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कहानी- गोल्डन जुबली (Short Story- Golden Jubilee)

“हम सभी अभिभावक बच्चों की बात से सहमत थे. सच तो यह है कि हम सभी चाहते हैं कि हमारे परिवार के बुज़ुर्ग सदस्य ख़ुश रहें, व्यस्त रहें, पर कैसे? इसका समाधान खोजने के लिए न समय जुटा पा रहे थे और न ही आपसी संवाद कायम कर पा रहे थे. बच्चों ने इस दिशा में एक प्रेरक क़दम उठाना चाहा, तो सैकड़ों क़दम उनके साथ जुड़कर क़दमताल करने लगे. हमारे मना करने के बावजूद बच्चों ने अपनी पूरी पॉकेटमनी इस फंड में डाल दी. उसके अलावा हर परिवार से इतनी सहयोग राशि मिली है कि हम और दो-तीन बेंच और शेड पार्क में लगवा सकते हैं. लेकिन आज के शुभ दिन को ध्यान में रखते हुए जल्दी-जल्दी में दो बेंच और शेड ही लगवा पाए हैं. हम चाह रहे थे कि उनका भी अब उद्घाटन कर दिया जाए.” Hindi Kahani टीना जब से मम्मी-पापा के पास रहने आई है, उन्हें एक ही टॉपिक पर बातों में मशगूल पा रही है और वह है उसके नाना-नानी यानी मिस्टर एंड मिसेज़ खन्ना की गोल्डन जुबली मैरिज एनीवर्सरी. “कोई मुझे बताएगा ये सेलीब्रेशन है कब?” “अगले साल नवंबर में.” मम्मी ने बताया तो टीना की हैरानी और भी बढ़ गई. “उसके लिए अभी से तैयारियां?” “तो और क्या? करनेवाला है कौन? कोई भाई-बहन तो हैं नहीं मेरे. जो करना है सब मुझे और तेरे पापा को ही करना है. तो प्लानिंग भी हमें ही करनी पड़ेगी ना? किन-किन को बुलाना है, कहां ठहराना है, क्या बनवाना है, क्या रिटर्न गिफ्ट देना है...?” “ओके! ओके! समझ गई.” कहने के साथ ही टीना कुछ सोचने में मगन हो गई थी. पिछले दो सालों से वह नाना-नानी के पास रहकर पढ़ रही है. पापा का वकालत का पेशा है और मम्मी का मेडिसिन का. दोनों का ही आए दिन तबादला होता रहता है, लेकिन इस रेलमपेल में सबसे ज़्यादा नुक़सान हो रहा था टीना की पढ़ाई का. तब नाना-नानी ने उसे अपने पास छोड़ देने की पेशकश की थी, जिसे काफ़ी सोच-विचार के पश्‍चात् दोनों ने स्वीकार कर लिया था और इस तरह ननिहाल के सबसे प्रतिष्ठित कॉन्वेंट स्कूल में टीना का दाख़िला करवा दिया गया था. जहां टीना के मम्मी-पापा यानी सीमा और अमित टीना के भविष्य को लेकर निश्‍चिंत हो गए थे, वहीं टीना के नाना-नानी को तो मानो जीने का सहारा मिल गया था. दोनों ब्लडप्रेशर और डायबिटीज़ के मरीज़ थे, पर किशोरावस्था की सीढ़ियां चढ़ती टीना के खानपान और स्वास्थ्य के साथ कोई समझौता उन्हें मंज़ूर न था. उसके लिए घर में खीर भी बनती और आलू का परांठा भी. टीना भी इतना लाड़-दुलार और साज-संभाल पाकर बेहद ख़ुश थी. मम्मी-पापा तो चाहकर भी अपनी व्यस्त दिनचर्या में से उसके लिए पर्याप्त समय नहीं निकाल पाते थे. अपने इस अपराधबोध