हमारे भीतर, जीने के कोई साधना और तंतु विद्यमान नहीं होते हैं, लेकिन ये जो कलुये जैसे लोग, यह जो रश्मि है, यह जो मां है सब मुसीबत में एक-दूसरे का हाथ थाम लेते हैं. हम सभी जानते हैं कि हम ज़िंदगी की भट्टी में जल कर राख हो रहे हैं, लेकिन हमें यह विश्वास हमेशा बना रहता है कि हमारी राख भी बची तो वह सुबह 'फीनिक्स' की तरह फिर से जी उठेगा.
एक
सवाल यह नहीं है कि अमीर मरते क्यों हैं, सवाल यह है कि गरीब जी कैसे जाता हैं?
सब से आसान होता है सवाल उठाना, कुछ सवाल होते हैं, कुछ उठाये जाते हैं और कुछ खडे हो जाते हैं. यह जो तीसरा मामला है, सवाल के खडे हो जाने का, वह, किसी सवाल का, नैसर्गिक जन्म है. “अमीर मरते क्यों हैं?” एक उठाया हुआ सवाल है, जबकि, “गरीब जी कैसे जाता हैं?” युगों-युगों से चला आ रहा वह सवाल है, जो नैसर्गिक रूप से जन्म लेता है.
नैसर्गिक रूप से जन्म लेने का अर्थ यह है कि, यह प्रश्न, तर्क की कसौटी पर, कसा न जा सकेगा, अर्थात इस सवाल का एक ही सर्वमान्य उत्तर नहीं होगा .
इसका एक अर्थ यह भी है कि, “गरीब जी कैसे जाता है?” का उत्तर, हर देश,काल,परिस्थिति व युग में ढूंढ़ा जाएग. यह उत्तर “काल खंड” में होगा, अर्थात कालातीत भी और कालजयी भी.
यह कुछ इस तरह की बात हुई कि , कुछ पौधे हम रोपते हैं, उन्हें खाद पानी देते हैं, उन की देखभाल करते हैं और कुछ पौधे बिना किसी वजह के स्वत: उग आते हैं. न जाने प्रकृति का कौंन सा नियम है कि, जो पौधे खुद जी जाते हैं, वे देखभाल किये हुये पौधों से कहीं अधिक मजबूत होते हैं.
वह सिर पकड़े बैठा था कि पी ए ने केबिन में घुसते हुये कहा,
“सर डाक्टर आया है."
“भेज दो “जैसे ही डाक्टर भीतर घुसा, उसके मुंह से पहला सवाल निकाला - “क्या हुआ “
“वह नहीं रही सर “
चेतन ने सिर पकड़ लिया ,
“गोली मार दूंगा तुम्हें साले “शर्म नहीं आती, पचास लाख का बिल लेकर मुझे बताने आये हो कि उसका क्रिमिनेशन कर दो.” कितने हार्टलेस हो तुम और हाँ, बस यही एक ज़िम्मेदारी का काम सौंपा था मैंने तुम्हें हर महीने पाँच लाख की तंख्वाह के बदले और तुम उसे नहीं बचा सके । अफसोस, वह रोते हुये बोला -
“और पैसे चाहिये तो बता दो,” मेरे पास पासे की कमीं नहीं है.
क्या चाहिये था उसे किडनी , हर्ट , लीवर ?
चुप्पी ----------------------
सामने से हट जाओ अमरेश, इस वक्त मैं तुम्हारी शक्ल भी नहीं देखना चाहता , और हाँ “तुम्हें गोली मार देने से उस की जान बच जाती तो विश्वास मानों मैं तुम्हें गोली भी मार देता .
“सर, उसकी जान उतनी कींमत नहीं थी, जितनीं आपने उस की जान बचाने के लिये खर्च कर दी. “अमरेश बोला ।
“क्या थी वह? बस, गरीबी रेखा के नीचे जी रही चालीस करोड आबादी का एक हिस्सा भर .”
“कमींने, तुम क्या हो, बीस पच्चीस लाख लोंगों की तरह धरती पर एक बोझ, जो लोंगों के खून पर जी रहा है.” चेतन चीख कर बोला ।
“सर, मानता हूँ कि मैं नींच हूँ, पर, हम सब, एक ही कैटेगरी में के हैं, मैं अगर टाप वन पर्सेंट कमीनों में आता हूँ तो आप शायद एक सौ पच्चीस करोड की आबादी में “टाप टेन” लोगों की कैटेगरी में आते हैं.” अमरेश बोला ।
उसने शायद चेतन की दुखती रग पर हाथ रख दिया था ।
“धांय,गोली चली लेकिन लगी नहीं , चेतन ने हवाई फायर किया,” और बोला “तुम मुझे मेरे जज्बात की कींमत बताओगे ? “
“सर, जज्बात और आप, क्या मजाक करते हैं “आपकी कई पीढियां तो मैं अपनी आंखों से देख चुका, खैर, “मुझे पता है सर, आप मुझे नहीं मारेंगे “वह हंसा ।
उसकी हंसी चेतन के दिल में चुभी , और उस से भी अधिक चुभी उस की कही हुई बात , “जज़्बात और आप ? कई पीढ़ियाँ तो मैं अपनी आँख से देख चुका हूँ ।“ यह बात सच भी थी, दौलत और जज़्बात साथ नहीं होते , जहां दौलत होती है वहाँ जज़्बात नहीं रहते , और जहां जज़्बात होते हैं , वहाँ दौलत नहीं टिकती ।
वह गुस्से से बोला - “इसे ले जाओ मेरे सामने से , और सुनो इसे पूरा पेमेंट कैश करना ,” उसने पी ए को इन्सट्रक्शन दी .
“और हां, डाक्टर अमरेश शुक्ला, अगर इस का रिकार्ड कहीं आया तो इस बार गोली हवा में नहीं चलेगी,तुम मुझे जानते हो । और हाँ , रहा कैश वह तुम कैसे किनारे लगाओगे, यह मेरा सिरदर्द नहीं है . “
अमरेश हंसा – “ सर पैसे किनारे लगाने की फैक्ट्री है हमारी , आप इस का दस गुना भी देंगे तो हम लोग , शाम तक भट्टी में डाल कर जला देंगे उसे . “
“कमींनों”, यमराज से पूछना पडेगा कि तुम जैसे निकृष्ट लोगों कों, वह किस रेट में अपने यहां नौकरी पर रखते हैं?”
