‘राइज़िंग सुपरस्टार’ अपने लिए शायद उसे यही तमगा मिला उस समय. हा-हा ‘राइज़िंग सुपरस्टार.’ उस फिल्म के कैरेक्टर की तरह ही अब उसकी ज़िंदगी भी कुछ और होगी. विचारों की लहरें समंदर में उठ रहे ज्वार-भाटा को मात दे रही थीं. लाइक्स एक छोटी-सी घटना किस तरह किसी की ज़िंदगी बदल सकती है. वह मृदुल उ़र्फ बांके बिहारी उ़र्फ किसी छोटे से शहर से निकला रघुवीर सोच रहा था यह इंटरनेट भी कमाल की चीज़ है, किसी को कहां से कहां पहुंचा देती है.
वेब पेज खोलते ही ख़ुशी से उसकी आंख छलछला उठी. उसने एक बार फिर से देखा जैसे उसे अपने आप पर ही भरोसा न हो रहा हो, दस हज़ार तीन लाइक्स. उसे समझ में नहीं आया कि वह अपनी ख़ुशी को किस तरह अभिव्यक्त करे. न जाने कब से वह इस दिन का इंतज़ार कर रहा था. वह उठा और कमरे में ही नाचने लगा.
सबसे पहले किसे बताए, किसके साथ शेयर करे अपनी ख़ुशी. सचमुच उसे भीतर से एहसास हुआ आज वह कुछ बन गया है. इंटरनेट पर दस हज़ार लाइक्स का अर्थ था कम से कम उसके पेज को एक लाख से अधिक लोग तो देख ही चुके हैं और न जाने कितने फॉलोअर्स...
पूरे पांच साल से लगा था वह अपनी मेहनत से ख़ुद की पहचान बनाने में. अब लोग उसे सम्मान के साथ देखेंगे. कोई उसका मज़ाक नहीं उड़ाएगा. उसमें हुनर है, यह उसने साबित कर दिया था. उसे भरोसा था अब उसका ख़ूब नाम होगा. उसके पास अपना मनचाहा काम होगा. हो न हो, उसे बड़े-बड़े ऑफर्स मिलेंगे और देखते ही देखते एक दिन वह बड़ा आदमी बन जाएगा. वह ज़िंदगी में उस मुकाम को छूएगा, जिसे आज तक उसके आस-पास कोई न छू सका.
एक ज़बर्दस्त शोर, एक बहुत बड़ा तूफ़ान उठ रहा हो जैसे उसके कमरे में. उसने हेड फोन का स्पीकर थोड़ा और तेज़ किया. नीचे ऑटोमेटेड वॉर्निंग आ गई कि इससे ज़्यादा वॉल्यूम बढ़ाना हानिकारक हो सकता है. सुनने की शक्ति जा सकती है. इस समय उसे किसी चेतावनी की सुध कहां थी. उसने ख़ुद से कहा, वॉर्निंग, हुंह! ज़िंदगी में जिसे देखो, वह बचपन से बस वॉर्निंग ही तो देता है.
‘पढ़ो, नहीं तो फेल हो जाओगे.‘ ‘टॉप करो, नहीं तो कहीं एडमिशन नहीं मिलेगा’, ‘साइंस पढ़ो, नहीं तो कोई फ्यूचर नहीं है’, ‘नौकरी चाहिए तो इंजीनियरिंग कर लो, वरना पूरी ज़िंदगी ऐसे ही भटकते रहोगे.’ ये वॉर्निंग्स ही तो थीं कि वह अपनी ज़िंदगी छोड़कर उधार की ज़िंदगी जी रहा था. पिछले बीस वर्षों से कभी यह कोर्स, तो कभी वह ट्रेनिंग, कभी इस प्रमोशन के पीछे भागो, तो कभी उस टारगेट को पूरा करो. कभी बीस हज़ार का रिवॉर्ड, तो कभी विदेश यात्रा. कभी माता-पिता की चिंता, तो कभी परिवार की. कभी बच्चों के एडमिशन का मामला, तो कभी अपनी दवा-दारू का. ज़िंदगी न हुई, कोल्हू का बैल हो गई, सुबह उठकर जुते, तो शाम तक जैसे सिर उठाने की फुर्सत ही नहीं.
‘राइज़िंग सुपरस्टार’ अपने लिए शायद उसे यही तमगा मिला उस समय.
हा-हा ‘राइज़िंग सुपरस्टार.’ उस फिल्म के कैरेक्टर की तरह ही अब उसकी ज़िंदगी भी कुछ और होगी.
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विचारों की लहरें समंदर में उठ रहे ज्वार-भाटा को मात दे रही थीं. लाइक्स एक छोटी-सी घटना किस तरह किसी की ज़िंदगी बदल सकती है. वह मृदुल उ़र्फ बांके बिहारी उ़र्फ किसी छोटे से शहर से निकला रघुवीर सोच रहा था यह इंटरनेट भी कमाल की चीज़ है, किसी को कहां से कहां पहुंचा देती है. उसने फिर ध्यान से देखा तो उसे अपने अपलोड किए हुए वीडियो सॉन्ग पर बहुत से नामी सिंगर्स के कमेंट भी मिले थे. आह! अगर उसने कॉलेज के समय से ही सिंगिंग को अपना करियर बनाया होता, तो निश्चय ही आज वह बड़ा सिंगर होता. कोई ऐसा न था, जो उसके गाने का कायल न हो. क्लास में सर लोग तो फ्री पीरियड में उसका गाना सुनते थे और पूरी क्लास ताली बजाती थी.
