कहानी- चांद के पार 3 (Story Series- Chand Ke Paar 3)
काले सघन बरसते बादलों के बीच मचलती हुई दामिनी के साथ शिव ने उनकी कलाइयों को क्या थामा, उनके भीतर मानो सालों के सूखे पर सावन की कुछ बूंदें बरस उठीं. उनके मन की दुनिया का खाली और उदास कोना अचानक जैसे भर गया हो. शिव के अपनेपन से उनकी आंखें ऐसी छलकीं कि कठिनाइयों और दुखों से भरे उनके अतीत के सारे बरस बह गए. माना कि प्यार के फूल उम्र की शाखों पर नहीं खिलते, पर ऐसा भी तो होता है कि दुनिया की हर रीत, हर रस्म से बहुत दूर खिलता है प्यार का कोई फूल और महक उठती है पूरी धरती. दुनिया के किसी भी कोने में, उम्र के किसी भी मोड़ पर प्यार आकर थाम लेता है कलाई और टूट जाती है सारी रवायतें. शिव के बिना जया जीने की कल्पना से कांप उठीं.
आए दिन शराब के नशे में मम्मी को शारीरिक रूप से प्रताड़ित करके अपनी खीज उतारते रहे. समझ आने पर जब भी उसने मम्मी को बचाने की कोशिश की, तो पापा ने उसे रुई की तरह धुन कर रख दिया. पापा की इन्हीं गतिविधियों के कारण उनसे प्यार करना तो दूर, वह कभी उनका यथोचित सम्मान भी नहीं कर सका. उसके लिए सारे रिश्तों का पर्याय उसकी मां ही बनी रहीं.
कार दुर्घटना में हुई पापा की मृत्यु ने दुख के बदले आए दिनों की ज़िल्लतों से उन्हें मुक्ति ही दिलाई थी. मैथ्स विज़ार्ड कही जानेवाली उसकी मम्मी ने कोचिंग सेंटर क्या जॉइन किया, घर में पढ़नेवाले विद्यार्थियों की कतार ही लग गई, जिससे उनकी सारी आर्थिक समस्याओं का समाधान हो गया. आज वो जो कुछ भी है, अपनी मम्मी की अटूट साधना और तपस्या के कारण ही है.
जीवन में हर स्त्री को सुयोग्य जीवनसाथी की कल्पना होती है. मम्मी को वो कभी नहीं मिला. पूरा जीवन अपनी आशाओं-आकांक्षाओं और कामनाओं के दहकते रेगिस्तान में नंगे पैरों वे दौड़ती रहीं. उसकी राह की सारी बाधाओं को अपनी पलकों से चुनती रहीं. क्या पता शिव अंकल के साथ ने इस उम्र में वर्षों की उनकी मुराद पूरी कर दी हो.
जयाजी के उच्चारण से शिव अंकल की ज़ुबान भी तो नहीं थकती. कितने खिल उठते हैं वे मां को देखकर ही. उस पर, अणिमा और अंश पर भी बड़े अधिकार से स्नेह बरसाते रहते हैं. अपनी मां के जीवन में ख़ुशियां लाने के लिए अलग जाति से आनेवाले शिव अंकल की याचना भी करनी पड़े, तो उसे रंचमात्र भी मलाल नहीं होगा. उसे पूरा विश्वास है कि वे मां को बहुत पसंद करते हैं.
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पिया भी उसकी मां को मान-सम्मान देने के साथ उन्हें कितना चाहती है. उसकी मां हैं ही ऐसी कि उनके मोहपाश में सभी बंध जाएं. वो पिया से बात करेगा, यह सोचकर ही यश ख़ुशियों से भर उठा.
शिव के साथ जया के दिन पंख लगाकर उड़ते रहे. पांच महीने पहले उस रोज़ वक़्त की शाख़ से ज़िंदगी के कुछ बरस उन्होंने तोड़े, तो याद आया कि न जाने कितने बरस हुए उन्हें जिए हुए. अब तक के सफ़र में दौड़ते-भागते जाने कितने बरस फिसलते रहे, लेकिन उन्हें इतना भी वक़्त नहीं मिला कि अपनी ख़ुशियों के बारे में वे कभी सोच सकें.
काले सघन बरसते बादलों के बीच मचलती हुई दामिनी के साथ शिव ने उनकी कलाइयों को क्या थामा, उनके भीतर मानो सालों के सूखे पर सावन की कुछ बूंदें बरस उठीं. उनके मन की दुनिया का खाली और उदास कोना अचानक जैसे भर गया हो. शिव के अपनेपन से उनकी आंखें ऐसी छलकीं कि कठिनाइयों और दुखों से भरे उनके अतीत के सारे बरस बह गए.
माना कि प्यार के फूल उम्र की शाखों पर नहीं खिलते, पर ऐसा भी तो होता है कि दुनिया की हर रीत, हर रस्म से बहुत दूर खिलता है प्यार का कोई फूल और महक उठती है पूरी धरती. दुनिया के किसी भी कोने में, उम्र के किसी भी मोड़ पर प्यार आकर थाम लेता है कलाई और टूट जाती है सारी रवायतें. शिव के बिना जया जीने की कल्पना से कांप उठीं.
अपार सौंदर्य और प्रतिभाशालिनी जया को यश के साथ ही अपनाने के लिए कितनों ने हाथ बढ़ाया था, कितनों ने प्रणय याचना की थी, पर पाषाण बनी जया सारे प्रस्तावों को बड़ी निर्ममता से ठुकराती रहीं. वही जया आज शिव की प्रिया बनने को आतुर थीं. उम्र के इस पड़ाव पर शिव के प्रति इतनी आसक्ति समय और समाज के आईने में निंदा का ही विषय होगा, इस सच्चाई से जया अनजान नहीं थीं. वे किसे बताएं कि अब तक के जीवन में प्यार उनके लिए मृगतृष्णा ही बना रहा.
चाह की धुरी पर प्यार को तलाशती, रचती, खोती वह धरती बनी घूमती ही रहीं. सपनों से भरे दिन और चाहत से भरी रातों की बात उनकी ज़ुबान पर आना भी कितनी लज्जाजनक बात होगी. पटना में शिव से इसी तरह क्या वो मिल सकेंगी. पता नहीं किन-किन रुसवाइयों का सामना करना पड़ेगा, सोचकर जया विह्वल हो उठीं.
उधर शिव की बेटी पिया भी अपने पापा में आए बदलाव को महसूस कर रही थी. मम्मी की यादों में खोकर रह जानेवाले पापा को कौन-सी जादुई छड़ी मिल गई है, जिसके स्पर्श से वे इतने तरोताज़ा हो गए हैं कि अपनी उम्र को पीछे की दहलीज़ों पर भगाए जा रहे हैं. कहीं यह जया आंटी की संगति का असर तो नहीं है. सुंदरता और सौम्यता के साथ कितनी प्रतिभाशालिनी हैं वे. किसी भी टॉपिक पर ऐसे व्याख्यान देंगी कि उनसे मन बंधकर रह जाता है. पापा के साथ हम सभी को देखकर कमल की तरह ही वे खिल जाती हैं.
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यश के यहां जाने पर डिनर करके ही आने देती हैं. हां-ना की उनकी ममता में मम्मी का दुलार उभर आता है.
रेणु श्रीवास्तव