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कहानी- इंतज़ार (Short Story- Intezaar)

क्यों देना चाहते हो उसके मासूम इंतज़ार को अपने प्यार की पीड़ा. तुम तो रह सकते नीलेश मेरे बिना. तुम्हें आदत पड़ गई होगी. लेकिन इन चार सालों में मैंने देखा है अनीश को ज़िंदगी की आख़िरी कगार पर खड़े, जहां से अगर मैंने अपने कदम खींचे, तो वह गहरी खाई में गिर पड़ेगा. तुम्ही कहो क्या मैं आंखें मूंद कर तुम्हारे पास चली आऊं? क्या ऐसे में कोई भी ख़ुश रह सकेगा?

तुम्हारे इस लौटने को मैं किस रूप में लूं, समझ नहीं पा रही हूं. जो तुम्हारे रूप में मेरे तीन साल का; नहीं-नहीं, शायद उससे भी कहीं ज़्यादा समय का इंतज़ार लौट कर आया है. उसे मैं समय की किस धारा के साथ जोडूं?
तुम तो कह कर गए थे कि मेरा इंतज़ार करना, मैं तुम्हारे क़ाबिल बन कर लौटूंगा और ले जाऊंगा तुम्हें अपनी दुल्हन बनाकर. अगर मैं तीन साल तक नहीं आया, तो भूल जाना. भूल जाना इस बंधन को, जो नीलेश ने रैना के साथ बांधा है.
"हां, रैना भूल जाना मुझे और मां-बाप जहां कहें शादी के लिए हां कर देना."
यही कहा था ना तुमने नीलेश! जानते हो तब बेहद पीड़ा हुई थी. बेहद रंज भी हुआ था. फिर भी मन को जोड़ा. तन को समेटा और अपने वजूद में यह एहसास जुटाने की कोशिश में लग गई कि तुम अगर मुझसे दूर जा रहे हो, तो सिर्फ़ मेरी खातिर जा रहे हो और जब तुम सफल होकर लौटोगे तब भी सिर्फ़ मेरी ख़ातिर ही लौटोगे.
आज तक मेरे जे़हन में तुम्हारी सारी यादें सुरक्षित हैं. अभी भी मुझे अच्छी तरह याद है तुम्हारे जाने के दो-चार दिन पहले की वो मुलाक़ात और वो आख़िरी ख़त, जिसमें तुमने लिखा था- रैना! तुम्हारी ज़िंदगी के पहले का जो भी अतीत था उसे भूल जाना. मैं भी अपनी ज़िंदगी का पिछला दौर, जो गुज़र चुका है तेरे आने के पहले, भूल जाऊंगा. जब लौट कर वापस आऊंगा, तो फिर वैसे किसी दौर की चर्चा सुनना व करना पसंद नहीं करूंगा. इसलिए मेरे जाने के बाद फिर ऐसे किसी लम्हे को अपनी ज़िंदगी में मत आने देना, जो तुम्हें बेवफ़ा होने पर मजबूर कर दे, वरना मैं तुम्हें कभी माफ़ नहीं करूंगा- कभी भी नहीं.

