कितनी अच्छी चीज़ हैं- शांति, सेवा और न्याय, पर लोग लेना ही नहीं चाहते. थाने जाते हुए पैर कांपते हैं, बीपी बढ़ जाता है. लोग अक्सर अकेले जाने से कतराते हैं. कोई पंगा हो जाए, तो शांति के लिए लोग मोहल्ले के लुच्चे नेता को साथ लेकर थाने जाते हैं. अब शांति का रेट थोड़ा और बढ़ जाता है, क्योंकि थोड़ा विकास नेता को भी चाहिए.
अगर आप सौभाग्यवश पुलिस थाने में घुसते हैं, तो बोर्ड पर लिखे तीन शब्दों पर नज़र पड़ती है- शांति, सेवा और न्याय. ये तीनों चीज़ें थाने में प्रचुर मात्रा में उपलब्ध हैं, पर मिलती उसे हैं जिसकी जेब में 'सौभाग्य' होता है. अगर आप के पर्स में सौभाग्य नहीं है, तो आप की वापसी शांतिपूर्वक संभव नहीं. आप हफ़्तों अशांत हो सकते है. शांति के लिए कुछ भी करेंगे. लोग शांति की खोज में हिमालय पर चले जाते हैं, लेकिन यहां थाने में आपका टीए-डीए बच जाता है. थाने की यही विशेषता है. यहां शांति के साथ शांति की उम्मीद में आनेवाले अक्सर अशांत और असंतुष्ट होकर बाहर आते हैं.
पुलिस ने थाने के दरवाज़े पर कंटिया डाल रखी है, 'यहां पर शांति, सेवा और न्याय मिलता है'… कामयाब व्यापारी कभी दाम नहीं लिखता. आप पहले अंदर तो आओ फिर बताऊंगा कि शांति का बाज़ार भाव क्या है.
अंदर आप अपनी मर्ज़ी से आते हैं, मगर जाएंगे शांति की मर्ज़ी से. जब तक बीट कॉन्स्टेबल संतुष्ट नहीं हो जाता कि अब आप शांति को अफोर्ड कर लेंगे, आपकी कोचिंग चलती रहेगी. शांति बड़ी मुश्किल से मिलती है, इस हाथ दे-इस हाथ ले (नहीं तो ले तेरी की…)
कितनी अच्छी चीज़ हैं- शांति, सेवा और न्याय, पर लोग लेना ही नहीं चाहते. थाने जाते हुए पैर कांपते हैं, बीपी बढ़ जाता है. लोग अक्सर अकेले जाने से कतराते हैं. कोई पंगा हो जाए, तो शांति के लिए लोग मोहल्ले के लुच्चे नेता को साथ लेकर थाने जाते हैं. अब शांति का रेट थोड़ा और बढ़ जाता है, क्योंकि थोड़ा विकास नेता को भी चाहिए. थानेवाले नेता को देखते ही ऐसे खिल उठते हैं गोया आम के पेड़ में पहली बार बौर देखा हो. तीनों अच्छी चीज़ें हैं, पर थाने से कोई लाना ही नहीं चाहता. शरीफ़ आदमी थाने में घुसते हुए ऐसे घबराता है गोया किसी का बटुआ चुराते हुए पकड़ा गया हो. नमूने के तौर पर दिन दहाड़े थाने के पास लुटा शरीफ़ आदमी घबराया हुआ थाने में 'न्याय' की उम्मीद में जाता है. बीट कॉन्स्टेबल पूछता है, "के हो गयो ताऊ."
"एक बदमाश मेरा पर्स छीनकर भागा है."
"तो मैं के करूं. तमै चोर कू दौड़कर पकड़ना था."
"इस उमर में मैं भाग नहीं सकता."
"ता फिर इस उमर में नोट लेकर क्यों हांड रहो ताऊ. ख़ैर, कितने रुपए थे?"
"पांच हजार."
बीट कॉन्स्टेबल खड़ा हो गया, "नू लगे अक कनॉट प्लेस का झपटमार था. इस इलाके के गरीब झपटमार पांच सौ से ऊपर की रकम नहीं छीनते."
"क्यों?"
"ग़रीब इलाका है, ऊपर से कोरोना का कहर. किसी की जेब में सौ-पचास से ऊपर होता ही नहीं. पिछले महीने एक थैला छीनकर एक भागा था. बाद में ईमानदार झपटमार ने थैला यहां मालखाने में जमा करा दिया था."
"क्यों?"
"थैले में दो जोड़ी पुराने जूते थे, जो मरम्मत के लिए कोई ले जा रहा था. झपटमार ने समझा प्याज़ है."
''मैं तो लुट गया, मेरी रिपोर्ट लिखो."
"कोई फायदा नहीं. दुनिया में किसी को एफआईआर से शांति नहीं मिलती. शांति मिलती है गीता के वचन दोहराने से- तेरा था क्या जिसे खोने का शोक मनाते हो. जो आज तेरा है, कल किसी और का हो जाएगा. अब आत्मा को पर्स में नहीं, बल्कि परमात्मा में लगाओ. ये झपटमारी नहीं, विधि का विधान है ताऊ."
शांति के बाद नंबर आता है सेवा का. ये चीज़ थाने में बगैर भेदभाव के मिलती है. इसी के खौफ़ से काफी लोग लुटने, पिटने और अपमानित होने के बाद भी थाने नहीं जाते. सेवा के मामले में नर-नारी का भी भेदभाव नहीं है. कुछ समय से नारी की सेवा के लिए नारी पुलिस की व्यवस्था होने लगी है. कभी-कभी सेवा बर्दाश्त न कर पाने की वजह से लोग थाने में ही वीरगति को प्राप्त हो जाते हैं. इस तरह के सेवा भाव से प्राणी को मरणोपरांत मोक्ष मिले ना मिले, पर सेवादार को प्रमोशन ज़रूर मिलता है.
थाने में उपलब्ध तीसरी दुर्लभ चीज़ है न्याय. ये भी शांति और सेवा की तरह निराकार होती है. थानेदार की पूरी कोशिश होती है कि थाने आनेवाले सारे श्रद्धालुओं को न्याय की पंजीरी प्राप्त हो, पर नसीब अपना अपना. दुविधा में दोनों गए, माया मिली न राम. बीट कॉन्स्टेबल भी यही चाहता है कि वादी और प्रतिवादी दोनों को न्याय की लस्सी मिले. ऐसे में कुछ पाने के लिए कुछ खोना पड़ता है. सेवा के इस मैराथन में जो ज़्यादा खोता है, उसे थोड़ा ज़्यादा न्याय मिलता है. थाने से बाहर आकर वादी और प्रतिवादी दोनों महसूस करते हैं कि न्याय के नाम पर जो कुछ मिला, उसमें से शांति गायब है, लेकिन… अब पछताए होत क्या, जब चिड़िया चुग गई खेत!..
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