की भरपाई वे तरह-तरह के उपहारों से करते थे. जब भी आते टीना को नए-नए कपड़ों, खिलौनों और चॉकलेट्स से लाद जाते. टीना के तो दोनों हाथों में लड्डू थे और कोई बच्चा होता, तो इतना लाड़-दुलार पाकर निश्‍चित रूप से सिर चढ़ गया होता, लेकिन यह नाना-नानी के दिए संस्कार थे, जिन्होंने टीना को हमेशा मर्यादित आचरण में बांधे रखा. उसे पता था कि प्यार देकर ही प्यार पाया जा सकता है और कि वह कितनी ही शिक्षा अर्जित कर ले, कितने ही ऊंचे पद पर पहुंच जाए, लेकिन सम्मान उसे तभी मिलेगा, जब अनुभव के आगे उसका सिर झुकेगा. किशोरावस्था से गुज़र रही उस बालिका को घर के सदस्य भले ही बच्ची समझते हों, पर वह अपने आपको घर की एक ज़िम्मेदार और समझदार सदस्या मानती थी. और इसलिए यह ख़ूबसूरत पारिवारिक उत्सव उसे कुछ विशिष्ट, पर महत्वपूर्ण करने के लिए उकसा रहा था. मम्मी-पापा की बातचीत वह अब और भी गौर से सुनने लगी थी. “मेरे ख़्याल से हमें उनके बेडरूम में एक बड़ा-सा एलईडी लगवा देना चाहिए. दोनों का ही काफ़ी समय टीवी देखते हुए गुज़रता है, विशेषकर पापाजी का. मम्मीजी तो फिर भी घर के कामों में लगी रहती हैं.” पापा के सुझाव से टीना मन ही मन सहमत थी. यह भी पढ़ेबुज़ुर्गों का समाज में महत्व (Why It Is Important To Care For Our Elders) “एक फुली ऑटोमैटिक वॉशिंग मशीन भी लगवा देते हैं. अब कुछ भी कहो सेमी में थोड़ी मेहनत तो होती ही है. मम्मी में अब कहां इतना दम है? जितना कर लेती हैं, वही काफ़ी है.” टीना को मम्मी का सुझाव भी पसंद आया. हालांकि कोई उसकी राय नहीं पूछ रहा था. ...पर उसे भी तो नाना-नानी को कुछ देना चाहिए. आख़िर वे उसका इतना ख़्याल रखते हैं. नाना जब-तब होमवर्क और प्रोजेक्ट में उसका हाथ बंटाते रहते हैं. और नानी तो बेचारी पूरा दिन ही उसके पीछे लगी रहती है. सुबह टिफिन से लेकर यूनिफॉर्म, च्यवनप्राश, रात का दूध तक. मजाल है, जो एक भी चीज़ छूट जाए या ज़रा भी वक़्त से आगे-पीछे हो जाए. सोचते हुए टीना ने अपना पिग्गी बैंक फोड़ डाला और रुपए गिनने लगी. इतने रुपयों में वह नाना-नानी के लिए क्या गिफ्ट ला सकती है? मम्मी-पापा के महंगे-महंगे तोहफ़ों के सामने उसका गिफ्ट तो वैसे भी कहीं नहीं टिकेगा. टीना रुआंसी हो उठी थी. “अरे, टीना बेटी, यह पिग्गी बैंक क्यों फोड़ा? और ये रुपए क्यों फैला रखे हैं?” पापा अचानक कब कमरे में आ खड़े हुए थे, टीना को ख़्याल ही नहीं आया. मम्मी अस्पताल जा चुकी थीं. “मैं भी नाना-नानी को गिफ्ट देना चाहती हूं, इसलिए...” “अरे, तो मुझसे बोल देती. बोलो, कितने पैसे चाहिए तुम्हें? क्या लेना है?” “वो तो मैंने अभी तक सोचा ही नहीं.” टीना का भोला-सा प्रत्युत्तर सुन पापा को बरबस ही उस पर प्यार उमड़ आया. “तो पहले