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कहानी- जब जागो तभी सवेरा 1 (Story Series- Jab Jago Tabhi Savera 1)

 

मुझे वर्षों जानकर भी क्या कोई देख पाएगा मेरे जीवन में तुम्हारा अस्तित्व, तुम्हारी उपस्थिति? जबकि मैं जीवन का हर पल तुम्हारे संग, तुम्हारी यादों के संग ही बिताती हूं. ज्यों ही मुख्यद्वार बंद करके मुड़ती हूं तुम मेरे सामने साकार आन खड़े होते हो और मेरे हृदय का हर छुआ-अनछुआ कोना तुम्हारी यादों से ठसाठस भर जाता है.

        प्रायः ही मेरे मित्र अथवा परिचित मुझसे एक सवाल करते हैं, “पूरा दिन घर में अकेली बैठी बोर नहीं हो जाती क्या?” शायद वो ठीक ही कहते हैं. यहां ईरान में जहां आसपास कोई अपना नहीं, पड़ोसी सिर्फ़ फ़ारसी ही समझते-बोलते हैं और भारतीय परिवार इतनी दूर हैं कि उनसे केवल छुट्टी के दिन ही मिलना हो पाता है. सुबह पति के दफ़्तर जाने पर जो मुख्यद्वार बंद करती हूं, तो फिर वह शाम को इनके आने पर ही खुलता है. इतना बड़ा घर और नितांत अकेली मैं. तो फिर मुझे अकेलापन का एहसास क्यों नहीं होता? पिछले शुक्रवार, यहां के साप्ताहिक अवकाश के दिन जब कुछ भारतीय मित्र हमारे यहां भोजन पर आमंत्रित थे, तो मीना ने भी वही प्रश्न दोहराया, “पूरा दिन घर में अकेली बैठी बोर नहीं हो जाती क्या?” और सदैव की भांति मेरी पहली प्रतिक्रिया तो यही पूछने की हुई, “अकेली? अकेली क्यों?” मुझे यह ध्यान ही नहीं रहता कि मैं सचमुच हर रोज़ अकेली ही तो रहती हूं, पूरा दिन, दिन पर दिन. मेरे बताने पर वह समझेगी क्या कि जिसके पास यादों का इतना बड़ा भंडार हो वह अकेले नहीं हुआ करते कभी? यादें भी इतनी ढेर सारी, इतनी मधुर यादों के अनगिनत जगमगाते दीप.   यह भी पढ़ें: आपकी पत्नी क्या चाहती है आपसे? जानें उसके दिल में छिपी इन बातों को (8 Things Your Wife Desperately Wants From You, But Won't Say Out Loud)   पर भीतर ड्रॉइंगरूम से उठते पुरुषों के ठहाकों, बच्चों की धमाचौकड़ी ने मुझे मीना के प्रश्न का उत्तर देने से बचा लिया. मुझे ‘दीदी’ कहकर बुलाने लगी है मीना. बड़ा अपनापन हो आया है उससे. होता यूं है कि अपने देश में अपने सगे-संबंधियों से घिरे हम अपने मित्रों के उतने क़रीब नहीं आते, जितना पराए देश में. और यही नज़दीकियां विदेश में हमें असुरक्षा के एहसास से भी बचाए रखती हैं. किसी को घर जाने की जल्दी नहीं. आराम से बैठे बतिया रहे हैं. कभी चुटकुले और कभी गाने हो रहे हैं. पुराने क़िस्से दोहराते समय, ‘शादी के बाद कौन कितना बदल गया?’ विषय पर बात चली, तो अपनी खोपड़ी से निकल आ रहे चांद पर पहले कितनी घनी खेती थी, यह दिखाने के लिए पति ने हमारे विवाह के समय का फोटो सबके बीच रख दिया. मीना बोली, “हाय दीदी आप तो अपने समय में बहुत सुन्दर थीं. जाने कितनों को बेहोश किया होगा?” उस समय के हंसी के माहौल में इन्होंने भी जोड़ दिया, “बिल्कुल जी. उन दिनों इन के पीछे सदा एक एंबुलेंस चला करती थी, बेहोश हो गए युवकों को उठाकर हस्पताल ले जाने के लिए. मेरे साथ भी यही हुआ था. फ़र्क़ यह है कि होश में आते ही मैं इनके घर जा पहुंचा था इनसे विवाह करने का प्रस्ताव लेकर.” तो अब हमारा सौन्दर्य, हमारा यौवन अतीत की बात हो गया? पर क्या वास्तव में आकर्षित करने की कोई बंधी आयु सीमा होती है? पन्द्रह से पच्चीस वर्ष तक बस. इसी बीच आप प्यार कर सकते हैं. इसके आगे-पीछे नहीं. कथा-कहानियों में, फिल्मों में तो ऐसा ही दिखाते हैं. वह भी सिर्फ़ उन्हीं के लिए होता है, जो सौंदर्य की कसौटी पर भी खरे उतरते हों. क्या बस ख़ूबसूरत लोग ही प्यार करने के अधिकारी होते हैं? सच पूछो तो यह आकर्षण मात्र शारीरिक होता है. उच्छृंखल और स्वार्थी होता है. वह हर देने के एवज़ में कुछ मांगता है. उसमें न संयम होता है न त्याग. उसे जो चाहिए तत्काल चाहिए. इंतज़ार उसे बर्दाश्त नहीं, पर फिर वह समय भी आता है जब जीवन झील के जल की मानिंद ठहर जाता है. वह उफन-उफन कर अपने किनारों को नहीं काटता. बस गहरा ही होता चला जाता है. ऊपर से शांत पर भीतर अनंत भेद छुपाए. मुझे वर्षों जानकर भी क्या कोई देख पाएगा मेरे जीवन में तुम्हारा अस्तित्व, तुम्हारी उपस्थिति? जबकि मैं जीवन का हर पल तुम्हारे संग, तुम्हारी यादों के संग ही बिताती हूं. ज्यों ही मुख्यद्वार बंद करके मुड़ती हूं तुम मेरे सामने साकार आन खड़े होते हो और मेरे हृदय का हर छुआ-अनछुआ कोना तुम्हारी यादों से ठसाठस भर जाता है. कभी वह किशोरावस्था का अल्हड़ चेहरा होता है, कभी जीवन की ढलती कगार पर खड़ा, तो कभी बालों में सफ़ेदी लिए आज का गंभीर और गरिमापूर्ण चेहरा. सच पूछो तो प्यार न यौवन का मोहताज होता है न सौन्दर्य का...

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Usha Wadhwa उषा वधवा   यह भी पढ़ें: सोमवार को शिव के 108 नाम जपें- पूरी होगी हर मनोकामना (108 Names Of Lord Shiva)         अधिक कहानियां/शॉर्ट स्टोरीज़ के लिए यहां क्लिक करें – SHORT STORIES

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