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कहानी- रुके रुके से कदम… (Short Story- Ruke Ruke Se Kadam…)

शादी के पांच साल बीत जाने के बाद अब भी ऐसा लगता है मानो वह कोई अजनबी हो. पूर्वा जितना कुणाल को पकड़ने की कोशिश करती, वह उतना ही दूर छिटक जाता था. जितनी बार वह यह सोचती कि अब वह कुणाल को पूरी तरह जानने लगी है, उतनी ही बार कुणाल का व्यवहार उसे चौंका देता था.

“पवन… मैं आ रही हूं, तुम मेरा इंतज़ार करना.” कहते हुए पूर्वा ने फोन रखा ही था कि तभी उसे कुणाल की आवाज़ सुनाई दी, “किससे बात हो रही है? और कहां जाने की तैयारी है?” कुणाल ने उसके बगल में बैठते हुए पूछा.
“कुछ नहीं, बस एक सहेली से मिलने का प्रोग्राम बना रही थी.” पूर्वा ने कहा. कुणाल ने पूर्वा के बालों को सहलाते हुए कहा, “अच्छी बात है, दोस्तों से मिलते रहना चाहिए, रिश्तों में गर्माहट बनी रहती है. पूर्वा…” कुणाल ने पूर्वा का हाथ अपने हाथ में लेकर कहा, “मैं भले ही कभी यह न जता सकूं कि मैं तुमसे कितना प्यार करता हूं, पर मैं जानता हूं कि तुम जानती हो कि तुम ही मेरी जीवनी शक्ति हो. मेरा घर, परिवार, साहस सब तुमसे है.” पूर्वा ने नज़रें झुकाकर पूछा, “आज यह बताने की ज़रूरत क्यों पड़ी?”
कुणाल ने सिर झटकते हुए कहा, “कुछ ख़ास नहीं, बस मन में एक बात आई तो मैंने कह दी.”
कुणाल ने उठते हुए कहा, “चलो, तुम्हें कॉलेज छोड़ता हुआ ऑफ़िस निकल जाऊंगा.”
कार में बैठते हुए पूर्वा ने कुणाल को देखा. सांवला रंग, सामान्य क़द, गालों में पड़ती गहराइयों और भूरी आंखों वाला कुणाल. शादी के पांच साल बीत जाने के बाद अब भी ऐसा लगता है मानो वह कोई अजनबी हो. पूर्वा जितना कुणाल को पकड़ने की कोशिश करती, वह उतना ही दूर छिटक जाता था.
जितनी बार वह यह सोचती कि अब वह कुणाल को पूरी तरह जानने लगी है, उतनी ही बार कुणाल का व्यवहार उसे चौंका देता था, ठीक शादी के बाद की पहली रात की तरह.
जब वह दुल्हन बनी, सहमी-सिमटी-सी बैठी अपने पति का इंतज़ार कर रही थी और कुणाल ने आते ही कहा था, “पूर्वा, तुम कपड़े बदल लो, थक गई होगी!” पूर्वा चौंक पड़ी थी, हिंदी फ़िल्मों में देखी गई सुहागरात की तरह वह अपने मन में न जाने क्या-क्या सपने संजोये बैठी थी, कुणाल ने आगे कहा था, “तुम मुझे ग़लत मत समझना पूर्वा, पर हमारी शादी इतनी जल्दी में हुई है कि मुझे तुम्हें जानने और समझने का मौक़ा ही नहीं मिला. इसलिए मैं चाहता हूं कि पहले हम एक-दूसरे को ठीक तरह से जान लें, समझ लें, फिर पति-पत्नी का रिश्ता कायम करें!” पूर्वा को कुणाल की बात तर्कपूर्ण लगी थी, फिर भी वह चौंक तो गई थी.

