Close

कहानी- सर्वर डाउन (Short Story- Server Down)

“फिर तो भला हो सर्वर डाउन का, कम से कम तुम दोनों को बाहर सबके साथ बैठने पर विवश जो कर दिया. नही तो जब से लॉकडाउन हुआ है और लॉकडाउन ही क्यूं , आम दिनों में भी हर रोज़ तुम दोनों अपने-अपने कमरों में बंद होकर इंटरनेट के ग़ुलाम बन गए थे या तो कॉलेज या फिर दोस्त और तुम्हारा इंटरनेट. चलो अच्छा है ना बेटा, इसी बहाने कुछ वक़्त परिवार के साथ बिता लो, नही तो इस इंटरनेट की मेहरबानी ने तो अपने घर में ही अपनों को पराया कर दिया."

“क्या बात है भाई, आज इंटरनेट ने छुट्टी ले रखी है क्या… जो तुम दोनों आज अपने-अपने घोंसलों के बाहर बैठे हो.“ अपने दोनों बच्चों को बाहर बैठक में टीवी देखते हुए देख राजीव चुटकी लेते हुए बोले.
“हां, वो आज कुछ घंटों के लिए सर्वर डाउन है ना, इंटरनेट सेवा बंद है. व्हाट्सएऐप, फेसबुक और बाकी चीज़ें.. सब बंद है, इसलिए दोनों अपने बिलों से बाहर आ गए." इससे पहले बच्चे जवाब देते कविता बीच में बोल पड़ी.
“ओ तभी, चलो अच्छा है, कम से कम कुछ देर के लिए ही सही मोबाइल और लैपटॉप को आराम तो मिलेगा. थक गए थे वे भी बेचारे. अच्छा है, इसी बहाने आज सब एक साथ बैठेंगे, साथ रहेंगे, खाना खाएंगे पूरा परिवार. आज इकट्ठे बैठेंगे, तो लगेगा हमारा परिवार… नहीं तो कोई कहीं होता है, तो कोई कहीं.“ राजीव कुछ राहतभरे अंदाज़ में बोले.
“आप लोगों को तो मज़ाक़ सूझ रहा है. हम पर क्या बीत रही है उसका आप अंदाज़ा भी नहीं लगा सकते. पता है कितना बोरिंग है. एक तो सर्वर डाउन ऊपर से लॉकडाउन, न लैपटॉप, न व्हाट्सएऐप, न इंटरनेट, न दोस्त, न पार्टीज़… और ऊपर से घर के बाहर भी नहीं जा सकते. करे तो क्या करें…“ चिढ़ कर उनकी बेटी आयुषी बोली.
“और नहीं तो क्या, इस लॉकडाउन ने दोस्तों और पार्टियों को विराम दे दिया और सर्वर डाउन ने इंटरनेट को. न चैट कर सकते हैं, ना लैपटॉप पर कुछ. ज़िंदगी अचानक से रेगिस्तान जैसी लगने लगी है, एकदम सूखी और नीरस. जैसे कुछ करने के लिए ही न हो.“ अपने बहन के सुर में सुर मिला कर आयुष बोला.
“फिर तो भला हो सर्वर डाउन का, कम से कम तुम दोनों को बाहर सबके साथ बैठने पर विवश जो कर दिया. नही तो जब से लॉकडाउन हुआ है और लॉकडाउन ही क्यूं , आम दिनों में भी हर रोज़ तुम दोनों अपने-अपने कमरों में बंद होकर इंटरनेट के ग़ुलाम बन गए थे या तो कॉलेज या फिर दोस्त और तुम्हारा इंटरनेट. चलो अच्छा है ना बेटा, इसी बहाने कुछ वक़्त परिवार के साथ बिता लो, नही तो इस इंटरनेट की मेहरबानी ने तो अपने घर में ही अपनों को पराया कर दिया. घर में कुछ काम है, सुख-दुख है… घर में रहते हुए भी तुम्हें कमरों में से फोन करके बुलाना पड़ता है, क्यूंकि आवाज़ तो तुम सुनते नही हो और…"
“ओहो पापा प्लीज़, एक तो वैसे ही बोर हो रहे है, अब आप ये प्रवचन मत शुरू कीजिए.“ इस बार आयुष चिढ़ कर बोला.
“बेटा ये प्रवचन नहीं, आज के युग की कड़वी सच्चाई है. इंटरनेट का इजाद लोगों का जीवन सरल और सहज बनाने के लिए हुआ था ना कि उन्हें पंगु, जो आज की युवा पीढ़ी समझ ही नहीं रही. देखो ना.. आज युवा पीढ़ी अपने ही घर और अपनों से, परिवार से, अपने मां-बाप से दूर होते जा रहे है. एक छत के नीचे रहते हुए भी बिल्कुल अलग. परिवार क्या होता है, उसकीअहमियत क्या होती है, सब ख़त्म से होते जा रहे है. परिवार में एक-दूसरे के प्रति संवेदनाएं, प्रेम, समर्पण भी जैसे लुप्त होते जा रहे हैं. ये इंटरनेट तो दीमक की तरह युवा पीढ़ी की जड़ें खोखली कर रहा है, क्यूंकि युवा पीढ़ी इसका सदुपयोग कम और दुरुपयोग ज़्यादा कर रही है." पति राजीव की बात का समर्थन करते हुए दबी आवाज़ में कविता ने भी अपना थोड़ा मन का ग़ुबार निकाल लिया.


