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कहानी- मुट्ठी भर गुलाल (Short Story- Mutthi Bhar Gulal)

यूं अप्रत्याशित रूप से नीनू की सखियों द्वारा रंग लगाए जाने पर आद्या स्तब्ध थी. सोच रही थी, पुराने ख़्यालों वाली उसकी सासू मां और ख़ासकर दादी सास यूं उसे होली के रंगों में रंगा देख क्या कहेंगी? वह नीनू पर बिगड़ते हुए बोली, “नीनू, यह क्या किया तुमने? मुझ पर रंग? अम्मा बहुत बिगड़ेंगी.”

“आद्या… तनिक मेरे पास आकर तो बैठो, यह क्या हर समय किचन में घुसी रहती हो. मुझे बिल्कुल समय नहीं देती हो.” भीष्म ने अपना चूड़ा खनकाती, रसोई में खाना पकाती अपनी नवविवाहिता पत्नी को उलाहना दिया.
“अजी मेजर साहब, मैं तो आपके दिल में उतरने की तैयारी कर रही हूं. सुना है न आपने, पति के दिल की राह पेट से होकर जाती है. इतने वक़्त आप मुझसे ज़ुदा न जाने कितनी लड़कियों के साथ गुज़ारते हैं. कभी किसी फौजिन ने आपके दिल पर कब्ज़ा कर लिया, तो मेरी कहानी तो शुरू होने से पहले ही ख़त्म हो जाएगी.”
“अजी मैडम, आपकी कहानी तो हमारे कलेजे पर छप चुकी है. आप तो हमारे दिल की टेरीटरी की परमानेंट बाशिंदा बन गई हैं. अब किसी की हिम्मत नहीं कि आपको वहां से शिफ्ट कर दे.”
“सच कह रहे हैं जनाब या यूं ही मेरी मुंहदेखी मुझे ख़ुश करने को कह रहे हैं?”
“चाहो तो स्टैम्प पेपर पर लिखवा लो. हम तो आपके दीवाने हो गए हैं. अब आपसे पल भर की भी दूरी बर्दाश्त नहीं हमें.” नवविवाहित जोड़े की हंसी-चुहल जारी थी कि तभी फोन घनघनाया. आर्मी हेड क्वार्टर से फोन था. “मेजर भीष्म, बॉर्डर पर उपद्रवों की वजह से आपकी वार्षिक छुट्टियां रद्द की जा रही हैं. आपको कल शाम तक रिपोर्ट करना है.”


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अचानक आई इस ख़बर से भीष्म स्तब्ध रह गया. नई-नई दुल्हन का हंसता-खिलखिलाता चेहरा देख उसका कलेजा मुंह को आन पड़ा. अब उसे कैसे बताए कि होली तक के तीन माह के अवकाश पर आया वह कल ही चला जाएगा.
उसका तनिक उतरा चेहरा देख आद्या ने आशंकाग्रस्त मन से भीष्म से पूछा, “क्या हुआ भीष्म, कुछ अपसेट दिख रहे हो.”
“छुट्टियां कैंसिल हो गईं मेरी. मुझे कल ही वापस जाना है.”
“क्या कल ही जाना है? यह क्या कह रहे हो भीष्म? अभी तो हमें हनीमून पर जाना है. साथ-साथ समय‌ बिताना है. कितनी प्लैनिंग कर रखी है हमने छुट्टियों की.” कहते-कहते उसकी बड़ी-बड़ी भूरी रसभीनी आंखों में आंसुओं का दरिया उमड़ आया. गला रुंध गया और वह अपने मेहंदी लगे हाथों से अपना चेहरा ढक सुबकने लगी.
“जान, याद है या भूल गई कि शादी से पहले मैंने तुमसे क्या कहा था? तुम एक फौजी से बंध रही हो, तो तुम मेरी प्राथमिकता में हमेशा दूसरे नंबर पर रहोगी. पहले नंबर पर मरते दम तक देश के प्रति मेरा फ़र्ज़ रहेगा. क्या तुम्हें यह याद कराना पड़ेगा?”
प्रियतम से यूं इतनी जल्दी बिछोह के बारे में सोच कर उसका कलेजा मुंह को आ रहा था. वह अब ज़ोर-ज़ोर से सिसकने लगी थी. सोच रही थी, 'उफ़, कितने ख़्वाब देखे थे. हनीमून पर जाएंगे, साथ-साथ सैर-सपाटा करेंगे. कश्मीर की हसीं वादियों में एक-दूसरे को जानेंगे-समझेंगे. सब बिखर गए.’
“रोना बंद करो माई लव. तुम यूं उदास होगी, तो मैं कैसे तुम्हें छोड़ कर पूरे मन से निश्चिंत होकर अपनी ड्यूटी जॉइन कर पाऊंगा? मेरा मन तो तुम में ही अटका रहेगा न.”
आद्या अभी तक यह स्वीकार नहीं कर पा रही थी कि भीष्म कल ही उसे छोड़ कर चला जाएगा.
एक-दूसरे की बांहों में क़ैद आद्या और भीष्म ने वह रात आंखों ही आंखों में काटी. कितना कुछ था कहने और सुनने को.
देखते-देखते जाने की घड़ी आ पहुंची. नम आंखों और भरे हुए गले से आद्या ने जीवनसाथी को तिलक लगा और आरती कर मंगल कामनाएं करते हुए घर से विदा किया. होली का पर्व आ पहुंचा था. भीष्म ने आद्या से वादा किया था, वह होली पर अवकाश लेकर उसके पास ज़रूर आएगा.
लेकिन यदि इंसानी हसरतें यूं आसानी से पूरी हो जातीं, तो नियति शब्द इंसान के शब्दकोश में न होता. होली के दिन घर भर में उत्सव का माहौल था. दोपहर का एक बजने आया था. सब लोग बड़ी अधीरता से भीष्म की राह देख रहे थे, तभी वज्रपात हुआ था.