“ऐड नाउ, गेट आउट “, डू नाट डिस्टर्ब मीं “, वह अकेला था बिलकुल अकेला. उसने केबिन में इमर्जेंसी लाईट जला दी . वह रो रहा था , जार जार रो रहा था । जो मरी थी वह रिश्ते में उसकी कुछ नहीं थी , लेकिन उसे ऐसा लग रहा था , कोई उसकी जिंदगी लूट कर ले गया है और अब उसके पास कुछ नहीं बचा है ।
दो
“अमीर लोग गरीब की मौत पर रोते क्यों हैं? “
सवाल रोंने का नहीं है , “ कौंन रोता है किसी और के गम में ऐ दोस्त , हमको अपनी ही किसी बात पे रोंना आया . “
अमीर जानता हैं , बैंक लोन दे सकते हैं , नेता पालिसी ला देगें , मार्केट से पैसा कमा लेंगे , लेकिन उसके लिये अगर जान देंने की बारी आयी तो , तो वह कोई गरीब ही देगा और कोई नहीं .
नातेंदार , रिश्तेदार और सहयोगीयों के पास सलाह या तसल्ली के सिवाय देने को कुछ नहीं होता है .
“छी: बडे लोग, “यह थी “चेतन” की “उससे”, “पहली” मुलाकात.
उसे याद है वह आ रहा था कि रश्मि ने गैलरी में कहा था “छी: बड़े लोग” और आफिस की गैलरी में सन्नाटा छा गया था , उसकी तरफ रश्मि की पीठ थी और वह उसे देख नहीं पायी थी .
वह सोचने लगा , अच्छा हुआ कि , उस दिन “उसने” , “उसका” चेहरा नहीं देखा था , वर्ना , उसे बडे लोग “कहने” का अर्थ कैसे पता चलता.
उस के कान झनझना उठे थे , “ छी: बडे लोग , “ सुन कर , “छी: “ सभ्य समाज में इतनी बडी गाली है, यह उस के कान को उस दिन पता चला था .
पूरी गैलरी में सब की आंख झुकी हुई थी , पता नहीं आज किस पर गाज गिरेगी ,सब डरे हुये थे , न जानें आज कौंन हलाल होगा .
रश्मि को भी अब तक आने वाले खतरे का अहसास हो चुका था , लेकिन उसके चेहरे पर कोई अफसोस या भय के भाव नहीं थे .
“और यह तो होंना ही था,” दो मिनट में साहब का “पीए” खुद आया था उसे बुलाने. आश्चर्य यह था कि पीए आया था , वही “पीए” जिसकी काल , साहब की आवाज के बराबर समझी जाती थी .बात बहुत बडी थी वर्ना अदना सी बात के लिये “पीए” तो नहीं आता . अव्वल तो फोंन ही काफी था , ज्यादा अर्जेंट हुआ तो दो पीऊन थे .
उस ने दुपट्टा सम्हाला – कितना सस्ता सूट था उसका , “सेल में” “तीन सौ” का , वह “तीनसौ” भी उसकी जेब पर भारी थे ,जब उसने वह रुपये बटुये से निकाल कर फुटपाथ वाले को दिये थे .
साहब के आफिस में, तीन सौ रुपये के सूट वाली लडकी , केबिन में जायेगी कहीं “आफिस” मैला न हो जाये . जिस केबिन के सफाई कर्मचारीयों के सफारी सूट तक , पांच हजार के थे , उस केबिन में , आज तीन सौ का काटन सूट पहने, वह भीतर जाने को तैयार थी . गेट पर उस से किसी ने कोई सवाल नहीं पूछा , सेंसर आपरेटेड गेट खुद खुल गया .
वह साहब के केबिन में थी ।
“क्या नाम है तुम्हारा?” पता नहीं चेतन क्या क्या कहना चाहता था, पर रश्मि को देख कर, उसके मुंह से पहला प्रश्न यही निकला.
उसने एक बार फिर , उसे हिकारत से देखा – “सर , आई नो , मैंने मिस्टेक की है , आप मेमों , चार्जशीट या टर्मिनेशन लेटर जो भी चाहें दे सकते हैं . या फिर आप कहें तो मैं खुद रिजाईन लिख कर दे दूं , मुझे पता है कि, अब मैं यहां काम नहीं कर पाऊंगी . यहां भी मेरे दिन पूरे हो गये . “
चेतन के भीतर खडे सारे सवाल , इतनी सी बात पर, दम तोड चुके थे , वह जानता था कि ,उसके एक इशारे पर , यह लडकी , सडक पर आ जायेगी .
“उसने कहा बैठो “
बिना कुछ कहे , वह बैठ गयी उसे वहां एक - एक पल रुकना भारी लग रहा था , “ सर आई एम कलप्रिट लेट मीं गो, टेल मीं माई पनिशमेंट .”
तीन
(“मैं जानती हूँ, मैं गुनहगार हूँ, मुझे मेरी सजा बताईये.”)
चेतन सोच में पड गया . फिर बोला -
“मैं तुम्हें माफ कर दूंगा, बस इतना बता दो तुमने “छी: ये बडे लोग “क्यों कहा?”
सर , मैं माफी नहीं अपना पनिश्मेंट मांग रही हूँ, या तो आप मुझे मेरा हश्र बता दें , या मुझे सम्मान के साथ रिजाईन कर के यहां से जानें दें . आई नो कार्पोरेट कल्चर , देयर इस नो स्पेस फार देम , हूँ डू नाट नो , हाउ टु बिहेब विथ सीनियर्स , एंड, यू आर, नाट ओनली सीनियर , यू आर, सी ई ओ , इवन आई नो, ओनर आफ द कम्पनी . ( मुझे कार्पोरेट कल्चर का पता है , जो यह नहीं जानते कि , अपने सीनियर के साथ कैसे व्यवहार करें, उन के लिये , यहां कोई जगह नहीं होती है , और आप सीनियर ही नहीं, बल्कि कम्पनी के सी ई ओ हैं , सी ई ओ क्या मालिक हैं .)