यह भी पढ़ें: बच्चों के सर्वांगीण विकास के लिए सीखें स्पिरिचुअल पैरेंटिंग (Spiritual Parenting For Overall Development Of Children)

“तो आप कहना चाहती हैं की इंटरनेट बंद हो जाना चाहिए. आपको पता है आज की डेट में इंटरनेट कितना ज़रूरी है. ख़ैर आप नही समझेंगी, क्यूंकि आपके ज़माने में ये इंटरनेट नहीं था ना.” मां की बात सुनकर आयुषि ने इंटरनेट की वकालत करते हुए कहा.
“मैं ये नहीं कह रही बेटा की इंटरनेट बंद हो जाना चाहिए, पर अति हर चीज़ की बुरी होती है. हमारे ज़माने में और बहुत कुछ था करने को और वैसे भी तुम दोनों ने…”
“ओ हो, एक तो पहले ही हम परेशान हैं ऊपर से आप लोगों का ये बोरिंग प्रवचन. गिव अस अ ब्रेक…“ कविता की बातों से और ज़्यादा चिढ़ कर दोनों बच्चे पैर पटकते हुए वहां से चले गए.
अपने बच्चों का यूं चले जाना कविता को बुरा तो लगा, किंतु वो चुप होकर मन मसोसकर अपने काम में फिर से व्यस्त हो गई. राजीव भी अपनी दिनचर्या में व्यस्त हो गए. कविता के हाथ उसके काम में साथ ज़रूर दे रहे थे, किंतु उसका मन अपने टीनएजर बच्चों और उनके भविष्य के लिए चिंतित था. वो सोचने लगी की बच्चे इस इंटरनेट के कितने आदी हो चुके हैं. सिर्फ़ कुछ घंटों के इस सर्वर डाउन से बच्चे जल बिन मछली की तरह तड़प रहे हैं, बेचैन हो रहे हैं. घर-परिवार के बीच बैठे हैं किंतु अजनबी से. बच्चों में अपनों के लिए, परिवार के लिए भावनाएं अभी नहीं है, तो भविष्य में कैसे होंगी. यहां तक की दोनों भाई-बहन भी बस औपचारिक रिश्ते में बंधकर रह जाएंगे. आपस में उनका रिश्ता भी बस नाम भर रह जाएगा. एक-दूसरे के सुख-दुख कैसे निभाएंगे? वक़्त के साथ सोच और ज़माना बदलता है, पर ऐसे बदलता है, इसकी तो उसने कभी कल्पना भी नहीं की थी.
उनके ज़माने में तो प्रेम, रिश्ते, भावनाएं, संवेदनाएं सर्वोपरी थे. दुख हो या सुख, सब दिल से बिना किसी स्वार्थ के निभाए जाते थे. परिवार में एक का दुख सबका दुख होता था और एक की ख़ुशी सबकी ख़ुशी. परिवार तो छोड़ो, पड़ोसियों के साथ भी रिश्ते निभाए जाते थे. औपचारिकता का तो कोई स्थान ही नहीं था… यही सोचते-सोचते वो और उसका स्मृति पटल दो साल पीछे चला गया जब अचानक उसके पति राजीव की तबियत ख़राब हो गई थी. उनके सीने में असहनीय पीड़ा शुरू हो गई थी. उनकी हालत देख मां-बाबूजी और उसके हाथ-पांव फूल गए थे. डॉक्टर ने राजीव तो तुरंत हॉस्पिटल में भर्ती करने को कहा. कविता की सोचने-समझने की शक्ति शून्य हो गई थी.
उसने तुरंत बच्चों को फोन लगाया, किंतु व्यर्थ. बच्चों के फोन कभी व्यस्त आ रहे थे, तो कभी अनरीचेबल. राजीव की तबियत और कविता की परेशानी दोनों बढ़ रही थी. वो निरन्तर आयुष और आयुषि को सम्पर्क साधने का निष्फल प्रयास कर रही थी. बच्चों के फोन अभी भी व्यस्त आ रहे थे. उसे अब मन ही मन बच्चों की ग़ैरज़िम्मेदाराना रवैये पर ग़ुस्सा आ रहा था. उसे लगने लगा ऐसा भी क्या इंटरनेट में घुसे रहना की मां की लगातार आई मिस्ड कॉल का कोई भी उत्तर नहीं… उन्हें ये ज़रा भी एहसास नहीं की क्या पता कोई इमर्जेंसी हो, दुख-परेशानी हो… क्या उन्हें परिवार, माता-पिता की कोई फ़िक्र नहीं… बस दोस्त, फोन और इंटरनेट… यही उनका परिवार बन गया है… यही सोच-सोचकर अंदर ही अंदर कुढ़ने लगी.
