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कहानी- बंजर धरती के फूल (Short Story- Banjar Dharati Ke Phool)

आख़िर हरनामी को घर छोड़ना पड़ा था. इस गली के अंत में उसके पति का जो एक टूटा-फूटा, कच्चा मकान था, जो उसे दे दिया गया था. इस तरह का सलूक तो कोई अपने बांझ पशु के साथ भी नहीं करता.

हरनामी के चार बच्चे जन्में थे. देखते-देखते ख़बर सारी गली में फैल गई. हर सुनने वाला हैरान रह गया. यह हैरानी सिर्फ़ इसलिए नहीं थी कि हरनामी के एक साथ चार बच्चे जन्में थे, बल्कि इसलिए थी कि पिछले इतने वर्षों से उसकी गोद खाली थी और अब, जबकि किसी को भी आशा नहीं थी कि उसकी कोख हरी होगी, अचानक उसके घर चार बच्चों ने जन्म लिया था.

मैंने भी बिस्तर पर लेटे हुए (महीने भर से मैं बीमार पड़ा हूं) यह सुना तो मुझे हैरानी के साथ बेहद ख़ुशी भी हुई कि इस आख़िरी उम्र में ईश्वर ने हरनामी की गोद को भरा है. वैसे मेरे लिए यह इतनी हैरानी की बात नहीं थी. मैंने ऐसी कई स्त्रियों के बारे में पड़ा था कि उम्र के अंतिम समय, जब वे संतान की ओर से बिल्कुल ही निराश हो गई थीं, अचानक उनकी गोद भर गई थी.

मेरी पत्नी ने भी यह ख़बर सुनी तो वह अन्य स्त्रियों के साथ हरनामी के घर की ओर चल पड़ी, वह गली का आख़िरी घर था.

मैं सोच रहा था कि हरनामी कहीं अमेरीका या रूस जैसे देश में होती, तो उसका बहुत नाम होता. अख़बारों में उसकी फोटो छपती. सरकार की ओर से उसे बहुत बड़ा इनाम मिलता और उसे यह चिंता न होती कि वह चार बच्चों को कैसे पालेगी. लेकिन नहीं, जिस स्त्री की गोद इतने वर्षों तक खाली रही हो और जो अपनी संतान की सूरत देखने के लिए तरस गई हो, उसे एक साथ चार बच्चों की मां बनकर यह चिंता नहीं हो सकती कि वह उन्हें कैसे पालेगी? उन बच्चों के लिए तो वह ख़ुद अपने पेट को गांठ दे लेगी.

शादी के बाद हरनामी के जीवन के पिछले बीस-बाईस वर्ष ऐसे थे, जैसे कोई खेत हो, जिसमें वर्षों तक हल न चले, बीज न पड़े, फसल न लहराये. वह बंजर बनता जाए और अंत में उस पर किसी अकाल की छाया फैल जाए.

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बीस-बाईस बरस पहले हरनामी ब्याही हुई इस गली में आई थी तो उसके रंग-रूप का कोई अंत नहीं था. जैसे कि एक लोकगीत में वर्णन आता है, वह सुलफे की लपट की तरह दमक रही थी.

लेकिन यह रंग-रूप मुश्किल से दो-तीन बरस ही रहा था. फिर वह ढलना शुरू हो गया था. कोई चीज़ थी, जो हरनामी को अंदर ही अंदर खाने लगी थी और देखते-देखते वह दीमक लगी लकड़ी की तरह खोखली हो गई.

शादी हुए साल हो गया था, पर उसकी कोख हरी नहीं हुई थी. फिर एक साल और बीता था, पर उसकी कोख हरी नहीं हुई. तब उसकी सास के ताने और पति की बेरूखी जैसे खलने लगी थी. आख़िर हरनामी के पति ने दूसरा विवाह कर लिया था. और हरनामी का जीवन जैसे किसी पहाड़ के नीचे दब गया था. उसकी सौत तो सास से भी बुरी थी. इस जीने से तो किसी कुएं में डूबकर मर जाना अच्छा था.

आख़िर हरनामी को घर छोड़ना पड़ा था. इस गली के अंत में उसके पति का जो एक टूटा-फूटा, कच्चा मकान था, जो उसे दे दिया गया था. इस तरह का सलूक तो कोई अपने बांझ पशु के साथ भी नहीं करता. इस कच्चे मकान में हरनामी को आए हुए अभी महीना भी नहीं हुआ था कि उसकी सौत इस संसार से निःसंतान ही चलती बनी थी. उसकी सास ने सारी गली में शोर मचा-मचा कर कहा था कि हरनामी डायन अपनी सौत को ले मरी है. पहले दिन से ही वह उसकी मौत का सामान इक‌ट्ठा करने में लग गई थी.

सुनकर हरनामी इतना रोई थी कि देखा नहीं जाता था. क्या यह बातें सुननी भी उसके भाग्य में लिखी हुई थीं?

अब हरनामी के पति का तीसरी बार विवाह होना आसान नहीं था. उसकी मां की ही बातें उसके रास्ते में आई. भला कौन अपनी बेटी को ऐसे घर में देता, जहां उसकी डायन जैसी सौत उसकी मौत के लिए खड़ी हो.

आख़िर हरनामी का पति किसी दूसरे प्रांत से औरत ख़रीद कर ले आया. बड़ी ही कुरूप और उससे कही ज़्यादा उम्र की. साल के बाद उसको बेटा हुआ, पर दो ही दिन यह संसार देखकर चलता बना. और उसकी भी मौत का इल्ज़ाम हरनामी पर ही लगा.

