सोमू बोला, "तुमने कहा था उसे मुझ से ज़्यादा प्यार देना. तुम्हारी बात मानता हूं, उसे बहुत प्यार करता हूं."
वह हंसी, "जानती हूं तुम्हारी आंखें नम हैं, आंसू पोंछ लो." उसकी आवाज़ बात करते हुए भर्रा गई थी. जब वह कह रहा था, तुमने कहा था...
मोबाइल लगातार बज रहा था, उसने नज़र दौड़ाई. कोई अनजान नंबर था. अमूमन वह फ़ालतू कॉल नहीं उठाता, फिर भी नंबर पर स्पैन नहीं लिखा था सो उसने पिक कर लिया.
कोई हैलो हाय नहीं उधर से आवाज़ आई, "हैप्पी बर्थ डे सोमू."
ओह आज तो उसका जन्मदिन है और कोई इतना क़रीबी है, जो उसे सोमनाथ न कह कर सोमू कह रहा है. आख़िर कैसे पूछे कि कौन बोल रहा है. उसने औपचारिकता में थैंक्स तो कह दिया फिर बोला, "मैं बस आधे घंटे में कॉल करता हूं ड्राइव कर रहा हूं."
मगर अब उसका ध्यान गाड़ी चलाने में नहीं था. यह घर से ऑफिस तक का सफ़र उसे बहुत बड़ा नज़र आ रहा था. उसे लग रहा था किसी तरह वह ऑफिस पहुंच गाड़ी पार्क कर दे, बॉस को शकल दिखा दे और कॉल बैक करे.
अचानक उसका माथा ठनका, उसका बर्थ डे तो एक दिन पहले बीत चुका है. सभी बधाई दे चुके हैं उसने सभी को जवाब भी दे दिया है. लेकिन बोलने वाला बड़े विश्वास और अपनेपन से बर्थडे की शुभकामना दे रहा है. उसकी आवाज़ में कहीं कोई संदेह नहीं है. उसने बी लेटेड हैप्पी बर्थडे भी नहीं कहा.. उफ़्फ़ कौन है ये?
उसके बर्थडे की यह तारीख़ तो सिर्फ़ दो ही लोग जानते थे. एक चाचाजी और दूसरी वो.
आवाज स्त्री की थी चाचाजी की नहीं, ओह तो क्या वो हो सकती है? लेकिन आज पच्चीस साल से भी अधिक वक़्त बीत चुका है उसका कॉल क्यों आएगा. उसे याद नहीं आख़िरी बार उससे कब बात हुई थी और फिर उसका मोबाइल नंबर उसे कैसे मिल सकता है? उसने कोशिश की आवाज़ पहचान ले, लेकिन मुश्किल हुई. हां, कुछ भ्रम तो हुआ कि शायद वही टोन है, वही आवाज़ है, मगर बिना आश्वस्त हुए ऐसा कैसे कह सकते हैं कि यह वही है. ट्रू कॉलर कोई अजीब सा पुरुषोचित नाम दिखा रहा था.
उसके दिमाग़ ने काम करना बंद कर दिया था. उसकी तो शादी हो गई थी किसी ने बताया था. फिर ऐसी कोई बात नहीं थी. सब कुछ तो ख़त्म हो चुका था शादी के बाद या कहें कॉलेज से निकलने के बाद. न उसने उससे मिलने की कोशिश की थी और न ही उसने कभी उस से संपर्क साधा था. वक़्त बीतते देर नहीं लगती. वह आधा घंटा भी बीत गया, जो सड़क पर गुज़रना था. वह भीड़-भाड़ पार कर ऑफिस की पार्किंग में गाड़ी लगा चुका था. उसने गाड़ी से उतर कर बाल ठीक किए, मोबाइल उठाया. आज उसके चेहरे पर कुछ अलग मुस्कुराहट थी. उसके पैर जैसे उड़े जा रहे थे. उसने बॉस को शकल दिखाई, विश किया और केबिन से बाहर निकल गया, "बस सर अभी आया." बोल कर उसने झट से घर पर मैसेज डाला कि ऑफिस पहुंच गया हूं कि कहीं श्रीमती जी परेशान न हों या बीच में कोई पैनिक कॉल न आ जाए.
वह ऑफिस के लॉन में पहुंचा और झट से उसी नंबर पर कॉल बैक करने लगा. वह जैसे इंतज़ार कर रही थी, दूसरी रिंग होने से पहले ही फोन उठ गया.
"हैप्पी बर्थ डे सोमू, कैसे हो? लाइफ़ कैसी चल रही है?" अब संदेह की कोई गुंजाइश नहीं थी वही आवाज़ थी और वही अंदाज़.
"क्या कहूं... ठीक हूं. लाइफ भी ठीक चल रही है. तुम कैसी हो और वो कैसे हैं?" वो अर्थात् उसके पति देव. वह बोली, "ठीक हैं बस चल रही है."
"तुमने कभी मिलने की कोशिश ही नहीं की इतनी दूर भी तो नहीं थी कि आ न पाते. तुम्हारी सर्विस लग गई है, यह पता चला था." उसने कोई जवाब नहीं दिया. बोला, "वो ऑफिस गए हैं क्या?" वह समझ गई उसके पति के लिए पूछ रहा है सोमू.
बोली, "नहीं भीतर के कमरे में काम कर रहे हैं. तुम उनकी चिंता मत करो मैं देख लूंगी डरपोक!" वह सकपका गया.
