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कहानी- चाभी 2 (Story Series- Chabhi 2)

“आप और आपकी रिपोर्टर कम्मो.कॉलोनीभर की ख़बरें आपको देती रहती है. आपको तो किसी एनजीओ में होना चाहिए था. कितनी समाजसेवा दिल में भरी है.” “जी, ऐसा कुछ भी नहीं जैसा आप समझ रही हैं. हां, घर में गंदगी देखकर पैर रखने में रोना ज़रूर आता है, पर कपड़े हफ़्ते-दस दिन पर लॉन्ड्री करा लेता हूं. फिर उन्हें रखना, उठाना, सहेजना मेरे बस की बात नहीं. लौटकर घर ठीक करूं, खाना बनाऊं, रिलैक्स करूं या अगले दिन की तैयारी. थका होता हूं, तो कुछ समझ में नहीं आता. दोनों आ जातीं, तो ठीक रहता.” “छोटी को भले न समझ आए, पर ये बात लतिका को क्यों समझ नहीं आती?” “जी, वो समझे या न समझे, क्या फ़र्क़ पड़ना है. अच्छा मैं चलता हूं. थैंक्यू बढ़िया नाश्ते के लिए. उपमा बहुत टेस्टी था.” उसने थोड़ा बचा हुआ उपमा भी मुंह में डाल लिया. “कैसा भुक्खड़ है, सब चटकर गया? कचरी-नमकीन-पेड़े सब...” रिनी टेबल को देखते हुए बोली. “लगता है कि लतिका की इससे बनती न होगी, तभी तो कह रहा है क्या फ़र्क़ पड़ता है, नाटक करता है कि प्यार करती है.” विचार आते ही सुलोचना बोल उठीं. “लतिका आए न आए, बला से. तुम क्यों गंदे में रहोगे? तुम चाहो तो अपनी कामवाली कम्मो से तुम्हारे फ्लैट की साफ़-सफ़ाई करवा दिया करूं. चोर वो बिल्कुल भी नहीं. चाभी तो हमारे पास रहती ही है.” मम्मी तपाक से बोल पड़ीं. रिनी ने मां को घूरकर देखा. अब कहीं मां ये न कह दें कि चार परांठे भी मैं बनाकर रख आया करूंगी. “जी, यह तो बहुत अच्छा होगा. मगर आपको कष्ट होगा, टाइम भी ख़राब होगा. ये मैं नहीं चाहता.” “अरे, इसमें क्या, मैं खाली ही तो रहती हूं. यहां से उठी, वहां बैठ जाऊंगी, मेड काम कर लेगी, तो चली आऊंगी.” “ओह! थैंक्यू आंटीजी. आप तो मेरी मां जैसी ही हैं.” उसने झुककर सुलोचना के पैर छुए, तो वह गदगद हो गईं. यह भी पढ़ेऐप जो पतियों को उनकी पत्नियों का मूड जानने में मदद करेगा (App That Helps Husbands To Know The Mood Of Their Wives) “ये रामासरे सर्विस का नंबर है. मोबाइल में सेव कर लीजिए 9313... जब भी आपको ज़रूरत हो खाने की, आधे घंटे में पहुंचा देता है, नौ से चार फिर छह से नौ, हर दिन.” रिनी ने जल्दी-जल्दी सब डिटेल बता दी. उसे डर था कि मम्मी भावनाओं में बहकर उसका खाना भी न बनाने लगें. उसने नंबर नोट कराके बाय कहा और डोर बंद करके मम्मी की ख़बर ली. “क्या ज़रूरत थी आपको उसके घर के मामले में राय देने की? कमरदर्द से परेशान रहती हैं, पर मानती नहीं. यहां भी काम करती ही रहती हैं. थोड़ी-थोड़ी देर पर आराम करने को बोला है न डॉक्टर ने. अब आपने उसका भी ज़िम्मा ले लिया. अभी तो आप उसका खाना भी बनाने की हामी भर देतीं. कमाल हो मम्मी आप तो. मैंने उसे रामासरे का नंबर दे दिया है. आपको ज़्यादा दयावान बनने की ज़रूरत नहीं.” रिनी झल्ला उठी थी. रामासरे का खाना खाकर भी निहार का पेट अपसेट हो गया. दो दिन जब वो चाभी देने नहीं आया, तो सुलोचना चिंतित हो उठीं. “देख के आ न रिनी, तबीयत ठीक नहीं लगती उसकी. चाभी देने नहीं आया. खाना भी नहीं मंगाया उसने.” “आपको कैसे पता?” “अरे, मेरे बेडरूम की खिड़की से दिखता नहीं क्या? आते-जाते सबका पता रहता है. रामासरे का कोई लड़का नहीं आया टिफिन ले के और फिर कम्मो भी बता रही थी कि दो दिन से वहां उसे साफ़ करने के लिए बर्तन भी नहीं मिले.” “आप और आपकी रिपोर्टर कम्मो.