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फिर शादी के छह माह बाद उन दोनों की सुहागरात मनी थी.
“पूर्वा… पूर्वा… कहां खो गई? कॉलेज आ गया!” कुणाल ने उसे हिलाया तो वह अतीत के घेरों से निकल गाड़ी से उतर पड़ी.
अंदर आते ही उसकी मित्र प्रो. रक्षा ने उसका रास्ता रोक कर पूछा, “आज पवनजी नहीं आए?”
“हां, आज हमें जाना है..!” पूर्वा ने कहा तो रक्षा एकटक उसे ही देखती रह गई.
“पूर्वाऽऽ क्या कह रही हो? तुमने कुणाल को छोड़ने का फैसला कर ही लिया?”
“हां… और मैं जानती हूं कि इससे कुणाल को कोई फ़र्क़ नहीं पड़ने वाला!”
“पूर्वा… तुम शायद आज तक कुणाल को समझ ही नहीं पाई हो. अरे, इतना सुलझा हुआ इंसान तो बड़ी क़िस्मत से मिलता है और तुम हो कि उसे ठोकर मार कर जा रही हो!”
पूर्वा के मन में रह-रह कर रक्षा की बात कौंध रही थी. “क्या मैं सचमुच आज तक कुणाल को समझ नहीं पाई! पर मैंने कोशिश तो पूरी की थी एक अच्छी पत्नी बनने की. कुणाल सचमुच ही कुछ अलग था. वह पूर्वा को अपना दोस्त मानता था और अपनी निजी स्वतंत्रता बनाये हुए उसे भी निजी स्वतंत्रता देना चाहता था. पर पूर्वा के संस्कारों को यही बात तो खटकती थी. वह एक ऐसे परिवार से आई थी, जहां पति को ईश्‍वर का दर्जा दिया जाता था. उनकी हर बात को बिना किसी  प्रतिवाद के माना जाता था. पूर्वा को भी एक ऐसा ही पति चाहिए था, जो उसे रोके-टोके, उसके नखरे उठाये, उससे झगड़ा करे… पर कुणाल इससे बिल्कुल अलग था.
ऐसा नहीं था कि वह पूर्वा की ज़रूरतों का ख़याल नहीं रखता था या उससे प्यार नहीं करता था, पर कुछ तो ऐसा था जो पूर्वा को हमेशा खटकता रहता था. पूर्वा को याद हो आया कि जब कुणाल व्यापार को लेकर कुछ ज़्यादा व्यस्त हो गया था और उसे पर्याप्त समय नहीं दे पाता था, तो उसने ख़ुद ही पूर्वा से कहा था, “पूर्वा, तुम कोई नौकरी कर लो! इससे तुम्हारी पढ़ाई का भी सदुपयोग हो जायेगा और तुम्हारा मन भी लगा रहेगा.” पूर्वा फिर चौंक पड़ी थी. ख़ैर, पूर्वा ने नौकरी कर ही ली.
“मैडम… मैडम! आपका फ़ोन है मैडम.” पवन का फ़ोन होगा, सोचकर पूर्वा ने फ़ोन उठाया तो उधर से कुणाल की आवाज़ सुनकर फिर चौंक पड़ी, “पूर्वा तुम ठीक तो हो न?” “हां ठीक हूं, क्यों पूछा?” 
“पता नहीं क्यों, आज मन बहुत घबरा रहा है. पूर्वा, मुझे ऐसा लगा कि तुम परेशान हो… ख़ैर, तुम आज जल्दी घर लौट आना. मैं भी आने की कोशिश करूंगा.” पूर्वा सोचने लगी, “तुम्हें मेरी परेशानी का आभास कैसे हो गया कुणाल? क्या अब भी मेरे मन के तार तुम्हारे मन से जुड़े हैं?” पूर्वा ने फ़ोन रखा ही था कि फिर घंटी बजी, “हैलो पूर्वा, पवन बोल रहा हूं, तुम 5 बजे तक एयरपोर्ट पहुंच जाना, मैं तुम्हें वहीं मिलूंगा!”
पूर्वा ने पूछा, “तुम कहां हो?”
“घर… घर…”
“ठीक है, तो मैं चार बजे तक तुम्हारे घर ही आ जाऊंगी, वहां से साथ ही चलेंगे.” इतना कह कर पूर्वा ने फ़ोन रख दिया.

