Close

कविता- झूठ-मूठ का मनुष्यपन… (Kavita- Jhuth-Muth Ka Manushypan)

गर्मी में भी
सबसे ज़्यादा खीझ मनुष्य को हुई
उसने हवाओं को क़ैद किया
बना डाले एसी
और.. रही-सही हवा भी जाती रही

सर्दियों में भी
सबसे ज़्यादा वही ठिठुरा
उसने कोहरे ढकने की कोशिश की
और.. धूप भी रूठी रही
कोहरा भी ज़िद पर अड़ा

बारिश में भी सबसे पहले सीले
मनुष्य के ही संस्कार
परिणामस्वरूप
बारिश नहीं रही अब पहले जैसी

बसंत में भी
उसको नहीं भाया फूलों का खिलना
उसने पेड़ काटे.. जंगल खोदे
परिणामत:
वह भटक रहा है
अपने ही कंक्रीट के जंगलों में

और इस तरह..
वह अंत तक ढोता रहा
अपने झूठ-मूठ के मनुष्यपन को…

Namita Gupta 'Mansi'
नमिता गुप्ता 'मनसी'
Kavita

यह भी पढ़े: Shayeri

Share this article