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हां! मेरा इंतज़ार करना. कम-से-कम तीन साल तक, अगर मैं नहीं लौटा तब अपने आपको आज़ाद समझना, समझना कि मैं असफल हो गया अपनी मंज़िल पाने में.
पत्र को समाप्त करने से पहले तुमने एक बात और लिखी थी. इस बीच मैं लोगों को दिखाने के लिए तुम्हें भूलने का नाटक करूंगा. लोगों को यह सोचने पर मजबूर कर दूंगा कि मैं तुम्हें भूल चुका हूं, ताकि अगर कल असफल हो जाऊं, तो कोई तुम्हारा नाम मुझ जैसे असफल व्यक्ति के साथ जोड़ कर व्यंग्य से मुस्कुराए नहीं. पर यह सब मात्र दिखावे के लिए ही होगा. यह सिर्फ़ मैं या तुम ही जान रहे होंगे. तुम हमेशा की तरह हर पल मेरे दिल में रहोगी. तुम्हें मुझसे कभी कोई अलग नहीं कर सकेगा.
तुमने तो पत्र तक डालने से मना कर दिया था नीलेश, ताकि तुम्हारी एकाग्रता में व्यवधान न उत्पन्न हो सके. बस केवल इतना कह कर चले गए, "मैं अपनी रैना के लिए सफल होकर लौटूंगा. उस दिन, जब हासिल कर चुका होऊंगा अपनी पहचान." और तुम चले गए थे नीलेश दूर; कोसों दूर, जहां से लौटकर कब आओगे यह तक नहीं पता था. मुझे तो बस इंतज़ार करने के लिए छोड़ गए थे तीन साल की समयावधि में बांध कर.
मैं इंतज़ार कर भी रही थी और घुट-घुट कर पी रही थी ज़िंदगी, जो मेरे शरीर को गलाते जा रहे थे अंदर ही अंदर. फिर भी हर तरफ़ से आंखें मूंद कर सिर्फ़ तुम्हारे लौटने की राह पर पलकें बिछाए बैठी रहती. यक़ीन जानो उसी तरह पलकें बिछाए रहती, तीन साल तो क्या जन्म-जन्मांतर तक, तब तक जब तक तुम नहीं लौटते.
पर यह जो मन है ना नीलेश! बड़ा अजीब है पल में तोला, पल में माशा, वाली कहावत चरितार्थ होती है इस पर.
धीरे-धीरे लोगों ने मेरे कान भरने शुरू कर दिए, "नीलेश ने तुम्हें धोखा दिया है. अब वह कभी लौट कर नहीं आएगा, कभी भी नहीं. सभी को मुस्कुराकर सुनती रहती और रात में एकांत के क्षणों में तुम्हारे पत्रों को निकाल कर उसमें तुम्हारी बेवफ़ाई ढूंढ़ती, लेकिन वो मुझे कहीं नज़र न आती. तब मेरा विश्वास और भी दृढ़ हो जाता कि तुम ज़रूर आओगे.
तुम्हारे जाने से मेरी सारी ख़ुशियां चली गई थीं. रह गए थे मेरे पास तो सिर्फ़ आंसू जिन्हें एकांत में बहाने का मौक़ा ढूंढ़ती रहती थी. तभी इसी बीच पड़ोस की भाभी से जान-पहचान हुई. बेहद अच्छी लगीं स्वभाव की. उनसे ख़ूब बातें होतीं. उन्हीं पलों में मुझे मुझसे बिछड़ी हुई ख़ुशियों की परछाइयों का एहसास होता था.
समय यूं ही धीरे-धीरे गुज़रता जा रहा था. दुगुने उत्साह व आवेश के साथ तुम्हारे लौटने का इंतज़ार करती. कुछ दिनों से मुझे एहसास होने लगा था कि मैं जब भी भाभीजी के यहां जाती हूं दो नज़रें अपलक मुझे घूरती रहतीं, दूर से ही. लेकिन मैंने जान-बूझकर उधर ध्यान नहीं दिया. पर एक दिन अचानक उन निगाहों में अनुनय के साथ हाथ में एक काग़ज़ का टुकड़ा लिए एक हज़रत मेरे सामने आ खड़े हुए.

