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कहानी- आम्रपाली 2 (Story Series- Aamrapali 2)

”क्या हुआ? ऐसे क्यों बैठे हो.” रचिता उसे आश्चर्य से देखते हुए पूछ रही थी. ”कुछ डर लग रहा है रचिता... हमारा प्लान कामयाब तो रहेगा न... सोचा न था कि वे हमें इस हालत में मिलेंगे.” ”तुम चिंता क्यों करते हो, सब ठीक होगा...” रचिता उसे दिलासा देती हुई बोली. ”ईश्वर करे ऐसा ही हो... लेकिन पता नहीं क्यों डर लग रहा है.”     .... कहते हैं बेटी माता-पिता के बहुत क़रीब होती है, पर शालिनी बेटी होते हुए भी उनसे हमेशा पाने की ही उम्मीद रखती थी, पर कभी भी उनके प्रति दर्द महसूस नहीं करती थी. बेटी भी भाइयों की तरह ही पिता की संपत्ति में बराबर की हक़दार है, वह यह तो जानती थी, पर बेटी बराबर से माता-पिता की देखभाल के लिए भी उत्तरदायी है, यह नहीं जानना चाहती थी. विवाह को तीन दिन शेष रह गए थे. रात का एक बज रहा था. शामी सो गई थी, पर शंकर किसी हिसाब-किताब में उलझा था. तभी उसे दरवाज़े के चरमराने की आवाज़ सुनाई दी. इस समय किसका दरवाज़ा खुला, सोचकर शंकर ने झट से अपना दरवाज़ा खोला, लेकिन तभी खट की आवाज़ के साथ दरवाज़ा बंद हो गया. शंकर अपने कमरे से निकल कर हाॅल में आ गया. पिता के कमरे का दरवाज़ा हल्का-सा भिड़ा था. शंकर ने दरवाज़ा खोल कर देखा. कमरे में मध्यम रोशनी थी. पिता के बेड के पास ही नंदन तख़्त पर बिछे अपने बिस्तर पर बेख़बर सो रहा था. शंकर कमरे से बाहर आया, तो पता नहीं क्यों उसके मन में शक आया कि शायद सरस के कमरे का दरवाज़ा खुला था और उसे बाहर आते समझ उसने दरवाज़ा बंद कर दिया. लेकिन फिर सोचा, यह उसका वहम मात्र है. इतनी रात में भला सरस सोने की बजाय बाहर क्यों आना चाहेगा और आएगा, तो फिर दरवाज़ा ऐसे बंद क्यों कर लेगा. लाइट बंद कर वह सो गया. लेकिन रात की दुविधा में अल्लसुबह नींद खुल गई. थोड़ी देर अलट-पलट कर उठ खड़ा हुआ. बाहर आकर रसोई के पिछले दरवाज़े पर जाकर देखा, केटरिंग के लिए जिनको रखा हुआ था. वे लोग आ गए थे. शंकर ने उन्हें आवाज़ देकर चाय बनाने के लिए कहा. वापस आया तो सीढ़ी पर कुछ पड़ा हुआ नज़र आया. पास जाकर देखा, तो एक स्कार्फ था. शंकर ने उसे उठा लिया और ध्यान से देखता हुआ स्मृति पर ज़ोर डालने लगा. याद आया कल यह स्कार्फ उसने रात में शालिनी के गले में देखा था. यह सीढ़ी पर कैसे आया. सोचता हुआ शंकर ड्राॅइंगरूम में जाकर सोफे पर बैठ कर सोचने लगा. हो सकता है रात को जब शालिनी सोने गई होगी, तो उसके गले से गिर गया होगा. सोच कर उसने अपनी उलझनों को विराम लगाया. चाय आ गई थी. वह चाय पीने लगा. पूरा दिन शादी की तैयारियों की आपाधापी में व्यतीत हो गया था. रात को थकान के कारण जल्दी नींद आ गई. लेकिन किसी को बेहद हल्के स्वर में कुछ बोलते सुन, शंकर की नींद खुल गई वह तुरंत बिस्तर से उठ कर बिना लाइट जलाए ही धीरे से दरवाज़ा खोल कर बाहर झांकने लगा. बोलने का स्वर पिता के कमरे से आ रहा था. आश्चर्यचकित शंकर थोड़ा ओट में हो पिता के कमरे के दरवाज़े पर जाकर झिर्री से अंदर झांकने लगा. पिता बिस्तर पर बैठे थे और सरस ज़मीन पर बैठ उनकी गोद में हाथ रख, लगभग उनके कानों से मुंह सटाए