हॉस्पिटल में एक-एक पल युगों के समान लग रहा था. वक़्त रेत की तरह फिसल रहा था. दिलोदिमाग़ अनेक ख़्यालों के जाले बुन रहे था. नितांत अकेली पड़ गई थी वो. उसे अपने बच्चों की कमी अत्यंत खल रही थी. निगाहें कभी घड़ी, तो कभी आईसीयू के दरवाज़े की तरफ़ थी. बेचैनी बढ़ती जा रही थी की तभी सामने से परेशानी की हालत में डॉक्टर को आते देख अनेक भयावय ख़्यालों ने उसे जकड़ लिया. किसी अनहोनी की आशंका से आंखें अपने आप बरबस बहने लगी. “मिसेज़ कविता, राजीवजी को हार्ट अटैक था. अच्छा हुआ आप समय पर यहां ले आईं, पर अब कोई घबराने वाली बात नही है. वे ख़तरे से बाहर हैं.” डॉक्टर की बात सुन कर ईश्वर को धन्यवाद देते हुए उसने राहत की सांस ली.
तभी सामने से उसे दोनों बच्चे हड़बड़ाए परेशान अवस्था में आते नज़र आए.
“मां, पापा कैसे हैं? उनकी तबियत कैसी है? क्या हुआ उन्हें? वे ठीक तो हैं.. होश में तो हैं? डॉक्टर क्या कह रहे हैं?…“ आते ही उन्होंने कविता पर प्रश्नों की बौछार कर दी.
“हार्ट अटैक था, अब ख़तरे से बाहर हैं.“ नाराज़गी भरे स्वर में संक्षिप्त सा उत्तर दिया.
“सॉरी मॉम, बस अभी आपकी इतनी सारी मिस्ड कॉल्ज़ देखी… और…” नज़रें झुकाते हुए आयुषि बोल रही थी कि उसकी बात बीच में काटते हुए आयुष ने आगे का वाक्य पूरा किया.
“… और घर पर दादी से पता चला और हम सीधा हॉस्पिटल भाग आए.“
“अभी देखी… मतलब! दोपहर से तुम दोनों के फोन ट्राई करते-करते परेशान हो गई थी. दोनों के फोन लगातार व्यस्त आ रहे थे या फिर अनरीचेबल. ऐसी भी क्या बातचीत की किसी का फोन अटेंड ही ना करो. किसी को कोई भी इमर्जेंसी हो सकती है जैसे कि आज. अरे, कम से कम मिस्ड कॉल देखकर उसका तुरंत रिप्लाई तो करो. लेकिन नहीं… कुछ ज़िम्मेदारी हो तब ना… हर चीज़ की एक सीमा होती है. तुम्हें इस बात की कल्पना भी नहीं कर सकते की उस वक़्त मुझ पर क्या बीत रही थी. जिस वक़्त मुझे अपने बच्चों की सबसे ज़्यादा ज़रूरत थी, उस वक़्त मेरे बच्चे अपने फोन और दोस्तों में इतने मशगूल थे कि उन्हें किसी और चीज़ का होश ही नही था. ऐसे किससे बात कर रहे थे तुम, ऐसा कौन था, जो घर-परिवार से भी ज़्यादा महत्व रखता था… बोलो जवाब दो…” आयुष की बात पर उसका सब्र का बांध टूट गया और वो दोनों पर बरस पड़ी.
“सॉरी मां, वो हम किसी से बात नहीं कर रहे थे. दरअसल, एक नई गेम सीरीज़ आई थी, बस वही डाउनलोड करके खेल रहे थे. हमें माफ़
कर दीजिए मां. आगे से हम ध्यान रखेंगे.“ कहकर बच्चों की आंखें भीग गईं.


