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काव्य- प्रेम युद्ध और मेरी मांग… (Poem- Prem Yudh Aur Meri Mang…)

हे प्रभु
जब मैं तुमसे
प्रेम मांगता था
तब तुमने
जीवन के संघर्ष के
रूप में
मुझे युद्ध प्रदान किया
आज मैं जीवन में
विभिन्न अस्त्र शस्त्र
व उनके संचालन की क्षमता में
पारंगत हो चुका हूं
तुम मुझे प्रेम
करने को कहते हो
आख़िर क्यों?
प्रभु मुस्कुराए और बोले
मैं तुम्हें वही दे सकता हूं
जो तुम्हारे पास नहीं है
बचपन में
तुम्हारे पास
जीवन के रणभूमि में
संघर्ष की
क्षमता नहीं थी
और वह मुझे तुम्हें
वरदान स्वरूप
प्रदान करनी पड़ी
आज तुम
युद्ध करते करते
इतनी दूर निकल आए हो
कि प्रेम भूल गए हो
सो तुम्हें मानवता से
प्रेम करने का वरदान
दे रहा हूं
एक बात और
तुम्हारी मांग
और मेरे प्रतिदान में
थोड़ा सा अंतर है
तुम बचपन में
व्यक्तिगत प्रेम में जीना
और सामाजिक संघर्ष
में निर्वाण चाहते थे
जबकि उस बिंदु पर संघर्ष
के व्यक्तिगत होने की आवश्यकता थी
अर्थात
संघर्षमय जीवन
तुम्हारे लिए
आवश्यक था
आज तुम
शक्ति के दुरुपयोग हेतु
व्यक्तिगत युद्ध
चाहते हो
और मैं तुम्हें
बचाने के लिए
सामाजिक प्रेम
प्रदान कर रहा हूं
बचपन में तुम्हें प्रेम
प्रदान करता
और आज तुम्हें युद्ध
प्रदान करता
तो तुम
भस्मासुर बन जाते
मानव नहीं…

Murali Manohar Srivastava
मुरली मनोहर श्रीवास्तव
Poetry

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