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भाभीजी ने ही बताया था इस बीच कि वो हज़रत उनके भांजे हैं अनीश, अक्सर यहां आते-जाते हैं. खै़र। मैंने उनके अनुनय को मद्देनज़र रखते हुए काग़ज़ ले लिया. पत्र खोलकर जो कुछ भी पढ़ने को मिला उसे पढ़कर मुझे कोई आश्चर्य नहीं हुआ, क्योंकि उनकी नज़रों से पहले ही बहुत कुछ बयां हो चुका था. मुझे उन नज़रों से कुछ लेना-देना नहीं था. सो मैंने उन्हें साफ़ लफ़्ज़ों में कह दिया- "जिस स्वप्न की तामीर वो मुझमें ढूंढ़ रहे हैं वह कभी भी संभव नहीं है, क्योंकि मैं किसी और का इंतज़ार कर रही हूं."
जानते हो तब अनीश ने क्या कहा, उसने बिना किसी लाग लपेट के सपाट लहरों में जवाब दिया, "ठीक है रैनाजी! आप जिस किसी का भी इंतज़ार कर रही हैं कीजिए. मैं अपने प्यार को आपके प्यार में रुकावट नहीं बनने दूंगा, लेकिन मैं भी उसी शिद्दत से आपका इंतज़ार करता रहूंगा जितनी शिद्दत से आप कर रही हैं. मैं पवित्र मन से आपके प्यार के लिए दुआ करूंगा, किंतु अगर बदक़िस्मती से ऐसा नहीं हुआ, तो प्लीज़ आप लौट आइएगा. मुझे हर पल इंतज़ार रहेगा आपका."
इसके बाद उसने मेरी तरफ़ दोस्ती का हाथ बढ़ाते हुए कहा कि क्या उस समय तक हम दोनों एक सच्चे दोस्त के रूप में नहीं रह सकते?
मैं अपने हालातों और दुनिया की बातों से इतनी बुरी तरह टूट चुकी थी कि मुझे एक संबल की तरह लगी अनीश की दोस्ती और मैंने भी पाक मन से उसे दोस्त मान लिया. इस बीच तुम्हारी कोई भी जानकारी मुझे नहीं मिल रही थी और समय भी गुज़रता जा रहा था. तीन साल की वह बंधी बंधाई अवधि भी गुज़रने को थी.
मेरा मन अब बुरी तरह आशंकित हो चला था. एक दिन बातों ही बातों में अनीश से पता चला कि तुम और अनीश एक अच्छे दोस्त हो. जब अनीश को इस बात की जानकारी हुई कि मैं जिसका इंतज़ार कर रही हूं, वो नीलेश ही है, तो वह बेहद ख़ुशी के साथ बोला, "मैं जाऊंगा नीलेश के पास और उसे आपके पास लेकर आऊंगा."
मैंने कोई जवाब नहीं दिया. सिर्फ़ चुपचाप उसे देखती रही और सुनती रही. बाद में घर आकर एकांत में रोई, उसके निश्छल और मासूम प्यार पर, अपनी बदक़िस्मती पर, जो उसके जीवन में छा गई थी और तुम्हारे लौट कर आने के वादों पर, जो पूरे होते नहीं दिखाई देते थे. एक दिन अनीश ने मुझे तुम्हारा वहां का पता दिया. मैं ख़ुशी से फूली नहीं समाई और फ़ौरन तुम्हें पत्र भेज दिया. जवाब का इंतज़ार करती रही, पर तुम्हारी तरह वो भी नहीं आया.
इस बीच अनीश दो-चार दिनों के लिए बाहर गया. वापस लौट कर जब आया, तो बेहद उदास था. मैंने उससे कारण पूछा, तो उसने झिझकते हुए बताया कि वह नीलेश के पास गया था. उससे आपके बारे में बातें हुई. बातों से लगा कि वह भूल गया है सब कुछ. साथ ही यह भी बताया कि मेरे भेजे पत्र उसके भैया के हाथों में चले गए थे. पढ़कर उन्होंने नीलेश पर गहरी नाराज़गी व्यक्त की.
इतना सुनने के बाद अब मुझमें और कोई भी शक्ति नहीं रह गई थी, जो अपने को बिखरने से रोक सकती थी. मेरा सब कुछ टूट कर बिखर गया था और सारी कीलें मेरे ही दामन में चुभ गई थीं. कभी अपने दामन को देखती, जो तार-तार हो गए थे, तो कभी अपने लहूलुहान हाथों को देखती, जो अपनों के ही कारण घायल हो गए थे.
फूट-फूट कर रो पड़ी थी अनीश के सामने ही. मुझे कभी भी अनीश की बातों पर विश्वास नहीं होता, लेकिन जितनी तड़प मैंने अपने अंदर क़ैद कर रखी थी, उतनी ही तड़प आंसुओं के सैलाब के साथ अनीश के पास भी देखी. वह मेरे दुख में अपने आंसुओं को यूं बहा रहा था जैसे यह मेरा नहीं उसका दुख है.
आज तुम किस आधार पर कहते हो नीलेश कि मैंने इंतज़ार नहीं किया. मैंने तो चार साल इंतज़ार किया और भी करती, लेकिन जो विश्वास तुमने खंडित कर दिया उसे कहां से लाती? कैसे यकीन दिलाती इस दिल को कि तुम नहीं बदले हो? कम-से-कम एक बार, एक बार तो एहसास कराते अपने ख़ामोश हो चुके वजूद का. कोई ख़बर ही भेजते.
अपने रिश्तेदार की शादी में तुम एक बार यहां आए भी थे नीलेश. उस समय ख़बर भिजवाते मैं दौड़ी चली आती, लेकिन तुम उस समय भी वैसे ही खामोश चले गए. तुम्हारे इस तरह चुपचाप आकर चले गए. यह तक नहीं सोचा कि जब मुझे पता चलेगा तुम्हारे जाने का, तो मैं कैसे समेटूंगी अपने आपको. फिर तुम्हीं कहो नीलेश कि मैं कैसे यकीन दिलाती दिल को कि तुम मुझे भूले नहीं?
अपने दुखों के साथ अकेले जीने का हौसला जमा करने लग गई थी, लेकिन अनीश के आंसुओं और शब्दों ने मुझे फिर से जीने पर मजबूर कर दिया. तुम्हें भूल कर भी भूल नहीं पा रही थी. मन के कोने में कहीं-न-कहीं तुम ज़रूर छिपे होते थे. तन अनीश के साथ होता था, उसकी बातों में खोया हुआ, पर मन; मन हमेशा तुम्हारे पास होता था. तुम्हें बेवफ़ा कहते हुए भी यह तुमसे दूर नहीं हो पाता था. पर, मुझमें अब और शक्ति नहीं रह गई थी. अनीश की सब्र शक्ति की परीक्षा लेने की.
चार साल लगातार मैने उसे अपने संग घुटते हुए देखा. मैं नहीं चाहती थी कि वो भी मेरी तरह इंतज़ार की अग्नि में जले. मैंने जल कर महसूस किया है नीलेश बेहद तकलीफ़ होती है. भले ही बाह्य रूप से यह जलन दिखाई न दे, लेकिन अंदर-अंदर यह सब कुछ राख कर देती है. इसलिए मैंने निश्चय किया है सब कुछ भूल जाने का.

