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विश्व कविता दिवस पर विशेष: कविता- चक्रव्यूह (World Poetry Day: Poem- Chakravyuh)

यह युद्ध की ललकार तो नहीं थी
फिर क्यों?
तुम्हारे अदृश्य चक्रव्यूह की
दुरूह रचना में
मैं स्वयं ही चली आई हूँ
वीर अभिमन्यु की तरह
और अब लौटने का पथ ज्ञात नहीं
या कहूँ
मैं लौटना चाहती ही नहीं
यद्यपि आकण्ठ डूबी हूँ यहाँ
तुम्हारे प्यार की दलदल में
सब ओर से घिरी हूँ
तुम्हारी उपस्थिति के एहसास से
और जानती हूँ कि
मेरा अंत यहीं निश्चित है
पर मैं मृत्यु से घबराती नहीं
अभिमन्यु हूँ न!
बस शर्त यही है
कि तुम सामने डटे रहो
हालाँकि
यह युद्ध की ललकार नहीं है!

Usha Wadhwa
उषा वधवा

यह भी पढ़े: Shayeri


Photo Courtesy: Freepik

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