उन्हें देखते ही अलका और राहुल बहुत ख़ुश हो गए. पैसे और जगह की कोई कमी नहीं थी. राहुल ने अपने बगल वाले कमरे में उनका सामान रखवा दिया. धीरे-धीरे एक माह बीत गया. अब अलका तनाव में रहने लगी. उसकी बेचैनी बढ़ती ही जा रही थी. मन में एक ही बात रहती, यह लोग वापस कब जाएंगे. राहुल से यह पूछने की अभी तक उसकी हिम्मत नहीं हुई थी.
कलेक्टर के पद से सेवानिवृत्त होने के बाद वसुधा ने अपने पति से कहा, "अशोक, हम दोनों सेवानिवृत्त हो चुके हैं, क्यों ना अब हम राहुल के साथ रहें. उन्हें सहारा मिल जाएगा और हमारे लिए भी कितना अच्छा होगा, इकट्ठे होकर रहना."
"वसुधा तुम्हारी बात सही है, किंतु उन्हें अकेले रहने की आदत हो चुकी है. बहुत सारे समझौते करने होंगे. क्या तुम और अलका कर पाओगे?”
"कैसी बात कर रहे हो अशोक, हमारा एक ही तो बेटा है. एक ही परिवार है. सब ठीक होगा तुम ग़लत सोच रहे हो."
अशोक जानता था यह सब कुछ इतना आसान नहीं है, किंतु वसुधा की ज़िद के आगे वह ज़्यादा कुछ बोल ना सका. दोनों ज़रूरत का कुछ सामान लेकर अपनी कार से मुंबई पहुंच गए.
उन्हें देखते ही अलका और राहुल बहुत ख़ुश हो गए. पैसे और जगह की कोई कमी नहीं थी. राहुल ने अपने बगल वाले कमरे में उनका सामान रखवा दिया. धीरे-धीरे एक माह बीत गया. अब अलका तनाव में रहने लगी. उसकी बेचैनी बढ़ती ही जा रही थी. मन में एक ही बात रहती, यह लोग वापस कब जाएंगे. राहुल से यह पूछने की अभी तक उसकी हिम्मत नहीं हुई थी.
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एक दिन रात के खाने के उपरांत, अपने कमरे में जाकर उसने पति से पूछ ही लिया, "राहुल, क्या तुम्हारे पापा-मम्मी हमेशा के लिए आ गए हैं."
राहुल ने कहा, "क्या तुम्हें कोई परेशानी है. यह उनका घर है जब तक चाहेंगे रहेंगे. यह कैसा बेकार का प्रश्न है तुम्हारा?"
"राहुल हमेशा साथ रहना मुझे ठीक नहीं लगता. उनकी वजह से हमारी जीवनशैली कितनी बदल गई है. तुम्हें कुछ निर्णय तो लेना ही पड़ेगा."
"कैसी बात कर रही हो? कैसा निर्णय अलका? माता-पिता हैं वे मेरे. क्या उनसे यह कह दूं कि बस अब जाओ यहां से?"
अलका यह सुनकर बौखला गई और कहने लगी, "यदि यह उनका घर है, तो फिर मेरा घर कहां है राहुल? मैं तो अब तक इसे मेरा घर ही समझ रही थी, लेकिन आज पता चला कि घर मेरा नहीं उन लोगों का है. तुमने मेरा अपमान किया है मेरा दिल तोड़ा है राहुल." आवेश में उसकी आवाज तेज़ हो गई, जो कमरे से बाहर तक जाने लगी.
राहुल ने अलका से कहा, "ये क्या कर रही हो, धीरे बात करो पापा-मम्मी सुन लेंगे. यह घर हम सब का है अलका."
इतना कहकर राहुल ने लाइट बंद कर दी और नाराज़गी दिखाते हुए बिस्तर पर लेट गया. अलका भी उसके बगल में लेट गई और दोनों एक-दूसरे की तरफ़ पीठ करके सो गए.
लेकिन अब तक अशोक और वसुधा सब कुछ सुन चुके थे. वे गुमसुम हो गए. उनकी सारी ख़ुशियां एक ही पल में धराशाई हो गईं.
सुबह सात बजे राहुल की नींद खुली, तब उसने अलका को आवाज़ लगाई, “अलका, जल्दी चाय दो आज मीटिंग है. ऑफिस में जल्दी जाना है.”
अलका ने पलट कर कोई जवाब नहीं दिया. राहुल ने उठकर देखा, तो अलका पूरे घर में कहीं भी दिखाई नहीं दी. खाने की टेबल पर एक काग़ज़ रखा हुआ दिखाई दिया.
राहुल ने उसे खोल कर देखा. उसमें लिखा था- राहुल मैं अपने आत्मसम्मान के साथ समझौता नहीं कर सकती. तुमने मेरे आत्मसम्मान को अपमान की चिता पर रखकर जला दिया है. मैं जा रही हूं. तुम्हें निर्णय लेना ही होगा कि आख़िर यह घर किसका है, मेरा या उनका?
राहुल की आंखें भर आईं. उसे उस पत्र में ऐसी ज़िद नज़र आ रही थी, जिसे पूरा करना उसके लिए असंभव था.
वह तुरंत ही अपने पापा-मम्मी के कमरे में गया, किंतु वहां पहुंचकर वह भौचक्का रह गया, क्योंकि वहां उसके माता-पिता भी नहीं थे.
वहां एक पत्र रखा था जिस पर लिखा था- राहुल बेटा, यदि किसी एक के समझौता करने से किसी की ज़िद पूरी हो जाती है और परिवार बच जाता है, तो वह समझौता कर लेना चाहिए. बेटा हम बिल्कुल भी नाराज़ नहीं हैं. हम इसलिए जा रहे हैं कि हमारी वजह से तुम्हारे परिवार में कोई विघ्न नहीं आए. तुम आज ही जाकर अलका को मान-सम्मान के साथ वापस घर ले आना. यह घर केवल उसी का है. हम जब भी आएंगे मेहमान बन कर ही आएंगे. अलका नादान है और उसे माफ़ कर देना.
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Photo Courtesy: Freepik
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