बरसात के मौसम में जंगल के एक सूखे कुएं के आसपास हरी-हरी घास उग आई थी और एक गधा उस हरी घास को खाते-खाते कुएं के पास तक पहुंच गया. वह बहुत भूखा था, अतः उसका पूरा ध्यान घास पर ही टिका था और असावधानी वश वह कुएं में गिर गया.
गिरने पर वह ज़ोर-ज़ोर से चिल्लाने लगा तो उसका मालिक जो पास ही काम कर रहा था, दौड़ा आया. कुआं काफ़ी गहरा था और गधे को उससे निकाल पाना मुश्किल ही नहीं, असम्भव सा ही लग रहा था.
आसपास के अन्य किसान भी गधे की आवाज़ सुन सहायता करने आन पहुंचे. पर किसी को भी इस समस्या का हल न सूझा.
“गधा तो अब वैसे भी बूढ़ा हो चला है और अधिक समय तक मेरे काम का नहीं रहने वाला.” उसके मालिक ने अपने मन को दिलासा दिया और गधे को कुएं में ही छोड़ देने का फ़ैसला लिया.
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उसके अन्य साथियों ने विचार-विमर्श किया और निर्णय लिया कि इस सूखे कुएं में गिरने के हादसे आगे और भी हो सकते हैं तो क्यों न हम इस कुएं को ही भर दें. जंगल होने के कारण आसपास बहुत सी लकड़ियां, मिट्टी, पत्थर और ढेर सारा मलबा बिखरा था. सब किसान अपनी-अपनी कुल्हाड़ियों से काट अथवा तोड़ कर, मिट्टी, मलबा इकट्ठा कर कुएं में डालने लगे.
मलबा गिराने पर पहले तो गधा ज़ोर-ज़ोर से चिल्लाया पर फिर धीरे धीरे शांत हो गया.
कुछ देर बाद किसान ने देखना चाहा कि कुआं कितना भर चुका है? उसने जाकर कुएं में झांक कर देखा तो पाया कि गधा सही सलामत खड़ा है. उसके ऊपर जो भी मिट्टी मलबा डाला जाता है गधा उसे झाड़ कर नीचे गिरा देता है और स्वयं उसी के ऊपर चढ़ कर खड़ा हो जाता है.
इस तरह वह पहले से ऊंचा उठ चुका है.
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हमारे जीवन में इस तरह की अनेक मुश्किलें आती हैं. और हम उनसे हार मान कर, निराश हो कर बैठ जाते हैं. ऐसे में तो यक़ीनन ही हम कठिनाइयों के नीचे दब जाएंगे. हमारी जीत तब होगी, जब हम स्वयं पर आई विपदाओं पर पैर रख आगे बढ़ने का, ऊंचा उठने का प्रयास करेंगे.
क्या पता किस तरह से विजय हमारी प्रतीक्षा कर रही हो?


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