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कहानी- सहारा (Short Story- Sahara)

"तुम्हारा दिमाग़ तो ठीक है न अभिषेक, जब हमारा बच्चा हो सकता है, तो हम दूसरे का बच्चा गोद क्यों लें. एक सर्जन इतना बड़ा फिलॉस्फर हो सकता है, ये मैं सोच भी नहीं सकती. दर्शन किताबों में लिखा अच्छा लगता है, जीवन में उतारा नहीं जा सकता है. अभिषेक अगर मुझे पता होता कि तुम्हारा ज़िंदगी जीने का ढंग यह है, तो मैं कभी तुमसे शादी नहीं करती."

"सुमि अब मेरे थकते कदमों को सहारा दे दो." कहते हुए डॉ. नेथानी का कंठ अवरुद्ध हो गया.

मोटा ऐनक ऊपर चढ़ाए आंखों से अश्रु पोंछ रहे थे डॉ. नेथानी.

"क्या आपने अभी तक शादी नहीं की." पूछते हुए सुमि कांप रही थी कि एक पल को हरे होते हुए उसके सपने को कहीं एक पल में ही फिर से न सूख जाना पड़े.

"शादी तो जीवन में तुम्हीं से हुई है. इस जन्म में ही नहीं, हज़ार जन्मों तक तुम्हीं मेरी जीवन संगिनी रहोगी." ये सुनते ही सुमि बीते कल में डूब गई थी.

उस समय वह एम. ए. फाइनल इयर की की छात्रा थी, जब डॉ. अभिषेक से उसकी पहली मुलाक़ात हुई थी. दर्शन शास्त्र की छात्रा, पिता की इकलौती सन्तान, मां का साया बचपन में ही उठ गया था. घर का पूरा काम और अध्ययन. परीक्षाएं नज़दीक आ रहीं थीं और वह बीमार पड़ गई थी. बुखार उतर ही नहीं रहा था. पिता हीरालाल बहुत चिंतित थे, वह सुमि को सरकारी अस्पताल ले गए थे.

सुमि बड़बड़ाए जा रही थी, "मुझे पेपर देने हैं."

उसके पापा गिड़गिड़ाते हुए डॉ. के कदमों पर गिर पड़े थे, "प्लीज डॉक्टर, मेरी बेटी को बचा लीजिए, इसके अलावा मेरा कोई सहारा नहीं है."

डॉ. नेथानी ने सधी आवाज़ में कहा, "चिंता की कोई बात नहीं है. बुखार है, उतर जाएगा." डॉ. की दिनरात की देखरेख से सचमुच ही बुखार उतर गया था.

सुमि डॉ. के कर्तव्यपरायण दृष्टिकोण से बहुत प्रभावित हुई थी. गंभीर व्यक्तित्व, सधी भाषा, रात-दिन केवल मरीज़ों का सवाल, प्रत्येक मरीज़ की बीमारी का उचित इलाज, चाहे उसके लिए डॉ. अभिषेक को रात अस्पताल में ही क्यों न गुज़ारनी पड़े, चाहे उनकी ड्यूटी ही क्यों न ख़त्म हो जाए, जब तक उनकी मानवीय ड्यूटी ख़त्म नहीं हो जाती, वह घर नहीं जाते.

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सुमि डॉ. की देखरेख से शीघ्र ही स्वस्थ हो गई थी. हीरालाल डॉ. को धन्यवाद देकर घर आने का आग्रह कर वापस चले आए थे.

डॉ. अभिषेक एक-दो बार सुमि के घर आए. सुमि ने अपने आपको डॉ. के आकर्षण में बंधा हुआ महसूस किया. एक दिन वह डॉ. अभिषेक से शादी का प्रस्ताव कर बैठी. डॉ. अभिषेक ने सुमि को समझाते हुए कहा, "सुमि, मुझसे विवाह करने से पूर्व अच्छी तरह विचार कर लेना, जबसे पापा

को इलाज के अभाव में तड़पते हुए मरते देखा है तबसे मेरा जीवन ही बदल गया है.

अब मैं भौतिकवादी दुनिया में रहना पसंद

नहीं करता, अभावों और परेशानियों में मैंने अपनी शिक्षा पूरी की, तबसे मेरे जीवन का एक ही लक्ष्य है अभावग्रस्त गरीबों और निर्धनों की सेवा. मेरे लिए पेशेंट ही मेरा जीवन है. क्या तुम मेरा साथ निभा पाओगी?"

