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काव्य- आईने के एहसास (Kavya- Aaine Ke Ehsaas)

मैं ख्वाब देखता था
तुम ख्वाब हो गए

उम्मीद के शहर में
तुम प्यास हो गए

उम्र मेरी एक दिन
लौट कर के आई

तुम आईने के लेकिन
एहसास हो गए…

मुरली मनोहर श्रीवास्तव

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