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आद्या को फोन आया और ख़बर मिली कि उपद्रवियों द्वारा फेंके ग्रेनेड की चपेट में आकर मेजर भीष्म शहीद हो गए. यह मनहूस ख़बर सुन कर आद्या सदमे से अचेत हो गई. माता-पिता और छोटी बहन भी होश खो बैठे.
वक़्त का मरहम हर घाव को भर देता है. मेजर भीष्म को गए काफ़ी समय बीत चुका था. आद्या के आंसू सूख गए थे, लेकिन अंतस में दर्द का समंदर ठाठें मारता. वह मानो ज़िंदा लाश बन कर रह गई थी. धीरे-धीरे अवसाद के साये उसे निगलते जा रहे थे. वह दिनभर एक जगह बैठे-बैठे भीष्म की खाकी वर्दी को ताकती रहती.
घर भर उसकी यह हालत देख चिंतित था. ख़ासकर उसकी सासू मां उसे यूं दुख के अंधे कुंए में धंसते हुए देख बेहद दुखी थीं. हर संभव प्रयास कर रही थीं कि आद्या अब तो अपने डिप्रेशन से बाहर आए और अपनी ज़िंदगी नए सिरे से शुरू करे. लेकिन आद्या की स्थिति में कोई सुधार नहीं था. जीवनसाथी के असमय जाने से मानो उसकी जिजीविषा को ग्रहण लग गया था.
उस दिन होली थी. घर भर में उदासी पसरी हुई थी. तभी भीष्म की छोटी बहन नीनू की कॉलेज की सहेलियां होली का हुल्लड़ मचाते हुए घर में घुसीं और आद्या के चेहरे पर अबीर गुलाल मल कर चिल्लाईं, “भाभी, हैप्पी होली.”
यूं अप्रत्याशित रूप से नीनू की सखियों द्वारा रंग लगाए जाने पर आद्या स्तब्ध थी. सोच रही थी, पुराने ख़्यालों वाली उसकी सासू मां और ख़ासकर दादी सास यूं उसे होली के रंगों में रंगा देख क्या कहेंगी? वह नीनू पर बिगड़ते हुए बोली, “नीनू, यह क्या किया तुमने? मुझ पर रंग? अम्मा बहुत बिगड़ेंगी.”
“मैं बिल्कुल नहीं बिगडूंगी. आज भीष्म को गए पूरे दो साल हो गए. उसके जाने का दुख तो हम सब को है, लेकिन जानेवाले के पीछे जाया तो नहीं जाता न!.. तुम क्या सोचती हो, तुम्हें हर वक़्त रोते देख उसकी आत्मा को शांति मिलेगी? कतई नहीं, बल्कि तुम्हें दुखी देखकर उसकी आत्मा को बेहद कष्ट पहुंचेगा.” कहते हुए दादी सास ने भी उसके चेहरे पर रंग लगा दिया.
वह भौंचक्की उन्हें देखती रह गई. तभी उसकी सासू मां ने उसे कुछ किताबें थमाते हुए कहा, “वायदा करो, अब तुम कभी भीष्म को याद कर के आंसू नहीं बहाओगी. मुझे आज भी अच्छी तरह से याद है, तुमने एक बार हंसी-हंसी में भीष्म की खाकी वर्दी पहन कर उससे कहा था न, “काश, अगर मेरे मां-बाबूजी ने मेरी शादी इतनी जल्दी नहीं की होती, तो मैं भी ज़रूर एक फौजी बनती. लो चलो, एसएसबी की परीक्षा का ऑनलाइन फॉर्म आज ही भरो और पढ़ाई में जुट जाओ. मेरा यक़ीन करो भीष्म जहां कहीं भी होगा, तुम्हें फौजी वर्दी में देख कर बहुत ख़ुश होगा.”

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अनायास आद्या की नज़र शहीद पति के फोटो पर गई. उसने मुट्ठी भर गुलाल उसके चेहरे पर लगा दिया. उसे लगा, भीष्म उसे देख कर मुस्कुरा रहा था.

रेणु गुप्ता


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