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कहानी- सच्चा प्यार (Short Story- Sachcha Pyar)

"निहारिका, तुम्हारी सादगीभरी सुंदरता और तुम्हारे संस्कारों से मैं प्रभावित हूं. मुझे तुमसे प्यार हो गया है. मैं तुमसे शादी करना चाहता हूं." निहारिका जानती है यह संभव नही है, फिर भी उसे विजय की बातें अच्छी लग रही थी. आज विजय को सुनने का मन कर रहा था.

"निहारिका जी…" एक अनजान युवक ने आवाज़ दी. निहारिका ने पलट कर देखा, तो अच्छी कद-काठी वाला एक सुदर्शन युवक उसके पीछे खड़ा था.
"जी कहिए." घबराते हुए मद्म स्वर में निहारिका उस युवक से बोली. निहारिका के भीतर एक खलबली मची हुई थी कि इस अनजान युवक ने मुझे क्यों आवाज़ दी? उससे भी ज़्यादा असमंजस इस बात की थी कि यह युवक मेरा नाम कैसे जानता हैं? उस युवक ने निहारिका से गेट के एक तरफ़ होने का आग्रह किया और ख़ुद उस तरफ़ बढ़ गया. निहारिका भी उसके साथ-साथ बैंक के कॉरिडोर के उस हिस्से में आ गई, जहां अमूमन कम चहल-पहल होती है.
"म.. म… मेरा… नाम विजय है." वह युवक थोड़ा हिचकिचाते हुए बोला.
"मैं इसी बैंक में काम करता हूं, इसलिए आपका नाम, पता, घर सब जानता हूं. मैं आपसे कुछ कहना चाहता हूं."
निहारिका बोली, " जी कहिए, क्या बात है?"
"मैं आपसे दोस्ती करना चाहता हूं."
"मैं लड़कों से दोस्ती नही करती और मैं तो आपको जानती भी नहीं हूं. आपको पहली बार देख रही हूं." निहारिका ने विनम्रता से कहा.


विजय बोला, "लेकिन मैं आपको तब से जानता हूं, जब से आपने इस बैंक में खाता खुलवाया है. इतना ही नहीं मैं उस जगह भी नियमित जाता हूं, जहां आपकी कोचिंग क्लास है, बल्कि वहां से रोज़ आपके ऑटो के पीछे-पीछे आपके घर तक आना-जाना भी मेरी दिनचर्या में शामिल है."
विजय के मुंह से यह सब सुनकर निहारिका आश्चर्यचकित हो जाती है? पहले तो उसे उस पर ग़ुस्सा आता है, परन्तु इतने लंबे टाइम से पीछा करने के बाद भी उसका मुझे किसी तरह से कोई परेशान नहीं करना… निहारिका को भा गया. निहारिका को लगा कि यह नौजवान सामान्य लड़कों जैसा नहीं है. अभी तक कि बातचीत में भी वह उसे सभ्य और समझदार ही लगा. विजय के इसी निश्छल प्रेम को देखकर वह शांत रहती है और बड़े सरल भाव से उससे कहती है, "आप यह सब क्यों कर रहे हैं?"
विजय कहता है, "निहारिकाजी मैं बिना लाग लपेट के अपनी बात सीधे-सीधे आप से कहता हूं. मैं आपसे शादी करना चाहता हूं."
"क्या..?"
निहारिका एकटक विजय को देखती रह जाती है. उसे समझ में नही आ रहा कि यह सब क्या हो रहा है? उसे कोई जवाब भी नहीं सूझ रहा. हां, उसके कपोलों पर रक्तिम आभा छा जाती हैं… नज़रें झुक जाती हैं और हदय की गति बढ़ जाती है. वह विजय से कुछ नही बोल पाती. उसके होंठ जैसे बर्फ़ की तरह जम गए हों.
बिन कुछ कहे वह चुपचाप बैंक के गेट की तरफ़ आगे बढ़ती है.
मौसम में हल्की ठंडक होने के बाद भी वह दुपट्टे से माथे पर आई पसीने की बूंदों को पोंछती हुई पैदल ही घर की तरफ़ चल देती है. चलते-चलते उसे मधुर याद आती है. उसकी वही चुलबुली सहेली जिसके साथ वह इस बैंक में पहली बार एमसीए इंट्रेंस एग़्जाम की तैयारी हेतु कोचिंग की फीस जमा करने के लिए पैसे निकालने आई थी.
पैसे निकालने के बाद जब निहारिका चलने लगती है, तो उसे ऐसा महसूस होता है जैसे उसे कोई देख रहा है, पर वह ध्यान नही देती. उसकी सहेली मधुर चुटकी लेते हुए बोलती है, "सुन निहारिका वो लड़का थोड़ा-सा और लंबा होता, तो मेरे लायक था, लेकिन यह तेरे लिए बिल्कुल परफेक्ट है."


