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कहानी- परफेक्ट दामाद (Short Story- Perfect Damad)

चिंटू हंसते-खेलते हुए राइड से उतरा, लेकिन मेरी हालत ख़राब हो गई. इतने चक्कर आ गए मुझे, आंखों के आगे अंधेरा छाने लगा. सब आकर मुझे संभालने लगे. मेरे साथ मेरा ससुरजी पर इम्प्रैशन भी धराशाही हो गया.
लोग दामाद से इतनी उम्मीदें करते क्यों हैं? दामाद हैं शक्तिमान थोड़ी, जो हाथ ऊपर कर एक ही जगह गोल गोल घूम कर भी बिना चक्कर खाए सीधे खड़े रहेंगे. मुझे जाना ही नहीं था राइड पर. पहले ही कह देता, "नहीं! बच्चोंवाली राइड्स पर मैं नहीं बैठता."

आज उनसे मुलाक़ात होगी, फिर आमने-सामने बात होगी… गाना गुनगुनाते हुए मैं पैकिंग कर रहा था. पर मेरा बैग बंद ही नहीं हो रहा था.
मैं बैग के ऊपर चढ़ कर उसे बंद करने की कोशिश कर रहा था और भाई की आवाज़ आए जा रही थी, "जल्दी कर ट्रेन मिस हो जाएगी."
"आ रहा हूं…"
मैं चिल्लाया, पर ये कमबख़्त बैग बंद ही नहीं हो रहा था. मां ने इतने मिठाई के डब्बे दिए ले जाने को और सब बच्चों के लिए चॉकलेट के बॉक्स अलग से. मेरे कपड़े से ज़्यादा तो ले जाने के सामान थे.
इतनी तैयारी तो तब भी नहीं हुई थी, जब हम पहली बार प्रीति से मिलने गए थे. अरैंज मैरिज हुई थी हमारी. हम दोनों ही इंजीनियर हैं. मैं इलेक्ट्रॉनिक इंजीनियर और प्रीति मैकेनिक इंजीनियर. अब तो हमारी शादी को चार महीने हो गए थे. प्रीति पिछले महीने से अपने मायके, मुंबई गई हुई थी. आज मैं उसे लेने जा रहा था.
उसकी फैमिली से शादी के समय‌ ही मिला हूं. बड़ी फॉर्मल सी मीटिंग रही उनके साथ मेरी. इस बार उनसे भी अच्छे से मिलना हो जाएगा. तभी मेरे कमरे में भैया आए और बोले, "क्या पहना है तूने? टी-शर्ट वो भी पीली. कितना आंखों को चुभ रहा है. बड़े शहर जा रहा है, कुछ स्बटल पहन जो फॉर्मल भी हो, जैसे ये व्हाइट शर्ट."
मैं बोला, "पर ट्रेन में जा रहा हूं. व्हाइट पहनुंगा तो ख़राब नहीं हो जाएगा."
"कुछ भी हो, इम्प्रैशन ख़राब नहीं होना चाहिए. पहली बार जा रहा है तू ससुराल."
फिर मैं व्हाइट शर्ट पहने ट्रेन की लोअर बर्थ पर बैठा था. एक साइड कूलगेग था, दूसरे साइड छाछजी और भैया बैठे थे. वो भी इतने सिरियस बैठे थे जैसे न जाने मैं कौन से मिशन पर जा रहा हूं.
चाचाजी बोले, "सुन, ज़्यादा नहीं खाना उधर. डिमांड नहीं करना ये खाना है, वो खाना है… और सुन, मुंबई बड़ा शहर है. बड़े लोग रहते हैं वहां, तो तू भी कुछ बड़े-बड़े अंग्रेज़ी शब्द फेंकते रहना उन पर इम्प्रैशन‌ पड़ेगा."
"क्या?"
