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कहानी- एक और एक ग्यारह 4 (Story Series- Ek Aur Ek Gyarh 4)

 

जब वह बेंच पर बैठने लगा, तभी पूर्वा की नज़र उस पर पड़ी. वह घबराकर उठ खड़ी हुई और क्रोधित स्वर में बोली, “क्या करने आए हैं आप यहां? नीलम कमरे में है. मैं उसे बुला देती हूं.” “मैं तुमसे ही मिलने आया था. प्लीज़ दो मिनट के लिए बैठ जाओ. इतना तो मुझ पर विश्‍वास कर ही सकती हो.” वह नीलम का भाई था और नीलम के बहुत सारे एहसान थे उस पर. फिर नम्र निवेदन कर रहा था. अत: पूर्वा बैंच के एक कोने में सिकुड़ कर बैठ गई. कुछ देर रुककर नवीन ने कहा, “पूर्वा तुम मुझे अच्छी लगती हो. क्या हम मित्र नहीं हो सकते?” “मैं लड़कों से मैत्री नहीं करती.” पूर्वा ने दृढ़तापूर्वक छोटा-सा उत्तर दिया.

        ... मुंबई में थिएटर बहुत प्रचलन में हैं. मराठी, हिन्दी और अन्य भाषाओं का भी. नवीन उन्हें एक-दो बार और भी ले गया. धीरे-धीरे पूर्वा खुलने लगी. बहुत बातें तो नहीं, किन्तु मंचित नाटक पर चर्चा हो ही जाती. पूर्वा कम बोलती थी, पर जितना बोलती उससे उसकी तीव्र बुद्धि की झलक मिल जाती. कॉलेज की अध्यापिकाएं भी उससे प्रभावित थीं. न सिर्फ़ नम्बर ठीक लाती, वाद-विवाद होने पर उत्तम तर्क पेश करती. पर अकेली पड़ जाने से उसे आज भी भय लगता था. पुरानी बातें चलचित्र की भांति सामने घूमने लग जातीं. एक शाम नवीन ने उनके हॉस्टल पहुंच बहन के पास संदेश भिजवाया. नीलम उस समय कॉलेज में होनेवाले नाटक की रिहर्सल में गई हुई थी. पूर्वा को लगा कि नीलम का भाई बीच सप्ताह बहन से मिलने आया है, तो कोई आवश्यक काम ही होगा. उन दिनों सबके हाथ में मोबाइल तो होते नहीं थे. उसे घबराहट हो रही थी, किन्तु उसने अतिथि कक्ष में जाकर पूछना ही ठीक समझा. पूर्वा ने वहां पहुंचकर देखा नवीन मिठाई का डिब्बा हाथ में लिए बहुत उत्साहित खड़ा है. वार्षिक परीक्षा में सर्वाधिक अंक प्राप्त करने के लिए उसे स्वर्ण पदक मिलनेवाला था. पूर्वा ने मुस्कुरा कर मुबारकबाद दी, तो वह उसे देखता ही रह गया. मुस्कुराहट में थोड़ी-सी झिझक, थोड़ी लज्जा उसे और सुन्दर बना रही थी.   यह भी पढ़ें: आज़ाद भारत की आधी आबादी का सच(Women’s Place In Indian Society Today)     नीलम अपने भाई की पूर्वा की ओर बढ़ती रुचि को भांप रही थी और इस कशमकश में थी कि क्या करना चाहिए? पूर्वा के संग हुए हादसे से भाई को अवगत कराए अथवा घटनाक्रम को स्वाभाविक रूप से बढ़ने दे? वह यह भी महसूस कर रही थी कि पूर्वा अपनी तरफ़ से कोई उत्साह नहीं दिखा रही. उसका भाई जब भी कहीं संग चलने का कार्यक्रम बनाता, पूर्वा भरसक टालने का प्रयत्न करती. परन्तु पूर्वा की मासूमियत, उसकी वेदना एवं उसके साथ हुआ अन्याय नीलम को मथता. उसे ख़ुश देखना चाहती थी. दु:स्वप्न से बाहर निकालना चाहती थी. पूर्वा को दिया अपना वचन भूला नहीं था नीलम को. बात बढ़ जाने पर यदि भाई को उस हादसे का पता चला और वह पीछे हट गया, तो पूर्वा को बहुत बढ़ा झटका लगेगा. अत: उसने निर्णय लिया कि भाई को पूरी स्थिति से अवगत करा देना आवश्यक है. सो उसने वही किया और फ़ैसला भाई पर छोड़ दिया. नवीन ने पूरी बात चुपचाप सुनी और बिना कुछ कहे ही चला गया. नीलम उलझन में पड़ गई. उसने सही किया या ग़लत? दो ही दिन पश्‍चात नवीन फिर से आया और तब उसके चेहरे पर निश्‍चय की दृढ़ छाप थी. जब उसने बहन को अपना निर्णय सुनाया, तो नीलम बहुत प्रसन्न हुई. गर्व हो आया उसे अपने भाई पर.   यह भी पढ़ें: जानें प्यार की एबीसी (The ABC Of Love)   हॉस्टल की बाईं तरफ़ एक बड़ा-सा बग़ीचा था. नीलम ने बताया कि पूर्वा बग़ीचे की किसी बैंच पर ही बैठी होगी. यही उसका हर रोज़ का नियम था. बग़ीचे में पहुंचते ही नवीन ने पूर्वा को देख लिया. प्रवेश द्वार की तरफ़ पीठ किए वह कुछ इस तरह विचारों में खोई हुई थी कि उसने नवीन के आने की आहट तक नहीं सुनी. जब वह बेंच पर बैठने लगा, तभी पूर्वा की नज़र उस पर पड़ी. वह घबराकर उठ खड़ी हुई और क्रोधित स्वर में बोली, “क्या करने आए हैं आप यहां? नीलम कमरे में है. मैं उसे बुला देती हूं.” “मैं तुमसे ही मिलने आया था. प्लीज़ दो मिनट के लिए बैठ जाओ. इतना तो मुझ पर विश्‍वास कर ही सकती हो.” वह नीलम का भाई था और नीलम के बहुत सारे एहसान थे उस पर. फिर नम्र निवेदन कर रहा था. अत: पूर्वा बैंच के एक कोने में सिकुड़ कर बैठ गई. कुछ देर रुककर नवीन ने कहा, “पूर्वा तुम मुझे अच्छी लगती हो. क्या हम मित्र नहीं हो सकते?” “मैं लड़कों से मैत्री नहीं करती.” पूर्वा ने दृढ़तापूर्वक छोटा-सा उत्तर दिया. थोड़ी देर असहज-सी चुप्पी छाई रही. कुछ देर के इन्तज़ार के पश्‍चात पूर्वा ने फिर से कहा, “मैं नीलम को बुला लाती हूं.”

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Usha Wadhwa उषा वधवा       अधिक कहानियां/शॉर्ट स्टोरीज़ के लिए यहां क्लिक करें – SHORT STORIES

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