कोरोना महामारी के दौरान लंबे समय तक काम करना और घर से काम करने यानी वर्क फ्रॉम होम में महिलाओं को सबसे ज्यादा काम करना पड़ा. उन्हें कामकाजी यानी प्रोफेशनल के साथ-साथ हाउस वाइफ़ और घर पर सबका ख़याल रखने की भूमिका भी निभानी पड़ी. भारत में 80% से ज्यादा कामकाजी महिलाओं पर कोविड-19 के दौरान नकारात्मक प्रभाव पड़ा है. कामकाजी जीवन को संतुलित करना बेहद मुश्किल हो गया है. भारत के औपचारिक क्षेत्र में महिला कामगारों पर कोविड-19 के प्रभाव से संबंधित एक रिपोर्ट में यह खुलासा हुआ है.
एस्पायर फॉर हर और सस्टेनेबल एडवांसमेंट ‘वुमेन@वर्क’ रिपोर्ट जारी की है, इसके अनुसार सर्वेक्षण में भाग लेने वाली कामकाजी महिलाओं में 38.5% ने कहा कि घर का काम बढ़ जाने, बच्चों की देखभाल के साथ बुजुर्गों का ख्याल रखने जैसे कामों से उनपर प्रतिकूल असर हुआ. 43.7% ने कहा कि कामकाजी जीवन से संतुलन बनाना सबसे मुश्किल हो गया है.
इस रिपोर्ट पर एक वर्चुअल पैनल चर्चा का भी आयोजन किया गया था, जिसमें कई जाने-माने पैनेलिस्ट थे. ये हैं - सुश्री मधुरा दासगुप्ता सिन्हा (एस्पायर फॉर हर की संस्थापक और सीईओ), डॉ. नयन मित्रा (सस्टेनेबल एडवांसमेंट्स के संस्थापक), सुश्री निष्ठा सत्यम (डिप्टी कंट्री रिप्रेजेंटेटिव, यूएन वूमेन) और सुश्री नव्या नवेली नंदा (संस्थापक, प्रोजेक्ट नवेली और सह-संस्थापक तथा सीएमओ आरा हेल्थ). हमिंगबर्ड एडवाइजर्स की सीईओ सुश्री पूर्णिमा शेनॉय ने इसका संचालन किया.
इस रिपोर्ट के अनुसार जो सबसे आम प्रतिक्रिया मिली वह यह कि महामारी के समय उन्हें ज्यादा समय तक ज्यादा परिश्रम के साथ काम करना पड़ा. इस तरह काम और जीवन के बीच संतुलन बिगड़ गया. मिड करियर यानी 16-20 साल काम करने का अनुभव रखनेवाली महिलाओं में 50.4% ने इसका कारण बताया, घर के बढ़े हुए काम के कारण यह बोझ बढ़ा. इनमें बच्चों और बुजुर्गों की देखभाल शामिल है.
रिपोर्ट पर चर्चा करते हुए एस्पायर फॉर हर की संस्थापक और सीईओ सुश्री मधुरा दासगुप्ता सिन्हा ने कहा, इस महामारी का महिलाओं पर बहुत ही गहरा असर हुआ है और ये अलग-अलग क्षेत्रों में काम करनेवाली महिलाओं ने खुद महसूस किया है. इस रिसर्च से हमें रणनीति में बनाने में काफी मदद मिलेगी, जिससे हम करियर में आगे बढ़ने की चाह रखनेवाली महिलाओं को मानसिक रूप से संबल दे पाएंगे और उनकी मनःस्थिति को बेहतर बना पाएंगे. इस रिसर्च से हमें पांच पॉइंट्स पर बदलाव लाने में सहायता मिली है, इनमें मेनटॉर और रोल मॉडल, सीखने और रीस्किलिंग के मौके, करियर की समीक्षा और मौके तथा मजबूत टीम व सपोर्ट की आवश्यकता शामिल है. ये रिसर्च 800 महिलाओं पर हुआ है, जिसमें मुंबई, कोलकाता, बेंगलुरु, दिल्ली, चेन्नई, हैदराबाद, भुवनेश्वर, रांची, जयपुर, पुणे और अहमदाबाद जैसे शहरों को शामिल किया गया.