मैंने हैरान होकर कहा, तो वो बोले, "हां तो! ऐसे चुपचाप मत बैठे रहना बोंदुराम के जैसे. तू वैसे ही कम बोलता है. उन्हें ये ना लगे कि छोटे शहर का है, तो इसे ज़्यादा आता नहीं होगा कुछ. शॉपिंग वगैरह लेकर जाएं वो लोग बार्गेनिंग करें, तो तू डबल बार्गेनिंग करना. वो मोल भाव ना करें, तो तू ज़्यादा पैसे देकर आना. ढीला-ढाला सा मत रहना उधर."
भैया बोले, "हां, और सबसे ज़रूरी काम, ससुरजी को इम्प्रेस करना. ये उतना ही असंभव लगेगा, जितना इस कूलगेग में पानी कल तक ठंडा रहना. पर हिम्मत नहीं हारनी है."
मैं उनकी बातों से मंत्रमुग्ध होकर उन्हें चुपचाप सुने जा रहा था. जाते-जाते चाचाजी बोले, "बेटा! टी-शर्ट मत पहनना."
घर से निकलते वक़्त गाना गाते हुए अच्छी-ख़ासी मेरी हल्की-फुल्की रोमांटिक पिक्चर चल रही थी, स्टेशन तक पहुंचते वो सीरियस ड्रामा में बदल गई थी.
ट्रेन में पूरी रात मुझे यही सोचकर नींद नहीं आई कि मैं अपने ससुराल में नौ बजे उठूंगा, तो चलेगा न. टेंशन में नींद भी नहीं आ रही थी कि फोन आ गया. कोई नंबर था. मैंने उठाया तो आवाज़ आई, "नमस्ते जमाई जी, मैं प्रीति कि भाभी, मुझे पहचाना."

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मैंने ज़ोर से हां, तो कह दी थी, पर उसकी तो तीन-तीन भाभियां हैं, उनमें से ये कौन सी हैं मुझे भी नहीं पता था. वो बोलीं, "आप पहली बार ससुराल आ रहे हो आपका स्वागत है. आपकी शादी के चर्चे तो अब भी हो रहे हैं. वैसे आप शादी का एल्बम तो ला रहे हो ना! हमारे वाला तो बहुत बार देख लिया. आप वाला भी एल्बम लेकर आ रहे हैं, तो वो भी देखना हो जाएगा."
ओह! वो तो मैं भूल ही गया था. हमारा एल्बम तो अब तक बना ही नहीं. कितना बोला छुटकी ने भैया बैठकर फोटो डिसाइड कर लो कि कौन से वाले एल्बम में जाने हैं. पर मैं ही टालता रहा. ऐसा लग रहा था जैसे कोई रियालिटी शो शुरू हो गया था और मैं उसके पहले राउंड में फेल भी हो गया था.
सुबह ग्यारह बजे मुंबई आ गया. मैंने ट्रेन में ही सोच लिया था जब वो कूली को बुलाएंगे, तो मैं कूली से बात करके पैसे कम करवाकर उनका दिल जीत लूंगा… कि भाई वाह! कितना अच्छा दामाद है. पैसों को कितना बचाता है. मैं सामान लेकर ट्रेन से उतरा, तो सामने मेरे ससुरजी मेरे चार सालों के साथ खड़े थे. उन सब ने मेरा सामान उठाया. कूली बुलाने की बारी ही नहीं आई. पहला ही प्लान फ्लॉप हो गया.
पर मैं हार माननेवालों में से नहीं था. मैं अगले मौक़े की तलाश में था. वो अगला मौक़ा मिला खाने की टेबल पर.
खाने की टेबल पर मैं, मेरे ससुरजी और लंबी ख़ामोशी थी. वो इधर-उधर देखते फिर मेरी तरफ़ नज़र जाती, तो ऐसे मुस्कुराते जैसे किसी ने उनके गाल खिंच लिए हों. बदले में मैं भी मुस्कुरा देता. मैंने ही कुछ बात करने की कोशिश की, पर फिर भाभी की आवाज़ आई, "लीजिए नाश्ता आ गया. नाश्ते खाते ही हम आराम से बैठकर आप वाला एल्बम देखेंगे, तो उसे निकाल लीजिएगा."
