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कहानी- पहली बारिश की मुलाक़ात (Short Story- Pahli Barish Ki Mulaqat)

उसके कपडे़ लगभग भीगे हुए थे. कुछ बूंदें उसके चेहरे से फिसलती हुई नीचे गिर रही थीं और कुछ उसके बंधे हुए बालों के बीच क़ैद हो चुकी थीं. लेडीज़ परफ़्यूम का तेज़ झोंका उस लड़की के आते ही टपरी में फैल गया था. एक पल को केशव को लगा मानो वो सड़क के किनारे किसी टपरी में खड़ा ख़ुद को बारिश से बचाने की कोशिश नहीं कर रहा, बल्कि किसी ख़ूबसूरत आइलैंड में सैर पर हो, जहां अभी-अभी पहली बारिश हुई है और मिट्टी की ख़ुशबू सारे आसमान में फैली हुई है.

पिछले आधे घंटे से हो रही ज़ोरदार बारिश आख़िरकार धीमी पड़ने लगी थी. आसमान भी पहले से साफ़ हो चुका था, लेकिन सड़क के गड्ढों में भरे मटमैले पानी पर गिर रही बारिश की नन्ही बूंदों को देखकर इस बात का अंदाज़ा लगाया जा सकता था की बारिश की हल्की फुहार अब भी जारी है. दुकानों के बाहर शेड के नीचे खड़े लोग धीरे-धीरे करके एक बार फिर सफ़र पर निकलने लगे थे.
एक छोटे मेडिकल स्टोर के बाहर पिछले आधे घंटे में क़रीबन ग्यारह लोग बारिश से बचने के लिए जमा हो चुके थे. उन ग्यारह लोगों में केशव भी शामिल था. केशव सुबह जब घर से चला, तो आसमान एकदम साफ़ था. बारिश तो दूर हल्की छाया होने के भी आसार कहीं नज़र नहीं आ रहे थे. लेकिन दोपहर बाद मौसम ने जो अपना मिज़ाज बदला की बस मौसम ही होकर रह गया. शायद इसी वजह से अचानक से बदल जाने वालों को मौसम की तरह बदलना कह दिया जाता है.
ख़ैर बारिश अब रुक चुकी थी और बाकी सब की तरह अपना हेलमेट दुकान के काउंटर से उठाते हुए केशव भी घर को निकल पड़ा था. उसने बाइक की सीट पर ठहरी हुई बारिश की बूंदों को हाथ से साफ़ किया और हेलमेट पहनते हुए एक बार फिर सड़क पर था. हवा में तैर रही पानी की बौछार उसके हेलमेट के खुले शीशे से अंदर आकर उसके चेहरे पर जमती जा रही थी और इकठ्ठा होकर उसके गर्दन से नीचे पहुंच उसके गर्म शरीर में सिहरन पैदा कर रही थी.
वहीं उस मेडिकल स्टोर जिस पर कुछ देर पहले केशव रुका हुआ था से दो दुकान छोड़ एक कपडे की दुकान पर नेहा ठहरी हुई थी. वैसे तो नेहा और केशव का आपस में कोई रिश्ता नहीं था, दोनों एक-दूसरे को जानते भी नहीं थे, दोनों ने एक-दूसरे को कभी देखा भी नहीं था, लेकिन दुनिया में कई ऐसे लोग होते हैं, जिनसे हमारा रिश्ता होता है. भले हम उनसे कभी न मिले, कभी उन्हें न देखे या कभी उनके सामने न आए. कुछ रिश्ते मिलने के, देखने के या बनाए जाने के मोहताज़ नहीं होते, वो बस होते हैं. एक ऐसा ही रिश्ता नेहा और केशव का भी था. अभी-अभी केशव उस रिश्ते के बहुत क़रीब से गुज़रा था.