सिुश्री पूर्णिमा शेनॉय, सीईओ - हमिंगबर्ड एडवाइजर्स ने कहा, दुनिया जब कोविड-19 वायरस के प्रभाव से जूझ रही थी तब एक और वायरस था जो सामाजिक संरचनाओं को प्रभावित कर रहा था. दुनिया भर में कामकाजी महिलाएं, सबसे ज्यादा प्रभावित हुईं और यह बढ़ती बेरोजगारी के कारण था. रिपोर्ट से पता चलता है कि महामारी के दौरान जेंडर के आधार पर असमानताएं और भेदभाव काफ़ी हावी था. महिलाओं के साथ भेदभाव वाला व्यवहार किए जाने या फिर घरेलू काम की जिम्मेदारी के बंटवारे का अनुपात ठीक नहीं होने से महिलाएं काफ़ी परेशान रहीं.
विभिन्न प्रोफ़ेशन व क्षेत्रों में पुरुषों-महिलाओं के बीच फ़र्क़ पर भी रिसर्च ने प्रकाश डाला है- कोविड-19 के कारण अपनी नौकरी गंवाने वाली 61.1% महिलाओं ने महसूस किया कि महिलाएं पुरुषों की तुलना में ज्यादा बुरी स्थिति में हैं, इसके बाद वो महिलाएं हैं जिन्होंने ब्रेक लिया (46.7%), फिर कामकाजी महिलाएं (42.3%) जबकि 35.6% छात्राएं और स्व रोजगार करने वाली 30.3% महिलाएं ऐसा मानती हैं.
स्वरोज़गार वाली महिलाएं बेहद प्रभावित हुईं: रिपोर्ट में कहा गया की स्वरोजगार करने वाली 41.6% महिलाओं ने बताया कि वे कोविड-19 से नकारात्मक रूप से प्रभावित हुई थीं. कोई नया बिज़नेस मॉडल अपनाने के मामले में सबसे बड़ी समस्या मार्केट में सप्लाई और डिमांड को समझने या अनुमान लगाने में अपर्याप्त जानकारी और आर्थिक संसाधनों की कमी रही है.
सुश्री नव्या नवेली नंदा, संस्थापक - प्रोजेक्ट नवेली और सह-संस्थापक तथा सीएमओ आरा हेल्थ ने कहा: कोविड महामारी के चलते स्व रोज़गार वाली महिलाओं के लिए कई चुनौतियाँ खड़ी हो गई, वो पूरी तरह से अकेली पड़ गईं, जबकि इसके लिए एक सामूहिक मंच aur प्रयास की आवश्यकता है - एक ऑनलाइन कम्यूनिटी होनी चाहिए जहां अपने अनुभव और स्ट्रगल स्टोरीज़ को शेयर किया जा सके और करियर के लिए संसाधन, सुविधाएं व अन्य तरह की मदद मुहैया कराए जा सकें. उस हिसाब से ये रिसर्च काफ़ी लाभकारी व आंखें खोलनेवाला है.
सस्टेनेबल एडवांसमेंट्स के संस्थापक और रिपोर्ट को लिखनेवाले डॉ. नयन मित्रा, सीएसआर के विशेषज्ञ हैं उनका मानना है कि यह रिपोर्ट भारत में महिलाओं और पुरुषों को सतर्क करने के लिए है. अगर हम ऐसा करते हैं जो हम पिछले 15 वर्षों से करते आए हैं तो देश उच्च शिक्षित, विविध क्षेत्रों में काम करने योग्य शानदार प्रतिभा के इस भंडार को खो देगा और खरबों डॉलर की अर्थव्यवस्था हाथ से निकल जाएगी.
- शिक्षा क्षेत्र में काम करने वाली 50.6% महिलाओं ने महसूस किया कि महामारी के दौरान पुरुषों की तुलना में महिलाएं अधिक खराब स्थिति में थीं. कई टीचर्स को ऑनलाइन वीडियो प्लेटफॉर्म की मदद लेनी पड़ी, लेकिन जो इतने टेक्नोसैवी नहीं थे उनके लिए ये जीवन का सबसे मुश्किल काम था. 21.8% महिलाओं ने महसूस किया कि उनपर नकारात्मक प्रभाव पड़ा और कहा कि उनमें से ज्यादातर (54.1%) को कठिन / लंबे समय तक काम करना पड़ा जबकि 41.8% ने कहा कि उनपर गृहकार्य / बच्चों की देखभाल / बुजुर्गों का ख्याल रखने का अतिरिक्त बोझ था.
पिछले 15 वर्षों से महिलाओं से संबंधितग्लोबल जेंडर गैप इंडेक्स में उनका खराब होता रैंक चिंता का एक बड़ा कारण है, जो महामारी से और बिगड़ा है. ऐसे में ye रिसर्च आंखें खोलनेवाला है जिससे महिलाओं की स्थिति को बेहतर करने की दिशा में कदम ज़रूर बढ़ाया जा सकता है! इंटरनेशनल विमन्स डे पर इतना तो किया और सोचा ही जा सकता है!