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धीरे-धीरे हरनामी का टूटा-फूटा, कच्चा मकान जैसे नया बनने लगा था. उसकी दीवारें लीप-पोतकर उसने उन पर गेरू से मोर, तोते, फूल आदि बनाए. चौके में गिनती के चार बर्तन थे, जो नए जैसे चमकते रहते. आंगन में एक ओर लौकी की बेल फैली हुई थी और एक छोटी सी बयारी में मिर्च का पौधा लगा हुआ था. एक कोने में नीम का पेड़ था. और उससे कुछ दूर गुलाब के फूल खिले हुए थे.

उसने अपने वे सपने सुनाए. यदि कई स्त्रियां उसके वे सपने सुन कर उससे भय खाती थीं, पर मैं जानता था कि उन सपनों में, वह अपने जीवन में बच्चे की कमी को पूरा करती थी. कभी उसे सपना आता कि चार छोटे-छोटे बच्चे सोने की पालकी उठाए आकाश से उसके आंगन में उतरे और उसे पालकी में बैठाकर फिर से आकाश में चले गए. तब वे चारों बच्चे पालकी छोड़कर उसकी गोद में आकर बैठ गए. एक और सपना था, जिसमें वह एक रात एक बच्चे को जन्म देती है, फिर दूसरे बच्चे को, फिर तीसरे को... आख़िर एक चुड़ैल आती है और उन सभी बच्चों को निगल जाती है. लेकिन यह सपने कभी भी असलियत न बन सके.

कुछ सालों के बाद हरनामी की सास मर गई तो मनहूस समझी जाने वाली हरनामी गली-मोहल्ले में सुख की सांस लेने लगी और पास-पड़ोस के घरों में उसका आना-जाना शुरू हुआ.

अब तो उसका पति भी उसे वापस बुलाने के लिए राज़ी था, पर हरनामी नहीं गई. आख़िर पति ही कभी-कभी उसके यहां जाने लगा. पर हरनामी के जीवन में जो एक सूनापन फैला हुआ था, वह भरने में नहीं आ रहा था.

कभी वह पड़ोस के घरों में जाकर अपने सपने सुनाती, जो वह हर दूसरे चौथे दिन देखा करती थी. एक-दो बार मुझे भी हुई ममता ही थी कि एक बार जब तीन दिन की लगातार वर्षा के पश्चात एक मरियल सी बीमार कत्ती भीगी ठिठी हुई उसके आंगन में आई, तो उसने उसे दुत्कारने की बजाय रोटी दी और फिर टाट का एक परदा उसके ऊपर डालकर उसे एक कोने में बैठा दिया. तब उसने कमरे में आग जलाई ,ताकि कुत्ती को कुछ गर्मी महसूस हो.

तीन दिन से हो रही लगातार वर्षा चार दिन और रही. उन चार दिनों में हरनामी ने उस कुत्ती की इस प्रकार सेवा की, जैसे कोई अपने बीमार बच्चे की करता है. और कुत्ती की आंखों में जो एक कृतज्ञता थी, उसे केवल हरनामी ही समझ सकती थी और वह बहुत ख़ुश थी.

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आख़िर वह कुत्ती हरनामी के घर में ही रहने लगी, हरनामी भी उसे घर से न निकाल सकी. कुछ समय के बाद तो गली-मोहल्ले में मशहूर हो गया कि वह कुत्ती जैसे सचमुच हरनामी की बेटी है. हरनामी ने उसके लिए एक छोटी-सी खटिया बनवाई और टाट का एक बिस्तर बनाया, जो दिन के समय तह किया हुआ घर के एक कोने में पड़ा रहता. कुत्ती के लिए हरनामी ने बर्तन भी लिए, जिनमें वह रोटी खाती, पानी पीती. हरनामी की अपनी ख़ुद की बड़ी मुश्किल से रूखी-सुखी चलती थी. उस कुतिया के खाने का भी वह कैसे प्रबंध करती थी, इस पर लोग हैरान थे. अब हरनामी को अपने निःसंतान होने का शायद इतना ग़म नहीं था.

मैं हरनामी के बीते वर्षों के बारे में सोचता हुआ अपनी पत्नी की प्रतीक्षा कर रहा था कि वह उसके घर से आए, तो सारा हाल विस्तार से पूछे. क्या चारों के चारों बच्चे जीवित है? क्या इस मौक़े पर किसी डॉक्टर को बुलाया गया था या करमी-दाई ने ही मौक़े को संभाला था?

मैं चाह रहा था कि हरनामी के बारे में एक प्रतीकात्मक कहानी लिखूं- पेड़ से लगी एक टूटी हुई टहनी, जो सूखती रही, दुखती रही और फिर एक कंकाल की तरह धरती पर गिर पड़ी. लेकिन वर्षा की एक ऋतु में अचानक उस पर पत्ता खिला और फिर वह पूर्ण रूप से पत्तों से भर गई, हरी-भरी बन गई.

उसी समय मेरा पाच-छह साल का बेटा दौड़ा हुआ आया. वह हरनामी के घर से आया था. आते ही उसने हांफते हुए कहा, "डैडी... डैडी... चलो, हरनामी आंटी के घर चलो... मुझे एक छोटा-सा बच्चा ले दो बिल्ली की सी आंखों और भूरे बालों वाला. आज उसकी कुत्ती ने बहुत प्यारे-प्यारे चार बच्चे दिए हैं."

- सुखबीर

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