Close

कहानी- आओ दीये जलाएं… 3 (Story Series- Aao Diye Jalayen… 3)

फिर उत्सव के पास आकर उसकी आंखों में बड़े प्यार से झांककर बोली, “तुम अब घर जाओ. आंटीजी के साथ बाकी सामान मैं पहुंचा आऊंगी और हां, बिना तुम्हारी मदद के मैं आज कुछ न कर पाती... थैंक्यू...” प्रत्युत्तर में उत्सव मुस्कुरा दिया. उन दोनों के बीच की केमेस्ट्री देख वेदांत ने उर्मिला की ओर गहरी नज़र से देखा. उर्मिला, वेदांत व उत्सव घर के लिए निकल चुके थे. आसपास बजते पटाखे और रोशनी की रौनक़ के बीच उत्सव के सुनाए ‘आओ दीये जलाएं’ मुहिम के भावुक अनुभव सुनते-सुनते कब घर आया, पता ही नहीं चला. अस्त-व्यस्त घर में चारों ओर बिखरे सामान के साथ गिफ़्ट रैपर और जूठे बर्तन पड़े थे. घर को अजीब नज़रों से देखती उर्मिला को देख सुदीप्ता कुछ झेंप-सी गई. बैठने के बाद वेदांत-उर्मिला ने नोटिस किया कि हर थोड़ी देर में घर की कॉलबेल बजती. मेहमान आते दिवाली की शुभकामना के साथ सुदीप्ता को  छोटे-बड़े पैकेट थमाते और वह उन्हें ‘थैंक्यू’ बोलती और फिर वो चले जाते. वेदांत-उर्मिला की आंखों में प्रश्‍न देखकर उत्सव ने बताया. “मम्मी इस बार सुदीप्ता ने एक मुहिम चलाई है, जिसका नाम है ‘आओ दीये जलाएं’. सुख-सुविधा से वंचित लोग दिवाली का त्योहार ख़ुशी-ख़ुशी मना पाएं, इसलिए लोगों से खिलौने, बर्तन, मिठाई, नए कपड़े और खाना इकट्ठे करके हम उन लोगों तक पहुंचा रहे हैं, जिनके लिए दीपावली का त्योहार मनाना एक सपना है.” सुदीप्ता भी उत्साह से बोल पड़ी, “मम्मीजी, इस बार दिवाली कुछ ख़ास तरी़के से मनाने का मन किया, तो बस यही तरीक़ा सूझा. अभावग्रस्त लोगों के घर अचानक दीये, पटाखे व खाना लेकर पहुंचो, तो उनके चेहरों पर मुस्कान और ख़ुशी देखनेवाली होती है.” “ये विचार अपने आप में लाना बहुत बड़ी बात है क्यों उर्मिला?...” वेदांत ने सुदीप्ता की सराहना करते हुए उर्मिला की ओर कुछ अच्छा सुनने की उम्मीद से देखा, पर वह चुप रही. अलबत्ता  सुदीप्ता ने बड़ी सरलता से कहा, “अंकल ये सब मैं अकेले नहीं कर पाती, अगर मुझे उत्सव, मेरी मकान मालकिन और कॉलोनी के बाकी लोगों का साथ नहीं मिलता. इस मुहिम की सफलता देखिए, अभी भी लोग इस उम्मीद से सामान ला रहे हैं कि हम उन्हें ज़रूरतमंदों तक पहुंचाएंगे.” यह भी पढ़ेफेस्टिवल फैशन: इस फेस्टिव सीज़न में पहनें लॉन्ग ट्रेडिशनल जैकेट (Festival Fashion: Long Traditional Jacket For Festive Season) “तुम मुझे बताती, तो मैं भी कुछ ले आती...” उर्मिला के कहने पर वह भावुकता से बोली, “मम्मी, दिवाली के दिन घर छोड़कर आप मुझसे मिलने आईं, ये क्या कम है.” पूरे उत्साह से वह उर्मिला को बता रही थी, “मम्मी, आज मेरा रियल टेस्ट हुआ. पूरे चार किलो आलू की जीरेवाली सब्ज़ी और तीन किलो आटे की पूरियां बनाईं और साथ में हलवा भी... पर हां, ये सब मैंने अकेले नहीं किया. आंटी, मतलब मेरी मकान मालकिन ने मेरी पूरी मदद की. मम्मी, मेरे हाथ का हलवा खाएंगी...?” जवाब सुने बगैर वह रसोई में चली गई. उनके आने की ख़बर सुदीप्ता की मकान मालकिन को भी मिल गई थी, सो वो भी चाय, नमकीन और मिठाई लिए चली आईं. बातों-बातों में उन्होंने सुदीप्ता की तारीफ़ करते हुए कहा, “आज ऐसे बच्चे इस घर में मेहमान बनकर आए हैं, जिन्हें हम घर में घुसने नहीं देते, पर सुदीप्ता ने उन्हें खाना खिलाया, गेम खिलाए और तोह़फे दिए... सच बताऊं, तो मुझे भी त्योहार मनाने का ये निराला ढंग