ये सुनकर मैंने गर्दन हां में हिला दी. ये भाभी तो एल्बम के बारे में भूल ही नहीं रही हैं. फिर मैं उनसे जितना हो सके बात ना करने की कोशिश करता. भरपेट नाश्ता करने के बाद जब मैं सौंफ लेने के बहाने प्रीति के पास गया, तो उससे सौंफ का डिब्बा नहीं खुल रहा था, तो मैंने खोलने की कोशिश की. तभी बच्चे, "कम ऑन फूफा!.." करते आ गए.
मैं पूरा ज़ोर लगाए जा रहा था और मेरे पास भीड़ बढ़ती जा रही थी. पहली प्रीति की भाभी किचन में जाते-जाते बच्चों का शोर सुन रुक गईं. फिर उसके भैया फिर ससुरजी. इतना प्रेशर था मुझ पर की पंखे के नीचे पसीने आने लगे. ढक्कन कुछ खिसका और डिब्बा मेरे हाथ से जा गिरा और पूरी सौंफ ज़मीन पर फैल गई. डिब्बा ज़मीन पर घूमते-घूमते ससुरजी की पैरों में जा पहुंचा और मैं फिर से फैल हो गया.
सास-बहू पर ढेरों टीवी सीरियल हैं. लेकिन ससुर-दामाद पर कितने? इसलिए महिलाओं के लिए ये काम बड़े आसान हो जाते हैं. बहू सास को कैसे इम्प्रेस करे? सास बहू को कैसे इम्प्रेस करे? बिना शादी के उन्हे इन सब चीज़ों का टीवी सीरियल देखकर मोटे-मोटे तौर पर अंदाज़ा हो ही जाता है. लेकिन दामाद ससुर को कैसे इम्प्रेस करें, इस पर कभी किसी ने टीवी सीरियल बनाने का विचार नहीं किया?
मगर प्रीति के घरवालों ने विचार कर लिया था मुझे मुंबई दर्शन करवाने का. गेटवे ऑफ इंडिया, चौपाटी, अजंता एलोरा. सब बिल्कुल सही जा रहा था. अंताक्षरी मैं जीत भी रहा था. बच्चों का फेवरेट बन गया था. आख़िर प्रीति के साथ फेरी में बैठने का मौक़ा भी मिला. इतनी भीड़ में, इतने लोगों के बीच में से प्रीति के साथ पल बिताना, जिसमें हम दोनों के बीच कोई बैठा न हो, ना हो कोई फूफा-फूफा करता हुआ आए.

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सब कुछ ठीक ही चल रहा था कि बच्चों ने एस्सेल वर्ल्ड जाने कि ज़िद कर ली. चिंटू बोला, "प्लीज़, चलो ना एस्सेल वर्ल्ड. फूफाजी उधर बहुत सारी राइड्स हैं, शॉट एंड ड्रॉप, टॉप स्पिन, कॉपर चोपर."
चिंटू वहां की ख़तरनाक से ख़तरनाक राइड्स गिनवाता रहा और मैं चुपचाप सुनता रहा. बचपन में फिसल पट्टी भी सही से नहीं खाई मैंने. इसलिए चाचाजी बचपन से मुझे बोंदुराम कहते थे. लेकिन इन सबके सामने मैं बोंदुराम नहीं बन सकता था, क्योंकि मैं दामाद था दामाद. दामाद अपनी जान पर खेल जाएगा, लेकिन बोंदुराम नहीं बनेगा.