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तुम तो दूर थे, तुम्हारी तपड़ को मैंने नहीं देखा, जबकि अनीश को अपने ही साथ पल-पल तड़पते हुए देखा है. क्या ऐसे में मेरा तुम्हारे पास लौट जाना न्यायसंगत होगा? और फिर प्यार तो त्याग का ही दूसरा नाम है. अपने प्यार को अनीश के लिए त्याग कर दो. समझो इसमें मेरे प्यार की महानता है.
क्यों देना चाहते हो उसके मासूम इंतज़ार को अपने प्यार की पीड़ा. तुम तो रह सकते नीलेश मेरे बिना. तुम्हें आदत पड़ गई होगी. लेकिन इन चार सालों में मैंने देखा है अनीश को ज़िंदगी की आख़िरी कगार पर खड़े, जहां से अगर मैंने अपने कदम खींचे, तो वह गहरी खाई में गिर पड़ेगा. तुम्ही कहो क्या मैं आंखें मूंद कर तुम्हारे पास चली आऊं? क्या ऐसे में कोई भी ख़ुश रह सकेगा?
बेहद मुश्किल होगा भूल पाना, लेकिन हो सके तो भूल जाओ मुझे. मैं अब और आंखें बंद नहीं रख सकती. अब इसे मेरी मजबूरी कहो या फिर बेवफ़ाई यह तुम पर छोड़ रखा है, वैसे ही जैसे तुम कभी छोड़ गए थे अपनी मंजिल बनाने की चाह में.
दो बूंदें गिरीं रैना की आंखों से, शायद यह नीलेश और उसका प्यार था.

- रश्मि सिंह

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