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लघुकथा- उपहार (Short Story- Uphaar)
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लघुकथा- उपहार (Short Story- Uphaar)

राजीव के ऑफिस जाने के बाद नीता मोबाइल लेकर बैठ गई. यही तो समय होता है उसका अपना. फिर आज तो बहुत ख़ास दिन है. उसने कल रात के चेरी के केक काटने के फोटो सोशल मीडिया पर डाले. फिर देर तक बधाइयों का सिलसिला चलता रहा और नीता लाइक गिनती और कमेंट पर धन्यवाद देती ख़ुश होती जा रही थी कि कितने सारे लोग चेरी को प्यार से दुआएं दे रहे हैं.
आज चेरी का जन्मदिन था. रात बारह बजे ही नीता और राजीव ने केक काटकर जन्मदिन मनाने की शुरुआत कर दी थी. लेकिन चेरी सुबह से ही कुछ अनमनी-सी लग रही थी.
राजीव के ऑफिस जाने के बाद नीता मोबाइल लेकर बैठ गई. यही तो समय होता है उसका अपना. फिर आज तो बहुत ख़ास दिन है. उसने कल रात के चेरी के केक काटने के फोटो सोशल मीडिया पर डाले. फिर देर तक बधाइयों का सिलसिला चलता रहा और नीता लाइक गिनती और कमेंट पर धन्यवाद देती ख़ुश होती जा रही थी कि कितने सारे लोग चेरी को प्यार से दुआएं दे रहे हैं. देश, विदेश तक से भी. उसका ध्यान भी नहीं गया कि चेरी अनमनी-सी कितनी देर से उसके पास बैठी थी. बहुत देर बाद उसने मोबाइल पर आंखें गढ़ाए ही पूछा, “क्या बात है बेटी. कुछ कहना है क्या?”
“मां, तुम मुझे जन्मदिन का कोई उपहार नहीं दोगी क्या?” चेरी ने कहा.
“अरे उपहार तो पहले ही दे दिया है. ड्रेस और नई साइकिल दिला तो दी तुम्हे.” नीता ने जवाब दिया. इतने में चार कमेंट आ चुके थे.
“मुझे कुछ और भी चाहिए.” चेरी बोली.
“क्या चाहिए बोलो, पापा को बता देती हूं शाम को लेते आएंगे.” नीता लोगों को धन्यवाद देते हुए बोली.
“नहीं मुझे तुमसे कुछ चाहिए मां. आज मेरे जन्मदिन पर तुम एक दिन अपना मोबाइल बंद रखकर क्या मुझे अपना पूरा समय दे सकती हो?”
– डॉ. विनीता राहुरीकर