मेरे लिए इंजीनियरिंग के चार बैक क्लियर करना इतना मुश्किल नहीं था, जितना फिसल पट्टी पार बैठना. मुझे तो सी सॉ से भी डर लगता था. फिर एस्सेल वर्ल्ड में कैसे-कैसे झूले होते हैं. मैं झूलने से पहले तक बच पाऊंगा कि नहीं, पता नहीं. इतने में भाभी बोलीं, "अरे! एस्सेल वर्ल्ड थोड़ी लेकर जाएंगे इन्हें. जुहू बीच चलते हैं."
इतने में प्रीति के पापा बोले, "बच्चों की इच्छा है, तो जाने दो."
फिर मेरी तरफ़ देखते हुए बोले, "अगर आकाश को कोई दिक़्क़त है तो फिर…"
मेरे मुंह से जैसे ऑटोमैटिक निकल गया, "नहीं… नहीं… मुझे कोई दिक़्क़त नहीं "
इस तरह से मैंने अपने ही पैर पर कुल्हाड़ी, आरी, हथोड़ा और भी भिन्न-भिन्न प्रकार की ख़तरनाक चीज़ें मार दी थीं. मेरी गो राउंड में मेरे साथ जाने की चिंटू ने ज़िद पकड़ ली. मरता क्या ना जाना ही पड़ा. मैंने सीट बेल्ट इतनी कसकर पकड़ी थी जैसे ये टाइटैनिक का जहाज़ है और बस डूबने वाला है. जैसे ही राइड शुरू हुई, उसी सेकंड मुझे सारे भगवानों के नाम याद आ गए. अभी तो संसार भी ढंग से बसा नहीं मेरा. उस झूले पर मुझे ऐसा लगा जैसे अब मैं प्रीति से वापस मिल भी पाऊंगा या नहीं. इतने गोल-गोल चक्कर खिलाकर आख़िर वो झूला रहम खाकर रुक गया. चिंटू हंसते-खेलते हुए राइड से उतरा, लेकिन मेरी हालत ख़राब हो गई. इतने चक्कर आ गए मुझे, आंखों के आगे अंधेरा छाने लगा. सब आकर मुझे संभालने लगे. मेरे साथ मेरा ससुरजी पर इम्प्रैशन भी धराशाही हो गया.
लोग दामाद से इतनी उम्मीदें करते क्यों हैं? दामाद हैं शक्तिमान थोड़ी, जो हाथ ऊपर कर एक ही जगह गोल गोल घूम कर भी बिना चक्कर खाए सीधे खड़े रहेंगे. मुझे जाना ही नहीं था राइड पर. पहले ही कह देता, "नहीं! बच्चोंवाली राइड्स पर मैं नहीं बैठता."
नहीं.. नहीं! क्या पता फिर मुझे इससे भी डरावनी राइड पर बैठा देते. चिंटू भी न कसकर कमीज़ पकड़कर बैठ गया मेरी, "फूफा जाना है जाना है." जाना ही पड़ा. ऐसे चक्कर खाकर गिर पड़ा मैं कि मेरे सालों ने मुझे उठाकर गाड़ी में बैठाया. अब कितनी शरम आ रही थी मुझे कि मैं अपने दामाद के‌ रफ़ एंड टफ़ ब्रांड पर धब्बा लगा चुका था.
रात को खाने के लिए मैं कमरे से बाहर निकला ही नहीं. प्रीति ने कमरे में ही खाना मंगवा लिया. बस कल का ही दिन था यहां. अब मुझे किसी को इम्प्रेस नहीं करना था. चुपचाप घर वापस जाना था. मैं लटका हुआ मुंह लेकर बिस्तर के एक कोने में लेटा हुआ था, तभी मेरा फोन बजा, भैया का था. क्या-क्या उम्मीदें लगाकर बैठे होंगे वो मुझसे कि मैं बड़े ठाठ से ससुराल में हूं. ससुरजी मुझे, "वाह बेटा…" कहते हुए थक नहीं रहे होंगे. सब की ज़ुबान पर मेरा नाम होगा और मैं यहां भीगी बिल्ली बनकर कमरे में पड़ा हूं. डरते हुए मैंने फोन उठाया, तो वहां से आवाज़ आई, "और कैसा चल रहा है बेटा?"