यह भी पढ़ें: बच्चे को ज़रूर सिखाएं ये बातें (Important Things You Must Teach Your Child)

वो कहते हैं ना ईश्वर ने मां की रचना ही ऐसी की है कि अगर उसका बच्चा कितनी भी बड़ी ग़लती करें, वो उसे माफ़ कर ही देती है. एक मां सब कुछ देख सकती है, बस अपने बच्चों की आंखों में आंसू नहीं देख सकती. उसका ममतामयी हृदय पिघल जाता है और यही कविता के साथ हुआ.
अपने बच्चों पर, इंटरनेट पर उसका ग़ुस्सा बच्चों के आंसुओं के आगे ताश के पत्तों की तरह ढह गया. उसने दोनों को गले लगा लिया.
कुछ वक़्त तो बच्चे फोन और इंटरनेट को लेकर संतुलित रहे, पर कुछ वक़्त बाद.. वही ढाक के तीन पात…
कविता को उनका हर वक़्त फोन और लैपटॉप पर बैठे रहना बहुत बुरा लगता, तो वो उन्हें टोकती, किंतु जैसे एक चिकने घड़े पर सब कुछ फिसल जाता है ऐसे ही कविता की बातें, नसीहतें का उन पर कुछ असर नहीं होता.
यहां तक कि उसके पचासवें जन्मदिन पर बच्चों ने सबसे पहले उसे विश तो किया, पर प्रत्यक्ष रूप से बाद में पहले फेसबुक और व्हाट्सएऐप पर किया. फेसबुक पर 'हैप्पी बर्थडे मॉम, लव यू सो मच…' के मैसेज उस पर लाइक्स और कमेंट्स की बाढ़ आ गई थी. कितना बुरा लगा था कविता को. ऐसे ही मदर्स डे पर बच्चों ने विश किया था. अब इस इंटरनेट की लत को समय और परिस्थितियों की विडंबना कहें या आजकल का कड़वा विष था, जिसे न चाहते हुए भी सभी अभिभावकों को पीना पड़ रहा है. यहां तक कि सड़क पर चलते हुए, गाड़ी चलाते हुए या तो फोन लगातार कान पर लगा रहता है या फिर उंगलियां व्हाट्सएऐप चैटिंग में की पैड पर थिरक रही होती है. अरे ऐसे में ज़रा सी लापरवाही से कोई भी हादसा हो सकता है, लेकिन नहीं… अपने आप को ज़्यादा समझदार समझनेवाली युवा पीढ़ी आजकल इंटरनेट के दलदल में फंसती जा रही है. उसका यूज़ कम मिसयूज़ ज़्यादा कर रही है और अभिभावक… वो बेचारे बेबसी में मूक दर्शक बन गए हैं.
कविता अपने विचारो के इसी भंवर में उलझी थी कि अचानक आयुषि की ज़ोर की आवाज़, “वाउ दादाजी! इट्स अमेज़िंग! कितनी अच्छी पिक्स हैं ये.“ से वो विचारों के भंवर से बाहर आ गई.
बच्चे बोर होते-होते टहलते हुए अपने दादा-दादी के कमरे में चले गए थे.