सोच लो. फिर मुझे बता देना. मैं ला दूंगा. अब दरवाज़ा बंद कर लो और अपनी पढ़ाई करो.” पापा तो निश्‍चिंत हो चले गए थे, पर टीना आश्‍वस्त नहीं हो सकी थी. यदि पापा ही ला देंगे, तो फिर उसकी तरफ़ से क्या गिफ्ट हुआ? लेकिन गिफ्ट का मतलब स़िर्फ पैसों से ख़रीदी वस्तु ही तो नहीं होती. ख़ुद नाना ने और उसकी टीचर ने समझाया था कि यदि आप किसी को प्रसन्न करनेवाला कोई काम करो, तो वह भी उसके लिए गिफ्ट ही होता है, तो फिर मैं क्या करूं? टीना का मन अब सोते-जागते इसी सवाल में उलझा रहता. यहां तक कि उसकी छुट्टियां समाप्त हो गईं और नाना-नानी के पास लौटने के दिन भी आ गए. पापा उसे छोड़ने चल रहे थे. रास्ते में उन्होंने टीना से पूछा, “अच्छा तो फिर तुमने क्या उपहार निश्‍चित किया बेटा?” “मैं सोचकर बता दूंगी पापा.” टीना उन्हें नहीं बताना चाहती थी कि उसने अपना इरादा बदल दिया है. वह अब जो भी करेगी, अपने बलबूते पर करेगी. नानी ने सबकी पसंद का खाना दाल-बाटी और चूरमा बनाया था. सब खाने पर टूट पड़े थे. “मैं और सीमा आपके हाथ का खाना बहुत मिस करते हैं. कभी छुट्टीवाले दिन सीमा का कुछ ख़ास बनाने का मूड बन भी जाता है, तो कहती है अभी मां से फोन पर रेसिपी पूछती हूं. पर इतने में कोई पेशेंट आ जाता है या इमर्ज़ेंसी कॉल आ जाती है और सब धरा ही रह जाता है.” “मैंने ख़ूब सारा साथ ले जाने के लिए पैक कर दिया है. आराम से खाना.” नानी ने हंसते हुए कहा, तो सभी हंस पड़े. यह भी पढ़ेपैरेंट्स एंड सीनियर सिटीजन्स एक्ट: बुज़ुर्ग जानें अपने अधिकार (Parents And Senior Citizens Act: Know Your Rights) “सीमा को आपसे पूछ लेने का आसरा तो है. मुझे तो बेचारी टीना और उसके होनेवाले बच्चों की फ़िक्र है. उनका कभी ऐसा कुछ बनाने-खाने का मन किया, तो वे किससे पूछेंगे? आपकी पाक कला तो मम्मीजी आप ही तक सीमित रह गई.” “अरे, तू फ़िक़्र मत कर. मेरी टीना बहुत होशियार है. मैं उसे सब सिखाकर मरूंगी.” पूरे खाने के दौरान ऐसे ही हंसी-मज़ाक चलता रहा, पर टीना अलग ही सोच में डूबी रही. वह आजकल हर बात में से कोई न कोई सूत्र खोजने लगी थी. अब तो नानी कुछ भी बनाती, पहला चम्मच खाते ही टीना के सवाल-जवाब आरंभ हो जाते. यह कैसे बनाया नानी आपने? कौन-सी चीज़ कितनी-कितनी डाली? “अरे, मैंने तो उस दिन मज़ाक में तेरे पापा से कह दिया था कि तुझे सब कुछ सिखा दूंगी. तू तो सीरियस हो गई. पहले अपनी पढ़ाई ख़त्म कर ले. फिर सब सीख लेना.” नाना गौर कर रहे थे कि आजकल टीना नीचे बच्चों के साथ भी ज़्यादा वक़्त बिताने लगी है. कभी किसी के घर में घुसी रहती है, तो कभी किसी के. पूछने पर टीना कभी क्राफ्ट का बहाना बना देती, कभी कुछ इनडोर गेम्स खेलने का. आख़िर वह चिर-प्रतीक्षित दिन भी आ ही