"कितने मतभेद हैं तुम दोनों के बीच, किसी बात में एकमत नहीं हो. आश्चर्य है तब भी इतना सुखी दाम्पत्य कैसे है तुम्हारा. वास्तव में तुम सुखी हो या दूसरों के सामने दिखावा करते हो? मेरे और अरुण के बीच थोड़ा-सा भी मतभेद हुआ, तो हम तो चार दिन आपस में बात ही नहीं करते. मूड ख़राब हो जाता है." रश्मि ने अनुभा को कुरेदा.
"अरे यह क्या कर रही हो. बाफले कोई इतने छोटे बनाता है क्या, बड़े बनाओ ज़रा." विशाल भगोने में उबलते बाफलों का आकार देखकर बोला.
"उबल कर दुगुने हो जाएंगे. यही आकर सही है नहीं तो कच्चे रह जाएंगे." अनुभा ने कहा.
"मजा ही नहीं आएगा. दुबारा बनाओ." विशाल ने कहा.
"उबले हुए बाफलों को अब बड़ा नहीं किया जा सकता." अनुभा बोली.
रश्मि देख रही थी सुबह से ही विशाल और अनुभा में हर बात पर बहस ही हो रही थी. आज सारे दोस्तों की परिवार सहित पिकनिक थी, जिसमें अनुभा और विशाल को बाफले बनाकर ले जाने थे. रश्मि और अरुण सब्ज़ी बनाकर विशाल के यहां आ गए थे.
"कितने मतभेद हैं तुम दोनों के बीच, किसी बात में एकमत नहीं हो. आश्चर्य है तब भी इतना सुखी दाम्पत्य कैसे है तुम्हारा. वास्तव में तुम सुखी हो या दूसरों के सामने दिखावा करते हो? मेरे और अरुण के बीच थोड़ा-सा भी मतभेद हुआ, तो हम तो चार दिन आपस में बात ही नहीं करते. मूड ख़राब हो जाता है." रश्मि ने अनुभा को कुरेदा.
"तुम्हे क्या लगता है?" अनुभा ने मुस्कुराते हुए पूछा.
"कुछ समझ में नहीं आता. नदी के दो किनारों जैसे हो तुम दोनों तो." रश्मि बोली.
"सही कहा, दो भिन्न परिवारों, परिवेश से आए पति-पत्नी, तो होते ही है दो किनारों जैसे. हम भी दो किनारे हैं." अनुभा बोली.
"तब फिर…"
"जैसे नदी के दो किनारों को बीच में बहती धारा एक कर देती है वैसे ही हम दोनों के बीच की प्रेम धारा हमें एक करके रखती है. किनारे कितने भी दूर हो, लेकिन धारा उन्हें जोड़े रखती है. ऐसे ही हमारे बीच की प्रेमधारा हमें सुखी रखती है और मतभेदों को मन की तलहटी में जमने नहीं देती बहा देती है. ये प्रेमधारा बहती रहनी चाहिए कभी सूखनी नहीं चाहिए." अनुभा ने भेद की बात बताई.
"मैं समझ गई." रश्मि बोली.
"क्या समझी?"
"यही कि वो बहती प्रेमधारा ही है, जो तमाम नोंकझोंक, मतभेदों के बाद भी दो किनारों का गठबंधन कर उन्हें हमेशा साथ रखती है."
दोनों की सम्मिलित खिलखिलाहट से रसोईघर गूंज उठा.
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