प्रत्युत्तर में सुमि मुस्कुरा दी थी. हीरालाल तो इस प्रस्ताव से बहुत ही ख़ुश थे, उन्हें घर बैठे इतना अच्छा वर जो मिल रहा था.

दोनों परिणयसूत्र में बंध गए थे. सुमि दुल्हन बनी डॉ. अभिषेक का इंतज़ार कर रही थी, उसी समय डॉ. परेशान से सुमि के कमरे में आए, "सुमि मुझे माफ़ कर देना, आज मैं चाहते हुए भी तुम्हारे पास नहीं रुक सकता. एक पेशेंट की हालत बहुत ख़राब है."

सुमि एक पल को सकते में आ गई, फिर बोली, "दूसरे डॉक्टर तो होंगे."

"ऐसी बात नहीं है सुमि. केस काफ़ी सीरियस है. दूसरे डॉक्टर अकेले उस केस को हैडिल नहीं कर सकते. तुम जानती ही हो मैं किसी के आंसू नहीं देख सकता. पेशेंट की मां दरवाज़े पर बेहोश सी पड़ी है, मैं जा रहा हूं. सुमि, प्लीज़ मुझे माफ़ कर देना."

ऑपरेशन सफल हुआ. डॉ. अभिषेक ने संतोष की सांस ली, किंतु सुमि के समक्ष वे अपने आप को अपराधी महसूस कर रहे थे. सुमि ने एक सप्ताह तक बात नहीं की. वैवाहिक जीवन के चार वर्ष यूं ही व्यतीत हो गए. डॉ. नेथानी अपने हॉस्पिटल में व्यस्त, सुबह से शाम तक मरीज़ों की लंबी कतारें, प्रत्येक मरीज़ डॉ. नेथानी को दिखाने के प्रयास में रहता, अन्य डॉ. मरीज़ों को शीघ्रता से निपटाते और अपनी ड्यूटी समाप्त होते ही घर आ जाते. हां, यदि उन्हें कोई बंगले पर दिखाने जाता, तो फीस लेकर अवश्य तन्मयता से देखते. उधर सुमि चहारदीवारी में क़ैद हो गई थी. सुबह से रात दस बजे तक अभिषेक अस्पताल में, लंच में एक घंटे घर, फिर हॉस्पिटल, दूसरे डॉ. १० से १२, फिर शाम ४ से १० तक अपनी ड्यूटी ख़त्म कर घर आ जाते. सुमि उनकी पत्नियों को देखकर सोचती, कितनी ख़ुशनसीब हैं. एक वह है जिसका पूरा समय इंतज़ार में चला जाता है. रात्रि को थके हुए अभिषेक खरटि भरकर सोने लगते, न कोई बात, न दूसरा विषय, जब कोई बात करो तो पेशेंट की बात लेकर बैठ जाते.

रात्रि की ड्यूटी समाप्त होने पर डॉ. नेथानी चहकते हुए आए, "जानती हो सुमि आज हमारा एक प्रयोग सफल हो गया है. एक बच्चे का ऑपरेशन करके आ रहा हूं सच किसी बच्चे की ज़िंदगी बचाना कितना अच्छा लगता है."

सुमि एक पल को चहक उठी, "सुनो अभिषेक यदि मैं भी मां बन जाऊं, तो कितना अच्छा रहे. तुम्हारा इंतज़ार करते-करते बहुत ऊब जाती हूं."

"बच्चा, हां क्यों नहीं, कोई प्यारा सा बच्चा गोद ले लेते हैं. सुमि इस देश में कितने बच्चे ऐसे हैं, जिनका कोई नहीं है. अनाथ बच्चे को गोद लेने से उसे मां-पिता मिल जाएंगे और हमें बच्चा. अपना बच्चा पैदा करके क्यों इस देश की जनसंख्या में एक की और वृद्धि की जाए, है न सुमि?"

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"तुम्हारा दिमाग़ तो ठीक है न अभिषेक, जब हमारा बच्चा हो सकता है, तो हम दूसरे का बच्चा गोद क्यों लें. एक सर्जन इतना बड़ा फिलॉस्फर हो सकता है, ये मैं सोच भी नहीं सकती. दर्शन किताबों में लिखा अच्छा लगता है, जीवन में उतारा नहीं जा सकता है. अभिषेक अगर मुझे पता होता कि तुम्हारा ज़िंदगी जीने का ढंग यह है, तो मैं कभी तुमसे शादी नहीं करती."