कुछ कह रहा था. वे कुछ सुन पा रहे थे या नहीं, इतनी दूर से शंकर समझ नहीं पा रहा था. फिर सरस ने उन्हें लिटा कर लिहाफ़ उढ़ा दिया और बाहर आने को तत्पर हुआ. शंकर जल्दी से वापस मुड़ा, तो उसकी नज़र बाहर वाले टाॅयलेट पर पड़ी, जहां से नंदन बाहर निकल रहा था. इसका मतलब नंदन कमरे में नहीं है. तभी सरस के बाहर आने के अंदेसे से वह अपने कमरे के अंदर घुस गया. यह भी पढ़ें: नई पीढ़ी को लेकर बुज़ुर्गों की सोच (The Perception Of Elderly People About The Contemporary Generation) शंकर इस समय अजीब-सी कशमकश व दुविधा से घिर गया था. सरस की हिम्मत कैसे हुई इतनी रात में पिताजी के कमरे में जाने की और ऐसी क्या बात थी, जो वह उन्हें समझाने की चेष्टा कर रहा था. उसे ख़ुद पर आश्चर्य हुआ कि क्यों नहीं उसने तुरंत अंदर जाकर सच्चाई का पता लगाया, पर शायद उसे यह सब आकस्मिक नहीं लग रहा था. नदंन का ठीक उसी वक़्त कमरे में न होना, सरस का कमरे में जाना... कोई न कोई साजिश ज़रूर चल रही है. हो सकता है, इसमें किसी भाई की या फिर शालिनी और उसके पति की कोई चाल हो, जायदाद को लेकर. शादी की ज़िम्मेदारी के साथ यह एक नई समस्या सामने आ गई थी. वह रात %भर सो नहीं पाया. कान हर खटके पर बाहर लग जाते और वह दरवाज़े की झिर्री से बाहर की टोह लेने लगता. लेकिन उसके बाद सब शांत रहा. सुबह के समय थककर शंकर गहरी नींद सो गया. देर सुबह नींद खुली, तो सारा घर जाग गया था. नित्य की चहल-पहल थी. दो दिन पहले जैसा शादी का घर होता है, आम्रपाली वैसा ही चहक व महक रहा था. सभी भाई-बहन व सरस, रचिता का व्यवहार भी सामान्य था, पर शंकर के मन में एक बहुत बड़ा कांटा फंस गया था. किसी भाई या शालिनी से भी वह बात नहीं कर पा रहा था कि पता नहीं कौन सरस के साथ मिल कर क्या चाल चल रहा हो और उसकी बात सुन कर सर्तक हो जाए. उसने शामी से भी कुछ नहीं कहा, औरतों के पेट में भी बात नहीं पचती, कहीं बात का बंतगड़ न बना दे. शादी सिर पर थी, इसलिए इस मामले को उसने फ़िलहाल शादी के बाद के लिए टाल देना ही उचित समझा. सरस अपने कमरे में किसी उधेड़बुन में चुपचाप बैठा था. उसने एक नज़र टेबल पर रखी अपनी मां की तस्वीर पर डाली. अभी उसने मां की तस्वीर पर फूल चढ़ा कर अगरबत्ती जलाई थी. कितने जतन किए थे उसने आम्रपाली में आने के लिए, तब जाकर वह यहां आ पाया था. पर शिवप्रसादजी से अकेले में बात करने का मौक़ा ही न मिल पाता था. बहुत मुश्किल से कल रात को मौक़ा मिला था, जब नदंन टाॅयलेट गया था. उसने धीरे से उसके टाॅयलेट के दरवाज़े की बाहर की कुंडी ऐसे लगा दी थी कि खुलने में देर लगे. पुराने दरवाज़े थे. ऐसा होना स्वभाविक था, किसी को शक भी नहीं होगा. लेकिन जब तक उसने शिवप्रसादजी से अपनी बात शुरू की, उसे पता नहीं क्यों शक हुआ कि कोई उसे देख रहा है, इसलिए वह उन्हें लिटा कर वापस आ गया. वह डर गया था कि किसी को उसकी असलियत व आने का मंतव्य पता चल गया, तो कहीं बना बनाया खेल बिगड़ न जाए और उसे आम्रपाली से बाहर न खदेड़ दिया जाए. शंकर ने उसे सुबह जिन निगाहों से देखा था, उससे उसे पक्का विश्‍वास हो गया था कि ज़रूर शंकर ने उसे शिवप्रसादजी के कमरे में जाते या निकलते देखा है. ”क्या