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निहारिका नज़रें उठाकर भी नही देखती, पर मंद-मंद मुस्कुराती है. सभी सहेलियां खिलखिलाकर हंसते हुए बातों को हवा में उड़ाकर चल देती है.
क्या मधुर ने उस समय इसी विजय का ज़िक्र किया था? वह अपने सिर को हल्के से झटकती है, मानो विजय और उसकी बातों को भूल जाना चाहती हो.
"वह याद करती है उन दिनों को जब वह बीएससी फर्स्ट ईयर में थी. बीएससी की पढ़ाई कम्प्लीट करने के बाद उसका किसी अच्छी यूनिवर्सिटी से एमसीए करने का इरादा था. जिसके लिए उसे पैसों की ज़रूरत थी और छह भाई-बहन होने की वजह से उसके माता-पिता पर ज़िम्मेदारीयो का बोझ अधिक था, इसलिए वह आगे की पढ़ाई के लिए अपने माता-पिता से पैसे नही लेना चाहती थी. पढ़ाई के साथ-साथ निहारिका ने ट्यूशन पढ़ाना शुरू कर दिया. ट्यूशन से मिले पैसों को वह हर महीने बैंक में जमा कर देती थी. बैंक उसके घर से नज़दीक ही था.
निहारिका बीएससी प्रथम श्रेणी मे उत्तीर्ण होती है. कोचिंग में एडमिशन लेने के बाद हर महीने की तरह निहारिका इस महीने भी ट्यूशन से मिले पैसे जमा करने आई थी, तभी इस अंजान युवक विजय से मुलाक़ात होती है. उसकी याद आते ही निहारिका का हदय बिजली की गति से धड़कने लगता है.
चलते-चलते उसने फ़ैसला किया कि विजय के बारे में मां को ज़रूर बताएगी. घर पहुंचकर निहारिका मां को सारी बात बता देती है. मां पापा को सब बता देती हैं. पापा बोलते हैं, "लड़का ब्राह्मण है, लेकिन चौबे है. दुबे-चौबे में हमारे यहां शादी नही होती. फिर भी चलो चलकर लड़के को देख आते हैं.
निहारिका के साथ दोनों लोग बैंक जाते हैं. दूर से ही विजय को देखकर घर वापस आ जाते हैं. पापा एक लंबी गहरी सांस लेते हैं और बड़े दबे हुए स्वर में कहते हैं, "लड़का तो अच्छा है, परन्तु पिताजी नही मानेंगे. बहुत ही ज़िद्दी हैं. गांव की पूरी सम्पत्ति उठाकर किसी और के नाम कर देंगे. मारपीट करेंगे. घर के दरवाज़े हमेशा के लिए बंद कर देंगे. बिरादरी से भी बाहर निकाल देंगे. इससे हमारे और बच्चों के जीवन पर बुरा असर पड़ेगा."
एक महीने बाद फिर निहारिका बैंक जाती है. पहुंचते ही विजय निहारिका को रोक लेता है, जैसे वो निहारिका का पहले से ही इंतज़ार कर रहा हो."
"निहारिका मुझे थोड़ा समय दे दो. मैं तुमसे बात करना चाहता हूं."
"विजय समझने की कोशिश करिए कोई फ़ायदा नहीं मेरी शादी आपसे नहीं हो सकती."
"ठीक है. हम कहीं और बैठकर थोड़ी देर बात तो कर सकते हैं."
"ओके." बोलकर निहारिका घर वापस आ जाती है.
"मां, विजय ने आज मुझे फिर रोका. कहता है कुछ देर कहीं और बैठकर मुझसे बात करना चाहता है. बोलो मां मैं क्या करूं? उसका निश्छल प्रेम देखकर मैं सख्ती से बोल भी नही पाती. मां क्या कोई किसी से इतना निश्छल प्रेम कर सकता है?
वह तीन साल से मेरा पीछा कर रहा है, फिर भी कभी मुझे परेशान नहीं किया. कानोंकान भनक भी नहीं लगने दी, वरना आजकल के लड़के क्या-क्या नही करते हैं. परेशान भी करते हैं और अभद्र टिप्पणी भी. इंकार करने पर बदनाम करने या हासिल करने के हज़ार हथकंडे अपनाते हैं. लेकिन विजय ने मुझे तीन साल के बाद प्रपोज़ किया मां. क्या कोई लड़का इतना भी शरीफ़ हो सकता है."
मां मुस्कुराते हुए कहती हैं, "जाओ जाकर थोड़ी देर बात कर लो."
निहारिका मां के चेहरे को देखती ही रह जाती है. समझती है विजय सभी को पसंद है, परंतु दादाजी की वजह से हां नही कह पा रहे हैं. निहारिका भी ऐसा कोई कदम नही उठाना चाहती थी, जिससे मां-पापा को कोई तकलीफ़ हो."
अगले दिन निहारिका विजय से मिलने जाती है. दोनों एक रेस्टॉरेंट में जाकर बैठते हैं. विजय कोल्ड ड्रिंक मंगाता है.
"निहारिका, तुम्हारी सादगीभरी सुंदरता और तुम्हारे संस्कारों से मैं प्रभावित हूं. मुझे तुमसे प्यार हो गया है. मैं तुमसे शादी करना चाहता हूं." निहारिका जानती है यह संभव नही है, फिर भी उसे विजय की बातें अच्छी लग रही थी. आज विजय को सुनने का मन कर रहा था. परंतु अपने आपको संभालते हुए निहारिका कहती है, "आप बाह्मण है, फिर भी हमारी शादी नही हो सकती. हमारे यहां दुबे-चौबे में शादी नहीं होती. मेरे दादाजी नहीं मानेंगे."
"मुझे एक बार अपने पापा से मिलवा दो. मैं तुमसे वादा करता हूं यदि उन्होंने इंकार कर दिया, तो मैं कभी तुम्हारी गली में कदम नही रखूंगा. कभी तुम्हें परेशान नहीं करूंगा. हमेशा के लिए चला जाऊंगा. कभी भी तुम्हारे सामने नहीं आऊंगा." निहारिका जानती थी कोई फ़ायदा नहीं होगा पापा कभी भी दादाजी के ख़िलाफ़ नही जाएंगे और जाना भी नहीं चाहिए.
निहारिका भी ऐसा कोई काम नही करना चाहती थी, जिससे आगे चलकर मां-पापा और उसके भाई-बहन को कोई परेशानी हो.


