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कहानी- नयन बिनु वाणी 2 (Story Series- Nayan Binu Vaani 2)

मुझे दरवाज़े पर देख वह जड़ हो गई. निश्‍चय ही मेरा आना अपेक्षित नहीं था उसके लिए, पर मेरे लिए तो उसका वहां होना अपेक्षित था, फिर भी मैं कुछ पल मूर्तिवत खड़ा रहा. परंतु शीघ्र ही संभाल लिया स्वयं को. “कैसे हो?” उसने कहा और जैसे उसे कुछ याद आ गया हो, वह जल्दी से मुड़ गई. आलमारी खोल एक बड़ा-सा बंद लिफ़ाफ़ा निकाल लाई और मेरी ओर बढ़ाते हए बोली, “जब बनारस जाओ, तो इसे यूं ही बंद गंगा में बहा देना. अब इन्हें संभालकर रखना मेरे वश में नहीं.” उसकी आंखें भीगी हुई थीं या मेरा भ्रम था वह? मैंने धीरे से पूछा, “क्या है यह?” “कुछ टूटे हुए सपने, कुछ अधूरे अरमान... तुम जैसा अनाड़ी नहीं समझ पाएगा...” कैसे बात शुरू करूंगा? क्या कहूंगा? यही तय नहीं कर पा रहा था. इस बात पर भी असमंजस में था कि पहले मां से बात करना ठीक रहेगा या सिद्धि से उसकी रज़ामंदी लेना. दरअसल, घर में कभी मेरे विवाह की चर्चा हुई होती, तो शायद मैने मां से कह भी दिया होता, परंतु जब तक नौकरी न लग जाती, तो विवाह की बात उठती ही कैसे? और बग़ैर किसी भूमिका के अपने विवाह की बात उठाना भी कठिन था. बहुत सोचकर मैंने तय किया कि पहले सिद्धि से ही बात कर उसकी रज़ामंदी ले लेनी चाहिए. सुबह समय से उठकर तैयार भी हो गया. सोच रहा था कि यदि मां पूछेंगी, तो क्या बताऊंगा कि कहां जा रहा हूं? पर मुझे तैयार देख मां ने कहा, “अच्छा है समय से नहा-धो लिए, तुम्हारे रघु चाचा आ रहे हैं.” मेरे पूछने पर कि इतनी सुबह-सुबह ही कैसे? मां ने बताया, “सिद्धि का विवाह है न! तो कार्ड लेकर आ रहे हैं. पापा से मशविरा भी करना है कुछ. बस आने ही वाले हैं, तब तक मैं जल्दी से कुछ बना लेती हूं.” कहकर वह रसोई की ओर चल दीं. न ही वह मेरे चेहरे के भाव पढ़ने तक रुकीं और न ही मुझे कुछ कहने की मोहलत मिली. रघु चाचा और चाची दोनों आए थे. अच्छी तरह प्रेमपूर्वक मिला था मैं उनसे. हंसकर बात की थी. सिद्धि के विवाह की मुबारक़बाद भी दी. अपने ज़िम्मे काम सौंपने का अनुरोध भी किया. सही कहा है शेक्सपीयर ने कि यह दुनिया भी तो एक रंगमंच है, जिसमें हम अपना-अपना क़िरदार निभाने आते हैं, पर अफ़सोस, असल जीवन में न तो हमारे हाथ में कोई लिखित स्क्रिप्ट होती है और न ही अंत की पूर्व जानकारी. समय-समय पर झटके भी मिलते हैं और हमारी योजनाओं के एकदम विरुद्ध फैसले भी हो जाते हैं, जिन्हें हमें स्वीकार करना होता है. रंगमंच के क़िरदारों से बहुत कठोर है यह जीवन. रघु चाचा की दो बेटियां थीं, अत: बाहर के बहुत से काम उन्होंने मेरे ज़िम्मे कर दिए. यथासंभव सब काम पूरे किए मैंने, पर सिद्धि से दूरी बनाए रखी. रघु चाचा घर आने की बात करते भी, तो मैं कोई न कोई बहाना बना उनके कार्यस्थल पर ही मिल आता. इस बीच मैंने ऐलान कर दिया कि विवाह तक नहीं रुक पाऊंगा और ज़रूरी काम से मुझे एक बार फिर बनारस जाना ही पड़ेगा, पर सगाई की रस्म विवाह से चार दिन पूर्व होनी थी और उनके घर पर ही रखी गई थी. खाने-पीने का इंतज़ाम मेरे ज़िम्मे था. रघु चाचा वे अनुरोध किया था कि मैं कार्यक्रम शुरू होने से पहले ही उनके घर पहुंच जाऊं. यह भी पढ़े: किन बातों से डरते हैं पुरुष ? (What Scares Men) बहुत भारी मन से गया था. मैं वहां पूरी उम्र जिसके साथ जीवन बिताने के सपने देखता रहा था, आज वह किसी और की उंगली में अंगूठी पहनाकर अपना संबंध पक्का कर देगी और मैं खड़ा देखता रहूंगा. मैं उसका अमंगल नहीं सोच सकता था और उसे किसी और का देखने की शक्ति भी नहीं थी मुझमें. स्वयं को काम में व्यस्त रखने की कोशिश करता रहा. वधू के कमरे से छोटी मेज़ उठा लाने का आदेश हुआ मुझे. दरवाज़ा भिड़ा हुआ था. मैं दरवाज़ा खटखटाकर रुका. भीतर कोई है कि नहीं यह भी नहीं, जानता था. तभी अंदर से आवाज़ आई, “अंदर आ जाओ सुषमा.” मुझे दरवाज़े पर देख वह जड़ हो गई. निश्‍चय ही मेरा आना अपेक्षित नहीं था उसके लिए, पर मेरे लिए तो उसका वहां होना अपेक्षित था, फिर भी मैं कुछ पल मूर्तिवत खड़ा रहा. परंतु शीघ्र ही संभाल लिया स्वयं को. “कैसे हो?” उसने कहा और जैसे उसे कुछ याद आ गया हो, वह जल्दी से मुड़ गई. आलमारी खोल एक बड़ा-सा बंद लिफ़ाफ़ा निकाल लाई और मेरी ओर बढ़ाते हए बोली, “जब बनारस जाओ, तो इसे यूं ही बंद गंगा में बहा देना. अब इन्हें संभालकर रखना मेरे वश में नहीं.” उसकी आंखें भीगी हुई थीं या मेरा भ्रम था वह? मैंने धीरे से पूछा, “क्या है यह?” “कुछ टूटे हुए सपने, कुछ अधूरे अरमान... तुम जैसा अनाड़ी नहीं समझ पाएगा...” यह भी पढ़ेदोराहे (क्रॉसरोड्स) पर खड़ी ज़िंदगी को कैसे आगे बढ़ाएं? (Are You At A Crossroads In Your Life? The Secret To Dealing With Crossroads In Life) मैंने असमंजस से, पहले हाथ में आए उस पैकेट की ओर फिर सिद्धि की ओर देखा, परंतु उसने मुख फेर रखा था. बस, दो क़दम की दूरी थी हमारे बीच, पर उसे पाटना असंभव-सा था. usha vadhava       उषा वधवा

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