मैंने भी कह दिया, "बढ़िया."
"ससुरजी इम्प्रेस हुए?"
"हां! बिल्कुल."
मेरे मुंह से निकल गया, तो भाई ने पूछा, "वाह! कैसे?"
मैं हड़बड़ा गया… क्या जवाब दूं सोच में पड़ गया.
"अरे वो… वो… हां आया… मैं आता हूं, बुला रहे हैं ससुरजी. कोई भी काम बिना पूछे करते नहीं मुझसे…"
कहते ही मैंने फोन काटा और राहत की सांस ली. अभी तो फोन पर झूठ कहकर पीछा छुड़ा दिया. वहां जाकर तो डीटेल में पूछेंगे, तो मैं क्या करूंगा? नहीं और झूठ नहीं बता सकता. अब कुछ तो करना पड़ेगा. परफेक्ट दामाद की छवि बनाने का जुनून वापस जाग गया. इतनी बार हारकर भी हार नहीं मानी थी मैंने. कुछ तो सोचना पड़ेगा.
मैं दिन को अपने कमरे में बैठा था, तभी चिंटू हाथ में बैट लेते हुए आया, "फूफाजी आप आज तो ठीक हो न. कल राइड पर आपकी हालत ख़राब हो गई थी."
कहते हुए चिंटू थोड़ा हंस रहा था. मेरे ग़ुस्सेवाली आंखें देख उसने फटाफट बात बदल दी और बोला, "फूफाजी क्रिकेट खेलोगे क्या?"
मैंने ना में सिर हिलाया.
वो बोला, "आज कोई नहीं खेल रहा. चाचाजी भी नहीं. वो खेलते तो प्रीति दीदी भी खेलतीं. पर आज वो खेल ही नहीं रहे. उन जैसा शॉट कोई नहीं मार सकता. जो अच्छी बैटिंग करता है, वो चाचाजी का फेवरेट हो जाता है. मामा भी उनकी फेवरेट हैं, क्योंकि वो अच्छी बैटिंग करते हैं."
उस वक़्त मैंने सोचा क्या वाकई सिर्फ़ क्रिकेट से ससुरजी को इम्प्रेस किया जा सकता है? अंधेरे में ये रोशनी की किरण की तरह मुझे दिख रहा था. मैंने सोच लिया था, चाहे ये कितना ही बचकाना था, पर मुझे करना है.
मैं बैट लेकर चौक में पहुंचा. फिर ज़ोर-ज़ोर से चिल्लाया, "चिंटू कहां है? क्रिकेट खेलना है ना!"
पीछे से मेरी शर्ट खींचते हुए चिंटू बोला, "मैं यही हूं फूफाजी."
मेरी आवाज़ सुनकर कोई चौक में नहीं आया. मैंने तो सोचा था मेरे ज़ोर से चिल्लाने से ससुरजी बाहर आ जाएंगे और फिर मैं इतना बढ़िया शॉट मारूंगा और वो इम्प्रेस हो जाएंगे. चिंटू बॉल फेंकने वाला था कि ससुरजी आ गए. मैंने जोश में शॉट मारा और ससुरजी की तरफ़ देखकर मुस्कुराया. तभी ठ्क करके आवाज़ आई.
देखा तो बॉल पुराने स्कूटर पर जाकर टकराया, जिससे वो स्कूटर धम्म से ज़मीन पर गिर गया. ससुरजी भागते हुए स्कूटर के पास गए. शीशे तो टूट ही गए थे, पर जब उसे स्टार्ट करने की कोशिश की, तो हो ही नहीं रहा था. मैं भी भागते हुए ससुरजी के पास गया और उनके स्कूटर स्टार्ट करने की कोशिश में लग गया. कितनी किक मारने पर भी वो स्टार्ट ही नहीं हो रहा था.