दादी क्रोशिए से कुछ बुन रही थीं, तो दादाजी अपनी अआलमारी से पुरानी यादों का पिटारा खोले बैठे थे. बस इसी उत्सुकता ने दोनों बच्चों को कमरे में बैठा लिया.
“दादाजी ये क्या गांव है और ये किसका घर है? कितना सुंदर लग रहा है!” आयुष पुरानी तस्वीरें देखते हुए बोला.
“बेटा ये गांव में हमारा घर है. और ये जो तस्वीर देख रहे हो ना ये तुम्हारे पापा की पेड़ पर से आम तोड़ते हुए है. बेटा पहले हम पूरी गर्मी की छुट्टियां गांव में मस्ती करते हुए बीताते थे. दो महीने कैसे बीत जाते थे पता ही नहीं चलता था.”
“और देखो ये वाली तस्वीर… इसमें तुम्हारे पापा गांव की नदी में दोस्तों के साथ नहाने-खेलने का भरपूर आनंद ले रहे हैं. बेटा पहले के ज़माने में ये फोन और इंटरनेट तो होता नहीं था, बस यही खेलना, कूदना, रिश्तेदारों, पड़ोसियों के घर आना-जाना, सुख-दुख निभाना यही वक़्त गुज़ारने का साधन होता था.”
उनकी आवाज़ सुन, अब तो राजीव और कविता भी उनके कमरे में बैठ उनकी पुरानी यादों की ट्रेन के मुसाफ़िर बन चुके थे.
सभी एल्बम और पुरानी चीज़ें देखने में व्यस्त हो गए.
“पिताजी ये तो मेरे जन्मदिन की तस्वीर है.“ राजीव उत्साहित होकर बोले.
“हां, याद है उन दिनों हॉट्शाट का नया-नया कैमरा आया था और उस साल जब तुझे जन्मदिन पर वो कैमरा दिया था, तो तेरी बहन दीक्षा ने कितना हंगामा किया था. फिर इसके आंसू पोंछ कर तूने अपना कैमरा उसे दे दिया था." दादी की बात सुनकर सब हंसने लगे.
“दादी क्या दीक्षा बुआ और पापा में भी लड़ाई होती थी? और पापा आपने अपना बर्थडे गिफ्ट भी उन्हें दे दिया…" अपनी भौंहे ऊपर करते हुए आयुषि ने उत्सुकता से पूछा.
“लड़ाई… अरे, इतनी बुरी तरह होती थी की पूछो मत. पहले ख़ूब लड़ते फिर थोड़ी देर बाद दोनों गुड-मिश्री की तरह घुलमिल कर मीठे हो जाते थे. एक-दूसरे के लिए जान छिड़कते हैं दोनों, तभी तो एकदम से अपना कैमरा उसे दे दिया.“ इस प्रश्न का उत्तर दादाजी ने दिया.
“दादाजी, ये किसकी तस्वीर है?"
“ये… ये तस्वीर गांव के घर में ग्रुप फोटो की है.”
“इतना बड़ा ग्रुप! दादाजी क्या आपका परिवार इतना बड़ा था. हम तो परिवार के नाम पर सिर्फ़ दीक्षा बुआ को जानते हैं.“ आयुष ने मायूस-सा चेहरा बना कर बोला.