रही अपनी बात पर कायम रहने की , तो मैं अभी भी अपने स्टैड पर खडी हूँ , इसलिये अपने कहे के लिये माफी नहीं मांग सकती .
उस के माथे पर बल पड गये .
किसी का टूट जाना या किसी को तोड देंना इतना आसान नहीं होता है . सारी लडाई तो मान अभिमान और स्वाभिमान की है . स्वाभिमान पैसे का गुलाम नहीं होता. यह बात उसे कचोट रही थी कि तभी उसे अपने दादा की सीख याद आयी , “जहां ताकत काम न करे , वहां प्यार से काम लेना चाहिये .”
उसने खुद के जज़्बातों को कंट्रोल करते हुये – हार्वर्ड की मैंनेजमेंट टेकनीक प्रयोग की , यू हैव गिवेन मीं रियेल पिक्चर , ऐंड ट्रू फीड बैक आफ आर्गनाईजेशन , आई अम थैंक फुल टू यू , इन इंडिया देयर आर वेरी फियु पीपुल , हूं गिव , रियल ओपिनियन , आई अम थिंकिंग टु अलीवेट यू . प्लीज बी फीयर लेस , सच टाईप आफ एप्लाईज आर , रियल असेट आफ कम्पनी . कैंन यू प्लीज टेल मीं रीजन फार टेलिंग “छी: बडे लोग .” (तुम ने मुझे कम्पनी के बारे में आईना दिखाया है, भारत में बहुत कम लोग हैं, जो वास्तविक फीड बैक देते हैं, मैं तुम्हें प्रमोशन देंने के बारे में सोच रहा हूँ, क्या तुम मुझे छी: बड़े लोग कहने का कारण बता सकती हो.)
इतना सुनते ही रश्मि की आंखें छलछला आईं , वे लोग जो पीडा में पत्थर से भी अधिक मजबूत हो जातें हैं , जरा सी सिंपैथी मिलते ही, बहुत जल्दी टूट जाते हैं . उसकी सांस तेज हो गयी , वह खुद को रोक नहीं पायी, केबिन के कोने में उसे वाश रूम नजर आया , वह सिसकती हुई वाशरूम भागी, वह रो रही थी और उसके आंसू नहीं रुक रहे थे , उसने दुपट्टे के कोर से आंसू पोंछे उसकी आंखें लाल थीं, वह वापस लौटी .
“सर, यह मेरी तीसरी अप्वांटमेंट है और आज अगर आप मुझे बाहर कर देते तो मेरे घर में चूल्हा नहीं जलता.” इतना कह कर वह जैसे खुद को रोक नहीं पायी और सिसकी के साथ फिर से रो पडी .
“सर मैं खुद को नहीं बदल सकती और मेरा नेचर मुझे कहीं टिकने नहीं देता. “
चेतन को अभी अपने सवाल का जवाब नहीं मिला था .एक बात और जो वह समझ नहीं पा रहा था वह यह कि, उसे जो वक्त की कींमत बताई गयी थी , वह आज वक्त की वह कीमत उसे कम क्यों लग रही थी.
बाहर से अर्जेंट मीटिंग के दो रिमाइंडर आ चुके थे उसने कोई जवाब नहीं दिया था , न जाने क्यों आज वह खुद को कमजोर महसूस कर रहा था और वह जो उसके सामने कुर्सी पर बैठ कर रो रही थी, रोते हुये भी कहीं से कमजोर नहीं लग रही थी.
उसे समझ में नहीं आ रहा था कि कैसे वह इतनी बडी दौलत का मालिक हो कर भी उस अदना सी स्त्री के आगे आज कमजोर कैसे पड़ गया है .
उसने कुछ नहीं कहा , पांच मिनट काफी होते हैं उस केबिन में और सब चीजें जैसे मशींन की तरह थीं वहां .
पांच मिनट बीतते ही काफी आ चुकी थी , साथ ही एक प्लेट में रोस्टेड ड्राई फ्रूट्स थे .
चार
उस की निगाह रश्मि के तीन सौ रुपये के नीले सूट पर टिकी थी .जब हम जज्बात को जीते हैं तो कुछ होते हैं. शायद अपने भीतर छुपे हुये असली इंसान . तब न रसूख का खयाल होता है न हीं रुपये - पैसे , मान - सम्मान का . तभी तो कहते हैं इश्क अंध होता है. “खूबसूरती” कपडे में कहां होती है . खूबसूरती चेहरे और रंग में भी नहीं होती है , उसे लगा खूबसूरती देखने वाले की निगाह में भी नहीं है, अगर देखने वाले की निगाह में खूबसूरती होती तो उसे आज तक कोई न कोई खूबसूरत जरूर लगी होती , उस की निगाह में , सब से खूबसूरत देखने की चीज ,बस “पैसा” थी , आज तक उसने बस यही जाना था . फिर , आज यह क्या हो गया . न जानें क्यों , वह उसे देखे जा रहा था . उसे समझ में नहीं आ रहा था कि यह सामने कौंन है , जिसे पैसा नहीं खरीद सकता था . खैर आज उसे कुछ और जानने की लालसा थी , शायद उस प्रश्न में उसकी जिंदगी का कोई अनछुआ राज छुपा था .
किसी के मन की बात खरीदी तो नहीं जा सकती अगर ऐसा होता तो , वह न जानें कितना बडा आफर दे देता “छी : ये बडे लोग” का अर्थ जानने के लिये . “सचमुच वह जानना चाहता था कि बडे लोग कैसे होते हैं. उसने अब तक बडे लोगों की जिंदगी जी थी लेकिन अपने आप को जाना नहीं था . आज उसके भीतर जैसे खुद को जान जाने की लालसा पैदा हो उठी थी. किसी किताब में , या घर पर , बडे लोग क्या होते हैं आज तक उसे यह नहीं बताया गया था . दान, पुण्य , पूजा पाठ सब कुछ उसने देखा था , लेकिन कभी भी उसने “छी: बडे लोग” आज तक नहीं सुना था . सुनता भी कैसे जो जिस संगत में रहता है, उसके सुनने की क्षमता , बस उतनी ही होती है . हां , न जानें क्यों, उसे बचपन से ही लगता था , कि , ‘कहीं न कहीं’ दुनियां में , सोंने चांदी के अलावा और भी कुछ होता है . उसे लग रहा था कि किसी ने उसके भीतर छुपी हुई जिज्ञासा जगा दी है .
