देख लेती हूं तुम्हें ख़्वाब में सोते-सोते
चैन मिलता है शब-ए-हिज्र में रोते-रोते
इक तेरे ग़म के सिवा और बचा ही क्या है
बच गई आज ये सौगात भी खोते-खोते
प्यार फलने ही नहीं देते बबूलों के शजर
थक गए हम तो यहां प्यार को बोते-बोते
बेवफ़ा कह के उसे छेड़े हैं दुनिया वाले
मर ही जाए न वो इस बोझ को ढोते-ढोते
इतनी दीवानी बनाया है किसी ने मुझको
प्यार की झील में खाती रही गोते-गोते
ऐसा इल्ज़ामे-तबाही ये लगाया उसने
मुद्दतें हो गईं इस दाग़ को धोते-धोते
आ गया फिर कोई गुलशन में शिकारी शायद
हर तरफ़ दिख रहे आकाश में तोते-तोते
तेरे जैसा ही कोई शख़्स मिला था 'डाली'
बच गए हम तो किसी और के होते-होते…
- अखिलेश तिवारी 'डाली'
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