Close

कहानी- धुंधलका 2 (Story Series- Dhundhlka 2)

ऑफ़िस में भी उसके बारे में कोई बहुत अच्छी राय नहीं थी. ख़ासतौर से मर्दों में. उन्हें झटक जो देती थी वह, अपने माथे पर आए हुए बालों की तरह. खैर, कभी-कभी की हाय-हैलो, गुड मार्निंग में बदली. एक दिन उसने चाय के लिए कहा. उसी के चैम्बर में बैठे थे हम. मुझे बात बनती-सी नज़र आई थी, पर तभी चोपड़ा साहब आ पहुंचे थे. कई बातें हुईं, पर मेरे मतलब की कोई नहीं. मैंने मन ही मन हज़ारों गालियां दे डाली थीं उन्हें. कितनी अलग लगी थी अपर्णा ऐसी बातें करते हुए? पहले मैं क्या-क्या सोचता था उसके बारे में. इस ऑफ़िस में पहले दिन अपर्णा राज़दान को देखा तो आंखों में चमक आ गयी थी. चलो रौनक तो है. तन-मन दोनों की सेहत ठीक रहेगी. पहले दिन तो उसने देखा तक नहीं. बुझ-सा गया मैं. फिर ‘ऐसी भी क्या जल्दी है’ सोचकर तसल्ली दी ख़ुद को. पहले पता तो चल जाए कि चीज़ क्या है यह, फिर उसी हिसाब से पटाया जाए. उससे अगले दिन फॉर्मल इन्ट्रोडक्शन हुआ था. हाथ मिलाते हुए बड़ी प्यारी मुस्कान आई थी उसके होंठों पर. देखता रह गया मैं. कुल मिलाकर मैं इस नतीज़े पर पहुंचा कि यह मस्ती करने के लिए बहुत बढ़िया चीज़ है. ऑफ़िस में भी उसके बारे में कोई बहुत अच्छी राय नहीं थी. ख़ासतौर से मर्दों में. उन्हें झटक जो देती थी वह, अपने माथे पर आए हुए बालों की तरह. खैर, कभी-कभी की हाय-हैलो, गुड मार्निंग में बदली. एक दिन उसने चाय के लिए कहा. उसी के चैम्बर में बैठे थे हम. मुझे बात बनती-सी नज़र आई थी, पर तभी चोपड़ा साहब आ पहुंचे थे. कई बातें हुईं, पर मेरे मतलब की कोई नहीं. मैंने मन ही मन हज़ारों गालियां दे डाली थीं उन्हें. आगे चलकर चाय-कॉफी का दौर जब बढ़ गया तो अतुल सिन्हा ने कहा था, “स़िर्फ चाय तक ही हो या आगे भी बढ़े हो....” मैंने गर्दन अकड़ा ली और टेढ़ी-सी स्माइल दी. मैं ख़ुद को यक़ीन दिलाने में जुटा रहता कि मैं उसे कुछ ज़्यादा ही पसंद हूं. कभी कोई कह देता, सिगरेट-शराब पीती है. तो कोई कह देता ढेरों मर्द हैं इसकी मुट्ठी में. कोई कहता, “साड़ी देखो, कहां बांधती है? सेंसर बोर्ड इसे नहीं देखता क्या?” जवाब आता, “इसे जी.एम. देखता है न!” ऐसी बातें मुझे उत्तेजित कर जातीं. कब वह आएगी मेरे हाथ? और तो और अब तो मुझे अपनी बीवी के सारे दोष जो मैं भूल चुका था या अपना चुका था, कांटों की तरह चुभने लगे. उसे देखता तो लगता कि कैक्टस पर पांव आ पड़ा है. कितनी अलग है वह अपर्णा से. कितना फ़र्क़ है दोनों में. पहला फ़र्क़ तो बीवी होने का ही था. बीवियां ऐसी क्यों होती हैं? वह कितनी सख़्त दिल और अपर्णा में कितनी नर्मी. वह किसी शिकारी परिन्दे-सी चौकस और चौकन्नी... और अपर्णा नर्म-नाज़ुक प्यारी मैना-सी. कुछ ख़बर