Close

कहानी- मां का‌ हक़ (Short Story- Maa Ka Haq)

"एक बात बताइए क्या सिर्फ़ रोते हुए बच्चे पर ही मां का हक़ होता है? जब अंश खेलने के मूड में होता है, तो उस समय मैं रसोईघर में सब की फ़रमाइश पूरी करती हूं और जैसे ही यह रोने लगता है, तो इसको मेरी गोद में थमा दिया जाता है. आख़िर मुझे भी तो मेरे बच्चे के साथ खेलने का मन करता है, ऐसा कब तक चलेगा?.."

अभी सारिका रसोई में विवेक का नाश्ता और दफ़्तर ले जाने का टिफिन तैयार कर ही रही थी कि अचानक सासू मां विमला की अवाज़ आ गई, "अरे बहू! लल्ला उठ गया है और रो रहा है, लगता है भूखा है."
चार माह का अंश आजकल बहुत तंग करने लगा था, परंतु सासू मां की आवाज़ आते ही सारिका सब काम छोड़कर झट से अंश को अपने कमरे में जाकर दूध पिलाने लगी. नन्हा सा पेट बस पांच-सात मिनट में ही भर गया और सारिका अंश के संतुष्ट और हंसते चेहरे को अभी निहार ही रही थी कि अचानक सासू मां विमला कमरे में आकर ग़ुस्से से बोली, "अरे वहां विवेक को दफ़्तर जाने में देरी हो रही है और तुम्हें बेटे से खेलने से फ़ुर्सत ही नहीं है. लाओ इसको मुझे दो और विवेक को ढंग से दफ़्तर भेजो." हर बार की तरह सारिका चुपचाप अंश को सासू मां को देकर रसोईघर की ओर बढ़ गई.
उधर सासू मां अंश को लेकर ड्रॉइंगरूम में बैठकर पोते अंश के साथ खेलने लगी और साथ ही साथ अपने बेटे से बतियाने लगी.
शारीरिक रूप से स्वस्थ सासू मां यदि पांच मिनट रसोईघर का काम देख लेती, तो क्या हो जाता. परंतु शायद बहू के आने के बाद जैसे हर सास रसोईघर का काम भूल ही जाती है या बहू के होते हुए काम करना अपनी तौहीन समझती है… बस ऐसे ही कुछ विचार सारिका के दिमाग़ में उमड़-घुमड़ रहे थे.
उधर पेट भरा होने के कारण अंश भी अच्छे से खेल रहा था. इतने में देवर और ननद भी कॉलेज जाने के लिए तैयार हो गए, तो उन्होंने भी सारिका को नाश्ते के लिए आवाज़ लगा दी.

यह भी पढ़ें: नवजात शिशु की देखभाल के स्मार्ट ट्रिक्स (Best Newborn Baby Care Tips)

एक मशीन की तरह सारिका सारे काम कर रही थी. कल तो पूरी रात अंश की वजह से सो भी नहीं पाई थी  आजकल सर्दियों में रात में बहुत बार उठता था. इतने में ननद रिया की आवाज़ आई, "भाभी, लो अंश ने अपने कपड़े गंदे कर दिए आकर इसके कपड़े बदल दीजिए."
"बस मम्मीजी का और अपना परांठा सेंक कर आती हूं रिया." कहते हुए सारिका ने और जल्दी-जल्दी हाथ चलाने शुरू किए.
"अरे बहू, अब आ भी जा." ग़ुस्से से विमलाजी बोलीं.
सासू मां का परांठा बनाकर अपना परांठा बिना बनाए सारिका ने सासू मां को नाश्ता पकड़ाया और अंश को उठाकर गुसलखाने की ओर भागी. उधर विमलाजी आराम से टीवी चलाकर गर्मागर्म नाश्ता करने लगीं और दोनों बच्चे भी कॉलेज को निकल गए.
अंश के कपड़े बदले ही थे कि उसे फिर से भूख लग आई थी. रसोईघर से अपनी ठंडी चाय और दो बिस्किट लेकर सारिका अंश को दूध पिलाने लगी. अब उसमें अपने लिए नाश्ता बनाने की हिम्मत नहीं थी. देखते ही देखते आजकल कब दस बज जाते थे पता ही नहीं चलता था.
अंश जैसे ही सोया सारिका ने इत्मीनान की सांस ली और इतने में कामवाली ने आकर घंटी बजा दी. फटाफट उसके साथ लगकर सब काम करवाते-करवाते घड़ी ने बारह बजा दिए और अंश भी उठ गया था. सासू मां भी मंदिर और अपनी मित्र मंडली से मिलकर घर आ गई थीं.
"चल अब अंश की मालिश करके उसे भी नहला-धुलाकर मुझे दे दो." सासू मां ने आदेश दिया.