“सर मैं जा सकती हूँ, “
एक बार फिर उस की नजर नीले सूट पर टिक गयी , हल्के सुनहरे धागे से सामने की तरफ कढाई , और मैचिंग का दुपट्टा गहरे नींले रंग से थोडा हल्का , दुपट्टे से मैच करती लैगिंग . वह पागल हो गया , आज तक उस ने किसी को इतनी गहराई से नहीं देखा था . भला इतने साधरण कपडों में किसी का क्या इंट्रेस्ट हो सकता है . लेकिन अब तक रश्मि सम्हल चुकी थी. कौंन उसे कैसे देख रहा है , लडकियां , यह बहुत जल्दी समझ जाती हैं और इस से भी जल्दी यह समझ जाती हैं कि , उसे कहां तक देखा जा रहा है . इस बार उस की निगाह मिल चुकी थी , अब शायद वह आखों में आखें डाल कर बात कर सके लेकिन नहीं , जो सत्ता के आगे अपने स्वाभिमान में नहीं टूटी थी, अब सज्जनता के आगे मोंम सी पिघल गई थी , उसने निगाह झुका ली.
रश्मि का निगाह मिला कर झुका लेंना , चेतन को तीर सा लगा . उस के सिर पर काम का जो भारी बोझ चल रहा था , अचानक हल्का होता प्रतीत हुआ . वह बोला आपने काफी पी ली हो , तो जा सकती हैं , और हां आपको यहां से कोई नहीं निकालगा यह मैं प्रामिज करता हूँ.
“थैंक्यू सर, सचमुच आप बडे आदमीं हैं.” उसने सिर झुकाये - झुकाये कहा.
वह हंसा, उस की जान में जान आई , वह थोडा सा शर्माई और सकुचाई भी , वह जानती थी कि , उसे कैसे और कहां कहां देखा जा रहा है . किस तरह उस की स्टडी हो रही है, लेकिन , किसी गरीब लडकी के भीतर इतनी सेंसिटिविटी नहीं होती, कि वह , अपने को देखने से, किसी से बचा सके या फिर इस बात का विरोध कर सके. न हीं वह समाज में इस तरह की चीजों को , इग्नोर कर सकती है . एक उम्र आते - आते भीतर की संवेदनायें, इस तरह की निगाहों से, जैसे अम्यून हो जाती हैं, लेकिन फिर भी जब किसी शरीफ आदमीं की निगाह , किसी को देखने लगती है, तो उस के भीतर भी, संवेदनायें जागने लगती हैं . न जानें कौंन सी अदृश्य शक्ति ऐसे मौके पर उसे रोटी , कपडा और मकान से उपर उठ कर सपने देखना सिखा देती है . और जब दिल में, सपने पलने लगते हैं तो भीतर कितनी भी मुसीबत चल रही हो , मन में जिंदगीं को ढूंढती लहरें , उठने लगती हैं . समंदर की लहरें , न चांद देखती हैं, न उस से अपनी दूरी, वे जब उछलती हैं , तो बस लगता है चांद तक जा पहुंचेंगी .
“बडे लोग भी हंसते हैं “उसने मन ही मन सोचा, “अगर यह हंस रहा है तो जरूर हंसते होंगें. “
इस से पहले कि वह निकल जाती , चेतन ने कहा – “अभी तुमने कहा सचमुच आप बडे आदमीं हैं”
यह बात , तुमने जो ‘छी: बडे लोग’ कही थी, उस से अलग है. क्या बता पाओगी इतनी देर में ऐसा क्या हो गया ? “
उसने आँख नींचे गडा दीं , बोली – आप सच सुन पायेंगे, यह उम्मीद है, इसलिये कह देती हूँ, मेरी मां ने कहा था, बेटी सच बोलना बडा कठिन काम है , “लेकिन सच पर टिके रहना,” अगर कोई सच को समझने वाला मिल गया तो तुम्हारा जीवन संवर जायेगा , वर्ना तुम्हें पूरी जिंदगी तकलीफ उठानी पडेगी हाँ इतना जरूर है कि , यदि तुम सच पर टिकी रह सकी , तो कम से कम , तुम्हें आत्मग्लानि नहीं होगी .”
पांच
मैंने अभी कहा आप बडे आदमीं हैं, यह एक इंडिविजुअल आबर्वेशन है . यह बडा आदमीं, आपके पैसे के लिये नहीं है , आपके फैसले की समझ के लिये है , जो आपने “रियल फीड बैक की बात की ” उसके लिये है , आपने एक अदने से काम करने वाले की बात को भी अहमियत दे कर , उसकी फीलिंग समझने का प्रयास किया यह उसके लिये है . आदमीं रुपये पैसे से नहीं अपने ‘दिल’ से बडा होता है , और सचमुच आप बडे आदमीं हैं .
उस की निगाह ऊपर नहीं उठी ।
किसी भी सवाल के , कई जवाब होते हैं और ज्यादातर सवाल पूछने वाला , उस सवाल का जवाब , खुद की धारणा के अनुरूप , अपने मन के भीतर, सोच कर बैठा होता है और जब , सवालों के जवाब , धारणा के विपरीत मिलते हैं, तो समझदार लोंगों की बातचीत आगे चलती है , कुछ नया विचार पाने के लिये .
रश्मि का यह उत्तर , उस की धारणा के विपरीत था , उसने भले ही बातचीत में मैंनेजमेंट की टेकनीक लगाई हो लेकिन इस वक्त रश्मि ने उसे अहसास करा दिया था कि , वह बडा आदमीं है और ऐसा बडा आदमीं , जो अब तक के , उसके जीवन के, बडे आदमीं के बेंच मार्क से बडा था .