रखने की कोशिश नहीं करती कि कहां क्या हो रहा है और कोई उसके बारे में क्या कह रहा है. अपर्णा का फिगर कमाल का. ग्रेट! और इसे लाख कहता हूं एक्सरसाइज़ करने को, डाइटिंग करने को पर नहीं. कैसी लगेगी वह नीची साड़ी में? उसकी कमर तौबा? मोटी तो नहीं है, पर शरीर में कोई कर्व ही नहीं. यह सब दिखने के बाद भी घर में मेरा बिहेवियर ठीक रहा. मैंने उस पर कुछ भी ज़ाहिर नहीं होने दिया. एक दिन अपर्णा ने पूछ ही लिया परिवार के बारे में. मैंने बताया कि बीवी के अलावा एक बेटा और एक बेटी है. तो उसने भी बताया कि उसकी भी एक बिटिया है. कोयल नाम है उसका. पति के बारे में न उसने कुछ बताया, न ही मैंने पूछा. पूछकर मूड नहीं ख़राब करना चाहता था. हो सकता है कह देती, “मैं आज जो कुछ हूं न उन्हीं की वजह से हूं या बहुत प्यार करते हैं मुझे. उनके अलावा मैं कुछ सोच ही नहीं सकती.” अनूमन बीवियां यही कहती हैं. मेरे ख़याल से पति भी. ऐसे ही कहने के लिए या सच में? हां, अगर वह ऐसा कह देती तो यह जो थोड़ी-बहुत नज़दीकी बढ़ रही है, वह भी ख़त्म हो जाती. लेकिन एक बात हुई थी, वह मुझे कहीं से भी वैसे नहीं लग रही थी, जैसा सब कहते थे. पहली बार मुझे लगा कि मैं अपर्णा के जिस्म के अलावा कुछ और भी सोच सकता हूं. क्या मेरी राय बदल रही थी? फिर ऑफ़िस की ओर से न्यू ईयर की पार्टी अरेंज की गयी थी. अपर्णा गज़ब की ख़ूबसूरत लग रही थी. उसने गुलाबी रंग की पारदर्शी साड़ी पहनी हुई थी, लो कट ब्लाऊज के साथ. कैसे बेतकल्लुफ़ी से वह सिगरेट पी रही थी. उसने जिन भी पी थी शायद. मेरी सोच फिर डगमगा सी गयी. यह भी पढ़ेइन 9 आदतोंवाली लड़कियों से दूर भागते हैं लड़के (9 Habits Of Women That Turn Men Off) अजीब-सी ख़ुशी भी हो रही थी, एक उत्तेजना भी थी. यह तो बहुत बाद में जान पाया कि सिगरेट-शराब पीने से औरत बदचलन नहीं हो जाती. अगली सुबह अपर्णा फिर वैसी की वैसी. पहले जैसी, थोड़ी सोबर, थोड़ी चंचल. चाय पीते हुए मैंने उससे कहा, “कल तुम बहुत ख़ूबसूरत और ग्रेसफुल लग रही थीं. मैंने पहली बार किसी औरत को इतनी सिगरेट-शराब पीते देखा है. कुछ ख़ास था कल तुममें.” अपर्णा ने आंखें फैलाते हुए कहा, “मैं तुम्हें शराब पीते हुए ग्रेसफुल लगी? वेरी स्ट्रेंज, बट दिस इज़ ए नाइस कॉम्पलीमेंट. मैं तो उम्मीद कर रही थी कि आज सुनने को मिलेगा, “जानेमन कल बहुत मस्त लग रही थी या क्या चीज़ है यार यह औरत भी.” उसकी हंसी रोके न रुक रही थी. अब मैं उससे कैसे कहूं कि मैं भी उन्हीं मर्दों में से एक था. मस्त तो लग ही रही थी. चीज़ तो मैं भी कहता था उसे. अगले दिन उसने अपनी बेटी कोयल के जन्मदिन पर बुलाया था.

- अनिता सभरवाल

अधिक शॉर्ट स्टोरीज के लिए यहाँ क्लिक करें – SHORT STORiE

Share this article