यह भी पढ़ें: ना बनाएं कोविड सिंड्रोम रिश्ते, ना करें ये गलतियां, रखें इन बातों का ख़याल (Covid syndrome relationship: How much have relationships evolved in the pandemic, Mistakes to avoid in relationships)

आधा घंटा अंश की अच्छी सी मालिश करके, नहलाकर उसको सारिका ने दूध पिलाया ही था कि अंश दो-तीन घंटे के लिए सो गया. उसे सासू मां के पास लिटा कर सारिका ख़ुद घर के बचे हुए कामकाज करने लगी.
दोपहर का खाना खा कर दो घड़ी आराम करने ही लगी थी कि अचानक अंश उठ गया और फिर रोने लगा, "बहू, देख इसको क्या चाहिए." कहते हुए अंश को विमला ने सारिका को थमा दिया.
शाम को भी यही सब कुछ लगा रहा.
य़ह तो हर रोज़ की ही बात हो गई थी, जब अंश खेलता या हंसता तो तुरंत उसकी गोद में से लेकर परिवार के सभी जन उसको खिलाने लगते, परंतु उसके रोते ही तुरंत अंश को सारिका की गोद में पकड़ा दिया जाता था.
रात को जब सब खाना खा रहे थे, तो अचानक अंश रो पड़ा. विवेक ने सारिका को उसको थमाते हुए कहा, "इसको संभालो हम लोग आराम से खाना खा ले."
आज सारिका के सब्र का बांध टूट गया. चार महीने से यह सब कुछ चुपचाप देख रही थी. गुस्से में बोली, "एक बात बताइए क्या सिर्फ़ रोते हुए बच्चे पर ही मां का हक़ होता है? जब अंश खेलने के मूड में होता है, तो उस समय मैं रसोईघर में सब की फ़रमाइश पूरी करती हूं और जैसे ही यह रोने लगता है, तो इसको मेरी गोद में थमा दिया जाता है. आख़िर मुझे भी तो मेरे बच्चे के साथ खेलने का मन करता है, ऐसा कब तक चलेगा?
मैं सोच रही हूं कुछ दिन के लिए मां के घर रहकर आती हूं, क्योंकि यहां पर तो मुझे मेरे बच्चे के साथ समय बिताने का मौक़ा ही नहीं मिलता और मैं उसके बचपन को जी भी नहीं पा रही हूं."

यह भी पढ़ें: कैसे ढूंढ़ें बच्चे में टैलेंट- 7 बेसिक गाइडलाइन्स (How To Find Your Child’s Talent- 7 Basic Guidelines)

सारिका की बात ने विवेक को भी हिला कर रख दिया था और विमलाजी की भी आंखें नीची थीं. मन ही मन सोच रही थीं कि बहू कह तो ठीक ही रही है, इसलिए पहली बार उन्होंने बहू का कोई विरोध नहीं किया.
सारिका नम आंखों से अंश को उठाकर चुपचाप अपने कमरे में चली गई. आज सारिका का सवाल विमला और विवेक को पहली बार निरुत्तर कर गया था.

- पूजा अरोड़ा

अधिक कहानियां/शॉर्ट स्टोरीज़ के लिए यहां क्लिक करें – SHORT STORIES

अभी सबस्क्राइब करें मेरी सहेली का एक साल का डिजिटल एडिशन सिर्फ़ ₹599 और पाएं ₹1000 का कलरएसेंस कॉस्मेटिक्स का गिफ्ट वाउचर.

Share this article