हज़ारों तीर किसी की कमान से गुज़रे
ये एक हम ही थे जो फिर भी शान से गुज़रे
कभी ज़मीन कभी आसमान से गुज़रे
जुनून-ए-इश्क़ में किस-किस जहान से गुज़रे
किसी की याद ने बेचैन कर दिया दिल को
परिंदे उड़ते हुए जब मकान से गुज़रे
जिन्होंने अहदे-वफ़ा के दीये बुझाए थे
तमाम नाम वही दास्तान से गुज़रे
हमारे इश्क़ का आलम तो देखिए साहिब
रहे-वफ़ा में बड़ी आनबान से गुज़रे
न आया हर्फ़े-शिकायत कभी भी होंठों पर
हज़ार बार तिरे दर्मियान से गुज़रे
कभी दिमाग़ कभी दिल ने हार मानी है
तमाम उम्र यूं ही इम्तिहान से गुज़रे
जो आज बच के गुज़रते हैं बूढ़े बरगद से
कभी ये लोग इसी सायबान से गुज़रे
हमारे शेर हैं मशहूर इसलिए 'डाॅली'
हमारे शेर तुम्हारी ज़ुबान से गुज़रे…
- अखिलेश तिवारी 'डाॅली'
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