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कहानी- ब्रोकेन वास 1 (Story Series- Broken Vase 1

 

मैं उसके 'नेक्स्ट टाइम' पर हल्का-सा ठहरी फिर याद करके कहा, "हम लोगों का कहां उधर आना हो पाता है. हां, तुम्हारी शादी में ज़रूर आऊंगी." उसने मुझे ऐसे देखा जैसे किसी मरीज़ को हैरत से देख रही हो, "अंकल तो लास्ट मंथ ही आगरा आए थे, मैंने उनको देखा था, आवाज़ भी दी थी.. बट वो जल्दी में थे शायद..."

        थकान से शरीर बुरी तरह टूट रहा था. बेटी अंजलि की शादी की भागदौड़ शरीर को थका गई थी और उसकी विदाई दिल को! बेटियां तो फुर्र से उड़ जाती हैं और अपने पीछे छोड़ जाती हैं सन्नाटा... मेरी अंजलि भी तो इसी तरह आज सुबह मेरा घर-आंगन खाली कर गई थी. किसी काम में जी नहीं लग रहा था, लेकिन लगाना तब भी पड़ रहा था.   यह भी पढ़ें: शादी के दिन भूलकर भी न करें ये ग़लतियां, इस ख़ास दिन को अपने व अपनों के लिए यूं बनाएं यादगार… (40+ Common Wedding Day Mistakes That Every Bride Should Avoid)   होटल से घर जाने की तैयारी हो रही थी. दिमाग़ का एक हिस्सा सामान की पैकिंग पर टिका था कि कोई सामान होटल में छूट ना जाए, वहीं दूसरा हिस्सा मेहमानों की ओर लगा था कि कोई मेहमान बिना मिठाई लिए ना चला जाए. मैं पूरी फुर्ती से काम निपटाने में लगी हुई थी. तभी मेरे रूम के दरवाज़े पर दस्तक हुई, अंजलि के मेडिकल कॉलेजवाली सहेली नेहा अपना सूटकेस पकड़े खड़ी थी, "मैं निकलूंगी आंटी अब..." उसे देखकर मेरी आंखें फिर भर आईं, "तुम लोग आ गई, रौनक़ हो गई... अब एकदम खाली-खाली-सा..." मेरी आवाज़ अंजलि को याद करके फिर भर आई थी, नेहा सूटकेस छोड़कर अंदर मेरे पास आकर बैठ गई, "आंटी प्लीज़... अंजलि यहीं तो है इसी शहर में, दस मिनट का भी रास्ता नहीं है दोनों घरों के बीच का..." वो मुझे बच्चों की तरह समझा रही थी, मैं आंसू पोंछते हुए मुस्कुरा दी, वो कुछ याद करके बोली, "और अब तो आपके पास ख़ूब सारा टाइम है ना, नेक्स्ट टाइम प्रमोद अंकल आगरा आएं, तो आप भी साथ आना... ताजमहल घूमने चलेंगे हम लोग..." मैं उसके 'नेक्स्ट टाइम' पर हल्का-सा ठहरी फिर याद करके कहा, "हम लोगों का कहां उधर आना हो पाता है. हां, तुम्हारी शादी में ज़रूर आऊंगी." उसने मुझे ऐसे देखा जैसे किसी मरीज़ को हैरत से देख रही हो, "अंकल तो लास्ट मंथ ही आगरा आए थे, मैंने उनको देखा था, आवाज़ भी दी थी.. बट वो जल्दी में थे शायद..." वो कुछ सोचती-समझती याद करने में खो गई, तब तक मेहमानों का एक हुजूम मेरे कमरे में भर आया था. सबको मिठाई के डिब्बे पकड़ाते, गले लगते, उनके आने का थैंक्स कहते-कहते कब समय बीता, पता ही नहीं चला. इस भगदड़ में नेहा को ना तो मिठाई दे पाई, ना उससे जाते समय ठीक से मिल ही पाई. वो पूरा हफ़्ता तो इस तरह बीता कि मुझे अपनी ही सुध नहीं रही. अंजलि पगफेरा करके लौट गई. वो अपनी गृहस्थी में रमने लगी. हम लोग भी अपने पुराने ढर्रे पर लौटने लगे‌.   यह भी पढ़ें: रिश्तों को संभालने की फुर्सत क्यों नहीं हमें (Relationship Problems and How to Solve Them)   प्रमोद तो दिनभर हॉस्पिटल में और शाम को घर पर मरीज़ों से घिरे रहते थे. मैं घर पर बैठी कभी अपनी छूटी हुई पेंटिंग्स पूरी करती, कभी किसी सहेली को फोन मिला लेती. मैं उस दिन भी एक सहेली से फोन पर बात कर रही थी, जब उसने पूछा, "क्यों मंजू! हम लोग भी चलें कभी घूमने. प्रमोद तो जब देखो तब इस शहर से उस शहर घूमते-फिरते हैं, तुम ही यहां फंसी रहती हो..."

अगला भाग कल इसी समय यानी ३ बजे पढ़ें

  [caption id="attachment_208091" align="alignnone" width="213"]Lucky Rajiv लकी राजीव[/caption]       अधिक कहानियां/शॉर्ट स्टोरीज़ के लिए यहां क्लिक करें – SHORT STORIES         डाउनलोड करें हमारा मोबाइल एप्लीकेशन https://merisaheli1.page.link/pb5Z और रु. 999 में हमारे सब्सक्रिप्शन प्लान का लाभ उठाएं व पाएं रु. 2600 का फ्री गिफ्ट.

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