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एक साल पुरानी ही तो मुलाक़ात है उसकी पवन से. उसके ही कॉलेज में अंग्रेज़ी  प्रो़फेसर हैं पवन. गोरा रंग, आकर्षक व्यक्तित्व, आंखों पर चश्मा और ज़ुबान पर शैली, कीट्स और वडर्सवर्थ की रोमांटिक कविताएं, यह है पवन की पहचान. पहली बार ही मिलने पर पवन की आंखों में अपने लिए कुछ ख़ास भाव पाये थे पूर्वा ने. पवन से मिलकर ही पूर्वा को यह एहसास हुआ था कि 30 का आंकड़ा पार करने के बाद भी, वह सुंदर और आकर्षक है. पवन हर उस बात में माहिर था, जिसकी तमन्ना पूर्वा को हमेशा से रही थी. वह पवन के चुंबकीय आकर्षण में खिंचती ही चली जा रही थी. एक बार पवन पूर्वा को छोड़ने घर आया था तो कुणाल से उसकी मुलाक़ात हो गई थी. पूर्वा ने सोचा, शायद कुणाल जलन महसूस करेगा या कुछ कहेगा, पर कुणाल ने कुछ नहीं कहा.
कुणाल आदमी है या देवता! कभी असंयमित नहीं, कभी अव्यवहारिक नहीं, कभी असंतुलित नहीं! वह कुणाल से चीख-चीख कर कहना चाहती थी कि मुझे पति रूप में एक सामान्य इंसान चाहिए था, देवता नहीं! बुरे इंसान तो फिर भी सहन हो जाते हैं, पर देवताओं का देवत्व कई बार भस्म कर जाता है.
और इस घटना के बाद न जाने किस कुढ़न में पूर्वा के क़दम पवन की ओर बढ़ते ही चले गये थे. घंटों पार्क में बैठे बतियाते रहना, अक्सर रेस्टॉरेन्ट में खाना उनकी दिनचर्या हो गई थी. और ऐसे ही एक दिन, जब दोनों किसी होटल में बैठे कॉफ़ी पी रहे थे, तो अचानक कुणाल किसी के साथ वहां आ गया था. पवन उसे देख कर सकपका गया. कुणाल उनके पास आकर बोला, “अकेले-अकेले कॉफ़ी पी जा रही है!” पवन ने झेंपते हुए कहा, “आइए बैठिये न!”
कुणाल ने हंसते हुए कहा, “अरे नहीं, मैं तो मज़ाक कर रहा था. मैं रुक नहीं पाऊंगा, जरा जल्दी में हूं.” कहते हुए कुणाल तेज़ी से वहां से निकल गया. पवन ने एक लंबी सांस लेते हुए कहा, “आज तो तुम्हारी खैर नहीं पूर्वा.” पूर्वा ने व्यंग्य से होंठ टेढ़े करते हुए कहा, “कुणाल मुझसे कुछ नहीं कहेगा. उसे इस सबसे कोई फ़र्क़ नहीं पड़ता!”
पवन ने चकित होकर कहा, “कुणाल की जगह मैं होता तो सारा घर सिर पर उठा लेता, मेरी पत्नी किसी और के साथ घूमे-फिरे, यह मैं कभी सहन नहीं कर सकता.” पूर्वा ने मुस्कुरा कर कहा था, “शायद इसीलिए मैं तुम्हारे साथ हूं. जानते हो पवन, तुम वह सब हो जो कुणाल नहीं है. तुम अच्छे भी हो और बुरे भी. पर कुणाल स़िर्फ और स़िर्फ अच्छा है, पऱफेक्ट है और उसका यही पऱफेक्शन मुझसे सहन नहीं होता.”
धीरे-धीरे पूर्वा और पवन इतने क़रीब आ गये थे कि जब पवन ने पूर्वा से कहा कि, “छोड़ दो कुणाल को, हम इस शहर से कहीं दूर चले जायेंगे और वहां शादी कर लेंगे.” तब पूर्वा उसकी बात से इंकार न कर सकी थी. और आज जब जाने का व़क़्त क़रीब आ गया, तो पूर्वा न जाने अतीत के किन ख़यालों में डूबी बैठी थी. पूर्वा ने घड़ी देखी तो साढ़े तीन बज चुके थे. वह पवन के घर की ओर चल दी. वह जा तो पवन के पास रही थी, पर उसके दिमाग़ में स़िर्फ और स़िर्फ कुणाल ही घूम रहा था.
वह सोच रही थी, “कैसी होगी कुणाल की प्रतिक्रिया जब वह यह ख़बर सुनेगा? सह पायेगा यह सदमा? इस सबमें भी वह अपनी ही ग़लती तलाशेगा? मैं तो हमेशा से ही उससे दूर जाना चाहती थी, पर आज जब दूर जा रही हूं तो मन क्यों उसकी ओर खिंचता जा रहा है? तो क्या मैं पवन से प्यार नहीं करती…?” पूर्वा न जाने कितनी देर इन्हीं सवालों में उलझी रहती, अगर टैक्सी वाला उसे उतरने को न कहता.