"अरे, अभी क्या हुआ." हंसते हुए डॉ. नेथानी बोले "अभी तो हम दोनों के बच्चा भी नहीं हुआ, जो कोई परेशानी रास्ते में आए."

"हां, ज़रूर करूंगी दूसरी शादी." सुबकते हुए सुमि बोली, उठाया सूटकेस और अपने पापा के पास चल दी. सुमि के जाने के पश्चात् डॉ. नेथानी अपने मरीज़ों में खोते चले गए. सुबह पांच बजे उठना, व्यायाम, टहलना, अध्ययन और नई-नई

दवाओं के बारे में प्रयोग. उनके पेशेंट किस तरह से कितनी जल्दी अच्छे हो सकते हैं, इसका ख़्याल, जीवन के चालीसवें वर्ष में उन्हें 'ऑल इंडिया इंस्टिट्यूट' में सर्विस मिल गई. अब तो उनको ज़िंदगी में सांस लेने की भी फ़ुर्सत न थी.

सुमि ने बच्चों के स्कूल में सर्विस कर ली. हीरालाल अक्सर समझाते किंतु सुमि का एक ही उत्तर रहता, "पापा, उन्हें जब हमारी ज़रूरत नहीं, तो हम ही क्यों जाए?"

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वे पुत्री की चिंता में हार्ट पेशेंट हो गए. वह अपनी पत्नी को बहुत प्यार करते थे. २५ वर्ष की उम्र में सुमि के जन्म लेते ही उनकी पत्नी का स्वर्गवास हो गया था, तबसे वो एकाकी जीवन व्यतीत कर रहे थे. सुमि को किसी प्रकार का कोई कष्ट न पहुंचे इसलिए उन्होंने दूसरी शादी नहीं की थी. किंतु जब सुमि अभिषेक को छोड़कर आ गई, तब से वे मन ही मन टूटने लगे थे.

जब उन्हें हृदय रोग का दूसरा दौरा पड़ा, तो सुमि बहुत घबरा गई, "पापा अगर आपको कुछ हो गया, तो मैं किसके सहारे जीऊंगी." कहते हुए सुमि रो पड़ी. गवर्मेन्ट हॉस्पिटल में दिखाया, ढेर सारे चेकअप हुए. डॉ. कुलकर्णी ने सलाह दी अब इन्हें 'ऑल इंडिया इंस्टिट्यूट' में ही दिखाना पड़ेगा.

वृद्ध पापा को लेकर सुमि 'ऑल इंडिया इंस्टिट्यूट' चल दी, महीनों पश्चात् नंबर लगा.

डॉ. गौतम ने सब रिपोर्ट देखने के पश्चात् कहा, "कल आप डॉ. नेधानी से मिलिएगा, वही इनका केस हैंडिल करेंगे, इनकी बाईपास सर्जरी होगी."

"क्या पापा का ऑपरेशन होगा?" कहते हुए सुमि रो पड़ी.

"रोने की कोई बात नहीं है. डॉ. नेथानी इज ए वेरी गुड सर्जन, आज तक उन्होंने जितने भी केस हैंडिल किए हैं ऑल आर सक्सेसफुल, प्लीज़ डोन्ट वरी."

अगले दिन सब रिपोर्ट्स और अपने पापा को लेकर सुमि तीसरी मंज़िल पर पहुंची. डॉ. नेथानी के कंपार्टमेन्ट में उसने कदम रखा. ऐनक ऊपर चढ़ाए हुए, बढ़ी हुई दाढ़ी, सफ़ेद बाल देखकर, एक पल को सुमि चौंकी, क्या ये अभिषेक हैं. फिर उसने गिड़गिड़ाते हुए कहा, "प्लीज डॉक्टर, मेरे पापा को बचा लीजिए, इनके अलावा मेरा कोई सहारा नहीं है." कहकर सुमि फूट-फूट कर रोने लगी और वहीं बेहोश होकर गिर पड़ी.

"अरे, ये तो सुमि है." डॉ. नेथानी एक पल को चौंक, सुमि को बांहों में उठाया. पानी पिलाया, फिर सिर हिलाते हुए बोले, "देखो सुमि कौन है, तुम्हारा अभिषेक है तुम्हारे सामने." सुमि ने आंखें खोलीं देखा वह अपने अभिषेक की बांहों में है. उसे लगा उसे ज़िंदगी का असली सहारा मिल गया.

- डॉ. श्रीमती प्रमिला बृजेश

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