजा हो गया था. अब वो छत से सीढ़ियां उतर कर वापस घर पर आया, तो मीनू 

ने कहा, "मनु सुनो, कल ना, हमारे स्कूल में सांस्कृतिक कार्यक्रम है, चलोगे ज़रा देर के लिए..." यह सुनना था कि मनु को गुस्सा आया, पर उसको याद आया कि कल बैंक हाॅलीडे है, कल तो उसको काम पर नहीं जाना. उसने सहमति दे दी, "हां ज़रूर चलूंगा." उसने न जाने कैसे हामी भर दी ख़ुद उसको भी बहुत अचंभा-सा हो रहा था.

अगले दिन वो मीनू के साथ चला गया. रास्तेभर मीनू फोन पर लगी रही. कभी मुख्य अतिथि की तैयारी, कभी कुछ और काम, बस वो बहुत उलझी हुई थी. इसका मतलब आज तो सब ही उलझन में रहेंगे. मनु सोच रहा था यानी कोई उससे मिल ही नहीं पाएगा.

वो मन ही मन कुटिल हंसी हंसता हुआ बस, यही सोचता रहा कि 'आज कम से कम दस कमियां तो निकाल ही लूंगा और प्रिंसिपल मैडम का भी मज़ाक उड़ा दूंगा कि "देखो बात तक नहीं की. पानी तक नहीं पूछा."

आज मनु पूरी मानसिक तैयारी में था. 

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जैसे ही वो लोग स्कूल के गेट पर पहुंचे चौकीदार ने, "कंवर साहब." कहकर मनु का ख़ूब स्वागत किया. इतनी सी आवाज़ पर दो-तीन चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी वहीं पर आ गए और मनु को बार-बार नमस्ते करते हुए मीनू का बैग ले लिया.

आवाज़ सुनकर मुश्किल से एक मिनट में मीनू की  प्रिंसिपल मैडम ख़ुद ही वही पहुंच गईं. वो मनु से पहली बार मिल रही थीं. बहुत स्नेह से उन्होंने मनु को साथ में लिया और अपने आॅफिस में बिठाया फिर वो अपनी घड़ी देखकर आया से बोलीं, "अभी तो पैंतालीस मिनट है कार्यक्रम शुरू होने में. पहले आप मनुजी को पानी दीजिए, फिर काॅफी ले आइए."

मनु को बहुत संकोच हो रहा था, मगर उन्होंने तो  सैंडविच और मिठाई भी मंगवाई. मीनू तो स्कूल पहुंचकर बस अपने काम में लगी थी. वहां पर बस मनु और मैडम ही थे. बीच-बीच में बहुत सारे अध्यापक-अध्यापिकाएं आकर मनु से मिलकर भी गए. मनु को इतनी आत्मीयता आज तक कहीं नहीं मिली थी.

उधर बहुत मनुहार के साथ मैडम मनु को नाश्ता परोसती रहीं और माफ़ी भी मांगती रही कि वो एक साल पहले निमंत्रण होने पर भी किसी वजह से  उनके विवाह में शामिल नही हो सकी थीं. मनु ने मुस्कुराकर 

खाली सिर हिला दिया था.

"मीनू को आठ साल हो गए हैं यहां काम करते हुए. कितनी मेहनती है मीनू. आपको क्या कहूं मनुजी और ईमानदार तथा सरल भी है."

वैसे तो आमतौर पर एक नारी के दो जन्म होते हैं पहला पिता के घर, दूसरा पति के घर. मगर कामकाजी महिला के तीन जन्म होते हैं, उसको कार्यस्थल पर भी नए अवतार में होना होता है."

"हम्म…" कहकर मनु ने ख़ामोशी ओढ़ ली.

 वो कुछ और कहना चाह रही थीं कि किसी ने वहां पर आकर कहा, "मुख्य अतिथि समारोह स्थल पर आ गए है और सब वहां प्रतीक्षा कर रहे हैं."

"चलिए मनुजी." कहकर मैडम ने मनु को साथ चलने को कहा. मनु साथ चल दिया. वहां शहर के नामी कलाकार तथा संगीतज्ञ दो लोगों को मुख्य अतिथि के रूप में आमंत्रित किया गया था. मैडम ने मनु को भी बकायदा माइक पर संबोधित करके अतिथियों के साथ बिठाया.

मनु को इतना संकोच हो रहा था कि वो बिल्कुल ख़ामोश था. समय पर कार्यक्रम शुरू हो गया था और क़रीब पचास मिनट मे सब प्रस्तुतियां हो गईं. बहुत ही शानदार सांस्कृतिक कार्यक्रम था.

अब मैडम को बुलाया गया और उन्होंने अपने भाषण में दोनों अतिथियों सहित मनु का भी नाम लिया. फिर अध्यापकों की तारीफ़ हुई, तो मीनू की तारीफ़ शुरू होते ही सबने ताली बजाई. उधर माइक से मैडम कह रही थीं, "मीनू जैसे अध्यापक हमारे लिए अनमोल हैं." मनु को मन ही मन बहुत ख़ुशी हो रही थी.

समापन के बाद जो भी मनु से मिला, बहुत प्यार और सम्मान से मिला. सबने मीनू की बहुत खुलकर तारीफ़ की. मनु बहुत गदगद था. कहां तो वो कमियां निकालना चाहता था और कहां उसको इतना आनंद आया कि उसका दामन छोटा पड़ गया था.

वापस घर लौटते हुए मनु मीनू से कुछ कहना चाहता था, पर मीनू अब भी स्कूल के ही काम से फोन पर ही  बहुत उलझी हुई थी. 

"मनु घर के काम करने हैं, राशन वगैरह. तुम्हें तो 

एक निमंत्रण में जाना है. मैं बाज़ार चली जाती हूं." ऐसा कहकर मीनू स्कूल से ही सीधी बाज़ार चली गई.

मनु को भी अचानक अब याद आया कि दोपहर दो बजे एक परिचित के गृह प्रवेश का निमंत्रण था. मन ही मन उसने मीनू की सजगता को सराहा.

अगले दिन से मनु दफ़्तर आदि में बहुत व्यस्त हो गया

और मीनू भी. बाकी दिन भी काम में निकलते गए.

अब वापस रविवार को दोनों की मुलाक़ात हुई. खुलकर बात हुई. ख़ूब सारी बातें. अचानक मनु ने देखा कि मीनू छत पर चली गई है. दो मिनट बाद मनु भी पीछे-पीछे गया. उसने चुपचाप कुछ सुना. मीनू बड़बड़ा रही थी. 

"हद है ये आज सुबह की चाय पर मेरे स्कूल की ही तारीफ़... फिर नाश्ते में भी, बस वही स्कूल... क्या और कोई बात नहीं है करने को मनु के पास… उफ़! मैं पागल हो रही हूं. भगवान मनु को मौन व्रत करा दो." यह सुनकर मनु मन ही मन मुस्कुरा दिया और हौले-हौले नीचे उतर गया.वो मीनू के लिए लंच बनाने ख़ुशी-ख़ुशी  वापस किचन मे लौट गया था. आज उसने मीनू का दूसरा घर देखा था. वो गदगद था!

- पूनम पांडे

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