गया. घर में दूर-पास के रिश्तेदारों का जमावड़ा होने लगा था. टीना के मम्मी-पापा तो सप्ताह भर पहले से ही आए गए थे और ज़ोर शोर से तैयारियों में जुटे हुए थे. घरभर में शादी जैसी चहल-पहल और रौनक़ हो गई थी. सीमा और अमित ने मम्मी-पापा के पुराने दोस्तों और सहेलियों को भी आमंत्रित कर लिया था. खाने-पीने और बातों में ही पूरा वक़्त कैसे गुज़र रहा था, मुख्य मेज़बान मिस्टर एंड मिसेज़ खन्ना तो क्या, किसी को पता नहीं लग रहा था. शाम को दोनों को दूल्हा-दुल्हन की तरह सजाकर नीचे ले जाया गया, जहां शानदार स्टेज और सुसज्जित पंडाल उनका इंतज़ार कर रहा था. एक के बाद एक अतिथि स्टेज पर चढ़ते जा रहे थे और मिस्टर एंड मिसेज खन्ना के सफल व सुखी दांपत्य जीवन की कामना करते हुए नीचे उतरते जा रहे थे. अंत में टीना अपने सोसायटी के दोस्तों के साथ मंच पर चढ़ी. सबकी उत्सुक निगाहें उस पर टिक गईं. उसके हाथ में एक गुलाबी रंग का गिफ्ट पैक था. “यह क्या है टीना?” नाना ने उत्सुकता से पूछा. “खोलकर देख लीजिए.” नाना ने धीरे-धीरे गुलाबी पन्नी हटाई. सभी की उत्सुक नज़रें उन्हीं पर टिकी थीं. उनके हाथ में एक सुंदर-सी जिल्द में बंधी पांडुलिपि चमक उठी, जिस पर बड़े-बड़े अक्षरों में लिखा था, ‘नानी की रसोई.’ टीना ने आगे बढ़कर पुस्तक नानी के हाथ में थमा दी. “आपको आपकी पुस्तक के विमोचन की बहुत-बहुत बधाई नानी. आप द्वारा बनाए जानेवाले सारे परंपरागत व्यंजन इसमें लिपिबद्ध हो चुके हैं और यह देखिए बतौर लेखिका आपकी फोटो और नाम- मिसेज़ सरला खन्ना.” नानी के कंपकंपाते हाथों में पुस्तक हिलने लगी थी. आंखों से अनवरत बहते आंसुओं के बीच भी अपनी तस्वीर और नाम देख लेने में उन्हें कोई परेशानी नहीं हुई. वे और नाना उत्सुकता से पुस्तक के पन्ने उलट-पुलट रहे थे. वाक़ई सब कुछ तो था उसमें- नानी के हाथ की कढ़ी, चूरमा, लड्डू, रबड़ी, ढोकला, लापसी आदि वो भी चित्रों के साथ. “ये सब तूने कब किया बन्नो?” नानी जब बहुत ख़ुश होती थीं, तो लाड़ में टीना को इसी नाम से पुकारती थीं. यह भी पढ़ेबच्चों की पहली पाठशाला- दादी-नानी (What Can You Learn From Your Grand Parents?) “आप जब-जब मेरे लिए कुछ ख़ास बनातीं, तब मैं मोबाइल से उसकी तस्वीर उतार लेती और फिर आपसे पूछ-पूछकर रेसिपी भी लिख लेती. फिर हम सब दोस्तों ने अपनी क्राफ्ट टीचर की मदद से यह ख़ूबसूरत जिल्द कवर तैयार किया.” “इस बहुमूल्य पांडुलिपी को पुस्तक रूप में प्रकाशित करवाने की ज़िम्मेदारी अब मेरी. और आप सभी को इसकी एक-एक प्रति सस्नेह भेंट की जाएगी.” अमित ने बेटी टीना को गले लगाते हुए मंच से यह घोषणा की, तो पूरा पंडाल तालियों की गड़गड़ाहट से गूंज उठा. सीमा ने भी भावुक होकर बेटी को सीने से लगा लिया, तो