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कविता- झूठ-मूठ का मनुष्यपन… (Kav...
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कविता- झूठ-मूठ का मनुष्यपन… (Kavita- Jhuth-Muth Ka Manushypan)

By Usha Gupta in Shayeri , Geet / Gazal , Short Stories
गर्मी में भी
सबसे ज़्यादा खीझ मनुष्य को हुई
उसने हवाओं को क़ैद किया
बना डाले एसी
और.. रही-सही हवा भी जाती रही
सर्दियों में भी
सबसे ज़्यादा वही ठिठुरा
उसने कोहरे ढकने की कोशिश की
और.. धूप भी रूठी रही
कोहरा भी ज़िद पर अड़ा
बारिश में भी सबसे पहले सीले
मनुष्य के ही संस्कार
परिणामस्वरूप
बारिश नहीं रही अब पहले जैसी
बसंत में भी
उसको नहीं भाया फूलों का खिलना
उसने पेड़ काटे.. जंगल खोदे
परिणामत:
वह भटक रहा है
अपने ही कंक्रीट के जंगलों में
और इस तरह..
वह अंत तक ढोता रहा
अपने झूठ-मूठ के मनुष्यपन को…
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