अब तक नेहा भी कपडे की दुकान से निकल रोड पर खड़े अपने ग्रे कलर के एक्टिवा स्कूटर तक आ चुकी थी. उसने कंधे पर टंगा कत्थई रंग का बैग सीट के नीचे डिग्गी में रखा और घर जाने को चल पड़ी. जहां केशव की बाइक हवा से बातें करते हुए तेज़ी से आगे बढ़ रही थी, वहीं नेहा की स्कूटर ने अब तक एक बार भी पचास से ऊपर जा सकने का सौभाग्य नहीं पाया था.
बाइक की रफ़्तार और बगल से गुज़रती गाड़ियों से उछलते गंदे पानी के छींटों से अपने नए सफ़ेद जूतों को बचाने के लिए केशव भरसक प्रयास कर रहा था. कभी वो पैरों को उठाकर लेग गार्ड में रख लेता तो कभी बाइक को डामर की सड़क से किनारे मिट्टी में ले जाकर अपने जूतों को बचाने का प्रयास करता. उसने ये सफ़ेद महंगे जूते पिछले हफ़्ते ही ख़रीदे थे और आज इस पहली बारिश में उन्हें लाल काला नहीं हो जाने देना चाहता था. उसे अफ़सोस हो रहा था अपने सुबह के उस फ़ैसले पर जब उसने शू रैक में रखे नीले जूते की जगह इन सफ़ेद जूतों को निकाला था.
ख़ैर कुछ मिनटों के सफ़र के बाद बारिश की गिरती नन्ही बूंदें एक बार फिर से भारी होने लगी थी. उनकी बादलों से टूटकर ज़मीन तक आने की रफ़्तार तेज़ होने लगी थी. गड्ढों में एक दफ़ा फिर से बाढ़ आने को थी. पिछले एक घंटे के सफ़र में केशव के साथ ऐसा कई बार हो चुका था. वो कुछ देर रास्ते पर चलता और बारिश फिर तेज़ हो जाती. बारिश तेज़ होते ही वो फिर किसी जगह आसरा ले लेता और बारिश के रुकते ही फिर सफ़र पर चल पड़ता था.
उसने इस बार भी ऐसा ही किया था. इसके पहले की बारिश उसे पूरी तरह से भीगा दे उसने सबसे पहले पड़ने वाली एक छोटी पान की टपरी में पनाह ले ली थी. बाइक रोड में किनारे खड़ी करके वो लगभग भागते हुए पान की टपरी के नीचे बने शेड तक पहुंचा था. उसने हेलमेट निकाल हाथ में ही थामे रखा और दुकान के बाहर रखी नीले रंग की लकड़ी की बेंच में बैठ गया. उस दुकान के अलावा वहां आसपास और कोई दुकान नहीं थी. पूरे रास्ते या तो खुले खेत थे या फिर इक्का-दुक्का कच्चे मकान. लोगों से ज़्यादा घर सिर्फ़ बड़े शहरों में ही देखने को मिलते हैं, ग्रामीण इलाकों में आज भी एक घर के बाद मीलों का फासला होता है, वो भी ख़ासकर हाईवे के किनारे बसी हुई बस्तियों में.
पान की उस टपरी के अंदर तक़रीबन 35 साल का एक आदमी मोबाइल में वीडियो देखने में व्यस्त था. मोटरसाइकिल खड़ी करके दुकान के बाहर पहुंच बेंच में केशव के बैठने तक के पूरे वाकये में एक बार भी उस आदमी ने केशव की तरफ़ नहीं देखा था. उसे कोई फ़र्क़ नहीं पड़ रहा था की कौन आया या कौन गया. हां, बस वो बीच-बीच में वीडियो को देख ज़ोर से हंसता और चुप हो जाता. दो लोगो के साथ होने पर भी एक को बिल्कुल अकेला महसूस करवाने की ये कला सिर्फ़ मोबाइल जैसे आविष्कार के द्वारा ही लाई जा सकती थी.
टपरी के बाहर बांस की बल्लियों को ज़मीन में गाड उसके ऊपर सूखे घास और छोटी लकड़ियों को मिलाकर बनाई हुई छत लगाई गई थी, जिसके ऊपर एक पुराना टीन बंधा हुआ था, ताकि पानी को अंदर आने से रोका जा सके. बांस की उन बल्लियों में अब तक फफूंद ने उगना भी शुरू कर दिया था.
बारिश तेज़ होने के साथ ही पानी की बौछार अंदर आने लगी थी, जिसके साथ ही केशव ने अपना बेंच किनारे से सरका कर मध्य में कर लिया था. अभी केशव ख़ुद को तेज़ हवाओं और बौछारों से बचाने की नाकाम कोशिश में था जब एक ग्रे एक्टिवा स्कूटर तेज़ी से आकर रोड के किनारे खड़ी केशव की बाइक के बगल में रुका था. स्कूटर के रुकते ही उसमें सवार लड़की ठीक वैसे ही भागती हुई टपरी में आई थी जैसे कुछ देर पहले केशव आया था. उसके कपडे़ लगभग भीगे हुए थे. कुछ बूंदें उसके चेहरे से फिसलती हुई नीचे गिर रही थीं और कुछ उसके बंधे हुए बालों के बीच क़ैद हो चुकी थीं. लेडीज़ परफ़्यूम का तेज़ झोंका उस लड़की के आते ही टपरी में फैल गया था. एक पल को केशव को लगा मानो वो सड़क के किनारे किसी टपरी में खड़ा ख़ुद को बारिश से बचाने की कोशिश नहीं कर रहा, बल्कि किसी ख़ूबसूरत आइलैंड में सैर पर हो, जहां अभी-अभी पहली बारिश हुई है और मिट्टी की ख़ुशबू सारे आसमान में फैली हुई है.
उसे लगा की ये छत की सूखी हुई घास कभी भी वापस से हरी हो जाएगी. बांस के डंडों में उगी हुई फफूंद की जगह नई हरी पत्तियां निकल आएंगी. पहली बार जब इश्क़ किसी से टकराता है, तो जाने क्यों उसे हर चीज़ हरी नज़र आने लगती है. दुकानवाले की एक बार फिर तेज़ हंसी से केशव की मृगतृष्णा टूटी थी. दुकानवाले को केशव की आशिक़ी या नेहा की ख़ूबसूरती में कोई इंटरेस्ट नहीं था, वो तो यूट्यूब में चल रही पिक्चर में खोया हुआ था. उसके लिए मोबाइल में दिख रही नायिका वो सब कर सकती थी, जो नेहा ने केशव के लिए किया था.


