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लघुकथा- चेहरा (Laghukatha- Chehra)

"अरे, नहीं मैडम क्यों चलें, आप तो यहां पर आराम से बैठो और अब कुछ देर में आपके शैक्षणिक योगदान पर आपका सम्मान होगा उसके बाद ही वापस चलेंगे."
"पर वो..?" अभी तक घबरा रही थीं, बोलीं, "पर स्कूल में मीडिया."

उनका कितना पुराना सपना सच हो गया था. आमंत्रण पत्र देखकर वो फूली न समा रहीं थीं. उनको शिक्षा-दीक्षा संस्थान ने एक वक्तव्य के लिए सादर आमंत्रित किया था. वो जानती थीं कि यहां से पूरी दुनिया मे समाचार जाएगा और उनका नाम होगा. तो वो नियत दिन, समय पर पहुंच गईं.
शहर के उस प्रतिष्ठित शैक्षिक मंच पर अपने गंभीर विचार रखकर प्राचार्या अपनी सीट पर बैठी ही थीं कि उनके स्टाफ से किसी ने पास आकर कान में कुछ कहा और वो सुनते ही एकदम विचलित हो गईं और उसके बाद वो माफी मांगकर कार्यक्रम स्थल से जल्दी बाहर आ गईं.
घबराते हुए वे बोलीं, "अरे, ये कैसे हो गया स्कूल में. मीडिया तक पहुंच गया. चतुर्थ श्रेणी तथा शिक्षकों मे इतनी बहस हो गई. उफ, ये क्या हुआ, चलो, अब तुरंत स्कूल चलो?"
"अरे, नहीं मैडम क्यों चलें, आप तो यहां पर आराम से बैठो और अब कुछ देर में आपके शैक्षणिक योगदान पर आपका सम्मान होगा उसके बाद ही वापस चलेंगे."

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"पर वो..?" अभी तक घबरा रही थीं, बोलीं, "पर स्कूल में मीडिया."
"अरे, मैम वो तो प्रयोगशाला में तीन शिक्षकों को कई बार मांगने पर भी पीने का पानी नहीं पहुंचाया गया और इसी बात पर झड़प हो गई."
"आप आराम से बैठो. आप पर कोई आंच नहीं आएगी. मैंने स्कूल के प्रबंधन दल में सबको सूचना दे दी है."
वो जैसे तनावमुक्त ही हो गईं.
"अच्छा! ओह तो ये मामला है, चलो जाने दो मैं भीतर जा रही हूं. विचारों का आदान-प्रदान चल रहा है." यह कहकर वो पुनः अपनी कुर्सी पर विराजमान हो गईं.


अब कुछ देर बाद उनका नाम पुकारा जाने वाला था. यह सम्मान दर्जनों चैनल दिखानेवाले हैं. यह विचार उन्हें रोमांचित कर रहा था.
अब वो अपने आप से कहने लगीं कि 'मैं तो बेकार ही घबरा गई थी…' दरअसल, उन्हें लगा कि कहीं उनकी पोल न खुल गई हो कि वो चतुर्थ श्रेणी स्टाफ से निजी काम कराती हैं, जैसे- सिलिंडर लाना, कपड़े ड्राइक्लीन कराना, राशन की खरीद आदि. पर अब वो बिलकुल चिंतामुक्त थीं.

- पूनम पांडे


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