यह भी पढ़ें: उत्तम संतान के लिए माता-पिता करें इन मंत्रों का जाप (Chanting Of These Mantras Can Make Your Child Intelligent And Spiritual)

“हां बेटा, यह सभी तेरे पापा के ताऊ, चाचा और बुआ हैं. पहले हम सब एक ही घर में रहते थे. सब एक साथ बैठते, खाते-पीते और गपशप करते थे. बेटा पहले घर छोटे लोग ज़्यादा होते थे और अब घर बड़े लोग कम होते है. और पहले के ज़माने में आस-पड़ोस भी घर का परिवार समान ही होता था. दुख-सुख किसी एक परिवार में होता था, किंतु साथ-सहयोग पूरा गांव देता था. हम शहर में ज़रूर रहते थे, किंतु हृदय और जड़े गांव में थी.”
“आयुष बेटा, परिवार को जानने के लिए परिवार को वक़्त देना ज़रूरी होता है. तभी तो परस्पर प्रेम व भावनाएं गहरी होती हैं. लेकिन आजकल के बच्चे तो मोबाइल में घुसे रहते हैं जानेंगे कैसे!” दादी ने बच्चों को प्यार की झिड़की दी.
“दादाजी गांव में हरियाली भी बहुत होती होगी? घर कैसे होते है? मैंने अक्सर फिल्मों में गांव देखा है.”आयुष बोला.
“बेटा गांव की छटा ही एकदम पावन है. शहर के स्वार्थ से एकदम अछूता वातावरण, सरल और शांत. जब लॉकडाउन हटेगा, तो हम सब गांव चलेंगे… तुम दोनों चलोगे या फिर हर बार की तरह अपने दोस्तों और ज़रूरी काम का बहाना बना दोगे.“ बच्चों की बातों से दादाजी के आंखों के समक्ष गांव और उसकी यादें घूमने लगीं.
“नहीं नहीं दादाजी इस बार हम चलेंगे. इन तस्वीरों को देख अब हमें भी गांव देखने की उत्सुकता हो रही है.“
“दादाजी देखो, इस तस्वीर में तो आप पापा के साथ चेस खेल रहे हो. चेस.. वाउ हाउ इक्साइटिंग. मुझे भी शतरंज सिखाइए ना दादाजी प्लीज़.”
अभी दोनों बच्चे दादाजी की पुरानी यादों के सागर में मस्त गोते खा रहे थे कि अचानक आयुषि की नज़र दादी के क्रोशिए पर बुनते ख़ूबसूरत खिलखिलाते रंगों से सजे मफलर पर पड़ी और उत्सुक होकर उसने पूछा, “दादी ये क्या है?”
“बेटा ये क्रोशिया है और ये मफलर.“
“कितना सुंदर मफलर है ये दादी और आपने कलर्ज़ भी कितने ख़ूबसूरत यूज़ किए हैं. दादी मैंने कितनी बार इसे फेसबुक की वीडयोज़ पर देखा था. मुझे बहुत सुंदर लगती थी वीडयोज़. और पता है दादी मेरा मन भी करता था इसकी बनी चीज़ें लेने का. पर मुझे इसके बारे में डिटेल्ज़ में पता नहीं था और देखो सरप्राइज़ मेरे घर में ही ये क्रोशिया मिल गया और साथ में ये सुंदर मफलर भी. दादी ये मफलर मुझे दे दो प्लीज़… ये मेरे उसवाली ड्रेस के साथ बहुत स्मार्ट लगेगा.“ वो मफलर पर रीझते हुए बोली.
“ दादी… दादी प्लीज़ मुझे भी ये क्रोशिया सिखाओ ना. मैं भी ऐसी ख़ूबसूरत चीजे़ं बनाना चाहती हूं.”
“हां, हां ज़रूर सिखाऊंगी, पर मन से सीखेगी ना.“
“ऑफकोर्स दादी.“
“तो चल आज से ही श्री गणेश करते हैं.“ दादी ने प्यार से उसे गले लगाते हुए कहा.
राजीव और कविता दोनों अपने बच्चों को अपनी जड़ों की ओर झुकते और परिवार में घुलते देख अभिभूत हुए जा रहे थे.
दोनों बच्चों के फोन सूने एकांत में पड़े लगातार पी… पी… की बीप बज रहे थ. संभवतः इंटरनेट सेवा पुनः बहाल हो गई थी.
और सबसे सुखद आश्चर्यवाली अनुभूति तो ये थी कि दोनों बच्चे अब पुराने पिटारे की यादों, क्रोशिया और चेस के सतरंगी रंग में इतने रंग गए थे कि उन्हें अपने फोन पर बजते मैसेजेस कि बीप भी सुनाई नहीं दे रही थी, वरना एक बीप सुनते ही दोनों के कान खड़े हो जाते थे.
इंटरनेट की दुनिया से दूर अपने परिवार की दुनिया के आग़ोश में खो गए थे बच्चे. कविता की आंखें इस सुखद पल से नम हो रही थीं और वो मन ही मन थोड़ी देर इंटरनेट के सर्वर डाउन होने का शुक्रिया कर रही थी.

कीर्ति जैन
कीर्ति जैन

अधिक कहानियां/शॉर्ट स्टोरीज़ के लिए यहां क्लिक करें – SHORT STORIES

डाउनलोड करें हमारा मोबाइल एप्लीकेशन https://merisaheli1.page.link/pb5Z और रु. 999 में हमारे सब्सक्रिप्शन प्लान का लाभ उठाएं व पाएं रु. 2600 का फ्री गिफ्ट.

Photo Courtesy: Freepik

Share this article