वह बोला, चलो कुछ देर के लिये मैं तुम्हारी बात मान लेता हूँ , लेकिन मुझे “छी: बडे आदमीं” कहने का कारण बताओ .”
इस बार वह हंसी – “बोली गलती हो गई .”
वह बोला , देखो , अभी तुमने झूठ न बोलने की बात कही थी , और अब झूठ बोल रही हो .
“हां सच है कि इस वक्त मैं झूठ बोल रही हूँ.” रश्मि ने कहा ।
तो सच क्या है बताओ , मैं तुम्हें सच बोलने के लिये प्रमोशन देंने जा रहा हूँ . चेतन बोला ।
“सर! छी: बडा आदमीं” की कहानी इतनी छोटी नहीं है, कि आपको दो लाईन में बता दूं , हां, आज क्यों कहा , यह बता देती हूँ.
आज बारह तारीख है और अभी तक एम्पलाईज को वेतन नहीं मिला है . हमें पता है कि इस तिमाही के नतीजे अच्छे नहीं रहे हैं , तो क्या , एम्पलाईज की पांच लाख की सेलरी रोक कर क्या कम्पनी का मुनाफा बराबर हो जायेगा , हजारों करोड , बैंक में रख कर , अगर आप टाईम से , एम्प्लाईज की सेलरी नहीं दे सकते , तो काहे के बडे आदमीं. आज अगर सेलरी नहीं मिली तो न जाने कम्पनी के कितने घरों में , बनिये से उधार ले कर “चूल्हा” जलाना पडेगा और इसीलिये मैंने कहा “छी: बडे आदमीं” .
इतना कह कर उस ने प्रतीक्षा नहीं की और साहब के केबिन से निकल गयी .
आजकल टेकनींक भी कितनी फास्ट हो गयी है , इधर वह केबिन से निकल कर अपनी सीट पर पहुंची और उधर बैंक का एस एम एस आ गया सेलरी पहुंचने का.
पैसा आदमीं के विचार बहुत जल्दी बदल देता है . वह सोचने लगी , उसे अपने जज्बात पर काबू रखना चाहिये था . बडे लोग हैं क्या जरूरत है अपने विचार इस तरह सार्वजनिक करने की . यदि ये लोग न हों , तो करोंडो लोग भूखों मर जायें . कुछ तो करते हैं ये लोग , जो कम्पनी चलाते हैं . इतने लोंगो को रोजगार देते हैं .
आज अगर उसे निकाल दिया जाता तो शाम को फिर वही सब कुछ शुरु हो जाता , जो आज से बीस बच्चीस दिन पहले घर में चल रहा था. वही कि घर में क्या है , खाना क्या बनेगा , आज कुछ नहीं है चाय ब्रेड से काम चला लेते हैं । कोशिश करें क्या पता बनिया दाल चावल उधार दे दे । वैसे ही उसका पुराना हिसाब बाकी है । क्या फर्क पड़ता है , थोड़ा उल्टा सीधा बोलेगा सामान तो दे ही देगा । उसे ही कौन सा नुकसान है सौ का सामान सवा सौ में देता है और हिसाब में लिख देता है । सब को सामान चाहिए , सब जानते हैं , लेकिन कौन बोलेगा , उधारी बंद कर दे तो बस हो गया काम । चाय की पत्ती , चीनी चावल नून तेल तक सब तो हिसाब लिख कर आता है और तीन चौथाई सेलरी पहले ही दिन बनिया के हाथ में चली जाती है । यह तो मिडिल क्लास की शाश्वत कहानी है । कहानी के पात्र बदलते रहते हैं लेकिन कहानी कहाँ बदलती है । ऐसी ही कहानिया देखते सुनते तो वह बड़ी हुई थी । क्या करेगा बनिया , क्या इतने पैसे लाद केर ले जाएगा अपने साथ । ऐसे खून पीने वालों को तो भगवान के घर नरक में भी जगह नहीं मिलेगी । जा बेटी जरा देख तो छेदी कुछ दे दे तो ले आ शायद चूल्हा जल जाये । कमीना छेदी सामान क्यों नहीं देगा , जरूर देगा समान , उसे गंदी निगाह से देखेगा , हँसेगा कोई भद्दा कमेन्ट करेगा , सामान देते हुये अपने गंदे हाथों से उसके हाथ छूएगा। यह सब देखते सुनते , उसे याद नहीं कि कब अचानक उसे बडे लोगों से नफरत पैदा हो गयी थी . बस इतना याद है कि ऐसे ही हालात से जूझते जूझते उसके पिता दुनियाँ से चल बसे थे और दुनियां से जाते हुये , उन के चेहरे पर , जीत का बहुत बडा आत्म संतोष था , उनके लिए मौत , जैसे मौत न हो कर कोई उत्सव हो .
छह
संजोग की बात है जिस दिन उनकी मृत्यु हुई थी , ठीक उसी दिन , उस मालिक की भी मौत हुई थी जिसने उन्हें अपनी कम्पनी में काम पर रक्खा था . ऐसा कभी नहीं हुआ था कि , कम्पनी ने उसके पिता को , नियत तारीख को मजदूरी दी हो , हां पिता ने बडी ही स्वामिभक्ति से कम्पनी की सेवा की थी और कभी किसी के खिलाफ कुछ नहीं बोला था .
