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कहानी- आओ दीये जलाएं… 1 (Story Series- Aao Diye Jalayen… 1)

वेदांत के कहने पर उर्मिला विचारों के घेरे से बाहर आई. उत्सव अपने पापा से कह रहा था, “पापा, अभी सुदीप्ता को फोन करने का फ़ायदा नहीं है. अभी तो चादर तान के सो रही होगी. 11 बजे के बाद मम्मी से बात करवा दूंगा.” “इस बार तानकर सोने दे, अगली दिवाली में तुम्हारी मम्मी उसे सोने नहीं देगी. जैसे अन्विका को सुबह से काम में लगाया है, वैसे ही अगले साल सुदीप्ता जुटी होगी.” पिता-पुत्र के संवाद सुनकर उर्मिला का मन विषाद से भर गया. कितना चाव था अन्विका जैसी बहू घर आती, पर टॉम बॉय सुदीप्ता का चुनाव करके उत्सव ने सारे अरमानों पर पानी फेर दिया. “भाभीजी, और कोई काम है, तो जल्दी बता दो. आज शाम को नहीं आऊंगी...” कामवाली बाई शन्नो के कहने पर अन्विका उसे डांटते हुई बोली, “आज दिवाली के दिन मदद की ज़रूरत है, तो तुम्हें जल्दी जाना है और शाम को भी छुट्टी ले रही हो...” “हां तो, मैं त्योहार नहीं मनाऊंगी क्या?” शन्नो दो दिन के लिए आई मेहमान अन्विका के टोकने पर नाराज़ होकर बोली. बीच-बचावकर उर्मिला ने शन्नो से कुछ और काम करवाकर भेज दिया, तो अन्विका चिढ़कर बोली, “आंटी, आपने इसे बहुत ढील दी है. अभी तो कॉरीडोर में दीये लगाने हैं, डेकोर भी चेंज करना है.” “छोड़ो न अन्विका, वो सुबह आ गई, यही बहुत है, वरना त्योहार के दिन बिन बताए छुट्टी मारने का भी इनका रिवाज़ है. तुम चिंता मत करो, हम मिलकर कर लेंगे.” उर्मिला ने अन्विका को समझाया, तो वेदांत ने परिहास किया, “उर्मिला, तुमने अन्विका से काम करवाने के लिए उसे पीजी (पेइंग गेस्ट) से यहां बुलाया है क्या?” यह सुनकर उर्मिला हंसते हुए बोली, “अरे, मैं कहां उसे कुछ करने को कह रही हूं? वो ख़ुद ही सुबह से काम में लगी हुई है. पीजी से इसे  बुलाया था कि त्योहार के दिन अपने घर को मिस न करे. यहां घर का फील मिले, पर इसने ख़ुद ही काम ओढ़ लिए, तो मैं क्या करूं?” उर्मिला की स्नेहभरी उलाहना सुन फिरनी के लिए ड्राययफ्रूट्स काटती अन्विका बोली, “आंटी, घर जैसा फील लेने के लिए ही काम कर रही हूं. मम्मी होतीं, तो मेरा पूरा इस्तेमाल करतीं. डेकोरेशन से लेकर खाने तक मुझे ही लगना पड़ता. सच कहूं आंटी, ये सब करना मुझे अच्छा भी लगता है. दिवाली में परफेक्शन के साथ कुछ ख़ास करने में ही तो मज़ा है.” यह भी पढ़ेसीखें दिवाली सेलिब्रेशन के 10 मॉडर्न अंदाज़ (10 Different Ways To Celebrate Diwali) यह सुनकर उर्मिला ने स्नेह से अन्विका के सिर पर हाथ फेरा. अन्विका उसकी प्रिय सहेली अनीता की बेटी है. अनीता आगरा में रहती है और उसकी बेटी अन्विका उर्मिला के शहर जयपुर में पीजी में रहकर एक फर्निशिंग हाउस में इंटीरियर डेकोरेशन कंसल्टेंट का काम कर रही है. इस बार एक बड़ा प्रोजेक्ट हाथ में था, इसलिए वह आगरा नहीं गई. ऐसे में उर्मिला ने