उसने पूछा, "शादी हो गई?"
सोमू बोला, "हां, तुम्हारी शादी के बाद ही की थी."
वह बोली, "पागल, हमारी शादी थोड़ी हो सकती थी और हर रिश्ता शादी में बदल जाए ज़रूरी तो नहीं है.
वो कैसी है? वो मतलब तुम्हारी पत्नी!"
सोमू, "अच्छी है."
"घरवालों ने की."
"हां."
"एक बात कहूं..."
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"बोलो न मुझ से कहने में कब से संकोच करने लगे."
उसने बात बदल दी, "तुम्हारी शादी कैसी चल रही है? कितने बच्चे हैं?"
वह हंसी, "वह बोलो जो कहना चाहते थे. मुझ से कुछ नहीं छुपा पाओगे. रही मेरी बात तो एक बेटा एक बेटी है. शादी शादी होती है जैसी हमारे देश में सबकी चलती है, बस वैसी ही चल रही है. तुम बताओ."
"कुछ नहीं दो बेटे हैं, छोटे हैं."
"वाह! बधाई हो! क्या कहना चाह रहे थे बोलो."
सोमू बोला, "तुमने कहा था उसे मुझ से ज़्यादा प्यार देना. तुम्हारी बात मानता हूं, उसे बहुत प्यार करता हूं."
वह हंसी, "जानती हूं तुम्हारी आंखें नम हैं, आंसू पोंछ लो." उसकी आवाज़ बात करते हुए भर्रा गई थी. जब वह कह रहा था, तुमने कहा था...
"अच्छा सुनो, मेरी बेटी से मिलोगे वहीं मुंबई में पढ़ रही है."
वह चौंका, "क्या कह रही हो... तुम मुझे कॉलेज से जानती हो और बेटी से मिलने को बोल रही हो. उसे क्या कहोगी?"
उसने कहा, "कुछ नहीं बोल दूंगी दूर के रिश्ते में हैं, मिल लो. कोई ज़रूरत पड़ी तो हेल्प करेंगे. तुम्हें कुछ नहीं करना, वो इंजीनियरिंग कर रही है, ख़ुद मिल लेगी."
सोमू ने सोचा, बोला, "तुम क्या कह रही हो जानती हो. तुम्हारे संदेश के बाद भी मैं सर्विस लगने के बाद तुमसे मिलने नहीं आया था. तुम्हें यह बात भी पता है."
"हां सब जानती हूं."
'फिर भी तुम मुझे बेटी से मिलवाना चाहती हो. मुझ पर इतना भरोसा."
उसने कहा, "पगले, हाथ पकड़ने, साथ घूमने और इश्क़ करने से कोई कैरेक्टर लेस नहीं हो जाता. सब कुछ के बाद भी मुझे तब भी तुम्हारे चरित्र पर भरोसा था और आज भी है."
उसकी आंखे नम हो गईं. सोमू बोला "सुनो, दोनों की ज़िंदगी अच्छी चल रही है. यह जो एहसास है कुछ और है. इसे दिल में ही बसे रहने दो. पारूल मैं नहीं जानता कि कॉलेज में मुझे तुमसे इश्क़ था कि नहीं, लेकिन यह जो तुम्हारा भरोसा है वह ज़रूर इश्क़ है. इश्क़ कुछ और है वह नहीं जो दिखाई देता है या दिखाया जाता है. हमारी बेबाक़ी और समझ कुछ और है इसे ऐसे ही बने रहने दो. यह बात यहीं ख़त्म होती है. मैं चाह कर भी तुम्हारी बेटी से नहीं मिलूंगा. तुम्हें मुझ पर भरोसा है, यह हमारा इश्क़ है, लेकिन मैं ख़ुद को बहकने के लिए छोड़ दूं तो सब कुछ बिखर जाएगा."
"हां, नंबर सेव नहीं कर रहा हूं यह नहीं पूछूंगा मेरा नंबर कहां से और कैसे मिला. आज जब टेली मार्केटिंग वाले सर्च कर नंबर ढूंढ़ लेते हैं. किसी ज़माने में हम टेलीफोन डायरेक्टरी में नंबर ढूंढ़ लेते थे तो आज किसी का नम्बर ढूंढ़ लेना कोई बड़ी बात नहीं है. हां, आज मुझे इश्क़ की एक परिभाषा और मिली है, जिसे अटूट विश्वास कहते हैं. भरोसा कहते हैं."
सोमू की आंखें नम थीं. उसे पता था पारुल भी इमोशनल हो चुकी है, लेकिन वह बहुत मज़बूत लड़की थी. अपने जज़्बातों पर काबू रखना जानती थी. इससे पहले कि वह कुछ और सोचता, देखा तो सामने से साहब का पीए चला आ रहा है.
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"अरे सर, आप कहां हैं साहब आपको ढूंढ़ रहे हैं. बड़ी देर से फोन लगा रहा हूं लगातार बिज़ी आ रहा था." सोमू ने ख़ुद को संभाला, "अरे बस अभी आया तुम चलो." उसने रूमाल से आंख पोंछी वॉश रूम में मुंह धो कर शीशे में चेहरा देखा उसने. मोबाइल से वह नंबर और कॉल हिस्ट्री डिलीट की और ख़ुद से ही बोला, "पारुल हो सके तो एक बार फिर मुझे माफ़ कर देना, आई एम सॉरी!"
- शिखर प्रयाग

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