हुआ? ऐसे क्यों बैठे हो.” रचिता उसे आश्चर्य से देखते हुए पूछ रही थी. ”कुछ डर लग रहा है रचिता... हमारा प्लान कामयाब तो रहेगा न... सोचा न था कि वे हमें इस हालत में मिलेंगे.” ”तुम चिंता क्यों करते हो, सब ठीक होगा...” रचिता उसे दिलासा देती हुई बोली. ”ईश्वर करे ऐसा ही हो... लेकिन पता नहीं क्यों डर लग रहा है.” तभी दरवाज़े पर खट-खट हुई और साथ ही शंकर की आवाज़ आई, ”सरस... ज़रा बात करनी है.” सरस एकाएक घबरा गया. रचिता ने भरोसा दिलाते हुए उसके कंधे थपथपाए और दरवाज़ा खोल दिया. शंकर अंदर आ गया. ”कुछ गेस्ट आज भी आ रहे हैं... और अभय बाजपेयी जी कल आ रहे हैं... उनके लिए कहां रूम बुक किया है...” शंकर की बात सुन कर सरस ने राहत की सांस ली. ”आप बस जो गेस्ट जिस दिन आ रहे हैं मुझे बताते जाइए... शेष मुझ पर छोड़ दीजिए.” शंकर वापस मुड़ा, तो उसकी नज़र टेबल पर रखी तस्वीर पर पड़ गई, ”यह किसकी तस्वीर है.” ”मेरी मां की तस्वीर है.” सरस बोला. ”मां की इतनी बड़ी तस्वीर हमेशा साथ लेकर चलते हो.” शंकर के चेहरे का भाव व्यंगात्मक था. ”हां, मुझे हमेशा से विश्वास है, जब मेरी मां मेरे साथ होती है... तो मेरा काम बहुत अच्छा होता है.” शंकर का भाव समझ कर भी उसने शांत स्वर में उत्तर दिया. शंकर बिना कोई प्रतिवाद किए बाहर निकल गया. लेकिन उसके चेहरे से साफ़ लग रहा था कि उसके दिमाग़ में शक का कीड़ा कुलबुला रहा है. समर कमरे में तैयार होते-होते अपनी पत्नी स्मिता से कह रहा था. ”पिताजी की वसीयत के बारे में शंकर भैया को ज़रूर पता होगा... पर बताएंगे नहीं... मुझे तो डर है कहीं उन्होंने यह आम्रपाली अपने नाम न लिखवा लिया हो.” शालिनी की अपनी कशमकश थी, वह अपने पति रमन से कह रही थी, ”पता नहीं पिताजी ने वसीयत कहां रख छोड़ी है... कुछ पता नहीं चल रहा... सोचा नहीं था कि पिताजी इस कदर बेज़ुबान हो जाएंगे... अगर वसीयत नहीं की होगी, तो ये तीनों भाई मुझे कुछ नहीं देने वाले हैं... मुझे पता है.” यह भी पढ़ें: सेहत से भरपूर पालक के इन 15 फ़ायदों को जानकर हैरान रह जाएंगे आप… (Surprising 15 Health Facts About Spinach) ”तुम सीधे-सीधे पूछ क्यों नहीं लेती...” रमन बोला. ”किससे पूछूं... स्मिता और रीना भाभी को बहाने से पूछने की कोशिश की थी, लेकिन वे तो कुछ नहीं फूटी... अब या तो उन्हें सचमुच कुछ पता नहीं... या फिर मुझे कुछ मिलने वाला नहीं है... पर मैं भी अपना हिस्सा छोड़ूंगी नहीं...” शालिनी ने ग़ुस्से में होंठ भींचे. वरूण दरबान को गेट पर बने रहने की हिदायत देकर ऊपर कमरे में गया तो रीना का मूड कुछ बिगड़ा हुआ था, ”क्या हुआ...तबीयत ठीक नहीं है क्या?” ”मेरी तबीयत को क्या हुआ... शालिनी का सोच रही थी, शंकर भैया से कुछ पूछने की हिम्मत होती नहीं... हमें छेदती रहती है बहाने से वसीयत को लेकर... शामी भाभी मुझसे पहले भी कई बार फोन पर बताती थी कि शालिनी जब भी दिल्ली आती है... पिताजी के पास ही घुसी रहती है...” रीना बड़बड़ाते हुए बोली. अगला भाग कल इसी समय यानी ३ बजे पढ़ें... Sudha Jugran सुधा जुगरान     अधिक शॉर्ट स्टोरीज के लिए यहाँ क्लिक करें – SHORT STORIES

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