अब तक नेहा बेंच के दूसरे छोर पर बैठ चुकी थी. बेंच में तीन लोगों के बैठने की जगह थी और इस तरह से नेहा और केशव के बीच लगभग डेढ़ फीट की दूरी थी. केशव को ये डेढ़ फीट की दूरी दुनिया में सुदूर स्थित दो देशों के बीच की दूरी जैसी प्रतीत हो रही थी. नेहा को वहां आए ज़्यादा वक़्त नहीं बीता था जब टपरी के सामने से दो बाइक्स में कुल चार लड़के तेज़ी से गुज़रे थे. गुज़रते हुए उन्होंने वहां नेहा को बैठे देख लिया था और केशव को इस बात का अंदेशा हो गया था कि वो लड़के वापस आ सकते हैं और ऐसा हुआ भी. जल्द ही वो दोनों मोटरसाइकिल्स लौट आई थी. अब तक बारिश और तेज़ हो चुकी थी और आसमान में अंधेरा छाने लगा था. जल्द ही वो चारों लड़के भी टपरी के नीचे पहुंच चुके थे.
“और भैया, क्या हाल है?” आए हुए लड़कों में से एक ने नेहा को घूरते हुए दुकानवाले से सवाल किया था.
उसका सवाल सुन दुकानवाले ने एक नज़र उसे देखा और फिर बिना कोई जवाब दिए नज़रें मोबाइल में कर ली जैसे उसे अंदाज़ा था की ये सवाल उसके लिए किया ही नहीं गया है. अब तक टेंशन फ्री नज़र आ रही नेहा अचानक से 6 अनजान मर्दों के बीच इस सूनसान दुकान में चिंतित नज़र आने लगी थी और इसके पहले की आए हुए लड़के उसके और केशव के बीच बची हुई खाली जगह पर बैठें नेहा ने केशव की ओर सरकते हुए बेंच पर अपनी जगह छोड़ दी थी. उसके ऐसा करते ही केशव को आश्चर्य हुआ था. ये क्या कर दिया था नेहा ने? उसने दो देशों के बीच की दूरी ख़त्म कर दी थी. उसने तो पूरा का पूरा भूगोल ही एक पल में पलट दिया था. उसने दुनिया एक झटके में समेटकर छोटी कर दी थी. केशव को ये भूगोल का बदलना, दुनिया का इस तरीक़े से सिमटना अच्छा लगा था. मन ही मन उसने उन लड़कों को धन्यवाद भी दिया था. उसने सुना था की अगर लड़के चाहे, तो दुनिया बदल सकते हैं, लेकिन उसने ऐसा होते हुए आज पहली बार देखा था. अनजाने में ही सही पर आख़िरकार उन चार लड़कों ने दुनिया बदल ही दी थी.
नेहा के सरकते ही चार लड़कों में से एक लड़का नेहा के ठीक बगल में बैठ गया था. नेहा ने अपना दूर तक बेपरवाही से फैला हुआ दुपट्टा उठाकर अपनी गोद में समेट लिया था. दुनिया में बहुत कम लोगो को ये बात मालूम है की लड़की का दुपट्टा उसके जिस्म का ही हिस्सा होता है. अब तक बेंच पर तीन लोग बैठ चुके थे. तभी एक दूसरे लड़के ने अपने बेंच पर बैठे हुए दोस्त से थोड़ा सरकने और उसके बैठने की जगह बनाने का अनुरोध किया था. उस लड़के के ऐसा कहते ही नेहा के बगल में बैठा हुआ लड़का पूरी तरह से नेहा से सट गया था. उसका कंधा अब नेहा से टकराने लगा था और साफ़ तौर पर नज़र आ रहा था की नेहा उनकी इस हरकत से अनकंफर्टेबल महसूस कर रही थी. टपरी की उस छोटी छत के नीचे इतनी जगह भी नहीं थी की नेहा उठकर खड़ी हो जाए. उसके ऐसा करने से वो खड़े बाकी दो लड़कों के बीच हो जानेवाली थी. उसके लिए स्थिति अब परेशानी बनने लगी थी. उसे समझ आ रहा था की लड़कों ने जान-बूझकर बेंच पर इस तरीक़े से बैठने की कोशिश की है.
केशव को भी ये बात समझ आ रही थी, वो चाहता तो नेहा को साइड करके ख़ुद उन लड़कों के बीच आ सकता था, लेकिन इससे केशव का मन तो सुकून पा लेता नेहा का नहीं. नेहा को तो किसी न किसी लड़के से सट कर बैठना ही होता. चाहे वो उन चार में से कोई एक होता या फिर केशव. और पसंद केशव को नेहा आई थी, न की नेहा को केशव की कि वो केशव के बगल में सुरक्षित महसूस करती.
नेहा को इस तरीक़े से अनकंफर्टेबल होता देख उन लड़कों की बदतमीज़ी बढ़ती जा रही थी, जो केशव को रास नहीं आ रहा था. उसने जेब से मोबाइल निकाल उसमे कुछ टाइप किया और धीरे से नेहा को दिखाया.