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"नहीं विजय, हमारी शादी नहीं हो सकती. आप मुझे भूल जाएं. इसी में हम सब की भलाई है." विजय का उदास चेहरा देखकर निहारिका भी उदास हो जाती है और दुखी मन से घर वापस आ जाती है.
आज सारी रात निहारिका को नींद नहीं आती, शायद उसे भी विजय से प्यार हो गया था. पूरी रात करवटें बदलते-बदलते सुबह हो गई. सूरज धूप की चादर ओढ़ चुका था. निहारिका उठी. उसने विजय को भूलाने का प्रयत्न करते हुए अपने रोज़ के कामों मे लग गई."
एक महीने के बाद फिर निहारिका बैंक गई. आज नज़रें विजय को ही ढूंढ़ रही थी, लेकिन विजय कहीं भी दिखाई नहीं दिया. निहारिका से रहा नहीं गया उसने बैंक के कर्मचारियों से पूछा, "आज विजयजी नहीं आए हैं."
"जी विजयजी का स्थानांतरण हो गया है."
उसने आश्चर्य से पूछा, "कहां?"
"जी दिल्ली, इंडियन ओवरसीज बैंक में. अब वे प्रोबेशनरी ऑफिसर हो गए हैं."
निहारिका को ऐसा लगा जैसे किसी ने उसके दिल के हज़ार टुकड़े कर दिए हों. ऐसा प्रतीत हो रहा था जैसे सब कुछ ख़त्म हो गया है. दिल अन्दर ही अन्दर रो रहा था. कहीं पलकों से मोती न ढुलक जाएं. सहसा उसने अपने आपको संभाला और मन ही मन कहने लगी, 'उसने मुझे बताया भी नहीं, बिना बताए ही चला गया… वैसे ठीक ही किया विजय ने… अगर बता देता, तो शायद मैं कमज़ोर पड़ जाती.'
सोचते-सोचते निहारिका के अधरो पर मुस्कान आ गई.
विजय ने अपना वादा पूरा किया. वह मुझे कभी भी परेशान नहीं करेगा… कभी भी मेरे सामने नही आएगा… हमेशा के लिए चला जाएगा… शायद इसी को सच्चा प्यार कहते हैं… आज निहारिका को विजय पर गर्व हो रहा था. निहारिका विजय के प्रेम को हमेशा के लिए दिल के एक कोने मे संजोकर रख लेती है और एमसीए की तैयारी में जुट जाती है.

- प्रियंका त्रिपाठी 'पांडेय'

Photo Courtesy: Freepik

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