कभी भी किसी गरीब आदमीं की मौत , किसी बीमारी से नहीं होती , हां उस की मौत का कारण बाद में किसी डी एम या किसी बडे डाक्टर को चेक कर के बताना पडता है , यह घोषणा करने के लिये कि उस की मौत , समय पर, कोटे से अनाज न मिलने के कारण नहीं, बल्की एक लम्बी सी नाम वाली किसी बीमारी से हुई है . इसके विपरीत , बडा आदमीं , कभी स्वाभाविक मौत नहीं मरता . हस्पताल से उस का हेल्थ बुलेटिन जारी होता रहता है और लम्बा समय वेंटिलेटर पर बिताने के बाद वह बिना किसी बडी बीमारी के गुजर जाता है . उसकी बीमारी का नाम क्या था यह किसी को पता नहीं चलता बस अंत में इतनी खबर आती है कि उन्हें सर्दी जुकाम की तकलीफ थी जो निमोनिया में बदल गयी , या फिर उन्हें सीने में दर्द के चलते हस्पताल में भर्ती किया गया था . इससे बाद न्यूज चैनेल पर , बीमारी के कारण को छोड कर, बाकी सब कुछ पर चर्चा होती है . चाहे उनके अंतिम दर्शन के लिये आने वाले मुख्य अतिथियों की बात हो या कि उनके क्रिमिनेशन के लिए कितने टन चंदन की लकडी लगी इस पर .
समझ में यह नहीं आता कि चौबीसों घन्टे फैमिली डाक्टर की निगरानी में रहने वाले को दवा और हस्पताल की जरूरत क्यों पडती है , उसे सर्दी जुकाम क्यों होता है और उसे अचानक सीनें में दर्द की शिकायत कैसे हो जाती है . इसके बाद भी वह डाक्टर सालों से उस फैमिली का फैमिली डाक्टर कैसे बना रहता है . और हां वह भी सामान्य उम्र जी कर ही क्यों मरता है.
क्योंकि उस के पिताजी और उस मालिक की उम्र में कोई ज्यादा फर्क नहीं था बस रहा होगा कोई एक दो साल का . वह सब कुछ रख कर और उसे धरती पर उसे छोड कर मरा था, जबकि उस के पिताजी सचमुच खाली हाथ गए थे . आमींन.उस दिन घटी उस घटना ने उसे समाजवाद की परिभाषा समझा दी थी .
भावनायें जब उबाल पर होती हैं तो वे भूत भविष्य और वर्तमान नहीं देखतीं , विचार जब चलते हैं तो वे अपनी कहानी में समय का बंटवारा नहीं करते और जब कोई किसी के सपने देखता है तो उम्र नहीं देखता . यदि हम वक्त को अपने चिंतन में जोड कर चलें तो हमारे खयाल जन्म लेंने से पहले ही मर जायें. गणित व्यावहारिक जगत का हिस्सा है जबकि ख्वाब और खयाल इंसान की जिंदगी हैं . कोई भी टुकड़ा अपने मूल से छोटा होता है और इसीलिये गणित जो जिंदगी का हिस्सा होती है पूरी जिंदगीं से छोटी होती है . गणित का अर्थ है यह सवाल कि यह जिंदगी कैसे चलेगी , अर्थात जिंदगी जीने के लिए पैसे कहाँ से आएंगे ? बस सम्पूर्ण जीवन का सार इस सवाल में छुपा हुआ है .जिसने भी जन्म लिया है , यह सवाल उन सभी के लिए है , और सवाल जीवन में बार बार खडा होता है .
यह सवाल बडे से बडे पैसे वाले के सामने भी उतना ही सार्थक है, जितना सडक पर भीख मांग कर एक रोटी खाने वाले के लिए . इस सवाल का जवाब ही आदमीं की पूरी जिंदगी तय करता है , यह सवाल ही किसी की जिंदगी का फैसला कर देता है .
कोई भी जिंदगी बीते हुये कल की जिंदगी , या आने वाले कल की नहीं होती । जिंदगी सिर्फ वर्तमान नहीं होती है। दरअसल कल ,आज और कल में जिंदगी
को बांटना ही गलत है । किसी भी इंसान की जिंदगी बस जिंदगी होती है . कल आज और कल को मिला कर ही एक पूरी जिंदगी बनती है । जिंदगी वर्तमान में भी उतनी ही है , जितनी भूत और जितनी भविष्य में दिखाई देती है . हाँ हम अपनी सुविधा और सिद्धातों को गढ़ने के लिये समय को भूत , भविष्य और वर्तमान में विभाजित कर देते है . समय तो समय है . वह आज है वह कल था और आने वाले समय में भी रहेगा .
समय पर लिखी हुई इबारतें नहीं बदला करतीं , इबारत कहें तो घटना . वक्त के सीने पर इबारते लिखी हुई हैं , हर पल यह इबारत लिखी जा रही है और आने वाले समय में लिखी जाती रहेगी , कहने का सीधा अर्थ यह है कि कोई भी समय घटना विहींन नहीं है और जीवन में हर पल घटनाओं का गुजरते जाना ही पूरे जीवन की कहानी कहता है . न घटनायें रुकती हैं और न ही जिंदगी की कहानी . अगर कोई घटना पहले घट चुके है तो उसे नकारा नहीं जा सकता । ठीक वैसे ही भविष्य में जो घटनाएँ , घटेंगी उन्हें नकारा न जा सकेगा । जब हम जीवन में घाटी हुई घटनाओं को नकार नहीं सकते तो , कोई भी जीवन भूतकाल, वर्तमान और अपने भविष्य के बिना पूर्ण कैसे हो सकता है। जो लोग मात्र वर्तमानजीवी होंने की बात करते हैं , वे अधूरे जीवन की बात करते हैं , क्योंकि जिस वर्तमान में हम जीवन जी रहे हैं वह हमारे न चाहते हुये भी भूत काल की घटनाओं और भविष्य की कल्पनाओं को वर्तमान में समेंटे हुये हैं . और इस तरह से गणितीय दृष्टि से देंखें तो , वर्तमान , तमाम कोशिश के बाद भी मात्र वर्तमान नहीं है। ठीक वैसे ही जैसे कि कोई भी पूर्ण सख्या तभी तक पूर्ण रहती है जब तक हमें दशमलव का ज्ञान नहीं होता . जैसे ही हमें दशमलव का ज्ञान होता है एक , एक न रह कर वन प्वांट जीरो वन से ले कर जितने भी दशमलव तक हम बढते जाते हैं उतने फ्रेक्शन में टूटता चला जाता है और एक छोटी सी संख्या अनंत हो जाती है . यही जीवन का सत्य है , जब हम भूत , वर्तमान और भविष्य को एक सूत्र में पिरो कर जीवन को पूर्णता में देखने लगते हैं तो जीवन छणभंगुर न हो कर अनंत हो जाता है ।मानव चिंतन में समय की बाध्यता नहीं होती , क्योंकि चिंतन जीवन को पूर्णता में स्वीकार करता है गणितीय समय के बंधन में नहीं और इसीलिए जब कोई अपराधी अपना पुराना बदला लेने के लिये बंदूक निकाल कर गोली चलाता है तो पाता है कि भावनाओं में तो न जाने वह कितने लोगों का कत्ल कर चुका है । जबकि फिजिकली तो वे मौजूद ही नहीं हैं , जिनका वह कत्ल करता चला जा रहा है ।
सात
ठीक इसी तरह अमर प्रेम भी तो है , जहां आब्जेक्ट बचता ही नहीं और देखते देखते प्रेम इम्मारटल हो जाता है . अर्थात प्रेमिका का वजूद न होते हुये भी प्रेमी उसे प्रेम करता चला जाता है ।
आज चेतन पचास की उम्र में भी पच्चीस साल की उम्र की भावनाओं को ठीक वैसे ही जी रहा था .