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'जो मैं कहूं उसमें शामिल हो जाना, कोई सवाल मत करना या तुम मुझे नहीं जानती ऐसा मत जताना.' केशव ने अपने मोबाइल में लिख नेहा को दिखाया और वापस जेब में रख लिया.
“वैसे आरुषि आज तुम लेट कैसे हो गई रोज़ तो तुम दोपहर में ही घर चली जाया करती हो?” मोबाइल जेब में रखने के कुछ देर बाद केशव ने अपनी चाल शुरू की थी. पहले तो नेहा को समझ नहीं आया की आख़िर वो कर क्या रहा है, लेकिन फिर उसने इस झूठ में शामिल हो जाना सही समझा.
“हां, आज कुछ ज़रुरी काम था तो लेट हो गया.” नेहा ने बिना केशव की तरफ़ देखे जवाब दिया था.
“अच्छा और वैसे कल महेश भैया दिल्ली से आ रहे हैं न?” केशव ने नेहा के जवाब देते ही एक नया सवाल छेड़ा था.
“हां.” नेहा ने सिर्फ़ हां में जवाब दिया. उसे अब तक ये खेल समझ नहीं आ रहा था, पर केशव ने अपनी बात आगे जारी रखी.
“यार तुम्हारा ठीक है, तुम्हे पहले भी किसी चीज़ का डर नहीं था और जो थोड़ा-बहुत रहा होगा अब वो भी चला जाएगा. तुम्हारे पापा डीएसपी हैं ये बात जानकर आज तक किसी ने कॉलेज में तुमसे बदतमीज़ी नहीं की और फिर अब तो तुम्हारे भैया भी पुलिस में हो गए हैं. अब तो किसी की मजाल नहीं की तुमसे उलझ जाए.” केशव ने अब अपनी चाल चल दी थी. उसकी बात सुनकर नेहा को एक पल को लगा की वो उसे कोई और समझ रहा है. भला उसका दसवीं क्लास में पढ़नेवाला भाई अचानक पुलिस में कैसे भर्ती हो गया और उसके पापा जो कॉलेज में प्रोफेसर हैं डीएसपी कब बन गए. उसने आश्चर्य से केशव की तरफ़ देखा, लेकिन केशव की आंखों में साफ़-साफ़ दिख रहा था की उसे कुछ नहीं पता, वो तो बस एक झूठ को सच मनवाने की कोशिश में हैं. नेहा ने वो झूठ पढ़ लिया था और फिर मुस्कुराकर बस इतना ही कहा.
“सो तो है.”
नेहा के इतना कहते ही दुकानदार जो अब तक वीडियो देखने में व्यस्त था अचानक से नेहा को देखने लगा था. उसे ज़रा भी अंदाजा नहीं था की शहर के डीएसपी की बेटी उसकी टपरी के नीचे बैठी हुई है. उसने वीडियो बंद कर दिया. उसे डर सताने लगा था की न जाने वीडियो से आनेवाली आवाज़ में ऐसा क्या निकल जाए की, उसकी छोटी-सी गृहस्थी अचानक से मुसीबत में पड़ जाए और उसके घर समन टपक पड़े. वहीं चारों लड़के जो कुछ देर पहले तक अपनी डबल मीनिंग बातों से नेहा को टीज़ करने की कोशिश कर रहे थे चुप हो गए थे. उन्हें अचानक नेहा गुलाबी सलवार सूट की बजाय खाकी वर्दी में दिखने लगी थी. नेहा से सटकर बैठा हुआ लड़का उसकी बातें सुनते ही दूर जा किसी से फोन पर अचानक बातें करने लगा था.
ये सब देख नेहा को हंसी आ गई. उसने सिर नीचे झुका अपनी मुस्कान छुपाने की कोशिश की थी. झुके हुए सिर से उसने एक नज़र केशव पर डाली. दोनों की आंखों में शरारत उभर कर गुज़र गई थी. दुकानवाला अब तक सीधा होकर बैठ गया था और नेहा को विश्वास हो गया कि अगर कुछ देर बारिश नहीं रुकी, तो वो नेहा के लिए चाय-नाश्ते और कुर्सी के इंतज़ाम में लग जाएगा.
जल्द ही वो चारों लड़के आपस में बातें करने लगे और फिर पल भर में वहां से गायब हो चुके थे.