उसे दिवाली अपने साथ मनाने का न्योता दिया और वह सहर्ष तैयार हो गई. उर्मिला के घर में उसे घर के सदस्य-सा मान मिलता है. अन्विका को देख अक्सर उर्मिला के मुंह से निकलता काश! मेरी भी अन्विका जैसी एक बेटी होती. इसके प्रत्युत्तर में उसे यदाकदा सुनने को मिलता, बेटी नहीं है तो क्या हुआ... बहू को बेटी बनाकर बेटी का सुख भोगना... उसकी कल्पना में आनेवाली बहू के रूप में अन्विका फिट बैठने लगी. एक बार उर्मिला के घर में साधिकार अन्विका को कुछ काम करते देखकर उर्मिला की ननद ने कह दिया, “भाभी, जानी-पहचानी लड़की है. करियर के साथ घर के कामकाज में भी दक्ष है. क्यों नहीं इसे ही बहू बनाकर घर ले आती.” ननद की बात वह गंभीरता से लेती, उससे पहले ही बेटे ने सुदीप्ता को जीवनसंगिनी के रूप में अपनाने की पेशकश कर दी. “उर्मिला, तुम आज सुदीप्ता को फोन कर लेना. वह भी अकेली है. उत्सव बता रहा था, इस बार वह अपने घर नहीं गई.” वेदांत के कहने पर उर्मिला विचारों के घेरे से बाहर आई. उत्सव अपने पापा से कह रहा था, “पापा, अभी सुदीप्ता को फोन करने का फ़ायदा नहीं है. अभी तो चादर तान के सो रही होगी. 11 बजे के बाद मम्मी से बात करवा दूंगा.” “इस बार तानकर सोने दे, अगली दिवाली में तुम्हारी मम्मी उसे सोने नहीं देगी. जैसे अन्विका को सुबह से काम में लगाया है, वैसे ही अगले साल सुदीप्ता जुटी होगी.” पिता-पुत्र के संवाद सुनकर उर्मिला का मन विषाद से भर गया. कितना चाव था अन्विका जैसी बहू घर आती, पर टॉम बॉय सुदीप्ता का चुनाव करके उत्सव ने सारे अरमानों पर पानी फेर दिया. “आंटी, फिरनी और शाही पनीर टेस्ट करिए, बताइए कैसी बनी है?” अन्विका के टोकने पर उर्मिला ने गहरी अर्थपूर्ण नज़र वेदांत और उत्सव की ओर उठाई. उत्सव तो नहीं समझा, पर वेदांत उसकी नज़र में छिपे मंतव्य को भांपते हुए परिहास करते बोले, “वाह उर्मिला! तुम्हारे तो मज़े हैं. फिरनी और शाही पनीर अन्विका से बनवाकर उसे ख़ूब घर-सा माहौल दिया.” वेदांत की बात पर अन्विका चहककर बोली, “अंकल, आंटी को कुछ मत कहिए. वाकई मुझे आज घर-सा फील मिल रहा है. आंटी, उत्सव से रंगोली कलर्स मंगवा दीजिए. मैं रंगोली बनाकर उसके आसपास दीये लगाऊंगी.” उसके उत्साह पर उर्मिला मुस्कुरा दी. यह भी पढ़ेदिवाली स्पेशल रंगोली: सीखें फेस्टिवल स्पेशल 5 रंगोली डिज़ाइन्स (Diwali Special Rangoli: Learn 5 Easy And Innovative Festival Rangoli Designs) दोपहर 12 बजे के आसपास अन्विका रंगोली बनाने बैठी, तो उसे देखने उर्मिला भी पास में कुर्सी डालकर बैठ गई. रंगोली के चटख रंगों में डूबी वह उत्सव की आवाज़ पर चौंकी, “मम्मी, सुदीप्ता का फोन है. वह दिवाली की बधाई देना चाह रही है.” उत्सव के कहने पर उर्मिला ने “ओह! सुबह हो गई तुम्हारी सुदीप्ता की...” तंज कसते हुए अनमने भाव से फोन लिया. Meenu Tripathi        मीनू त्रिपाठी

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