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लघुकथा- जन्मदिन (Short Story- Janamdin)

"और ये देखिए आप, मैंने फेसबुक पर आपकी कितनी सारी तस्वीरें भी साझा की हैं और सबको बताया है कि आज मेरे हबी यानी आपका जन्मदिन है और आप! शुभकामनाएं नहीं दी… शुभकामनाएं नहीं दी… कि रट लगाए हो… जाने किस ज़माने में रहते है आजकल ऐसे ही मनाया जाता है कोई भी स्पेशल डे."

रौनक़ लगी हुई थी और ख़ूब बधाइयां मिल रही थीं. गुलदस्ते तो इतने की घर में न समाए. इन शुभकामनाओं की झड़ी को बहू-बेटे, नाती-नातिन सब संभालने में लगे थे. बहुत बड़ा समूह शुभकामनाएं प्रेषित करने में लगा था, मानो किसी नेता, अभिनेता का कोई शुभ दिन हो!
ख़ूब धूम मची थी. वहीं एक सन्नाटे से भरे कमरे में एक आराम कुर्सी में बार-बार आगे-पीछे झूलते हुए आंखों के समाने अख़बार को फैलाए अस्सी साल के जयप्रकाशजी अपनी पचहत्तर साल की पत्नी से बोले, "देखो आज का दिन तुम भी भूल गई. अरे, कितना कुछ करती थी आज तुम मेरे लिए… किसी और को क्या बोलूं भला? तुम्हें याद है तुमने मुझे एक बार अपने हाथों से बना स्वेटर दिया था. और एक बार मेरी पुरानी तस्वीरों को दीवार पर लगाकर कितना सुनहरा उपहार दिया था… ख़ैर, कोई गिफ्ट क्या? मेरा ये चश्मा ठीक हो जाए वो ही बहुत है, जो बुरी तरह टूट गया है. अख़बार भी ठीक से नहीं पढ़ पा रहा. कोई मुबारकबाद देने आए, तो किसी बच्चे से बोल दूं मरम्मत के लिए. अरे, तुम जवाब दो पंकज की मां…"

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तभी पंकज की मां मोबाइल पर सरपट उंगली चलाती बोलीं, "अरे, आप भी न सच्ची में बूढ़े ही हो गए. ये व्हाट्सएप और फेसबुक यानी सोशल नेटवर्किंग का ज़माना है. मोबाइल पर सैकड़ों संदेश आ चुके हैं आपके जन्मदिन पर."
"और ये देखिए आप, मैंने फेसबुक पर आपकी कितनी सारी तस्वीरें भी साझा की हैं और सबको बताया है कि आज मेरे हबी यानी आपका जन्मदिन है और आप! शुभकामनाएं नहीं दी… शुभकामनाएं नहीं दी… कि रट लगाए हो… जाने किस ज़माने में रहते है आजकल ऐसे ही मनाया जाता है कोई भी स्पेशल डे."
"अरे, ऐसा क्या (कुछ आश्चर्य से) चलो शायद ऐसा ही चलन होगा आजकल. चलो 12 बज गए, मेरा प्रिय प्रोग्राम 'मेरी फ़रमाइश' शुरू हो गया होगा."
और बेचारे जयप्रकाशजी अपनी नई तकनीकी न सीख सकने के अफ़सोस से भरकर, रेडियो पर अपना मनपंसद कार्यक्रम सुनने लगे.

"स्वागत है आपका आपके पसंदीदा शो में… आज का पहला गीत है, जिसे फिल्म 'मेरा नाम जोकर' से लिया गया है, जिसके गीतकार है- हसरत जयपुरी, संगीत से सजाया है शंकर-जयकिशन ने औऱ आवाज़ दी है मुकेश ने, तो लीजिए सुनिए आपके मन को छूनेवाला ये गीत- जाने कहां गए वो दिन… कहते थे तेरी याद में…

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और जयप्रकाशजी आंखें बंद कर अपने उन दिनों में खो गए, जो असल में उन्हें ख़ुशी देते थे.

- पूर्ति वैभव खरे

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