तभी उसे लगा साउंड कुछ ज़्यादा ही लाउड है, कमरे में शोर भी बहुत है. उसने इधर-उधर देखा, कहीं कुछ नहीं था.
आस-पास घोर सन्नाटा, वह अकेला ही तो था अपने पूरे घर में. अब यह एक छोटा-सा कमरा ही तो पूरा घर है उसके लिए. ज़िंदगी भी अजीब होती है. कभी भी किसी को सब कुछ नहीं देती. तभी तो कहते हैं, कभी किसी को मुकम्मल जहां नहीं मिलता, कहीं ज़मीं, तो कहीं आसमां नहीं मिलता. वह अपने विचारों की शृंखला को तर्क के महीन धागे में पिरोता जा रहा था. ये बड़े-बड़े अस्पताल जिसमें एक मरीज़ को देखनेभर की फीस ही हज़ार रुपए से कम नहीं है, फिर भी पूरे के पूरे भरे रहते हैं हमेशा. ये काले कोटवाले नामी वकील, जो एक-एक सुनवाई की पांच से दस लाख फीस लेते हैं, इनके पास समय नहीं होता.
ये कौन लोग हैं जिनके पास इतना पैसा है? और जिनके पास इतना पैसा है, जिनके पास इतनी अमीरी है, उन्हें तो कोई तकलीफ़ ही नहीं होनी चाहिए. अगर काले और स़फेद कोटवाले बड़े और अमीर लोगों के घर में आते-जाते हैं, तो भला यह भी कोई अमीरी हुई. अगर पैसे की बात छोड़ दें, तो शांति और सुकून के मामलों में इनसे बड़ा ग़रीब कोई नहीं है. मगर नहीं, अभी यह सब सोचने की ज़रूरत क्या है. अगर आस-पास उसे शोर अधिक महसूस हो रहा है, तो उसका कारण उसके अपने स्पीकर का वॉल्यूम है, क्योंकि खाली कमरे में उसके अलावा और है ही कौन.
उसने स्पीकर का साउंड कम किया. एक बार फिर अपने पेज पर नज़र मारने लगा. ढेर सारी इमोजी बनी हुई थी उसकी पोस्ट पर. न जाने कितने नाम दिखे उसे अपने पेज पर. उसे लगा उसको जाननेवाले सभी दोस्त, सभी दोस्तों के दोस्त और फिर उन दोस्तों के दोस्त... वह हंसा. न जाने कितनी लंबी सीरीज़ बन जाए चिंतन की और इस तरह उनके दोस्त के दोस्त भी उसे जानते हैं. पर इस जाननेवालों की सीरीज़ का कोई अंत है क्या? ऐसे ही सिलसिला चलता रहा, तो एक दिन पूरे इंडिया के लोग, फिर एशिया के और फिर पूरी दुनिया के लोग उसे जान जाएंगे.
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हा-हा कितनी बड़ी भीड़ है इस एक छोटे-से मोबाइल की स्क्रीन पर, जैसे पूरा समंदर ही उतर आया हो इंटरनेट पर. परफॉर्म करने के लिए न स्टेडियम चाहिए, न कोई स्टेज, न ही कोई हॉल, जिसमें देखनेवालों की भीड़ हो. कोई छोटा-मोटा कमरा भी तो नहीं चाहिए आज परफॉर्म करने के लिए. चाहे पार्क में हों, सड़क पर हों या समंदर के किनारे, बस कुछ भी करो और नेट पर लोड कर दो. और इतना सब कुछ करने के लिए बस एक मोबाइल बहुत है. आज हमारे सपनों की दुनिया को सच करने के लिए तीन-चार हज़ार का एक खिलौना चाहिए बस. अपने कमरे में घोर अकेला होते हुए भी उसे अपनी स्क्रीन पर आए लाइक्स देखकर लगा वह बहुत बड़ी भीड़ से घिरा हुआ है. अजीब-सी बात है, आस-पास स़िर्फ और स़िर्फ सन्नाटा पसरा है व दिल में एहसास भीड़ से घिरे होने का पैदा हो रहा है. यही तो आज की ज़िंदगी है, एक शोर है जो कहता है भीड़ है कयामत की और हम अकले हैं. शायद यही आज के जीवन की सच्चाई बन गई है.
यह पॉप्युलैरिटी की दीवानगी, दुनिया में छा जाने का ख़्वाब भी एक अजीब-सी चीज़ है. उसके छोटे-से मोबाइल स्क्रीन पर दो-ढाई घंटे से बस एक पेज खुला था लाइक्स का. वह क़रीब सौ बार रिपीट कर-करके अपनी ही परफॉर्मेंस देख चुका था. उसे न भूख लग रही थी, न प्यास. तभी अचानक उसे अपना गला सूखता हुआ-सा प्रतीत हुआ. उसने फ्रिज से ठंडी बॉटल निकाली और गट-गटकर आधी खाली कर गया.
सच पूछिए तो आज के आदमी की सबसे बड़ी भूख नाम और शोहरत की है. अपनी पहचान बनाने की है. रोटी, कपड़ा और मकान की भूख तो छोटी भूख है, यह तो आज हर आम आदमी किसी न किसी तरह पूरी कर ही रहा है.
मुरली मनोहर श्रीवास्तव
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