उधर एक एच आर प्राब्लम निपटी थी लेकिन , यह प्राब्लम उसकी जिंदगी पर बहुत भारी पड़ी थी। ब्लैक कॉफी भी उसके मूड का कुछ नहीं कर पा रही थी । पंद्रह बीस मिनट की बातचीत में उसे लगा , जैसे किसी ने उसे भीतर तक झकझोर दिया है । किसी ने करारा थप्पड़ मारा था उसके गाल पर , जिसे वह सहला रहा था । लगता है उस थप्पड़ के अमिट निशान उस के चेहरे पर बन गए थे। वह वाशरूम गया तो उसे फील हुआ उस के गाल पर पांच जोरदार उंगलिया छप गई हैं। बड़े लोगों की लाइफ में मीटिंग के सिवाय होता क्या है? हर मीटिंग और हर सेकेंड कींमती होता है उनका । एक एक सेकेंड न जाने कितने करोड़ का होता है बड़े लोगों का । भला कैसे आंकी जाती है एक बड़े आदमीं के एक मिनट की कींमत ? जैसे कि किसी कंपनी का प्रॉफिट पर ईयर दो चार लाख करोड़ है और उस के मालिक के पर सेकेंड की कींमत निकालनी है, तो कंपनी प्रॉफिट को एक साल में जितने मिनट होते हैं उस से डिवाइड कर दो।अजीब बात है , इस तरह तो एक बड़े आदमीं की टोटल लाइफ कैलकुलेट की जा सकती है। भले ही उस कींमत में उसे खरीदा न जा सके , लेकिन उसकी कींमत तो निकल ही आएगी।
दौलत एक भूख है , बहुत बड़ी भूख जो किसी भी खुराक से नहीं मिटती।
लेकिन , मज़ा यह था कि एक पंद्रह बीस हजार प्रति माह कमाने वाली अदना सी कर्मचारी , उसके जीवन से कई सौ करोड़ का वक्त छीन ले गई थी और उससे भी बड़ी बात यह थी , कि वह उसके खयालों में समाई जा रही थी । इस तरह न जाने वह उसके कितने हजार करोड़ का वक्त उस से लगातार छीन रही थी।
इधर कान्फ्रेंस चल रही थी लेकिन , कांफ्रेंस रूम में सन्नटा छाया था। कोई कुछ बोल नहीं रहा था , सब को पता था , बॉस अपसेट हैं , पता नहीं किस का पत्ता कट जाए , वह तो अचानक पी एस ने एंट्री की और लंच का आर्डर कहां से होगा पूछा , तो, उस की तंद्रा टूटी । ओह तो वह मीटिंग में है , पर कौन सी मीटिंग है यह , एजेंडा क्या है मीटिंग का, यह तो उसे याद ही नहीं था । उसे तो यह भी नहीं पता था कि , वह कांफ्रेंस हाल में लोगों से घिरा है , और आफिसे का सीनियर स्टाफ उसे बहुत देर से देख रहा हैं । कोई और दिन होता , तो वह कांशस हो जाता , अपने टाई की नाट ठीक करने का उपक्रम करता और एक सेकेंड के भीतर , पूरे मैटर के साथ इन्वाल्व हो जाता।
उस ने आंख उठाई ,लेकिन आज वह कुछ कर पाने की स्थिति में नहीं था । सभी को लगा बम फूटेगा।
लेकिन नहीं , उस ने पूछा , “यहां किस ढाबे में सब से टेस्टी खाना मिलता है ?
किसी को समझ में नहीं आया कि साहब क्या कह रहे हैं , कहीं ऐसा तो नहीं साहब किस बात पर बहुत गुस्सा हैं और अपना गुस्सा किसी पर उतार रहे हैं ।
तभी चेतन बोला , ये क्या ड्रेस पहन रक्खी है तुमने “रुमा” बहुत भद्दी लग रही हो ।
सब सन्न रह गए , यह हो क्या रहा है आज मीटिंग में , ऐसा तो कभी नहीं हुआ । आज चेतन सर , काम की बात न कर के , इतने कींमती वक्त में , ढाबा और ड्रेस की बात कर रहे हैं।
तभी चेतन ने डांटा “ मैडम , ये स्कर्ट टॉप छोड़ कर , सूट पहना करिये, सलवार सूट , परिफ्रेबली आफ ब्ल्यू कलर। और हां मेरे सवाल का जवाब किसी ने नहीं दिया। क्या आप लोग सिर्फ बड़े होटल का खाना खाते हैं , आज तक किसी ने ढाबे का खाना नहीं खाया क्या ?