मैं बोला, "काफ़ी पुराना है ये तो, अब तो स्टार्ट ही नहीं होगा… बहुत आउटडटेड मॉडल है."
मेरे ये कहने पर ससुरजी ने मुझे देखा और चुपचाप अंदर चले गए.
प्रीति ने बताया कि ये ससुरजी का पहला स्कूटर था, जो उन्होंने अपनी कमाई‌ से ख़रीदा था. मैं भी बावला हो गया था. मुझे भाई की बातों को इतना सीरियसली नहीं लेना था. चुपचाप आता प्रीति को लेकर चला जाता. नहीं, मुझे तो रियालिटी शो बनाना था. रात को मैं खिड़की से स्कूटर को देख रहा था. सोच रहा था कि अब सब कैसे ठीक होगा.
मैंने उस दिन कुछ नहीं किया. मेरा मूड बड़ा ख़राब था. मैं अपने कमरे में ही बैठा रहा. वही नाश्ता किया. मैं आलू गोभी का पहला निवाला मुंह में डाला और मेरा फोन बजा. भाई का कॉल था. मैंने लंबी सांस ली और फोन उठाया, "क्या कर रहा है?"
भाई ने पूछा तो मैं बोला, "नाश्ता कर रहा हूं."
"ठाठ से बैठा होगा तू डायनिंग टेबल पर ससुरजी का हीरो नंबर वन बनकर."
नंबर वन तो नहीं, बेवकूफ़ हूं, जो बच्चों जैसे हरकतें कर दी थी मैंने… पर भैया से कुछ बोला ही नहीं जा रहा था. उन्हें कैसे बताऊं मेरी हालत के बारे में. भीगी बिल्ली के जैसे बैठा हूं कमरे में. ससुरजी का स्कूटर तोड़कर उनकी गुड बुक्स में तो नहीं, लेकिन उनकी हिट लिस्ट में ज़रूर आ गया हूं.
अगला दिन रवानगी का था. सवेरे की ट्रेन थी. उस दिन तो मैंने कुछ नहीं किया. मैंने सोच लिया था अब कोई भी काम इम्प्रैशन जमाने के लिए नहीं करना.
मैं स्टेशन जाने के टाइम पर कमरे से निकला. मैं जाने से पहले बड़ों के पैर छू रहा था. मैं ससुरजी के पास गया और बोला, "आप चल रहे हैं ना स्कूटर पर मुझे छोडने."
जवाब में उन्होंने कहा, "बेटा वो नहीं चलेगा."
"ट्राई तो करिए."
मैंने कहा, तो वो भी स्कूटर के पास गए और पहली ही किक में स्कूटर शुरू हो गया. वो हैरान से हो गए. उन्होंने ख़ुश होकर पूछा, "अरे! ये तो स्टार्ट हो गया. तुमने किया?"

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"जी! मैं तो सॉफ्टवेयर इंजीनियर हूं. ये प्रीति ने किया, मैंने हेल्प की. मेरी वजह से ख़राब हुआ, तो बुरा लग रहा था."
उन्होंने प्रीति को देखा और मुस्कुरा दिए. उनके चहरे पर मुस्कान देखकर मुझे लगा मैं सारे रियालिटी शो जीत गया.
ट्रेन में बैठे हुए सोच रहा था, शक्तिमान बनने की ज़रूरत नहीं है परफेक्ट दामाद बनने के लिए. हर काम में परफेक्ट होना ज़रूरी नहीं होता. आपको सर्वगुण सम्पन्न बनना ज़रूरी नहीं, कोई और बनना ज़रूरी नहीं. आपको अपने ऊपर और अपने प्यार के ऊपर भरोसा होना चाहिए. वही आपको परफेक्ट दामाद बनाता है.

चैताली थानवी

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