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उनके जाते ही नेहा ज़ोर-ज़ोर से हंसने लगी.
“यार कमाल के आदमी हो तुम.” नेहा ने हंसते हुए केशव की ओर देखकर कहा था.
“करना पड़ता है.” केशव भी बदले में मुस्कुरा पड़ा.
“वैसे तुम्हे बता दूं कि मेरा न तो नाम आरुषि है और न ही मेरे पापा डीएसपी और भैया पुलिस में हैं.” नेहा ने अब तक मुस्कुराते हुए बताया.
“जानता हूं, लेकिन अगर कुछ देर के लिए तुम्हारे आरुषि बनने, अंकल के डीएसपी बनने और तुम्हारे भैया के पुलिस फोर्स ज्वाइन करने से ये सब किया जा सकता था, तो इसमें हर्ज़ ही क्या है.” केशव ने कहा.
“हम्म वैसे थैंक यू. सच में मुझे समझ नहीं आ रहा था की क्या करूं और ऐसा कुछ तो कभी मेरे दिमाग़ में आ नहीं सकता था, लेकिन भविष्य ने ऐसी कोई परेशानी हुई तो हमेशा ये पैंतरा आज़मा लूंगी.” नेहा ने केशव को धन्यवाद देते हुए कहा.
अब तक बारिश कम हो चली थी. नेहा और केशव बेंच से उठ किनारे पर खड़े थे, जहां छत पर रखे टीन की नालियों से गिरता पानी नीचे मिट्टी में गहरा सुराख़ कर चुका था.
“वैसे मेरा नाम नेहा गिरी है.”
“ओके, एंड माय नेम इज़ केशव.”
“नाइस टू मीट यू केशव एंड थैंक यू वन्स अगेन.” कहते हुए नेहा ने अपनी स्कूटर की तरफ़ चलना शुरू कर दिया था. उसने स्टैंड से स्कूटर हटाया ही था कि केशव ने उसे आवाज़ लगा दी थी.
“अच्छा अगर कभी तुमसे मिलना हुआ तो?”
“तो पुलिस कॉलोनी आ जाना, डीएसपी सर का घर वहीं पर हैं.” नेहा ने हंसकर स्कूटर पर बैठते हुए जवाब दिया था. उसकी बात सुन केशव भी मुस्कुरा पड़ा.
“वैसे पुलिस लाइन के पीछे आर्य कॉलोनी है, वहां प्रोफेसर गिरी का घर आसानी से ढूंढ़ा जा सकता है.” कहते हुए नेहा की स्कूटर आगे बढ़ गई थी. केशव अब तक अपनी जगह पर खड़ा मुस्कुरा रहा था.
नेहा के जाते ही उसकी नज़र नीचे की तरफ़ गई. टीन से गिर रही पानी की बूंदें सीधे उसके सफ़ेद जूतों में आ रही थीं. उसके सफ़ेद जूते अब तक लाल पड़ चुके थे, पर अब उनका गंदा होना केशव को खला नहीं था. ये पहली बारिश की पहली मुलाक़ात की निशानी बन चुके थे.

डॉ. गौरव यादव

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Photo Courtesy: Freepik

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