मैं जानता हूँ आप लोगों को कुछ नहीं पता , एक काम करिए , आप रश्मि से पूछ लीजिये वह जिस ढाबे से खाना खाती है आज वहीं से आर्डर कर दीजिए यहां मीटिंग । सब हैरान थे, कोई कुछ नहीं बोला। चेतन को अपने सबऑर्डिनेटस और मीटिंग से नफरत सी हुई। ये सब के सब बस गुलाम हैं हाँ में हाँ मिलाने वाले।किसी को कुछ नहीं पता ।
आई एएम सारी , मीटिंग कैंसिल करिए और बाकी डिस्कशन कल करेंगे ।
जिंदगी के मामले बड़े विचित्र होते हैं।ये दिल कब कहां किस पर और क्यों आता है यह कोई नहीं जानता। और जब आता है तो कुछ पता नहीं चलता , बस दिल आने के लक्षण और उस के परिणाम दिखाई देते हैं।
हाँ हर प्रेम जिंदगी बदल देता है। वह जिंदगी चाहे अमीर की हो या गरीब की । किसी गरीब के लिए तो प्रेम ही वह ताकत है जो उसे जिंदगी देता है। सच तो यह है कि प्रेम न हो तो गरीब आदमी जन्म लेते ही मर जाये । और
एक गरीब की जिंदगी में जीने लायक कुछ होता ही नहीं और पैदा होंने के बाद आदमीं स्वत: मर नहीं सकता इसीलिए जीता चला जाता है।
आठ
उसके पास सोचने समझने के लिए कुछ होता है तो बस यह कि , आज सुबह चूल्हा कैसे जलेगा और सुबह जल गया तो शाम का काम कैसे चलेगा। इस सुबह और शाम के इंतजाम में गरीब आदमी की जिंदगी बीत जाती है।
उसके पास तो अपनी इज्जत और बेइज्जती के बीच भी सोचने के लिए कुछ नहीं होता। जब रोटी का संघर्ष जिंदा रहने के संघर्ष से बड़ा हो जाये तो काहे की इज्जत और कैसी बेइज्जती ।
जिंदगी का दर्द इंसान को बहुत कुछ सिखाता है और एक दिन इस दर्द की इंतहा , गरीब आदमीं को मौत के भय से इम्यून कर देती है। नतीजा यह कि जब कोई गरीब आदमीं यहां से जाता है तो उसके चेहरे पर एक अपूर्व शांति होती है। जैसे उसे जीवन का पूर्ण ज्ञान जीते जी मिल गया हो और वह यहां इस जीवन में निर्वाण प्राप्त करने ही आया था, इस नश्वर शरीर का त्याग उसके लिए एक आनंद बन जाता है जबकि किसी अमीर आदमीं के लिए बढ़ता हुआ जीवन कमाई हुई दौलत के न भोग पाने के कारण एक पीड़ा की अनुभूति देता है। वह अपने जीवन से मुक्त कहां हो पाता है वह तो बस अपनी दौलत के बल पर , स्वयं के अमर हो जाने और जीवन को और अधिक भोगने के सपने देखता है। वह हर पल जीवन के खो जाने और मृत्यु के करीब आने के भय से से डरा रहता है । तभी तो आमीर अपनी सुरक्षा में डॉक्टरों की फौज तैनात रखता है। यहाँ तक कि अपने शरीर के स्पेयर पार्ट्स तक का इंताजाम कर के रखता है, जैसे किडनी और लीवर ।
यह सब लिखना पढना भी बड़ा पीड़ादायक है। तमाम इंतजाम के बाद भी बड़ा आदमीं न तो अमर होता है , और न ही , छोटा आदमीं बिना देखभाल के असमय ही दुनिया छोड़ता है।
मौत उम्र के मामले में कोई भेदभाव नहीं करती, वह अमीर- गरीब नहीं देखती और न ही आने और जाने में किसी से रिश्वत लेती है, और इसीलिए मौत एक यूनिवर्सल ट्रुथ है , एक हैवेनली नेचुरल फिनोमिना बियोंड द कंट्रोल आफ ह्यूमन। इसीलिए रीबर्थ अर्थात दूसरों को जिंदगी देंने वाला डाक्टर भी मरता है और अरबों की दौलत भी किसी की जिंदगी बचा नहीं पाती ।
चेतन और रश्मि , दोंनो आफिस से घर लौटे, दोंनो खुश थे एक वेतन मिल जाने और घर में चूल्हा जलने से और दूसरा दिल पर चोट खाने से। दिल का दर्द , दर्द के साथ जिंदगी में एक अजीब सी मिठास देता है जो बस वही महसूस कर सकता है जो इस दर्द से गुजारा हो । घर पहुँच कर ,दोनों एक दूसरे के बारे में सोच रहे थे, बस प्लेटफार्म अलग था।
रश्मि लौटते समय ढाई सौ ग्राम मिठाई, फूल माला और धूपबत्ती ले कर घर लौटी थी , यह सोचते हुये कि थैंक गॉड, आज फिर, नौकरी जाते जाते बची थी, यह जो भगवान है वह इस कम्यूनिटी या इस लेवल के लोगों के लिए एक्जिस्ट करता है। कुछ न होंने अर्थात सुबह शाम के चूल्हे के जलने का इंतजाम न होंने के बाद भी यह जो ऊपर वाले पर विश्वास है जिस के सहारे एक गरीब आदमीं आसानी से सत्तर अस्सी साल जी जाता है यह विश्वास ही उसका भगवान है , यही उसके भीतर की ताकत है , और यही जीवाति रहने की ताकत देने वाली जिजीविषा भी ।
रश्मि अपनी सेलरी से डेढ़ सौ रुपये में सुकून, शांति और रात की नींद खरीद कर लौटी थी, और चेतन अरबों का मालिक हो कर भी आज न जाने क्यों नींद खोकर बेचैन घर लौटा था ।
“छी बड़े आदमीं” की चोट उसे भीतर तक जला रही थी। घर में टंगे बड़े बड़े लोगों के खानदानी चित्र उसे गाली देते हुए प्रतीत हो रहे थे , ये सब बड़े आदमीं थे । “छी बड़े आदमीं।“
उसे अपने भीतर , अपनी जीवन शैली से घोर नफरत पैदा हो रही थी ।
एक्चुअली , बड़े लोगों को सेंटिमेंटल नहीं होंना चाहिए और न ही उन्हें अपनी शानो शौकत या रईसी की