बहुत भाया.” कुछ देर में सुदीप्ता अपने हाथ का बनाया हलवा  माइक्रोवेव में गर्म करके ले आई. जाने क्यों उसका स्वाद उर्मिला को प्रसाद-सा मालूम हुआ, जो हर हाल में स्वादिष्ट लगता है. घर आए बस्ती के बच्चों की टोली को बहलाती, उनसे बात करती सुदीप्ता का थकान में डूबा पसीने से लथपथ चेहरा जाने क्यों उर्मिला को भला लगा. उत्सव उर्मिला को सफ़ाई दे रहा था, “मम्मी, आपको बुरा तो नहीं लगा, जो आज त्योहार के दिन यहां आ गया. मैं तो बस इससे मिलने आया था. यह आसपास की झुग्गी-झोपड़ी के ढेर सारे  बच्चों को बटोरकर खाना खिला रही थी. ढेर सारे गिफ़्ट बांटने के लिए रखे थे. मुझे लगा इसकी मदद कर दूं... तोह़फे बांटने निकल गए. फिर बच्चों के साथ दीये जलाए, तो समय का पता ही नहीं चला... तोह़फे देने का एक्सपीरिएंस तो अमेज़िंग था. एक सफ़ाईकर्मी तो पटाखे-मिठाई देख रो ही पड़ा... मैंने हाथ जोड़कर कहा, “दादा छोटी-सी चीज़ है इतनी भावुकता क्यों?” यह सुनकर वो बोले, “भइया, चीज़ें छोटी-बड़ी कौन देख रहा है. मैं तो आज देनेवाले के भाव पर बेमोल बिक गया.” इधर-उधर की बातचीत के बीच सुदीप्ता लाए हुए गिफ़्ट एक बड़े थैले में समेटती रही. फिर उत्सव के पास आकर उसकी आंखों में बड़े प्यार से झांककर बोली, “तुम अब घर जाओ. आंटीजी के साथ बाकी सामान मैं पहुंचा आऊंगी और हां, बिना तुम्हारी मदद के मैं आज कुछ न कर पाती... थैंक्यू...” प्रत्युत्तर में उत्सव मुस्कुरा दिया. उन दोनों के बीच की केमेस्ट्री देख वेदांत ने उर्मिला की ओर गहरी नज़र से देखा. उर्मिला, वेदांत व उत्सव घर के लिए निकल चुके थे. आसपास बजते पटाखे और रोशनी की रौनक़ के बीच उत्सव के सुनाए ‘आओ दीये जलाएं’ मुहिम के भावुक अनुभव सुनते-सुनते कब घर आया, पता ही नहीं चला. घर में अन्विका रंगोली के पास रखे दीयों में मनोयोग से तेल डालती दिखी. अगले दिन, दिन चढ़ने पर रंगोली के रंग एक-दूसरे पर चढ़े हुए कुछ बदरंग से दिखे. दीयों से तेल सूख गया था. उनके किनारे कालिख-सी देख उसने दीये हटा दिए. सावधानी के बावजूद शाम तक रंगोली का पूर्व रूप वह कायम ना रख पाई. दूसरे दिन अन्विका चली गई और सुदीप्ता घर आ गई. टॉम बॉय चहकती सुदीप्ता के आने से घर का कोना-कोना मुस्कुरा उठा. उत्सव के साथ हंसते-खिलखिलाते उसे देख लगा मानो घर में आज लक्ष्मी का प्रवेश हुआ है. यह भी पढ़ेजीवन के हर पल को उत्सव बनाएं (Celebration Of Life) बनाव-सिंगार न होने के बावजूद सुदीप्ता के दीप्त चेहरे की कोमलता और सहज मुस्कान आज जाने क्यों उर्मिला का ध्यान कुछ ऐसे खींच रही थी जैसे वह उसे पहली बार देख रही हो. उसे अपने भीतर कुछ बदला-बदला-सा लगा, तो वह समझ गई कि सुदीप्ता वही है, बस उसे देखने-परखने का नज़रिया बदल चुका है. Meenu Tripathi      मीनू त्रिपाठी

अधिक शॉर्ट स्टोरीज के लिए यहाँ क्लिक करें – SHORT STORiES

Share this article

https://www.perkemi.org/ Slot Gacor Slot Gacor Slot Gacor Slot Gacor Situs Slot Resmi https://htp.ac.id/ Slot Gacor Slot Gacor Slot Gacor Slot Gacor Slot Gacor Slot Gacor Slot Gacor https://pertanian.hsu.go.id/vendor/ https://onlineradio.jatengprov.go.id/media/ slot 777 Gacor https://www.opdagverden.dk/ https://perpustakaan.unhasa.ac.id/info/ https://perpustakaan.unhasa.ac.id/vendor/ https://www.unhasa.ac.id/demoslt/ https://mariposa.tw/ https://archvizone.com/