कॉलोनीभर की ख़बरें आपको देती रहती है. आपको तो किसी एनजीओ में होना चाहिए था. कितनी समाजसेवा दिल में भरी है.” “अरे बेटा, पड़ोसी ही पड़ोसी के...” “अभी बहुत काम है मम्मी, शाम को देखूंगी. चिंता करने को इतने सारे घरवाले हैं न उसके. लतिका... छोटी... उनको नहीं पड़ी?” “मैं खिचड़ी बना रही हूं उसके लिए भी. दही और नींबू का अचार साथ में लेती जाना.” सुलोचना का स्वर कड़क था. “उसकी वजह से हमें भी रोज़ खिचड़ी खानी पड़ेगी अब, ये क्या बात हुई मम्मी? दही और अचार वाह! क्या ठाठ हैं जनाब के यहां और लतिका की बच्ची के वहां! दे आओ, आप ही दे आओ. कल भी आप मुझसे छुप के देकर आई होंगी. मैं आपको जानती नहीं क्या... कुछ न कुछ रोज़ ही बनाकर दे आती हैं.” “तो और क्या? कोई है नहीं उसका यहां, तो हम भी न पूछें... इंसानियत भी कोई चीज़ है.” “ठीक है, जाइए, सेवा कीजिए. दर्द बढ़ेगा, तो उसी से पैर दबवाना आप...” रिनी सोच रही थी कि कितनी बार अपनों से धोखा खा चुकी हैं मम्मी. बाहर बेवकूफ़ बनानेवालों की कमी नहीं, फिर भी उदार हृदया मेरी मम्मी बिना कुछ सोचे चल पड़ती हैं सबकी मदद को. उसे अपनी निश्छल मम्मी पर प्यार भी आ रहा था. सुलोचना निहार को खिलाकर लौटीं, तो बहुत ख़ुश थीं. “सुन रिनी, ख़ुशख़बरी है. कल उसकी लतिका और छोटी एक बजे पहुंच रही हैं. मेरे सामने ही फोन आया था. मैंने सारी बातें सुनीं. दो बजे तक वे घर पर होंगे.” “चलो, अच्छा है फांस कटी.” वह बेरूखी से बोली. “कैसी पत्थर दिल लड़की है तू? मना मत करना. कल मैं सबका खाना यहीं बना दूंगी. भरी दोपहरी में बेचारी कहां परेशान होगी. घर में सब सामान भी तो नहीं होगा.” “अरे मम्मी, घर से आ रहे हैं. मां ने बांधकर सब दिया होगा, नहीं तो रास्ते में पैक करा लेंगे. ये उनका सिरदर्द है. आपको क्या चिंता, जैसे कि आपकी अपनी ही बहू आ रही हो.” पर दूसरे दिन सुलोचना मानी नहीं. सबका खाना तैयार कर दिया. फोन की घंटी बजी. रिनी ने उठाया. मम्मी के लिए एक बैड न्यूज़ थी. मम्मी की मुंह बोली सबसे प्यारी मामी नहीं रही थीं. यह भी पढ़ेसीखें हस्तरेखा विज्ञान: मस्तिष्क रेखा से जानें अपनी बुद्धि और पर्सनैलिटी के बारे में (Learn Palmistry: Mind Line Tells A Lot About Your Personality And Intelligence) “सुनो मम्मी, रोना नहीं. मंझरी का फोन आया था. दया मामी नहीं रहीं. आप जाना चाहोगी ही. मैं कैब बुक कर दूंगी. दो-ढाई घंटे में आप पहुंच जाओगी. मैं तो साथ नहीं जा पाऊंगी. अर्जेंट कमिटमेंट्स पूरे करने हैं. कम्मो को बोल दिया है, आपके साथ चली जाएगी. ठीक है न? अरे, रोइए मत मम्मी, नाती-पोता देखकर गई हैं दया मामी. 80 साल की थीं न? चलिए तैयार हो जाइए, मैं आपका सामान रख देती हूं. दवा भी ऊपर ही पर्स में रख दी है. याद से खा लेना. जब भी आना होगा, मुन्ना को बोल दूंगी. वह अपनी टैक्सी में भेज देगा यहां.”  Dr. Neerja Srivastava डॉ. नीरजा श्रीवास्तव ‘नीरू’

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