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कविता- प्रेम (Poetry- Prem)

हां
मैं प्रेम करता हूं
बेइंतहा प्रेम
लेकिन मेरा प्रेम
तुम्हारे संसार की
उस परिधि में नहीं आता
जिसे तुम
गुनाह समझते हो
मेरा प्रेम वह भी नहीं है
जो दिखाई दे
यह सिर्फ़ एहसास है
उसके लिए
जो महसूस करना जानते हैं
वरना
ज़िंदगी जीने के लिए तो
रोटी कपड़ा मकान
और इंटरनेट बहुत है…

- मुरली

Poetry

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Photo Courtesy: Freepik

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