Close

कहानी- गुल्लक 3 (Story Series- Gullak 3)

‘ये मेरी कहानियां ही तो हैं, जिनमें मैं अपने जीवन के यथार्थ सत्य को पिरो देती हूं और मुझे लगता है कि जैसे मैंने अपना दर्द बांट लिया है. इनके सहारे मैं अपने सभी ग़म को भूल जाती हूं. बस, अब तो इंतज़ार है अपनी कहानियों को अपनी प्रिय पत्रिका में छपे हुए देखने का...’ ‘अपने चेहरे पर सदा के लिए मुस्कुराहट का मुखौटा पहन लिया, क्योंकि दुख जीवनयात्रा को कठिन बना देता है और मुझे जीना है अपनी महक के लिए... उसकी ख़ुशी के लिए, उसको सदा मुस्कुराहटें देने के लिए...” ‘आख़िर मैं भी एक इंसान हूं, मेरे भी कुछ अरमान हैं, आरज़ू है... अब मैं थक गई. और बर्दाश्त नहीं होता मुझसे...’ कितनी और भी पर्चियां अभी बाकी थीं, किंतु इन अश्रुभरी आंखों से पढ़ना संभव नहीं हो पा रहा था या फिर अब और पढ़ने की हिम्मत नहीं बची थी मुझमें. जैसे-जैसे गुल्लक की पर्चियां खुल रही थीं, वैसे-वैसे उनका दर्द गुल्लक से निकलकर बहने को आतुर था. उनका जीवन एक चलचित्र की भांति आंखों के समक्ष चलने लगा... ‘सवेरे से घर का सारा काम पूरा करके रात को बिल्कुल थककर चूर हो जाती हूं, पर इस थकावट का एहसास सिवाय मेरे और किसी को भी नहीं...’ ‘आज निलेश ने तीसरी बार गर्भ में कन्या होने के कारण मेरा गर्भपात करवा दिया. बेटियों के प्रति ऐसी छोटी सोचवाले इंसान के साथ दम घुटता है मेरा. क्यों नहीं बचा पाई मैं अपनी बेटियों को...’ ‘ईश्‍वर का शुक्र है कि इस बार मेरा गर्भ एक मास अधिक होने के कारण बच गया, मेरी बेटी मेरी गोद में अपनी आंखें खोलेगी. मुझे मां बनाकर मुझे संपूर्ण स्त्री बनाएगी.’ ‘निलेश ने मुझे कन्या को जन्म देने का दोषी करार कर मेरी आत्मा को छलनी-छलनी कर दिया.’ ‘अरसा हो गया निलेश को मुझसे प्रेम के दो बोल बोले हुए. अगर पति ही ऐसा हो, तो एक स्त्री खोखली हो जाती है.’ ‘आज फिर मेरी कहानी मेरी प्रिय पत्रिका में अस्वीकृत हो गई. कोई बात नहीं आज नहीं तो फिर कभी सही.’ ‘क्यों अपने अहंकार में डूबकर मेरे मायकेवालों को तुच्छ समझ हर बार निलेश उनका अपमान करते हैं. उनका अपमान मुझसे और नहीं सहा जाता. एक बेटी होने के नाते क्यों नहीं रोक पाती मैं यह सब.’ ‘ये मेरी कहानियां ही तो हैं, जिनमें मैं अपने जीवन के यथार्थ सत्य को पिरो देती हूं और मुझे लगता है कि जैसे मैंने अपना दर्द बांट लिया है. इनके सहारे मैं अपने सभी ग़म को भूल जाती हूं. बस, अब तो इंतज़ार है अपनी कहानियों को अपनी प्रिय पत्रिका में छपे हुए देखने का...’ ‘अपने चेहरे पर सदा के लिए मुस्कुराहट का मुखौटा पहन लिया, क्योंकि दुख जीवनयात्रा को कठिन बना देता है और मुझे जीना है अपनी महक के लिए... उसकी ख़ुशी के लिए, उसको सदा मुस्कुराहटें देने के लिए...” ‘आख़िर मैं भी एक इंसान हूं, मेरे भी कुछ अरमान हैं, आरज़ू है... अब मैं थक गई. और बर्दाश्त नहीं होता मुझसे...’ कितनी और भी पर्चियां अभी बाकी थीं, किंतु इन अश्रुभरी आंखों से पढ़ना संभव नहीं हो पा रहा था या फिर अब और पढ़ने की हिम्मत नहीं बची थी मुझमें. आदर्श रूपवाले अपने पापा के दोहरे व्यक्तित्व को देख भीतर तक टूट गई थी मैं. मेरे पापा, उफ़़्फ्! मां की पर्चियों का सत्य मुझे कचोट रहा था. लड़कियों से इतनी घृणा थी पापा को... यह सत्य तो मुझसे सहन नहीं हो रहा था. मुझे मुस्कुराहटें और ख़ुशी देने के लिए वे ख़ुद आजीवन दर्द से लड़ती रहीं. फिर भी सदैव अपने घर को स्वर्ग का दर्जा दिया. सच ही कहा था मां ने, उनकी इस गुल्लक ने एक सच्चा साथी बन उनके अस्तित्व और मान-सम्मान को पूर्ण रूप से सुरक्षित रखा था और उनके जीवन की रिक्तता को भरने में मुख्य भूमिका निभाई थी. यह भी पढ़े: कोरोनावायरस से बचने के लिए करें ये घरेलू उपाय (10 Home Remedies To Avoid Coronavirus) अभी मैं गुल्लक और उसकी अमूल्य भूमिका में खोई हुई थी कि फोन की घंटी ने मेरी तंद्रा तोड़ी, “हेलो वृंदाजी! आपके लिए ख़ुशख़बरी है. आपकी कहानी ‘गुल्लक’ हमारी टीम को बेहद पसंद आई है और आगामी अंक में इसको प्रकाशित किया जाएगा.” फोन मां की प्रिय पत्रिकावालों का था. आख़िरकार मां की तमन्ना पूरी हो गई थी. यह सुनकर आंसू सब्र का बांध तोड़कर अविरल झरने की तरह बहने लगे. मुझे समझ नहीं आ रहा था कि इसे ख़ुशख़बरी मानूं या फिर... पर हां, यह सुनकर मां को अवश्य ही मुक्ति मिल गई होगी.      कीर्ति जैन

अधिक शॉर्ट स्टोरीज के लिए यहाँ क्लिक करें – SHORT STORiES

Share this article

https://www.perkemi.org/ Slot Gacor Slot Gacor Slot Gacor Slot Gacor Situs Slot Resmi https://htp.ac.id/ Slot Gacor Slot Gacor Slot Gacor Slot Gacor Slot Gacor Slot Gacor Slot Gacor https://pertanian.hsu.go.id/vendor/ https://onlineradio.jatengprov.go.id/media/ slot 777 Gacor https://www.opdagverden.dk/ https://perpustakaan.unhasa.ac.id/info/ https://perpustakaan.unhasa.ac.id/vendor/ https://www.unhasa.ac.id/demoslt/ https://mariposa.tw/ https://archvizone.com/