सामने के फ्लैट में रहनेवाली मिसेज़ कपूर आगे बढ़ आईं. “अरे सीमाजी, आप तो इतने में ही भावुक हो गईं? अपनी बेटी के दूसरे बड़े कारनामे सुनेंगी, तो ख़ुशी से पागल ही हो उठेंगी.” “वाक़ई टीना और उसके सब दोस्तों ने मिलकर बहुत ही सराहनीय क़दम उठाया है. सभी के घरों के बुज़ुर्ग शाम को एक जगह एकत्रित होकर मिल सकें, बतिया सकें, इसके लिए सभी ने अपनी पॉकेटमनी एकत्रित कर पार्क में दो बेंच और शेड लगवाया है.” मि. कपूर ने मंच पर चढ़कर यह उद्घोषणा की, तो एक बार फिर करतल ध्वनि से माहौल गूंज उठा. सभी बुज़ुर्गों ने अपने-अपने नाती-पोतों को सीने से लगा लिया. “मैं नाना-नानी को अक्सर बोर होते देखती थी. नानी तो फिर भी घर-गृहस्थी के कामों में लगी रहती थीं, पर नाना तो शाम को सात बजते ही टीवी खोलकर बैठ जाते और फिर देर रात तक चैनल उलटते-पलटते रहते. जिस दिन शाम बारिश हो जाती थी और उनकी सैर स्थगित हो जाती थीं उस दिन यह बोरियत और भी बढ़ जाती थी. मुझे लगा यदि पार्क में शेड और बेंच हो, तो सभी बुज़ुर्ग शाम की सैर के बाद दो घंटे आराम से वहां बैठकर गपशप कर सकते हैं. इससे उनका मन बहल जाएगा. अपने हमउम्र संगी-साथियों का साथ किसे नहीं लुभाता? मैंने पहले अपने दोस्तों से सलाह-मशविरा किया. फिर हम एक-एक के घर जाकर सब अभिभावकों से मिले...” “एक मिनट टीना बेटी, अब मुझे बोलने दो.” सोसायटी के सचिव गुप्ता ने मोर्चा संभाल लिया. “हम सभी अभिभावक बच्चों की बात से सहमत थे. सच तो यह है कि हम सभी चाहते हैं कि हमारे परिवार के बुज़ुर्ग सदस्य ख़ुश रहें, व्यस्त रहें, पर कैसे? इसका समाधान खोजने के लिए न समय जुटा पा रहे थे और न ही आपसी संवाद कायम कर पा रहे थे. बच्चों ने इस दिशा में एक प्रेरक क़दम उठाना चाहा, तो सैकड़ों क़दम उनके साथ जुड़कर क़दमताल करने लगे. हमारे मना करने के बावजूद बच्चों ने अपनी पूरी पॉकेटमनी इस फंड में डाल दी. उसके अलावा हर परिवार से इतनी सहयोग राशि मिली है कि हम और दो-तीन बेंच और शेड पार्क में लगवा सकते हैं. लेकिन आज के शुभ दिन को ध्यान में रखते हुए जल्दी-जल्दी में दो बेंच और शेड ही लगवा पाए हैं. हम चाह रहे थे कि उनका भी अब उद्घाटन कर दिया जाए.” “ज़रूर-ज़रूर! और यह शुभ कार्य हम सभी बुज़ुर्गजन अपने-अपने नाती-पोतों के साथ मिलकर संपन्न करना चाहेंगे.” नाना-नानी सहित सोसायटी के सभी बुज़ुर्गजन, बच्चे और उनके पीछे-पीछे उपस्थित जन समुदाय पार्क के उस हिस्से की ओर उत्साह से बढ़ गए. मिस्टर एंड मिसेज़ खन्ना ने सोचा भी न था कि उनकी स्वर्णजयंती न केवल उनके, बल्कि सोसायटी के हर परिवार की ज़िंदगी में ख़ुशियों के इतने स्वर्णिम पल लेकर आएगी.

- अर्णिम माथुर

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