वह धीमे क़दमों से पवन की ओर बढ़ गई. पवन ने उसे कंधों से पकड़ते हुए कहा, “देर कर दी, अब जल्दी करो, एयरपोर्ट बहुत दूर है.” पूर्वा हौले से उसका हाथ हटाते हुए बोली, “मैं तुम्हारे साथ नहीं चल सकती पवन!” पवन ने चौंक कर पूछा, “क्यों, क्या हो गया? क्या तुम मुझसे प्यार नहीं करती?”
पूर्वा ने विरक्त सी हंसी हंसते हुए कहा, “प्यार… पता नहीं… पहले भी करती थी या नहीं?”
पवन चौंक पड़ा, “क्या कह रही हो पूर्वा?”
पर पवन की बात को अनसुना करते हुए पूर्वा अपनी ही रौ में कहे जा रही थी, “… कुणाल के अहम् को चोट पहुंचाने के लिए, उसकी भावनाओं को तकलीफ़ पहुंचाने के लिए, मैं अपनी हदें पार करने चली थी, पर आज जब सच में जाने का व़क़्त आया, तो ऐसा लग रहा है कि कुणाल ने मेरी जड़ों को बहुत गहरे कहीं थाम रखा था, जिसके कारण ही मेरी शाखायें पवन को छू पाईं, उन्हें प्यार कर पाईं और फिर न जाने कब मुझमें यह घमंड आ गया कि मैं अपनी जड़ों के बिना भी जी सकती हूं… पर आज जब जड़ों से बिछड़ने का समय आया तो पता चला कि मैं, मेरी शाखायें सब इन जड़ों की ही नेमत हैं, इनके बिना मेरा कोई अस्तित्व ही नहीं रहेगा. मुझे माफ़ कर देना पवन…. मैं अपनी जड़ों यानी कुणाल से बिछड़ कर नहीं रह सकती. मैं तुम्हारा भी धन्यवाद करना चाहती हूं, क्योंकि तुम्हारे ही कारण मैं कुणाल को जान पाई हूं! अलविदा पवन!” इतना कह कर, पवन को अचंभित-सा छोड़ कर, पूर्वा वहां से चली गई.
घर पहुंच कर पूर्वा ने देखा कि सारा कमरा उसकी पसंद के जरबेरा और रजनीगंधा के फूलों से सजा हुआ है और कुणाल बेचैनी से कमरे में टहल रहा है. पूर्वा को आया देखकर कुणाल ने आतुरता से उसे अपनी बांहों में भर लिया. कुणाल से इस तरह का व्यवहार अनपेक्षित था पूर्वा के लिए.
कुणाल पूर्वा के गाल, माथे, आंखों और होंठों को बेतहाशा चूमते हुए कह रहा था. “मैं जानता था कि तुम लौट आओगी पूर्वा! तुम मुझे यूं अकेला छोड़ कर जा ही नहीं सकती हो.”
पूर्वा सहम गई, “तो क्या… तुम सब जानते थे?” उसने कांपते स्वर से पूछा. कुणाल ने कहा, “हां… आज सुबह मैंने तुम्हारी सारी बातें सुन ली थीं!” पूर्वा की आंखों से आंसू बह रहे थे.
उसने कुणाल के हाथ थाम पूछा, “तो तुमने मुझे रोका क्यों नहीं? क्या इतना भी अधिकार नहीं समझते तुम मुझ पर?”

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कुणाल ने उसका चेहरा अपने हाथों में भरते हुए कहा, “चाहता था कि रोक लूं, पर फिर लगा कि अगर तुम्हें जाना ही है तो मेरे रोकने का क्या फ़ायदा! और मैं तुम्हें ख़ुश देखना चाहना था. चाहे जिस तरह, चाहे जिसके भी साथ! पर सच कहूं पूर्वा… तो मैं बहुत डर गया था. अगर तुम सचमुच चली जाती तो मेरा क्या होता? पर अब… मैं कोशिश करूंगा अपने को बदलने की. ठीक वैसा ही, जैसा तुम चाहो!” पूर्वा ने मुस्कुरा कर कुणाल का माथा चूमते हुए कहा, “नहीं, तुम्हें बदलने की ज़रूरत नहीं है, मुझे तुम वैसे ही स्वीकार हो जैसे तुम हो- निश्छल, बच्चे की तरह! ग़लत तो मैं थी, जो समझ नहीं सकी, तुम मुझे माफ़..!” वह आगे कुछ न कह सकी, कुणाल ने उसके होंठों पर अपने होंठ जो रख दिए थे.     

- कृतिका केशरी

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