कभी आपने सोचा है कि उस दौर के सबसे सेंसिटिव और रोमांटिक गीतकार गुलज़ार साहब और सबसे रोमांटिक एक्टर राजेश खन्ना ने कभी साथ में काम क्यों नहीं किया? इसके पीछे भी बड़ा ही दिलचस्प किस्सा है.
बॉलीवुड के पहले सुपरस्टार थे
राजेश खन्ना, बॉलीवुड का पहला सुपरस्टार, उन्हें जितनी पॉपुलैरिटी, जितना प्यार मिला, कहते हैं आज तक किसी स्टार को नहीं मिला. राजेश खन्ना, जिसके पीछे लड़कियां दीवानी थीं, जिसकी हर फिल्म सफलता की गारंटी हुआ करती थी, राजेश खन्ना जब गाते थे, तो लोग उनके साथ गाने लगते थे, वो जब रोमांस करते, तो उनके साथ ऑडिएंस भी रोमांस में डूब जाती, वो जब पर्दे पर रोते तो पूरा हॉल उनके साथ रोता.
लड़कियां खून से खत लिखा करती थीं
सुपरस्टार के सिंहासन पर राजेश खन्ना भले ही कम समय के लिए रहे, लेकिन आज भी कहा जाता है कि राजेश खन्ना जितनी लोकप्रियता किसी और स्टार को न मिली न मिलेगी. खासकर लड़कियां उनकी दीवानी थीं. रोजाना उनके घर जब फैन्स के लेटर आते, तो उसमें लड़कियों के खून से लिखे खत होते. उनकी फोटो से कई लड़कियों ने शादी कर ली, तो कइयों ने अपने हाथ पर राजेश नाम का टैटू बनवा लिया. कहते हैं लड़कियां राजेश खन्ना का फोटो तकिये के नीचे रखकर सोती थीं. किसी स्टुडियो या किसी प्रोड्यूसर के ऑफिस के बाहर राजेश खन्ना की सफेद रंग की कार रुकती थी तो लिपिस्टिक के निशान से सफेद रंग की कार गुलाबी हो जाया करती थी.
धीरे धीरे उन्हें सक्सेस से दूर कर दिया उनके अहंकार ने
लेकिन यही सफलता राजेश खन्ना के सिर पर चढ़ गई. कहते हैं एक समय ऐसा भी आया जब राजेश खन्ना का घमंड, बदमिजाजी लोगों को नागवार लगने लगी और लोग उनसे कटने लगे. उनके अहंकार और चमचों से घिरे रहने की उनकी आदत ने धीरे धीरे उन्हें सक्सेस से दूर कर दिया. राजेश खन्ना के इसी एटीट्यूड की वजह से मनमोहन देसाई, शक्ति सामंत, ऋषिकेश मुखर्जी और यश चोपड़ा ने उन्हें छोड़ अमिताभ को लेकर फिल्म बनाना शुरू कर दी.
जब गुलज़ार को रात एक बजे तक ऑफिस के बाहर इंतज़ार करवाया राजेश खन्ना ने
गुलज़ार साहब हृषिकेश मुखर्जी की ज़्यादातर फिल्मों के गीत लिखा करते थे और हृषिकेश दा की अधिकतर फिल्मों में लीड रोल में राजेश खन्ना हुआ करते थे. इसी वजह से राजेश खन्ना और गुलज़ार में अच्छी बॉन्डिंग हो गई. इसलिए जब गुलज़ार ने फ़िल्म 'किनारा' को डायरेक्ट करने का फैसला किया, तो उनके मन में सबसे पहला नाम राजेश खन्ना का ही आया, लेकिन जिस तरह से राजेश खन्ना ने उन्हें ऑफिस बुलाकर रात 1 बजे बिना उनसे बात किये ही लौटा दिया, उसके बाद से गुलज़ार साहब ने उन्हें हमेशा के लिए अपने ज़ेहन से निकाल दिया.
खन्ना दरबार में चमचों की बैठकों ने काका का दिमाग खराब कर दिया था
हुआ यूं कि सक्सेस के नशे में चूर काका के बंगले आशीर्वाद में हर शाम को ‘खन्ना दरबार’ सजाया जाता. इस दरबार में सुपर स्टारडम के साथ उनकी ज़िंदगी में आए ‘नए दोस्त’ और ‘चमचे’ बैठक जमाते थे. शराब की चुस्कियों के साथ राजेश खन्ना की तारीफ शुरू होती जो देर रात तक चलती रहती. यहां काका का हर शब्द हुक़्म था और उसे मानना उनके इन ‘चमचों’ का फर्ज़. जी-हुज़ूरी करने वाले यही लोग धीरे-धीरे उन्हें हक़ीक़त से किस क़दर दूर ले गए, इसका अंदाज़ा शायद राजेश को उस समय बिलकुल नहीं हुआ.
जब गुलज़ार साहब ने 'किनारा' में काका को लेने की ख्वाहिश के बारे में उन्हें बताया तो काका ने फ़िल्म के कहानी सुनने के लिए गुलज़ार को अपने बंगले में बुला लिया. गुलज़ार साहब ठीक 7 बजे आशीर्वाद पहुंच गए. लेकिन तब तक काका का खन्ना दरबार सज चुका था, जिसमें उनके चमचों ने जाम उठाना शुरु कर दिया था. चूंकि गुलज़ार साहब शराब नहीं पीते थे, तो उनसे बाहर ही रुकने को कहा गया.
पीने-पिलाने का ये दौर रात एक बजे तक चलता रहा और गुलज़ार साहब बाहर बैठे महफ़िल के खत्म होने का इंतज़ार करते रहे. रात एक बजे जब काका की महफ़िल खत्म हुई, तब भी वे गुलज़ार से नहीं मिले और उन्हें घर जाने व दूसरे दिन आने को कह दिया.
काका के इस एटिट्यूड से गुलज़ार साहब इतने आहत हुए कि उन्होंने काका के साथ कभी फ़िल्म न करने की कसम खा ली. इतना ही नहीं, इस इंसिडेंस के बाद उन्होंने काका की फिल्मों के लिए गाने लिखने भी बन्द कर दिये.
खैर बाद में गुलज़ार ने जितेंद्र को लेकर 'किनारा' बनाई, जो उनके करियर की बेहतरीन फिल्मों में से एक मानी जाती है.
इस तरह राजेश खन्ना ने अपने अहंकार और लापरवाही से गुलज़ार के रूप में न सिर्फ एक अच्छा दोस्त खो दिया, बल्कि उनकी लिस्ट से एक और बेहतरीन फिल्ममेकर भी माइनस हो गया.