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कहानी- प्रेम ना बाड़ी उपजे 5 (Story Series- Prem Na Badi Upje 5)

रही मेरी बात. संत कबीर कह गए हैं- ‘प्रेम न बाड़ी उपजे, प्रेम न हाट बिकाए. प्रेम की खेती नहीं होती कि इच्छा हो वहां रोप दो. वह बाज़ार में नहीं बिकता कि जाकर ख़रीद लाओ. स्वयं ही मन में उपजता है वह अपनी ही मर्ज़ी से और तन-मन सुवासित कर देता है. महत्वपूर्ण यह भी है कि जिस प्रकार प्रेम का रोपना हमारे हाथ नहीं, ठीक उसी प्रकार उसे रोकना भी हमारे वश में नहीं.   ... न वह जानती थी और न ही कभी जान पाएगी कि मैं भी आयुष की बातें सुन उतनी देर उसके संग जी लेती थी. बहुत महत्वाकांक्षी था आयुष. उसके लिए चिकित्सक बनना धन अर्जन का साधन नहीं, लोगों को दुख-दर्द से निजात दिलाना था. अत: बहुत समर्पित था वह अपने काम में. वह जानता था कि अपने इन इरादों से वह घर-परिवार में समय कम दे पाएगा, इसलिए वह ऐसी पत्नी चाहता था, जो नौकरी करने की महत्वाकांक्षी न हो. यह बात उसने विवाह से पहले ही राधिका को स्पष्ट कर दी थी. और राधिका से पूछ लिया था कि उसे गृहिणी बन कर रहने में कोई आपत्ति तो नहीं? राधिका स्वयं भी नौकरी करने को बहुत उत्सुक नहीं थी, अत: विवाह की तारीख़ पक्की होने पर जब उसकी बीएड भी बीच में छूट गई, तो उसे बहुत अफ़सोस नहीं हुआ था. लगभग दो वर्ष ही तो बिता पाए थे वह दोनों एक संग. इसमें से भी आयुष का अधिक समय तो अस्पताल में ही बीतता, पर अवसर पाते ही वह उस कमी को पूरा कर लेता. मां को भी वह दोनों पूरा सम्मान देते. बहुत ख़ुश था परिवार. बहुत ख़ुश थीं बुआ. पोता हो जाने के बाद तो और भी. और फिर यह गाज गिरी थी. कोविड-19 से जानेवालों की गिनती समाचार पत्रों के लिए तो आंकड़े मात्र बन कर रहेंगे, पर जिनके सदस्य चले गए हैं, उन सब की अलग-अलग कहानी है. राधिका का आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर होना आवश्यक हो गया था, पर कोई डिग्री तो थी नहीं उसके पास. मैंने उसे आश्वासन दिया कि वह अपनी बीएड पूरी कर ले अथवा कुछ और करना चाहती है, तो वह करे. इतना समय बच्चे की देखरेख की पूरी ज़िम्मेदारी मेरी. मेरा काम अभी तो ऑनलाइन ही चल रहा था. और वह नौकरी मुझे छोड़नी भी थी, इसलिए मैं पूरा समय बच्चे को दे सकती थी. समय आने पर मैं दूसरी नौकरी ढूंढ़ लूंगी. यह भी पढ़ें: लॉकडाउन में युवक ने गर्लफ्रेंड से मिलने का पूछा तरीक़ा, तो मुंबई पुलिस का जवाब हुआ वायरल, पुलिस की हाज़िरजवाबी ने जीता सबका दिल! (Mumbai Police's Witty Reply To Man Wanting To Meet Girlfriend During Lockdown) रही मेरी बात. संत कबीर कह गए हैं- ‘प्रेम न बाड़ी उपजे, प्रेम न हाट बिकाए. प्रेम की खेती नहीं होती कि इच्छा हो वहां रोप दो. वह बाज़ार में नहीं बिकता कि जाकर ख़रीद लाओ. स्वयं ही मन में उपजता है वह अपनी ही मर्ज़ी से और तन-मन सुवासित कर देता है. महत्वपूर्ण यह भी है कि जिस प्रकार प्रेम का रोपना हमारे हाथ नहीं, ठीक उसी प्रकार उसे रोकना भी हमारे वश में नहीं. आयुष के प्रति अपने प्रेम को रोकना मेरे वश में नहीं है, परन्तु मेरा सामाजिक दायित्व है कि मेरे कारण छवि के हृदय को कोई ठेस न पहुंचे. Usha Wadhwa उषा वधवा   अधिक शॉर्ट स्टोरीज के लिए यहाँ क्लिक करें – SHORT STORIES

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